क्या इस बात से असहमत हुआ जा सकता है की १९४७ में धर्म पर आधारित भारत विभाजन पश्चात यदि सभी हिंदू, बौद्ध, सिक्ख, जैन हिन्दुस्थान में आ जाते और सभी मुस्लिम पाकिस्तान और बंगलादेश चले जाते तो आज हम भारतीय इस्लामी आतंकवाद, अलगाववाद, कट्टरवाद, बम ब्लास्ट, सांप्रदायिक दंगे, छद्मधर्मनिरपेक्षवाद, घृणित वोट बैंक की राजनीती, जनसंख्या विस्फोट, बेरोजगारी, गरीबी आदि से इस कदर पीड़ित नही होते? यदि बंटवारे के समय हिंदुओं (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) का पाकिस्तान और बंगलादेश से स्थानांतरण हिन्दुस्थान में हो जाता तो वे जो बंटवारे के समय पाकिस्तान बांग्लादेश में करोड़ों में थे आज महज कुछ हजारों और लाखों में सिमट नही गए होते? वे आज नित्य इस्लामी हिंसा, बलात्कार, लूट, अपहरण और धर्मान्तरण के शिकार नही हो रहे होते और घुट घुट कर आतंक के साये में जीने को बाध्य न होते?
हम सभी भारतियों का दुर्भाग्य है कि धर्म के आधार पर भारत के तीन टुकड़े कर दो टुकड़े आक्रमणकारी मुसलमानों के वंशजों को देने के बाबजूद, अवशेष हिन्दुस्थान और हिंदुओं को वापस उसी इस्लामिक शैतानी चंगुल में, जिसमे हिंदू, बौद्ध, सिक्ख, जैन और हमारा भारत ११९२ से १७०७ ईस्वी तक अर्थात मोहम्मद गोरी के आक्रमण से औरंगजेब की मृत्यु तक फंसा था और भारत के तीन टुकड़े होने के बाद राहत की साँस लेने की उम्मीद थी, तथाकथित पंडित और महात्मा ने भारत का बंटबारा करनेवाले उन्हीं जिहादी मुसलमानों को हिन्दुस्थान में रखकर हिन्दुओं और हिन्दुस्थान के पीठ नहीं छाती में खंजर भोंक दिया.
फर्जी पंडित तो बड़े गर्व से कहता था कि मैं विचार से विदेशी और संस्कार से मुस्लिम हूँ, इसलिए उससे हिंदू, हिंदू सभ्यता, संस्कृति और धर्म का भला होने की तो उम्मीद ही बेकार है पर ये तथाकथित महात्मा जो बड़े गर्व से मंदिरों में कुरआन का पाठ किया करता था क्या इसे नही पता था कि कुरआन गैरमुस्लिमों के अस्तित्व को ही अस्वीकार करता है और हिंसा, आतंक, अत्याचार से दर-उल-हर्ब को दर-उल-इस्लाम में बदलने को जायज ठहराता है? क्या वो पाकिस्तान बनबाने के लिए किये गए हिंसा से वाकिफ नही था? कम से कम १९४६ की प्रत्यक्ष कार्यवाही को तो याद कर लिया होता?
तथाकथित पंडित और फर्जी गांधियों ने हिंदुओं के साथ बंटवारे के समय इतनी नाइंसाफी करने के बाबजूद सहिष्णु हिंदुओं (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) को दबाने, कुचलने के लिए धर्मनिरपेक्षता की आड़ में मुस्लिम परस्त और हिंदू विरोधी नीतियों को संगठित रूप दिया जो आज हम हिन्दुओं और हिन्दुस्थान के लिए गले का फांस बन गया है. आसानी से पता चलता है कि हिंदुओं की स्थिति हिन्दुस्थान में कितनी दयनीय हो गयी है. हिंदू अपने हिन्दुस्थान में ही सेकुलरों की नजरों में और कार्यों से दूसरे दर्जे के नागरिक बन गए है.
मुस्लिमों द्वारा अधिगृहित एक तथाकथित बाबरी मस्जिद टुटा तो उसकी आंच २१ वर्षों बाद भी दहक रही थी परन्तु कश्मीर में आजादी के बाद लगभग ५०० मंदिर तोड़ दिए गए; भारत में इस्लामी आतंकियों ने जब भी दंगे किये हिंदुओं के मन्दिरे तोड़ी, पर इसकी कोई चर्चा तक नही होती है. गुजरात के २००२ के दंगे के बारे में देश ही नही विदेशों में भी लोग जान गए क्योंकि यह एकमात्र ऐसा दंगा था जहाँ मृतकों में हिंदू मुस्लिम का अनुपात ३:७ रहा जबकि आजादी के बाद हजारों दंगे हुए, २००२ के बाद ही सेकुलरों के शासन में दंगे होते रहे पर उसकी कोई चर्चा तक नही होती क्योंकि उनमे अनुपात ठीक विपरीत रहा है या उससे भी कम. कई मामलों में तो शांति दूतोंने हिंदुओं के बिना किसी प्रतिरोध के सैकड़ों घरें जला डाली, दुकाने लूट ली और मन्दिरें तोड़ दी है.
कांग्रेस/यूपीए के शासन काल में हिन्दू एक वाक्य मुस्लिमों के विरुद्ध बोलता तो हफ्तों राजनीती और मीडिया में उसकी चर्चा होती पर जाकिर नायिक, अकबरुद्दीन ओवैशी, असौद्दीन ओवैशी, तौकीर रजा आदि हिन्दुस्थान और हिंदुओं के विरुद्ध बात करता तो राजनेता और मीडिया की अधिकतम कोशिश होती कि इसकी चर्चा न हो. रामदेव बाबा जब कालेधन के विरुद्ध शांतिपूर्ण आंदोलन किये तो उन पर लाठियां चलाई गई जबकि आतंकवादी सैय्यद अलीशाह गिलानी दिल्ली में ही भारत के विरुद्ध आतंकी सम्मेलन किया, भारत के तिरंगे जलाया तो उसे पुलिस प्रोटेक्शन दिया गया! मुंबई दंगे करवाने वाले रजा अकादमी पर केस तक दर्ज नही हुआ? मुस्लिमों के तलुवे चाटने वाले ये तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राक्षस हिंदुओं के दिल में बसने वाले श्रीराम के अस्तित्व को ही नकारता रहा और हमारी आस्था का प्रतीक राम सेतु तोड़ने पर आमादा था.
हिंदू इस्लामी आतंकियों के निरंतर प्रहार से त्रस्त था पर सेकुलर सरकारें आतंकवादियों, अलगाववादियों, कट्टरवादियों को खुश करने के लिए और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए हिंदुओं को ही आतंकवादी ठहराने पर तुला हुआ था. शायद ही किसी देश का ऐसा इतिहास लिखा गया होगा की मुस्लिम आक्रमणकारियों को हीरो और अपने देश की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देने वालों हिंदुओं को विलेन के रूप में उल्लेख किया गया हो. यहाँ के सेकुलर नेताओं में एक मुस्लिम की मौत पर करोड़ों रूपया और नौकरी न्योछावर करने की होड़ दिखाई देती थी जबकि हिन्दुओ और हिंदू सिपाहियों की मौत पर सुहानुभूति के दो शब्द भी निकालना धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ समझते थे?
एक तरफ इस्लामी आतंकवादी पाकिस्तानी और बंगलादेशी आतंकवादियों के सहयोग से और तथाकथित धर्मनिरपेक्षों के सह से हिंदू और हिन्दुस्थान को बर्बाद कर इसे दर-उल-इस्लाम में बदलने के षड्यंत्र रच रहे है तो दूसरी तरफ ईसायत दीमक की तरह धर्मान्तरण द्वारा हिंदू शक्ति को अंदर ही अंदर खोखला कर रहा है. इस दोहरी मार से आज नही तो कल हिंदू और हिन्दुस्थान के सामने अस्तित्व का संकट आना ही आना है. इसलिए बुद्धिमानी इसमें है कि हम अपने भविष्य और अपनी संतति की सुरक्षा के लिए इस्लामी आतंकवादियों के विरुद्ध तैयारी वर्तमान में ही कर लें और शुरुआत इनके पोषक और संरक्षक छद्मधर्मनिरपेक्षों को सत्ता और शक्ति से बाहर कर करे.
हिन्दुस्थान में ही हिंदुओं (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) के दुर्दशा के लिए निम्नलिखित कारक जिम्मेदार हैं जिनपर विचार कर उससे मुक्ति पाने का प्रयत्न करना होगा:
१. फूट डालो और राज करो की अंग्रेज नीति का कांग्रेसीकरण: भारत में फूट डालो और राज करो की नीति की शुरुआत डलहौजी ने किया था और उसने देशी रियासतों के कमजोरियों का फायदा उठाते हुए आपस में लड़ाकर अंग्रेजी राज्य की पकड़ मजबूत बनाया. पर १८५७ की विद्रोह ने इस नीति की चूलें हिला दी. तत्पश्चात इस फूट डालो और राज करो नीति को नए रूप में संगठित किया गया. भारतीय ब्रिटिश शासन हिंदू हित पर मुस्लिमों को तरजीह देना शुरू कर दिया.
इसके पीछे दर्शन यह था कि हिंदू कभी भी भारत में अंग्रेजी हुकूमत को स्वीकार नही करेंगे और अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते रहेंगे साथ ही अगर मुस्लिम भी उनका साथ देते रहेंगे तो अंग्रेजी हुकूमत पर हमेशा खतरा मंडराता रहेगा. ऐसे में मुस्लिमों का तुष्टिकरण कर उनका समर्थन हासिल किया जा सकता है जिसका परिणाम यह होगा की एक तो मुस्लिम अंग्रेजों के समर्थक बन जायेंगे दूसरी ओर हितों के टकराव के कारण हिंदुओं की कुछ शक्ति मुस्लिमों के विरुद्ध इस्तेमाल होगी और अंग्रेजी राज्य के विरुद्ध संघर्ष कमजोर पड़ जायेगा. वर्तमान कांग्रेस पार्टी आज भी इस नीति को अपना रही है. “Congress’s vote bank policy is to unite Muslims to get united vote from them and divide hindus to get maximum vote from those segments so that united and divided vote must be always bigger.”
२. गाँधी की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति:गाँधी का मानना था कि भारत में अल्पसंख्यक मुस्लिम बहुसंख्यक हिंदुओं से उलझ ही नही सकते है. वे प्रत्येक हिंदू मुस्लिम दंगों के लिए हिंदुओं के द्वारा अहिंसा की निति का पालन न करने को जिम्मेदार मानते थे. मुस्लिमों द्वारा प्रायोजित मोपला दंगे, जिसमे बहुतायत में हिंदू मारे गए थे, के बाद मुस्लिमों के लिए चंदा इकठ्ठा करते हुए उन्होंने यहाँ तक कहा कि हिंदू मुस्लिमों को दबाते है इसलिए दंगा होता है. इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए निचे के लिंक पर क्लिक करे और पढ़ें “भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण का इतिहास और गाँधी”
३. हिंदू विरोधी नीतियों को धर्मनिरपेक्षवाद के रूप में संगठित रूप देना: धर्मनिरपेक्ष राज्य का उत्तरदायित्व है कि वो पक्षपात रहित होकर सभी धर्मों और धर्माबलम्बियों से समान व्यवहार करे. भारतीय संविधान में उल्लिखित पन्थनिरपेक्षता का यही आशय है, पर नेहरु और कांग्रेस शासित भारत में मुस्लिम और ईसाई जन्मजात धर्मनिरपेक्ष माने जाते है क्योंकि सांप्रदायिक होने का ठीका और धर्मनिरपेक्ष होने की जवाबदेही तो नेहरु और कांग्रेस ने हिंदुओं को दे रखा है.
मुस्लिम परस्त और हिंदू विरोधी होना धर्मनिरपेक्ष होने के प्राथमिक लक्षण है और हिंदू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान की बात करनेवाला हिंदू सांप्रदायिक है. इसी तरह १४० करोड़ भारतियों के हित की बात करनेवाला और देश हित को सर्वोपरी रखनेवाला मोदी सम्प्रदायिक है जबकि देश की संसाधनों पर मुस्लिमों का पहला हक कहनेवाला, सांप्रदायिक आरक्षण, हिंदू विरोधी सांप्रदायिक बिल बनाने वाला, आतंकवादियों को संरक्षन और उनके परिजनों को पेंशन देनेवाला, केवल मुस्लिमों के लिए छात्रवृति, ऋण आदि देनेवाला कांग्रेस तथा आतंकवादियों को जेल से रिहा करवाने वाला और मुस्लिमों को दंगों में संरक्षण देनेवाला सपा धर्मनिरपेक्ष है.
हिंदुओं के अतिरिक्त अन्य कोई चाहे वो कश्मीर के पाकिस्तान में होने पर प्रधानमंत्री बनने का सपना देखनेवाला फारूकअब्दुल्ला हो या खुद को आई एस आई का एजेंट बतानेवाला और पाकिस्तान समर्थक शाही इमाम हो या बंगलादेशी घुसपैठियों को नहीं बसाने पर हिंदुस्तान की ईंट से ईंट बजा देने की संसद भवन में बात करनेवाला सांसद असौद्दीन ओवैशी हो या वन्दे मातरम का विरोध करनेवाले, भारत का तिरंगा जलानेवाला और पाकिस्तान और लादेन के समर्थन में नारा लगानेवाला जिहादी हों या लोभ लालच देकर हिंदुओं को धर्मान्तरित करनेवाला धूर्त ईसाई हो या सत्ता के लिए खुद धर्मान्तरण करानेवाली सोनिया गाँधी हो ये सब के सब धर्मनिरपेक्ष है.
वास्तविकता तो ये है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ राजनितिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हिंदुओं को मुर्ख और कमजोर बनाने का राजनितिक षड्यंत्र है. भारत में मुस्लिमपरस्ती और हिंदू विरोधी वोट बैंक की राजनीति को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पोषित कर नेहरु-गाँधी खानवंश द्वारा हिंदुओं को कमजोर बनाने का राजनितिक षड्यंत्र रचा गया है. विशेष जानकारी के लिए पढ़ें- छद्मधर्मनिरपेक्षवाद आतंकवाद से ज्यादा खतरनाक है:
४. नेहरूवाद और वामपंथ का राष्ट्रवाद, हिंदू और हिंदुत्व विरोधी होना, पर सत्ता और शिक्षा पर इनका पकड़ होना: नेहरु को राष्ट्रवाद से घृणा था. वह उसे ‘बू’ कहते थे (भारत गाँधी नेहरु की छाया में- लेखक गुरु दत्त) पर वास्तविकता यह थी कि उसकी नजर में राष्ट्रवाद का मतलब हिंदू राष्ट्रवाद से था और वे तो हिंदुओं से घृणा करते थे. हिंदू और हिंदुत्व की बात करनेवाले उनके नजर में देशद्रोही था (भारत गाँधी नेहरु की छाया में).
नेहरु का मानना था की ““Hindu culture would injure India’s interests. The ideology of Hindu Dharma is completely out of tune with the present times and if it took root in India, it would smash the country to pieces. नेहरु की हिंदू विरोधी मानसिकता को विस्तार से समझने के लिए निचे के लिंक पर क्लिक करें और पढ़ें
नेहरु हिंदू थे या मुस्लिम: अ डिस्कवरी ऑफ ट्रुथ
५. मुस्लिम नेतृत्व में इतिहास लेखन: किसी भी सभ्यता, संकृति और धर्म को नष्ट करना हो तो सबसे पहले वहाँ की शिक्षा व्यवस्था को विकृत कर देना चाहिए ये नेहरु ने अंग्रेजों से अच्छी तरह सीख लिया था. प्रधानमंत्री बनने के बाद उसने अबुल कलाम आजाद को शिक्षा मंत्री बनाकर अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु लगा दिया. इसमें हिंदुओं के गौरवशाली इतिहास को विकृत और घृणित रूप में पेश किया गया और आक्रमणकारी मुस्लिमों का महिमा मंडन किया गया जिसे पढकर लोगों में हीन भावना उत्पन्न होती है और यही उसका उद्देश्य भी था.
विश्व में एकमात्र भारत ऐसा देश है जहाँ की इतिहास में आक्रमणकारियों को हीरो और अपने देश, अपनी सभ्यता और संस्कृति, धर्म और मर्यादा की रक्षा हेतू लड़नेवाले वीरों को विलेन के रूप में पेश किया गया है. कांग्रेस-वामपंथी इतिहासकार हमे यह पढ़ने और मानने के लिए विवश करते है कि मुस्लिमों के भारत आने के पहले भारत की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, प्रशासनिक स्थिति बहुत ही खराब थी और उसमे व्यापक सुधार और विकास मुस्लिमों के आगमन पश्चात ही हुआ है जबकि सच्चाई ठीक इसके विपरीत है.
क्रमशः
1 thought on “हिन्दुस्थान में हिंदुओं की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन भाग-1”