आधुनिक भारत

भारत के लिए कितना खतरनाक था धारा-३७० और ३५-A भाग-२

Kashmir
शेयर करें

प्रारम्भ में पाकिस्तान खुद शेख अब्दुल्ला का कश्मीरी मुस्लिमों पर प्रभाव को देखते हुए प्लेबीसाईट से मुकर गया. नेहरु भी शेख अब्दुल्ला के आजाद कश्मीर की मांग से बौखला गए थे लेकिन जम्मू-कश्मीर के भाग्य का फैसला करने वाला तुरुप का पत्ता तो शेख अब्दुल्ला के हाथों में जा पड़ा था. अब जम्मू कश्मीर के भाग्य का फैसला करने का हक न भारत संघ के हाथ में रह गया था न भारतियों के और न ही महाराज हरिसिंह के हाथ में. अब देश का हित अनहित और जम्मू-कश्मीर एवं वहाँ के अल्पसंख्यकों के भाग्य का फैसला करने का हक चंद कश्मीरी मुसलमानों के हाथ में आ गया था. अब नेहरु को समझौता के आलावा कोई रास्ता दिखाई नही पड रहा था. इसलिए आजाद कश्मीर तो नही परन्तु उसके समकक्ष प्रास्थिति प्रदान करनेवाला धारा ३७० को दहेज में देकर जम्मू-कश्मीर की सगाई भारत के साथ करावा दी.

परिस्थिति यह थी कि नेहरु अपने ही शब्दों के जाल में बुरी तरह उलझ चुके थे. शेख अब्दुल्ला पर से तो भरोसा उठ ही गया था साथ ही टूट चूका था प्लेबीसाईट जीतने का दिवास्वप्न. अब प्लेबीसाईट से मुकरना मजबूरी थी. जैसा की नेहरु के कथन से पता चलता है, “अफ़सोस, वर्तमान परिस्थिति प्लेबीसाईट के लिए उचित नही है….परन्तु मैं इसके लिए मना भी नही कर सकता.” उस एक भूल के कारन ही आज तक भारत कश्मीर के सम्बन्ध में अपना मजबूत पक्ष अमेरिका और यू एन ओ को समझाने में असफल रहा था और पाकिस्तान हमेशा से ही अमेरिका के समर्थन का लाभ उठाता आ रहा था.

धारा ३७० का इतिहास

धारा ३७० के इतिहास पर भी एक नजर डालना आवश्यक है. जम्मू-कश्मीर को विशेष प्रास्थिति देने सम्बन्धी ड्राफ्ट ३०६-क बनाया गया जिसे बाद में १७ अक्टूबर १९४९ को सम्बिधान सभा में धारा ३७० के रूप में अयंगर द्वारा पारित करवाया गया. भारतीय सम्विधान का जो प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागु हुआ उसकी घोषणा राष्ट्रपति ने १९५० में सम्विधान आदेश १९५० द्वारा जारी किया जिसमे प्रावधान था कि संसद प्रतिरक्षा, विदेश कार्य तथा संचार के विषय में जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में कानून बना सकती है.

धारा ३७० के अनुसार जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा राज्य के संविधान का निर्माण करेगी और यह निश्चित करेगी की संघ की अधिकारिता किन क्षेत्रों में या विषयों पर होगी. जम्मू-कश्मीर संविधान संशोधन अधिनियम १९५१ के तहत वंशानुगत प्रमुख के पद को समाप्त कर निर्वाचित सदर-ए-रियासत को राज्य का प्रमुख बनाया गया. १९५२ में दिल्ली में भारत सरकार तथा जम्मू-कश्मीर राज्य संविधान सभा के लंबित रहने पर कुछ विषयों पर संघ को अधिकारिता प्रदान की गयी. इस समझौते की अन्य महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित है:

१. भारत सरकार इस बात पर सहमत हुए की जहाँ अन्य राज्यों के मामले में अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र के पास होगी वही जम्मू-कश्मीर की स्थिति में ये शक्तियाँ राज्य के पास ही रहेगी.

२. जम्मू-कश्मीर के निवासी भारत के नागरिक माने जायेंगे लेकिन उन्हें विशेष अधिकार एवं प्राथमिकताएँ देने संबंधी कानून बनाने का अधिकार राज्य विधान सभा को होगा.

३. भारत संघ के झंडे के अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर का अपना अलग झंडा होगा.

४. सदर-ए-रियासत अन्य राज्यों के राज्यपाल के समकक्ष की नियुक्ति जहाँ अन्य राज्यों में संघ सरकार तथा राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी वहीँ जम्मू-कश्मीर के मामले में यह अधिकार राज्य विधान सभा की होगी.

५. राज्य में न्यायिक सलाहकार मंडल के अस्तित्व के कारन सर्वोच्च न्यायलय को केवल अपीलीय क्षेत्राधिकार होगा. ६. दोनों पक्ष इस बात पर सहमत है कि राज्य विधान मंडल के निलंबन से सम्बन्धित अनुच्छेद ३५६ तथा वित्त आपात से सम्बन्धित अनुच्छेद ३६० जरूरी नही है.

जम्मू-कश्मीर संविधान सभा में विलय पर मुहर

केंद्र शासित राज्य जम्मू, कश्मीर और लद्दाख

१९५४ में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने पुष्टि की कि भारत संघ में जम्मू-कश्मीर का विलय अंतिम है. इसके बाद राष्ट्रपति ने राज्य सरकार से परामर्श करके संविधान आदेश जारी किया जिसके तहत १९६३, १९६४, १९६५, १९६६, १९७२, १९७४, १९७६ एवं १९८६ में संशोधन किया गया. बाबजूद इसके धारा ३७० की विकरालता बनी हुई है. इन संशोधनों का उद्देश्य उस महाभूल का आंशिक शोधन मात्र ही था जिसकी परिणति सिर्फ इतना था कि जम्मू-कश्मीर भारत के हाथ से खिसकने के स्थान पर कानूनी शिकंजों के सहारे जकडा हुआ था जिसे तोडने के लिए पाकिस्तान, पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी एवं अलगाववादी जी जान से जुटे हुए थे. इन संशोधनों के बाबजूद संसद:

१. सातवी अनुसूची में वर्णित विषयों पर जम्मू-कश्मीर के सम्बन्ध में कानून नही बना सकती थी.

२. जम्मू-कश्मीर राज्य के नाम या राज्य क्षेत्र में संघ सरकार अपनी मर्जी से कोई परिवर्तन नही कर सकता था.

३. राज्य के किसी भाग के व्ययन को प्रभावित करने वाले किसी अंतर्राष्ट्रीय करार या संधि के सम्बन्ध में कानून नही बना सकती थी.

४. राष्ट्रपति द्वारा अनु. ३५२ के अधीन जारी राष्ट्रिय आपात की घोषणा राज्य सरकार की सहमति के बिना प्रभावी नही हो सकता था.

५. अनु. ३६० के अधीन राष्ट्रपति द्वारा घोषित वित्तीय आपात लागु नही होती.

६. अनु. १९(१)(ड.) में वर्णित भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने तथा बस जाने की स्वतंत्रता जम्मू-कश्मीर में लागु नही होती.

७. राज्य के नीति के निदेशक तत्व जम्मू-कश्मीर में लागू नही होता. ८. संसद द्वारा संविधान में किया गया संशोधन राज्य में तभी लागू होता जब राज्य सरकार की सहमति से अनु. ३७०(१) के अधीन घोषणा की जाती.

नेशनल कांफ्रेंस की अधिक स्वायतता की मांग

farooq abdulla
National Conference (NC) leader Farooq Abdullah and Umar Abdulla

इतना कुछ होने के बाबजूद नेशनल कांफ्रेंस की सरकार गला फाड़कर अधिक स्वायत्तता की मांग करता रहता था. राज्य विधान मंडल में ध्वनि मत से स्वायत्तता प्रस्ताव पारित हो जाता था और १९५३ के पूर्व की स्थिति बहाल करने की मांग की जाती थी, परन्तु आतंकवाद की समाप्ति और बेरोजगारी दूर करने आदि पर विधेयक नही लाया जाता था. सच कहा जाय तो अधिक स्वायत्तता की आड. में जम्मू-कश्मीर राज्य को वापस उसी गर्त में ले जाने का षड्यंत्र ही करते थे जहाँ अलगाववादियों तथा तानाशाह स्थापित करने का ख्वाब देखनेवालों एवं पाकिस्तान परस्त आतंकवादियों को मनमानी करने की खुली छूट मिल जाये. जैसा की राज्य स्वायत्तता समिति की रिपोर्ट में कहा गया था:

१. भारतीय संविधान के भाग २१ के शीर्षक से ‘अस्थायी’ शब्द हटा दिया जाय और धारा ३७० के सम्बन्ध में ‘अस्थायी’ उपबन्ध के स्थान पर ‘विशेष उपबन्ध’ लिखा जाय.

२. संघ सूची के विषय जो सुरक्षा, विदेशी मामलों एवं संचार अथवा उसके अनुषंगी न हो उसे राज्य में लागू नही किया जाय.

३. जम्मू-कश्मीर विधान मंडल का चुनाव राज्य संचालन बोर्ड के अधीन हो न की केन्द्रीय चुनाव कमीशन के.

४. आपात स्थिति लागू करने से पूर्व राज्य सरकार की सहमती आवश्यक होगी. अनु. ३५२ में संशोधन किया जाय एवं अनु. ३५५-३६० जम्मू-कश्मीर में लागु न किया जाय जैसा की १९५४ के पूर्व था.

५. जम्मू-कश्मीर की संविधान में मूलभूत अधिकारों का एक अलग अध्याय जोडने की जरूरत है.

६. अनु. २१८ जम्मू-कश्मीर में लागू नही किया जाय और इस सम्बन्ध में राज्य विधान मंडल फिर से कानून बनाने के लिए स्वतंत्र हो.

७. संघलोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति राज्य में समाप्त कर दिया जाय.

८. भारतीय संविधान द्वारा दलितों को दिए गए आरक्षण को जम्मू-कश्मीर के मामले में राज्य संविधान में स्थानांतरित कर दिया जाय.

९. मुख्यमंत्री वजीर-ए-आजम एवं राज्यपाल सदर-ए-रियासत कहा जाय एवं राज्यपाल की नियुक्ति राज्य सरकार की सहमति से हो.

उपर्युक्त तथ्यों का आधार धारा ३७० ही था और उपर्युक्त बातों के अध्ययन से स्पष्ट है कि इसके तहत दो प्रधान, दो विधान और दो निशान की बात आती थी जो किसी भी राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए खतरा है. यह दुखद है कि भारत एवं जम्मू-कश्मीर सहित पुरे भारतीय प्रारंभिक गलतियों का दुष्परिणाम आज तक झेलते आ रहे थे. इसी का दुष्परिणाम था कि कश्मीरी मुसलमान कश्मीर को भारत से अलग मुल्क समझते थे और पाक स्थित आतंकवादी, अलगाववादी कश्मीरियों को बरगलाकर आतंकवाद, उग्रवाद के रास्ते पर ले जाने में सफल होते थे. वे कश्मीरी नवयुवकों को यह बताने में पूरी तरह सफल होते थे कि कश्मीर भारतीय संविधान द्वारा शासित भारत से जुड़ा एक अलग मुल्क है. यही कारन है कि २४ आतंकवादी दलों का समूह हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर घाटी में अपना प्रभाव होने की बात करता था और आजाद कश्मीर का स्वप्न देखता था.

कश्मीरी अलगाववादियों का राष्ट्रविरोधी षडयंत्र

हुर्रियत कांफ्रेंस का चेहरा एक ओर पाकिस्तान से घिरा मुखौटा था तो दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर में तानाशाह शासक बनने की ललक. पाकिस्तान दुहरी चाल चल रहा था. एक तरफ तो तथाकथित जेहादियों, आतंकवादियों और अलगाववादियों को खुला समर्थन देकर कश्मीर को भारत से अलग करना चाहता था तो दूसरी ओर राजनीती में इनका प्रवेश कराकर अपना उल्लू सीधा करना चाहता था. राजनीती और जनता तक इनका प्रवेश जम्मू-कश्मीर से बाहर के भारतीय क्षेत्रों में भी हो चूका था जो देश के लिए खतरनाक है.

वृहत स्वायत्तता की मांग करनेवालों का ध्यान वहाँ की आर्थिक बदहाली, बेकारी, अपराध और आतंकवाद आदि समस्याओं पर कभी नहीं जाता था. स्कुल और कॉलेज नही है, परिणामतः मदरसों का सहारा लेना पड़ता है और मदरसों में मुल्ला क्या पढाते है ये जग जाहिर है. पाकिस्तान में सैकड़ों मदरसों पर जेनरल मुशर्रफ ने इसलिए प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि वे कट्टरवाद और आतंकवाद की शिक्षा दे रहे थे. कलम और बंदूक की शिक्षा साथ-साथ चल रही थी.

आतंक्वादियों, अलगाववादियों को जम्मू-कश्मीर में राजनितिक संरक्षण प्राप्त था. राज्य के विकास के लिए हर साल दी जानेवाली रकम का क्या होता है कुछ पता नही. इन पैसों का दुरूपयोग बम-गोला खरीदने में होता हो तो कोई आश्चर्य नही. रुबिया अपहरण कांड का नाटक ऐसे ही राजनितिक संलिप्तता को उजागर करता था जिसमे जे के एल एफ के नेता यासीन मलिक एवं अडतीस उग्रवादियों, अलगाववादियों को बेबजह रिहा किया गया.

प्रश्न यह था कि यह कबतक चलता रहता? कबतक धरती का स्वर्ग कश्मीर खून की होली खेलता रहता? शायद तबतक जबतक धारा ३७० जैसे काले कानून को निरस्त कर आतंकवादियों का समूल नष्ट न कर दिया जाये. दूसरा कार्य होगा कश्मीर की जनता में राष्ट्रीयता, राष्ट्रप्रेम, राष्ट्रवाद एवं इस्लाम के बीच सम्बन्ध को स्पष्ट करना. उनमे भारत सरकार में विश्वास पैदा करना एवं पाक अधिकृत कश्मीर की बदहांलियो को उजागर कर पाकिस्तान एवं आतंकवाद, अलगाववाद के विरुद्ध खड़ा करना. परन्तु, ये कार्य तभी संभव है जब कश्मीर समस्या को मुस्लिम समस्या और पाकिस्तान हित को मुस्लिम हित के रूप में देखनेवाले और इसका दुष्प्रचार कर देश के भाई-भाई में अलगाव पैदा करने वाले देशद्रोही राजनीतिज्ञों, कुबुद्धिजिवियों पर अंकुश लगे. ऐसे भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के विरुद्ध जनता में जाग्रति पैदा करना भी आवश्यक है.

आधार ग्रन्थ:

1. Sardar Patel’s Correspondence-Durga Das

2. My Frozen Turbulence In Kashir-Jagmohan

3. Bharat Gandhi Nehru Ki Chhaya me-Gurudutt

4. Frontlines

5. Unique Guide, Newspapers and Others.

Tagged , , ,

32 thoughts on “भारत के लिए कितना खतरनाक था धारा-३७० और ३५-A भाग-२

  1. Hello! I understand this is kind of off-topic but I had to ask.

    Does operating a well-established website like yours require a large amount of work?
    I am brand new to running a blog however I do write in my diary on a
    daily basis. I’d like to start a blog so I will be able to share my personal experience and views online.
    Please let me know if you have any suggestions or tips for new aspiring blog owners.
    Appreciate it!

  2. Wonderful items from you, man. I’ve take into accout your stuff previous to and you are just too excellent.
    I actually like what you’ve obtained right here, certainly like what you’re stating and
    the way in which during which you say it. You are making it enjoyable and you still care for to keep it wise.

    I cant wait to learn far more from you. This is
    actually a terrific website.

  3. I’m extremely inspired with your writing abilities
    as well as with the structure in your blog.
    Is this a paid topic or did you customize it your self? Anyway stay up
    the excellent high quality writing, it’s rare to look a nice blog like this one these days..

  4. Hi, Neat post. There’s a problem with your web site in web explorer, might check this?
    IE still is the marketplace chief and a huge component to other folks will miss
    your wonderful writing because of this problem.

  5. Pretty nice post. I just stumbled upon your blog and wanted to say
    that I have truly enjoyed surfing around your blog posts.
    After all I’ll be subscribing to your feed and I
    hope you write again very soon!

  6. Good day! I know this is somewhat off topic but I was wondering which blog platform are you using for this website? I’m getting fed up of WordPress because I’ve had problems with hackers and I’m looking at alternatives for another platform. I would be great if you could point me in the direction of a good platform.

  7. What’s Going down i’m new to this, I stumbled upon this I’ve found It positively helpful and it
    has aided me out loads. I’m hoping to contribute & help different
    customers like its helped me. Good job.

  8. After going over a number of the blog articles on your website, I really appreciate your way of blogging.
    I bookmarked it to my bookmark site list and will be checking back soon. Please check out
    my web site too and let me know what you think.

  9. Greetings! Very useful advice within this post!
    It’s the little changes that make the most significant changes.
    Many thanks for sharing!

  10. Hiya! I know this is kinda off topic however , I’d figured I’d
    ask. Would you be interested in exchanging links or maybe guest writing a blog article or vice-versa?

    My site covers a lot of the same subjects as yours and I
    feel we could greatly benefit from each other.
    If you might be interested feel free to shoot me an email.
    I look forward to hearing from you! Excellent blog by the way!

  11. Good day! Do you know if they make any plugins to help with Search Engine Optimization?
    I’m trying to get my blog to rank for some targeted keywords but I’m not seeing very good success.

    If you know of any please share. Thanks!

  12. I have learn a few just right stuff here.
    Definitely price bookmarking for revisiting. I surprise how so much attempt you
    put to create this kind of fantastic informative website.

  13. We’re a bunch of volunteers and starting a new scheme in our community.
    Your web site offered us with helpful information to work on. You’ve performed
    a formidable activity and our entire neighborhood can be grateful
    to you.

  14. Hi! I could have sworn I’ve been to this blog before but after reading through some of
    the post I realized it’s new to me. Anyways, I’m definitely glad
    I found it and I’ll be book-marking and checking back often!

  15. I am really loving the theme/design of your blog. Do you ever run into
    any browser compatibility problems? A handful of my blog visitors have complained about my site not working correctly in Explorer but looks great in Firefox.

    Do you have any recommendations to help fix this problem?

  16. Hey there! Do you use Twitter? I’d like to follow you if that would
    be okay. I’m undoubtedly enjoying your blog and look forward to new updates.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *