गौरवशाली भारत

गौरवशाली भारत-४

गौरवशाली भारत - ४
शेयर करें

76.         प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ बृहदविमानशास्त्र, गयाचिन्तामणि, भागवतम, शानिस्त्रोत और रामायण में विमानों का उल्लेख है. बंगलोर के इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के विमान विभाग के पांच रिसर्चरों का शोध पत्र मद्रास से प्रकाशित द हिन्दू पत्रिका में प्रकाशित हुआ था. शोधकों ने लिखा था, “भरद्वाज मुनि द्वारा लिखित बृहदविमानशास्त्र ग्रन्थ में वर्णित विविध विमानों में से ‘रुक्मी’ प्रकार के विमान का वहनतंत्र या उड़ानविधि समझ में आती है. उस विधि द्वारा आज भी विमान की उडान की जा सकती है. किन्तु अन्य विमानों का ब्यौरा समझ नहीं आता.

77.         प्राचीन काल के वैदिक शास्त्रों में ८ प्रकार के उर्जा स्रोत से चलनेवाले यंत्र का वर्णन मिलता है:

१.शक्त्योद्गम-विद्युत् उर्जा से चलने वाले यंत्र

२.भूतवह-जल या अग्नि उर्जा से चलने वाले यंत्र

३.धूमयान-वाष्प उर्जा से

४.सूर्यकांत या चन्द्रकांत-हीरे, मानिक जैसे रत्नों से

५.वायुशक्ति यंत्र

६.पंचशिखी-खनिज तेल से चलनेवाले यंत्र

७.सूर्यताप यंत्र

८.पारे के भाप उर्जा से (यह उर्जा वैज्ञानिकों के समझ से अभी तक परे है क्योंकि पारे से भाप बनाने केलिए वर्तमान में अत्यधिक ताप की आवश्यकता होती है.) (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, भाग-१)

78.         आग्नेयास्त्र बनाने की विधि शुक्रनीति नामक प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ में मिलता है. शुक्रनीति ग्रन्थ के अध्याय १, श्लोक ३६७ में एक ऐसे विधि का वर्णन है जिससे २० सहस्त्र मील दुरी पर चलनेवाली बातों का पता राजा को उसी दिन लग जाता था (अर्थात आधुनिक दूरभाष, आकशवाणी)

79.         भुमेर्बाहि: द्वादाशयोजनानि भुवयुर्म्बम्बुदविद्युत्ताद्याम

अर्थात आकाश में जो बिजली कड़कती है वह और बादल पृथ्वीस्तर से १२ योजन दूर उपर आकाश में होते हैं.

ह्रस्वो रूक्षोऽप्रशस्तश्च परिवेषस्तु लोहितः |

आदित्ये विमले वीलम् लक्ष्म लक्ष्मण दृश्यते || (६-२३-९, बाल्मीकि रामायण)

अर्थात O, Lakshmana! A dark stain appears on the cloudless solar disc (सौर्य धब्बा), which is diminished, dreary, inauspicious and coppery.” अनुवाद https://valmikiramayan.net/

80.         भास्कराचार्य ने Differential Calculas नाम की गणना विधि चलाई थी. ईसापूर्व १०० वर्ष या उससे भी अधिक पूर्वकाल के आर्यभट ने वर्गमूल और घनमूल विधि, Arithmetical progressing summation of series और पाई की संख्या आदि गणितीय तंत्रों का प्रयोग किया था. Indeterminate equation of the second degree का श्रेय जिस युलर को दिया जाता है उससे हजारों वर्ष पूर्व ब्रह्मगुप्त के समय में भारत को ज्ञात थी.

81.         आईन्स्टीन के हजारों वर्ष पूर्व व्यास जी ने दिग्देशकालभेद अर्थात समय और अंतर की शुन्यता का विवरण दिया है. गोडफ्रे हिंगिस लिखते हैं, “विज्ञान में तो ग्रीक लोग शिशु जैसे थे. प्लेटो, पायथागोरस आदि जैसे उनके विद्वजन जब पूर्व की ओर (यानि भारत) गए ही नहीं थे तो उन्हें विज्ञान की जानकारी होती भी कहाँ से? विज्ञान और अन्य विद्याओं में वे भारतियों से पिछड़े हुए थे. उन्होंने या तो अज्ञानतावश सारी गापड-शपड. कर रखी है या जानबूझकर घोटाला कर रखा है. (Page 112, The Celtic Druids)

82.         चीनी और अन्य प्राच्य पर्यटकों को कम्पास ज्ञात था. पाश्चात्यों ने उन्ही से कम्पास का उपयोग सिखा. मार्कोपोलो चीन से वैसा एक यंत्र यूरोप लाया और लगभग उसी काल में वास्कोडिगामा ने भी वैसा ही यंत्र भारत से प्राप्त किया था. (Page 113, The Celtic Druids, Godfrey Higgins)

83.         कई लोगों की धारणा है की ड्रउइड आदि प्राचीन लोग टेलिस्कोप का प्रयोग करते थे. Diodorus Siculus लिखता है की कोलटक के पश्चिम के एक द्वीप में ड्रउइडस द्वारा लगाए एक दर्पण-यंत्र से सूर्य और चन्द्रमा बड़े समीप से दीखते थे. ड्रउइड द्रविड़ का यूरोपीय अपभ्रंश है. ड्रउइडस भारतीय ऋषि, विद्वान या ब्राह्मण थे. (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, भाग-१)

84.         ड्रुइड लोग बारूद बनाना जानते थे. मोरिस नाम के लेखक का उल्लेख है की अति प्राचीन काल से हिन्दू लोग बारूद का उपयोग जानते थे. क्रोफर्ड नाम के दुसरे लेखक का भी वही मत है (खंड २, पृष्ठ १४९)

85.         वैदिक लोग ‘लोक’ नामक एक संख्या का प्रयोग करते थे जिसका मान १०१९ अर्थात १ पर १९ शून्य के बराबर है. जिन लोगों को १ पर १९ शून्य इतनी बड़ी संख्या का उपयोग करना पड़ता था उनका गणित, व्यापार और उद्योग कितना अग्रसर होगा. जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य ने वैदिक मैथेमेटिक्स नामक ग्रन्थ वेदों के अध्ययन कर के ही लिखा था-पी एन ओक

86.         वेदों में ऋचाओं की संख्यां १०५८० है; शब्द १५३८२० और अक्षर हैं ४३२०००. यह संख्यां महज संयोग है या सूक्ष्म गणित या कोई रहस्य? निचे देखें:

“चतुर्युग अर्थात सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग कुल ४३२०००० वर्षों का होता है जिसे एक चक्र कहते हैं. १००० चक्र अर्थात ४३२००००००० वर्ष को एक कल्प कहते हैं जो बिगबैंग सिद्धांत के अनुरूप सृष्टि निर्माण काल और विरामकाल के अनुरूप है. एक कल्प में १४ मन्वन्तर होते हैं. वर्तमान विश्व सातवें मन्वन्तर में है जो सौर्यमंडल सिद्धांत और सूर्य के वैज्ञानिक आयु के समकक्ष है.

87.         प्राचीन वैदिक वैज्ञानिकों को छः प्रकार की बिजली ज्ञात थी-

१.तड़ित-जो चमड़े या रेशम के घर्षण से उत्पन्न होती थी

२.सौदामिनी-कांच या रत्नों के घर्षण से निर्माण की जाने वाली

३.विद्युत्-मेघ या वाष्प से उत्पन्न

४.शतकुम्भी-जो बैटरी से निकलती है

५.हृदिनी- बैटरी के कुम्भों में संचित उर्जा

६.अशनि-चुम्बकीय दंड से उत्पन्न (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, भाग-१)

८८.   किसी भी क्षेत्र में उच्चतम स्तर को प्राप्त व्यक्ति को वैदिक प्रणाली में ब्राह्मण कहा जाता था. मनुस्मृति के अनुसार जन्म से सभी शुद्र ही होते हैं अतः किसी भी कुल में जन्मा व्यक्ति निजी योग्यता बढ़ाते बढ़ाते ब्राह्मणपद पर पहुंच सकता था यदि वह १.निष्पाप शुद्ध आचरण वाला जीवन यापन करता है २.अध्ययन त्याग और निष्ठा से करे ३.स्वतंत्र जीविका उपार्जन करता है ४.उसका दैनन्दिनी कार्यक्रम आदर्श हो. अतः मनुमहराज कहते हैं, इस देश में तैयार किए गये ब्राह्मणों से विश्व के सारे मानव आदर्श जीवन सीखें. ऐसे ब्राह्मणों को प्राचीन यूरोप में ड्रउइड कहा जाता था.

८९.   आयरलैंड में एक जगह है तारा हिल्स यानि तारा की पहाड़ियाँ जहाँ एक शिवलिंग स्थापित है। वैज्ञानिक इसे 4000 वर्ष प्राचीन बताते हैं. ये शिवलिंग यहाँ Pre Christian युग का है जब यहाँ मूर्ति पूजक रहते थे। आज से 2500 वर्ष पहले तक आयरलैंड के सभी राजाओं का राज्याभिषेक यहीं इन्हीं के आशीर्वाद से होता था, फिर 500 AD में ये परम्परा बंद कर दी गई। इसमें कोई शक नहीं कि ये शिव लिंग है क्यूँकि जिस देवी तारा के नाम पर ये पर्वत स्थित है हमारे शास्त्रों में तारा माता पार्वती को भी कहते हैं।

90.         यूरोप में ईसायत के प्रसार से पूर्व और रोमन शासक अगस्टस के ईसाई धर्म अपनाने तक यूरोप में वैदिक संस्कृति थी. इस संस्कृति का नेतृत्व और अधीक्षण, निरिक्षण, शिक्षण, व्यवस्थापन आदि कार्य ड्रुइडस के हाथों में था. पुरे द्वीप पर ड्रुइडो का धर्मशासन था. ड्रुइड धर्माधीश थे. ड्रुइडो के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा थी की ड्रुइडो की आज्ञा प्रमाण होती थी. किसी व्यक्ति को बहिष्कृत कराने अथवा व्यक्तिगत या सामूहिक विवादों में निर्णय इन्ही का माना जाता था. इन्हें युद्ध में नहीं जाना पड़ता था और कर भी नहीं भरना पड़ता था. (ए कम्प्लीट हिस्ट्री ऑफ़ ड्रुइडस, पेज २८-३१)

91.         पी एन ओक का कहना है की, “सारे विश्व में आर्यधर्म का अधीक्षण, निरिक्षण, व्यवस्थापन आदि करनेवाला वर्ग द्रविड़ कहलाता था. द्रविड़ का द्र यानि द्रष्टा और विद यानि ज्ञानी या जाननेवाला यानि ऋषि मुनि. यह द्रविड़ लोग केवल भारत में ही नहीं अपितु सारे विश्व में वही भूमिका निभाते थे. आर्य संस्कृति के रखवाले ऋषिमुनि ही यूरोप में ड्रुइड कहलाते हैं और भारत में द्रविड़. यूरोप में भी द्रविड़ थे. उन्हें ड्रुइड (Druids) कहा जाता था. अतः आर्य और द्रविड़ परस्पर पूरक संज्ञाएँ हैं.  वे समाज के पुरोहित, अध्यापक, गुरु, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, पंचांगकर्ता, खगोल-ज्योतिषी, भविष्यवेत्ता, मन्त्रद्रष्टा, वेदपाठी आदि गुरुजन थे.”

92.         “द्रविड़ तो क्षत्रिय थे और सारे क्षत्रिय आर्य (धर्मी) थे. मनुस्मृति के १० वें अध्याय के श्लोक ४३, ४४ में वृषलों के यानि क्षत्रियों के १० कुल थे जिनमे द्रविड़ सम्मिलित थे. (पेज १५४, Matter, myth and spirit or keltic Hindu Links, लेखिका, दोरोथि चैपलिन,)

चाणक्य द्वारा चन्द्रगुप्त को इसी वृषल शब्द से सम्बोधित करने पर हमारे वामपंथी इतिहास चन्द्रगुप्त मौर्य को शुद्र बताता है और तर्क देता है नीच अथवा अपमान सूचक वृषल शब्द शूद्रों केलिए प्रयोग किया जाता था.

93.         एशियाटिक रिसर्चस (खंड २, पृष्ठ ४८३) ग्रन्थ में रेवरेण्ड थोमस मौरिस लिखते हैं, “प्राचीन समाज के अध्ययन में ड्रुइड लोगों का मूल स्थान एशिया खंड ही था यह बात दीर्घ समय से मान्यता प्राप्त है. रियूबेन बरो नामक विख्यात खगोल ज्योतिषी पहला व्यक्ति था जिसने ड्रुइडो की दन्तकथाएँ, उनका समय, मान्यताएं, धारणाएँ आदि का कड़ा अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला की वे भारत से आए दार्शनिक थे.”

94.         Antiquities of India (खंड ६, भाग १, पृष्ठ २४६) में रेवरेण्ड थोमस मौरिस ने लिखा है, “यह पुरोहित (ड्रुइड लोग) भारत के ब्राह्मण थे. एशिया के उत्तरी प्रदेशों में फैलते-फैलते वे साईबेरिया तक गए. शनैः शनैः केल्टिक (उर्फ़ सेल्टिक) जातियों (कश्मीर के दक्षिण के कालतोय) में वे घुल मिल गए. वहां से आगे चलते-चलते यूरोप के कोने-कोने तक पहुँचते पहुंचते उन्होंने ब्रिटेन में भी ब्राह्मण केंद्र (गुरुकुल, मन्दिर) का स्थापना कर दिया. मेरा निष्कर्ष यह है की ब्रिटेन में एशियाई लोगों की सर्वप्रथम बस्ती थी.”

95.         जर्मनी में एक प्रदेश है वेदस्थान (Vaitland). वहां छः ऋषियों की प्रतिमाएं और वैदिक मन्दिर पाए गए थे.

96.         ड्रुइडो के कई मन्दिरों के भग्नावशेष अभी आयिजल ऑफ़ मैन और अंग्लसी द्वीपों (isle of Angelsey, ब्रिटेन के वेल्स में) पर हैं. उनमे से कई महान शिलाओं के हैं जैसी शिलाएं अबीरी और स्टोनहेंज नामक प्राचीन स्थानों में हैं. (वही पेज ३६)

मन्दिर का वह भग्नावशेष विष्णु मन्दिर का है. वहां शेषशय्या पर भगवान विष्णु विराजमान थे-पी एन ओक

97.         इजिप्त से निकलकर यहूदी लोग उनके प्रदेश में आने से पूर्व कननाइट लोगों (अर्थात कान्हा या कृष्ण के अनुयायी) ने मूर्तिपूजा आरम्भ कर दिया था. वे पूर्वाभिमुख होकर पहाड़ों पर खुले में यज्ञ करते थे.सारे पहाड़ शनी, गुरु और अपोलो (सूर्य) देवों के वसतिस्थान समझकर पवित्र माने जाते थे. कई व्यक्तियों का निष्कर्ष है की ड्रुइडो  के धर्म तत्व भारत के ब्राह्मण और योगीजनों से, ईरान के मगी (महायोगी) लोगों से और असीरिया के चाल्डईयन लोगों के तत्वों के समान ही थे.( पेज ४३-४५, A complete History of Druids)

98.         ड्रुइडो का कथन है की ब्रह्मा से उन्हें चार ग्रन्थ प्राप्त हुए जिनमे सारा ज्ञान भंडार है. मृत्यु के पश्चात प्रत्येक आत्मा नये शरीर में प्रवेश करता है एसा उनका विश्वास है. उनका कथन है की जीवहत्या नहीं करनी चाहिए. वे मांस नहीं खाया करते थे. विशिष्ट तिथियों को उनके यज्ञ और पर्व हुआ करते थे. यद्यपि उनके कुछ विशिष्ट देव थे, कई लोगों के अपने व्यक्तिगत देव या कुलदेवता भी होते थे. इन्द्र को विविध नामों से पूजा जाता था. उसे तारामिस यानि वरुण देवता कहते थे. उत्तर में उसे थोर करते थे. स्वीडन, जर्मनी देशों के निवासी और सैक्सन लोग उस देवता को उतना ही मानते थे जीतने ब्रिटेन के और फ़्रांस के लोग. ( पेज ४९-५९, A complete History of Druids)

99.         ब्रिटेन के केंट का राज्य जाट बन्धुओं का स्थापित किया हुआ है. केंट और वाईट द्वीप के निवासी जाटों की सन्तान हैं. (पृष्ठ ११३, Matter, myth and spirit or keltic Hindu Links, लेखिका, दोरोथि चैपलिन, प्रकाशक-F.S.A. Scott Rider and co., London, 1935)

100.      रोमन शासक जुलियस सीजर जो भारत के विक्रमादित्य के समकालीन (५३ इसा पूर्व लगभग) था उसका यूरोप पर शासन था. उसके ग्रन्थ का शीर्षक है Coesars commentarious on the gallic War, आंग्ल अनुवादक T. Rice Holmes, London, 1908) उसके पृष्ठ १८०-१८२ पर लिखा है की “फ़्रांस के हर भाग में दो ही वर्ण महत्वपूर्ण माने जाते हैं. उनमें एक हैं ड्रुइड (अर्थात ब्राह्मण) और दूसरा हैं सेनानायक (अर्थात क्षत्रिय). ड्रुइड लोग देवपूजन, व्यक्तिगत या सामूहिक होम हवन और धर्माचार, सम्बन्धी प्रश्नों पर विचार आदि में लगे रहते. ड्रुइडो की धर्मपरम्परा ब्रिटेन से फ़्रांस में पहुंची. आत्मा की अमरत्व की बात के कारन क्षत्रिय लोग युद्ध में वीरता से लड़ने में हिचकिचाते नहीं थे (पृष्ठ १८२-८३). ड्रुइड अपोलो (सूर्य), मंगल (रन देवता), मिनर्वा (लक्ष्मी) आदि की पूजा करते थे. इन्द्र को वे देवताओं का राजा कहते थे.

Tagged ,

33 thoughts on “गौरवशाली भारत-४

  1. 79. इसमें आया श्लोक किस ग्रंथ का है कृपया बताए।

  2. Wow, fantastic blog layout! How long have you
    been blogging for? you made blogging look easy.
    The overall look of your web site is fantastic, let alone the content!

  3. With havin so much written content do you ever run into any problems of plagorism or copyright infringement?
    My site has a lot of completely unique content I’ve either created myself or outsourced but it appears a
    lot of it is popping it up all over the internet without my agreement.
    Do you know any techniques to help reduce content
    from being stolen? I’d really appreciate it.

  4. Howdy! Would you mind if I share your blog with my facebook group?
    There’s a lot of people that I think would really enjoy your content.
    Please let me know. Thanks

  5. Thanks a lot for sharing this with all of us you really know what you are speaking approximately!
    Bookmarked. Kindly additionally visit my web site =).
    We can have a link exchange arrangement between us

  6. Hey! This is my first visit to your blog! We are a group
    of volunteers and starting a new project in a community
    in the same niche. Your blog provided us useful information to
    work on. You have done a extraordinary job!

  7. Thanks for your marvelous posting! I seriously enjoyed reading it, you could be a great author.
    I will make certain to bookmark your blog and may come back in the foreseeable future.
    I want to encourage one to continue your great posts, have a nice evening!

  8. Hi would you mind letting me know which hosting
    company you’re utilizing? I’ve loaded your blog in 3 completely different browsers and I must say this blog loads a lot
    quicker then most. Can you recommend a good web hosting provider at a
    honest price? Thank you, I appreciate it!

  9. Wonderful work! This is the type of info that should be shared around the internet. Shame on the search engines for not positioning this post higher! Come on over and visit my web site . Thanks =)

  10. I would like to show thanks to the writer just for rescuing me from this type of trouble. Just after searching through the world wide web and seeing things which are not productive, I was thinking my life was gone. Existing devoid of the approaches to the problems you’ve sorted out through your good write-up is a serious case, as well as the ones that would have in a negative way damaged my entire career if I had not discovered your site. Your main know-how and kindness in controlling every part was helpful. I don’t know what I would’ve done if I hadn’t discovered such a stuff like this. I can at this time look forward to my future. Thanks for your time so much for the skilled and results-oriented guide. I will not hesitate to recommend your web sites to anyone who should receive assistance on this issue.

  11. excellent submit, very informative. I’m wondering why the opposite specialists of this
    sector don’t understand this. You must proceed your
    writing. I am sure, you’ve a huge readers’ base already!

  12. Hello, Neat post. There is an issue together with your web site
    in web explorer, would check this? IE still is the marketplace chief
    and a big element of other folks will miss your fantastic writing due to this
    problem.

  13. I’m impressed, I must say. Seldom do I come across a blog that’s both equally educative
    and entertaining, and without a doubt, you have hit the nail on the
    head. The problem is an issue that too few folks are speaking intelligently about.
    I’m very happy I came across this in my hunt
    for something concerning this.

  14. Very nice post. I just stumbled upon your weblog and wanted to say that
    I have truly enjoyed surfing around your blog posts.
    After all I’ll be subscribing to your feed and I hope you
    write again very soon!

  15. Excellent blog here! Also your site loads up fast! What web host are you using?
    Can I get your affiliate link to your host? I wish my website loaded up as quickly as yours lol

  16. We’re a group of volunteers and starting a new scheme
    in our community. Your site provided us with valuable information to work on.
    You have done an impressive job and our entire community will be thankful to you.

  17. I’ve been surfing online greater than 3 hours nowadays, but
    I never discovered any fascinating article like yours.
    It is beautiful value enough for me. In my view, if all site owners and bloggers made good content material as you probably did, the
    internet will likely be much more useful than ever before.

  18. naturally like your website but you need to take a look at the spelling on quite a few of your posts. Several of them are rife with spelling problems and I in finding it very troublesome to inform the truth on the other hand I?¦ll surely come back again.

  19. Hello! This is my first comment here so I
    just wanted to give a quick shout out and tell you I really enjoy reading
    your posts. Can you suggest any other blogs/websites/forums that deal with the same subjects?
    Appreciate it!

  20. I’m impressed, I have to admit. Rarely do I come across a blog that’s
    both equally educative and entertaining, and without a doubt, you’ve hit
    the nail on the head. The problem is something that too few people are speaking intelligently about.
    I am very happy that I stumbled across this during
    my search for something relating to this.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *