ऐतिहासिक कहानियाँ, मध्यकालीन भारत

राजा दाहिर की बहादुर पुत्रियों ने कासिम और खलीफा से बदला लिया

राजा दाहिर की पुत्रियाँ
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सूर्य और परिमल राजा दाहिर सेन की बहादुर पुत्रियाँ थी जिसने शैतान कासिम और हज्जाज का बहादुरी और चतुराई से अंत कर वीरगति को प्राप्त हुई

सिंध के परमप्रतापी ब्राह्मणवंशी राजा चाच की मृत्यु के बाद 679 ईसवी में दाहिर सेन राजा बने. राजा चाच की तरह राजा दाहिर बहुत वीर और कुशल सेनानी थे. उन्होंने भी मुस्लिम आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दिए थे.

बात उस समय की है जब बगदाद की गद्दी पर खलीफा का गवर्नर सबसे क्रूर नरपिशाच हज्जाज बिन यूसुफ बैठा था. एकबार खलीफा और हज्जाज अपनी कामुक लिप्सा केलिए लंका से सुंदर औरतें जहाज से मंगवा रहा था. अरबी इतिहासकार लिखता है श्रीलंका को सुंदर औरतों के कारन अरबी लोग जवाहरातों का द्वीप कहकर पुकारते थे. दमिश्क और बगदाद जाते वक्त जहाज देवल बन्दरगाह पर रुका. अरबी शैतानों ने वहां से कुछ औरतों को बंदी बनाकर ले जाने की कोशिश की तो सीमा रक्षकों ने सभी अरबों को मारकर भगा दिया और बंदियों को आजाद कर दिया. खलीफा और हज्जाज बहुत निराश हुआ और उसने भारत के विरुद्ध जिहाद की घोषणा की. इतिहासकार एच एम इलियट लिखते हैं, ‘इन क्रूर धर्मोन्मादी लोगों ने खुले आम अपना लम्पट जीवन विलासिता और कामुकता में होम किया था तथा इसी प्रकार के धर्म का इन्होने चारों ओर प्रचार किया.”

हज्जाज ने एक टूकड़ी सईद और मुज्जा के नेतृत्व में हमले के लिए भारत भेजा जिन्हें दाहिर ने मकरान के तट पर मार गिराया. फिर उबैदुल्ला और बुदैल को भेजा वे भी मारे गये. तब बरसों शांति रही. फिर जब वालिद खलीफा बना तब हज्जाज ने अपने जैसे ही क्रूर शैतान मोहम्मद बिन क़ासिम को क्रूर लड़ाकों के साथ आक्रमण के लिए भेजा. कासिम ने अपनी सारी ताकत से दाहिर पर आक्रमण किया पर दाहिर के सैनिकों ने उसे छठी का दूध याद दिला दिया. कई दिनों की भयानक लडाई के बाद कासिम की क्रूरता से भयभीत उसके मंत्री ने जब शांति संधि की बात की तो दाहिर ने कहा, “उनसे कैसी शांति? वे हमारी स्त्रियों का बलात्कार कर रहे हैं, उनको लूटकर अरब के बाजार में बेच रहे हैं, हमारे मन्दिरों को मस्जिद बना दे रहे हैं और हिन्दुओं को जबरन तलवार के बलपर मुसलमान बना रहे हैं और इंकार करने पर मौत के घाट उतार दे रहे हैं.”

एक मंत्री की तो संधि की बात पर उसने गुस्से में गर्दन ही काट दी. वह वीरता के साथ लड़ता रहा और कासिम के छक्के छुरा दिए. पर भारत और भारतियों के दुर्भाग्य से हिन्दुओं से ईर्ष्या करनेवाले निरोनकोट और सिवस्तान के राजनीतिक बौद्धों ने गद्दारी करते हुए शैतान कासिम की भारी मदद की (इतिहासकार राय मजुमदार चौधरी ने इस मत का समर्थन किया है). उनकी मदद से क़ासिम ने छल से अपने कुछ सैनिकों को रात के समय औरतो के वेश में स्थानीय औरतों के झुण्ड में दाहिर की सेना के पास भेजा. रोती बिलखती आवाजो के कारण राजा दाहिर उनकी मदद के लिए आए और कासिम ने अंधेरे का फायदा उठा कर “अकेला दाहिर” पर हमला बोल दिया. दाहिर हजारों हत्यारो के बीच लड़ते रहे, उनकी तलवार टूटी, फिर भालों ने उन्हें भेद दिया. शरीर से भाला निकाल कर लड़े फिर तीरों ने भेद दिया और वे वीरगति को प्राप्त किये. सिंध की राजधानी अलोर पर कासिम ने अधिकार कर लिया. पर कासिम केलिए अभी भी रास्ता आसान नहीं था. दाहिर की पत्नी मैना बाई ने राओर के किले के भीतर से ही सैन्य संचालन किया और कासिम के दांत खट्टे कर दिए परन्तु अंततः मुसलमान किला फ़तेह करने में कामयाब हो गये और किले की औरतें रानी सहित जौहर कर ली.

हज्जाज ने कासिम को संदेश भेजा, “काफिरों को जरा भी मौका मत देना. तुरंत उनके सिर कलम कर देना…यह अल्लाह का हुक्म है.”

राजा दाहिर की दूसरी पत्नी रानी बाई बरह्मणाबाद के किले से अपने पुत्र जयसिम्हा के साथ कासिम की सेना से जमकर मोर्चा ली. इन्ही से उत्पन्न राजा दाहिर की दो पुत्रियाँ सूर्यदेवी और परिमल देवी दिन रात घायल सिपाहियों की देख रेख में लगी हुई थी. कासिम की सेना में नये नये बने मुसलमान जो कल तक दाहिर को अपना राजा मानते थे वे भी जुड़ गये थे. फिर भी जयसिम्हा ने गुरिल्ला युद्ध के द्वारा कासिम की सेना के छक्के छुड़ा दिए. छः महीनों तक कासिम घेरा डाले हुए था. भाई जयसिम्हा सहायता केलिए कश्मीर की ओर निकल गया तो दोनों बहनों ने उसके स्थान पर मोर्चा सम्भाल लिया. इधर मुसलमानों ने फसलें जला दी, जलाशयों में जहर घोल दिया. पर बात नहीं बनी तो एकबार फिर छल से काम लिया गया और कुछ गद्दारों ने किले का फाटक रात्रि को खोल दिया और फिर किले पर कब्जा कर १६००० लोगों का नरसंहार किया गया. राजा दाहिर की दोनो पुत्रियों सुर्यदेवी और परिमल देवी को बंदी बनाकर ख़लीफा वालिद के पास भेज दिया.

लूट और गुलामों के झुण्ड के साथ दाहिर की दोनों पुत्री सुंदर और कोमलांगी वीर बालाएं दमिश्क पहुंची. उनकी सेवा शुश्रूषा कर पेशी योग्य बनाया गया. इतिहासकार इलियट लिखते हैं, “खलीफा वालिद ने दुभाषिये से बड़ी छोटी का पता लगाने को कहा ताकि बड़ी का भोग पहले लगाया जा सके और छोटी का बाद में. बड़ी को अपने पास रखकर खलीफा छोटी को वापिस हरम में भेज दिया. खलीफा उसकी सुन्दरता से मुग्ध हो गया था. उसने उसके कमनीय शरीर पर अपना हाथ रख, उसे अपनी ओर खिंचा” उसकी कामाग्नि भड़क उठी और वो जल्द से जल्द उसे बाँहों में भरने को उतावला था की तभी सूर्यदेवी विद्युत् की गति से पीछे हटती हुई खड़ी हो गयी और बोली, “यह कैसा नियम है आपलोगों का. पहले तिन रात हम दोनों बहनों को कासिम ने अपने पास रखा और फिर आपके पास भेज दिया. सम्भवतः अपने नौकरों की जूठन खाने का ही रिवाज है आप लोगों में.”

तीर निशाने पर लगा था. ख़लीफा वालिद के कामाग्नि पर एकाएक घड़ों पानी पर गया. गुस्से में तिलमिलाते हुए उसने कासिम को सांड की खाल में बंदकर तत्काल पेश करने का हुक्म दिया. हुक्म की तामिल हुई और कुछ दिनों बाद ही कासिम के मृतक शरीर को सांड की खाल में बंदकर खलीफा के सामने पेश किया गया. खलीफा ने दोनों बहनों को बुला लिया और बोला, “देखो, किस प्रकार मेरे आदमियों ने मेरी आज्ञा का पालन किया है”

सूर्यदेवी ने मंद मुस्कान के साथ कहा, “निसंदेह आपकी आज्ञा की पूर्ति हुई है. पर आपका मस्तिष्क एकदम खाली है. कासिम ने मेरा स्पर्श भी नहीं किया था. मगर उस शैतान ने हमारे राजा की हत्या की, हमारे देश को तहस नहस कर दिया, हमारे सम्मान को नष्ट कर गुलामी के दलदल में ढकेल दिया. इसीलिए प्रतिशोध और बदले केलिए हमने झूठ बोला. उसने हमारे जैसे दस हजार स्त्रियों को बंदी बनाकर बलात्कार किया था, कई शासकों को मौत के घात उतार दिया था, सैकड़ों मन्दिरों को अपवित्र कर मस्जिदें और मीनारें बना दी थी.” (इलियट एंड डाउसन, पेज २११)

ख़लीफा वालिद सुन्न हो गया. इतिहासकार कहते हैं की शोक की तीव्र लहर में ख़लीफा ने अपनी हथेली काट खायी, वह अत्यंत मुर्ख बन गया था. अपने विश्वसनीय जल्लाद को मौत के घाट उतारने पर शर्म, शोक और गलती का उसे इतना कठोर आघात पहुंचा की जल्द ही वह मर गया. हज्जाज अपने ही जैसा शैतान अपना भतीजा और दामाद कासिम की दर्दनाक मौत से पहले ही सदमे से मर गया था.

इसप्रकार उन दोनों वीर बालाओं ने अपनी बुद्धिमता और बहादुरी से भारत के तीनों दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया. अब खुद की बलिदान की बारी थी. नया खलीफा सुलेमान उन दोनों की अद्भुत सुन्दरता पर पागल था. उन्हें भोगने की प्रबल अभिलाषा से उसने समझाने बुझाने केलिए बहुत हाथ पैर मारे पर उनके रौद्र रूप देख प्राणों के भय से उनकी इज्जत के साथ खेलने की हिम्मत नहीं हुई. अपने क्रोध की विवशता में, शैतानहन्ता उन बीर बालाओं को उसने भयंकर यातनाएं दी. उसने इन दोनों बीर बालाओं को घोड़े के पूंछ से बांधकर दमिश्क की सड़कों पर घसीटने की आज्ञा दी. उनके शरीर के चिथड़े चिथड़े हो गये थे पर उनकी आँखों और होठों पर विजय का गर्व और मुस्कान को वे नहीं मिटा पाए. धन्य हैं भारत की ऐसी वीर बालाएं. हमसब उन्हें शत शत प्रणाम करते हैं!

१.     कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है की नरपिशाच कासिम ने गाँव के कई मुखिया और उनके स्त्री बच्चों को बंधक बना लिया. उन्हें स्त्रियों का बलात्कार कर बेच देने तथा बच्चों को कत्ल करने की धमकी दी जिससे गाँव के मुखिया और स्त्री पुरुष कासिम की बात मानने को तैयार हो गये. फिर गाँव के सभी पुरुषों को बंधक बनाकर उनके स्त्रियों को अपने सैनिकों के साथ बचाओ बचाओ चिल्लाते हुए राजा दाहिर के पास भेज दिया. राजा दाहिर की मृत्यु के बाद सभी को जबरन मुसलमान बना दिया गया और इनमे से कुछ मुखिया ने राजा दाहिर के पुत्रों के विरुद्ध लडाई भी लड़ी.

२.     इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक का मत है की राजा दाहिर की दोनों पुत्री सूर्यदेवी और परिमल देवी बरह्मणाबाद के किले में अपनी माँ रानी बाई के साथ जौहर कर अग्नि समाधी ले ली थी. खलीफा वालिद दाहिर की दोनों पुत्रियों की सुन्दरता के बारे में सुन चूका था इसलिए वह कासिम से उन दोनों लडकियों को भेजने का दबाब बना रहा था. कासिम उनका पता लगाने केलिए सिंध में आतंक और स्त्रियों के अपहरण का नंगा नाच कर रहा था. इसलिए दो वीर बालाओं ने एक स्त्री के सहयोग से खुद को सूर्यदेवी और परिमल देवी के रूप में पेश किया था. उनमे से सूर्यदेवी की पहचान जानकी के रूप में हुई है.

(स्रोत-भारत में मुस्लिम सुल्तान, लेखक पुरुषोत्तम नागेश ओक)

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