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प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत

कुतुबमीनार नहीं विष्णु स्तम्भ कहिये, ये रहा प्रमाण

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विष्णु स्तम्भ, महरौली, दिल्ली कुतुबमीनार का वास्तविक नाम विष्णु स्तंभ है जिसे आक्रमणकारी कुतुबुद्दीन ने नहीं बल्कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक और खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने बनवाया था. विष्णु स्तम्भ के पास जो बस्ती है उसे महरौली कहा जाता है. यह एक संस्कृ‍त शब्द है जो मिहिर शब्द से बना है और यह खगोलशास्त्री वराहमिहिर के नाम पर ही बसा है जहाँ वे रहते थे. उनके साथ उनके सहायक, गणितज्ञ और तकनीकविद भी रहते थे और इस विष्णु स्तम्भ का उपयोग खगोलीय गणना, अध्ययन के लिए करते थे. इस स्तम्भ के चारों ओर हिंदू राशि चक्र को…

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गौरवशाली भारत, प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत

प्राचीन भारत के १५ विश्वविद्यालय जिसके कारण भारत विश्वगुरु कहलाता था

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भारतवर्ष के विश्वविद्यालय भारत के इतिहास्यकार और तथाकथित बुद्धिजीवी हमें समझाते हैं कि क्षत्रिय और ब्राह्मण खुद पढ़ता लिखता था पर तुमलोगों को शिक्षा नहीं देता था क्योंकि तुमलोग शूद्र हो. संस्कृत सवर्णों कि भाषा थी, ब्राह्मण तुम्हे संस्कृत नहीं पढने देते थे. क्या सचमुच ऐसा था? आइये पता करते हैं. तक्षशिला विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे और चन्द्रगुप्त मौर्य भी वहीँ का विद्यार्थी था. पर उपर्युक्त लोग तो चन्द्रगुप्त मौर्य को क्षत्रिय नहीं मानते हैं? नालंदा और बिक्रमशिला विश्वविद्यालयों में भी पूरे विश्व के लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे. क्या वे क्षत्रिय…

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मध्यकालीन भारत

हिन्दू मन्दिर और भवन जो अब मुस्लिम इमारतें कहलाती है

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हिन्दू इमारतें मुझे महान राष्ट्रवादी इतिहासकार स्वर्गीय पुरुषोत्तम नागेश ओक से पत्राचार का अवसर प्राप्त हुआ था. मैं जब मुंबई में था तो उनके भारतीय इतिहास शोध संस्थान का सदस्य भी रहा हूँ. बाबरी मस्जिद तोड़े जाने पर जब मैंने उनसे पूछा था कि आपकी क्या राय है तो उन्होंने ॐ को ७८६ को उल्टा लिखकर समझाते हुए कहा था कि आक्रमणकारी कभी निर्माता नहीं थे. वे हिन्दू इमारतों का केवल स्वरूप चेंज कर देते थे जैसे उन्होंने ॐ को ७८६ (अरबी में उल्टा लिखा जाता है) कर दिया था. उन्होंने कहा था जिस ढांचे को तोड़ा गया वो वास्तव…

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गौरवशाली भारत, प्राचीन भारत

वैदिक स्थापत्य ही पूरे विश्व के स्थापत्य कला की जननी है

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वैदिक स्थापत्य कला विश्व में स्थापत्यकला के दर्जनों प्राचीन ग्रन्थ हैं और वे ग्रन्थ सिर्फ संस्कृत में हैं, इसलिए वे वैदिक सभ्यता के धरोहर है. वैदिक स्थापत्य यानि वास्तुकला और नगर-रचना की पूरी विधि मूल तत्व आदि विवरण जिन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है उन्हें अगम साहित्य कहा जाता है. ये ग्रन्थ बहुत प्राचीन हैं. मानसार शिल्पशास्त्र के रचयिता महर्षि मानसार के अनुसार ब्रह्मा जी ने नगर-निर्माण और भवन-रचना विद्याओं में चार विद्वानों को प्रशिक्षण दिया. उनके नाम हैं-विश्वकर्मा, मय, तवस्तर और मनु. शिल्पज्ञान (Engineering) की सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है भृगु शिल्पसन्हिता. किले, महल, स्तम्भ, भवन, प्रासाद, पूल, मन्दिर,…

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ऐतिहासिक कहानियाँ, मध्यकालीन भारत

दुश्मनों का काल रघुवंशी राजा मिहिर भोज प्रतिहार

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सम्राट महिर भोज प्रतिहार वीरों और योद्धाओं की जाति गुर्जर प्रतिहार रघुवंश शिरोमणि श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के वंशज हैं. इस वंश में एक से एक महाभट योद्धा और पराक्रमी शासक हुए जिसकी जितनी चर्चा और प्रशंसा की जाये कम है. इसी गौरवशाली वंश में सम्राट मिहिर भोज का जन्म हुआ था. उन्होंने ८३६ ईस्वी से ८८५ ईस्वी तक कभी कन्नौज तो कभी उज्जैन से शासन किया. भले ही वामपंथी इतिहासकारों ने मिहिर भोज के इतिहास को काट देने की साजिश की है, मिहिर भोज क्या उन सभी महान भारतीय सम्राटों और योद्धाओं को भारतीय इतिहास से गायब कर दिया…

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प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत

भारत की ऐतिहासिक इमारतें हिन्दू, बौद्ध, जैन निर्मित है

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हिन्दू इमारतें भारत के ऐतिहासिक इमारतों को मुस्लिम इमारतें, मस्जिदें, मकबरे आदि होने का झूठ अलेक्जेंडर कनिंघम नाम के लुच्चे अंग्रेज जो दुर्भाग्य से भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग का प्रथम अध्यक्ष था ने जानबूझकर फैलाया था. यहाँ तक की उनके सर्वेक्षकों ने जिन इमारतों को हिन्दू इमारतें पाया उन्हें भी डांटकर चुप करा दिया. जैसे की सर्वेक्षक जोसेफ बैगलर ने कुतुबमीनार और उसके आस पास के इमारतों को हिन्दू इमारतें घोषित किया तो धूर्त कनिंघम ने उसे चुप करा दिया-पी एन ओक कनिंघम के फैलाये उस झूठ को ही मुस्लिमपरस्त, हिन्दूविरोधी वामपंथी इतिहासकार ज्यों के त्यों फ़ैलाने लगे. जब उनसे…

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अम्बेडकर
आधुनिक भारत, नवीनतम शोध

डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर न दलित थे न अछूत, वे क्षत्रिय थे

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बाबा साहेब आम्बेडकर मैं पिछले दिनों शोध कर रहा था कि अंग्रेजों ने जिन हिन्दू जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया था क्या वे सचमुच दलित थे तथा ब्राह्मणों और क्षत्रियों द्वारा ५००० वर्षों से शोषित और पीड़ित थे! मैंने अपने शोध में पाया कि अंग्रेजों ने जिन जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल किया था अपवाद को छोड़कर बाकी सब क्षत्रिय, ब्राह्मण और वैश्य जाति से थे और वे क्षत्रियों, ब्राह्मणों के द्वारा ५००० वर्षों से शोषित, पीड़ित नहीं बल्कि उनकी दुर्गति केलिए ८०० वर्षों का अत्याचारी, हिंसक, लूटेरा मुस्लिम शासन और २०० वर्षों का लूट और अत्याचार…

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दलित
आधुनिक भारत, नवीनतम शोध

दलित जातियां दरिद्र बने क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य लोग हैं, भाग-२

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मुस्लिम-ब्रिटिश शासन में बंगाल की जनता की तस्वीर गतांक से आगे… अब देखिये वामपंथी और दलितवादी कहते हैं ब्राह्मण और क्षत्रिय दलितों का ५००० वर्षों से शोषण कर रहे थे जबकि १००० ईस्वी से १८०० ईस्वी तक ब्राह्मण और क्षत्रिय खुद मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा शोषित, पीड़ित और वंचित थे और पिछले २०० वर्षों से अंग्रेज इनका शोषण और उत्पीडन कर रहे थे. जब विदेशी सत्ताधारी ईसाई और मुसलमान पहले से ही सभी भारतवासियों का शोषण और उत्पीडन कर रहा हो तो एसे समय में भला और कोई क्या किसी का शोषण, उत्पीड़न करेंगे. मगर आगे देखिये.. ६.     सीमांत क्षेत्रों में…

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दलित
आधुनिक भारत, नवीनतम शोध

दलित जातियां दरिद्र बने क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य लोग हैं, भाग-१

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सच्चाई जानकर आप दंग रह जायेंगे. लेखक दावा करता है कि अगर यह लेख दलित जातियों के घर घर पहुँच गयी तो दलित राजनीती और दलितवादियों कि दुकाने बंद हो जाएगी! कुछ प्रश्न मेरे दिमाग में हमेशा दो प्रश्न उठता रहता था. पहला प्रश्न था “अंग्रेजों ने जिन हिन्दू जातियों को अनुसूचित जाति वर्ग में शामिल किया था क्या वे सभी सचमुच दलित थे?” और दूसरा प्रश्न था “आखिर हिन्दुओं में इतनी दलित जातियां आई कहाँ से” जबकि हिन्दू संस्कृति तो वैदिक संस्कृति पर आधारित चतुर्वर्ण व्यवस्था थी जिसमे जन्म से सभी शुद्र और कर्म के आधार पर ही अन्य…

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ऐतिहासिक कहानियाँ, मध्यकालीन भारत

बंगाल में त्रिवेणी संगम पर स्थित जफर खान गाजी का दरगाह प्राचीन विष्णुमन्दिर है

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A true history of Triveni, Hooghly of Bengal; you must not have been taught. दक्षिण बंगाल के सप्तग्राम (हूगली जिले में) में मान नृपति नाम का एक स्थानीय क्षत्रप था. प्राचीनकाल में सप्तग्राम एक विश्वप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय व्यापार क्षेत्र था. यह बंगाल का प्रसिद्ध बन्दरगाह था. सप्तग्राम एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल भी था. इसी सप्तग्राम में पवित्र तीर्थस्थल त्रिवेणी था. बंगाल के हूगली जिले में त्रिवेणी बंडेल से ४ किमी दूर, बांसबेरिया, शिवपुर में है. यहाँ गंगा के साथ यमुना की एक धारा और दक्षिण सरस्वती की एक धारा (सोलहवीं सदी तक) आकर मिलती थी इसलिए इसे दक्षिण का प्रयाग भी कहा…

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