मध्य एशिया का खूबसूरत गुलाम इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसकी बेटी रजिया अपने हुस्नोंजाल के बदौलत सत्ता हथियाने में कामयाब हो गयी थी पर जिन सरदारों पर उसके हुस्न की छांह नहीं पड़ी वे एक औरत को अपना सुल्तान मानने केलिए तैयार नहीं थे. आरम्भ में उसने अपने फौलादी अबिसिनियाई अस्तबल्ची गुलाम अम्लुद्दीन को प्यार के मोहपाश में बांधकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश की पर ज्यादा दिन सुरक्षित नहीं रह सकी.
इसी बीच तबरहिन्द का सरदार अल्तुनिया ने रजिया के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “अप्रैल १९४० ईस्वी में रजिया उसका विद्रोह दबाने दिल्ली से चली मगर उसके दल-बल और छल के सामने उसकी एक न चली. अल्तुनिया ने उसे तबरहिन्द के तहखाने में बंद कर उसके साथ बलात्कार किया. रजिया को उसकी रखैल बनकर अपनी सारी सेना उसे सौंप देनी पड़ी.”
इधर रजिया ने दिल्ली छोड़ी, उधर उसके हरम भाई मुइजुद्दीन बहरामशाह ने खुद को सुल्तान घोषित कर दिया. तब दिल्ली की तख्त पर कब्जे का स्वप्न पाले अल्तुनिया ने रजिया की सम्मिलित सेना के साथ बहरामशाह के विरुद्ध लड़ा पर हार गया. उन दोनों को अक्तूबर १२४० ईस्वी में मारकर सड़क के किनारे फेंक दिया गया. रजिया का छत-बिछत शरीर दिल्ली के तुर्कमान गेट के भीतर सड़क के किनारे एक जीर्ण-शीर्ण कब्र में दबा गड़ा पड़ा है.
१२४३ ईस्वी में विद्रोही दरबारियों ने बहराम शाह की भी हत्या कर दी और चालीस प्रमुख गुलामों में से एक बलबन ने खुद को सुल्तान घोषित कर दिया पर किसी ने उसका साथ नहीं दिया बल्कि इल्तुतमिश के पोते अलाउद्दीन को जेल से निकालकर गद्दी पर बिठा दिया और वजीर बनकर निजामुलमुल्क कमान अपने हाथों में ले लिया. अन्य दरबारियों ने ३० ओक्टूबर १२४२ को निजामुलमुल्क को षड्यंत्र कर मौत के घाट उतार दिया.
अलाउद्दीन भी ज्यादा दिन नहीं टिक सका. उसे दरबारियों ने जून १२४६ ईस्वी में घसीटकर जेल में डाल दिया और फिर हलाल कर दिया और बहराइच का भक्षक जागीरदार नासिरुद्दीन महमूद को सुल्तान बनने का गुपचुप निमन्त्रण भेजा. इतिहासकार मिन्हाज उल सिराज लिखता है उसने काफिरों (हिन्दुओं, बौद्धों) के साथ अनेक लड़ाईयां लड़ी थी. वह बहराईच से दिल्ली बुर्का पहनकर एक औरत की भांति दिल्ली पहुंचा जिसे १० जून १२४६ ईस्वी को सुल्तान घोषित किया गया.
वामपंथियों का हीरो नासिरुद्दीन महमूद
इसी शैतान नासिरुद्दीन महमूद को वामपंथी इतिहासकारों ने नेक, उदार, गुणी, कुलीन, दयालु आदि विभिन्न शब्दों से निर्लज्जता पूर्वक प्रसंशा की है जिनके झूठ और मक्कारी का पर्दाफाश खुद मुस्लिम इतिहासकार मिन्हाज उस सिराज ने पूरी तरह कर दिया है.
वामपंथी इतिहास्यकार आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव नासिरुद्दीन महमूद के बारे में लिखते हैं, “नासिरुद्दीन एक सीधा-सादा, बुराइयों से दूर, सादगी से जीवन व्यतीत करनेवाला तथा किसी को भी न सताने वाला सुल्तान था.” कुछ अन्य वामपंथी इतिहास्याकारों ने तो इसे टोपी सिलकर और कुरान लिखकर पेट पालनेवाला भी बता दिया है पर वास्तविकता यह था कि यह भी अन्य मुस्लिम शासकों की तरह ही नीच, नराधम, हिंसक, हत्यारा, अपहरणकर्ता और भोगी ही था. हाँ, दरबारियों पर अधिक निर्भरता के कारण कमजोर अवश्य था.
शैतान नासिरुद्दीन महमूद
नासिरुद्दीन महमूद के कारनामों का वर्णन करते हुए मिन्हाज-उल-सिराज लिखता है, “(नासिरुद्दीन का सेनापति) उलुघ खान (बलबन) तथा कुछ अन्य दरबारी कुलीनों ने शाही सेना और अपने अनुयायियों के साथ एकाएक (हिमालय की) पहाड़ियों में एक अभियान चलाने का निर्णय किया… वे लोग अप्रत्याशित रूप से विरोधियों (हिन्दुओं) पर टूट पड़े…सभी लोगों को तलवार से काटकर फेंक दिया गया…पहाड़ी लोगों के गांवों और आबादियों को चारों ओर से घेरकर बर्बाद कर दिया गया…उन सभी को मार डाला गया. सिर काटकर लानेवाले सिपाहियों को एक सिर के लिए चांदी का एक टंका इनाम मिलता था. जिन्दा हिन्दू को पकड़कर लानेवाले सिपाही को दो टंका मिलता था. एक दल के अफगान जिसमें तीन हजार घुड़सवार और पैदल थे…बहुत साहसी और हिम्मत वाले थे. वास्तव में, देखा जाय, तो सेना के सारे कुलीनों, नायकों, तुर्कियों और ताजिकों ने बड़ी वीरता और बहादुरी दिखाई थी. उनके बेहतरीन कारनामे इतिहास में हमेशा जिन्दा रहेंगे.”
“ऊंट पर भागनेवाले हिन्दुओं को उनके बच्चों और परिवारों सहित पकड़ा गया. दुश्मनों (हिन्दुओं) के २५० नायक और सरदार बंदी बनाए गये. पहाड़ी राणाओं तथा सिंध के राय के पास ५० हजार टंके मिले. इसे शाही खजाने में भेज दिया. अपने बहुत से नायकों और कुलीनों को लेकर उलुघ खान (बलबन) दरबार में आया. राजधानी में दो दिन रहने के बाद दरबार फिर वहाँ गया…प्रतिशोध का संदेश लेकर. हाथियों को तैयार किया गया. तुर्कों ने अपनी तीखी तलवारों पर सान चढ़ाई. शाही हुक्म पर बहुत लोग हाथियों के पैरों के नीचे फेंक दिए गये. तेज तुर्कों ने हिन्दुओं के शरीरों के दो-दो टुकड़े कर डाले. तकरीवन १०० लोगों की मौत चमड़ी उधेड़ने वालों के हाथों हुई. सिर से पैर तक इनका चमड़ा छिल दिया गया. फिर उनमें भूसा भरा गया. भूसों से भरी कुछ चमड़ियों को नगर के प्रत्येक दरवाजे पर टांग दिया गया. दिल्ली के दरबारों ने ऐसे दंड की कभी कल्पना भी नहीं की होगी; न किसी ने ऐसी आतंककारी कहानी ही सुनी होगी.”
शांत पहाड़ियों के इस निरुद्देश्य रक्तपात और पाशविक हत्याकांड तथा लूट और विध्वंस से उत्तेजित होकर हिन्दुओं ने भी वैसा ही बदला लिया. इस समाचार को सुनकर सेनापति उलुघ खान “पहाड़ियों की ओर तेजी से चल पड़ा और… पुनः सिर उठाने वाले (हिन्दुओं) पर अकस्मात हमला कर सभी को कैद कर लिया. इनकी संख्यां बारह हजार थी. इनमें नर, नारी और बालक सभी थे. इन सारी घाटियों, पहाड़ियों और घिराव बंदियों को कुचल-मसलकर साफ कर दिया गया. इसमें लूट का माल भी बहुत मिला. इस्लाम की इस महान विजय केलिए अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है.”
धूर्त वामपंथी इतिहासकारों की बेशर्मी
वामपंथी इतिहासकार हरिश्चन्द्र वर्मा मध्यकालीन भारत भाग-१ के पृष्ठ १४० पर लिखते हैं, “तत्कालीन इतिहासकारों, जैसे मिन्हाज-उस-सिराज, जियाउद्दीन बरनी, शम्स-ए-सिराज अफिक, याह्या-बिन-अहमद सरहिन्दी आदि के ग्रन्थ धार्मिक अत्याचार, मन्दिरों के विनाश और मूर्तिभंजन के चित्रण से परिपूर्ण है.” पर यही आदमी उसी पृष्ठ पर लिखता है, “मूर्तिपूजा पर प्रतिबन्ध लगाकर तुर्क शासकों ने हिन्दुओं को एक ईश्वर में विश्वास करना सिखाया.” और फिर आगे दिल्ली में मध्य एशिया के गुलाम वंश का सबसे क्रूर और महाशैतान उलुघ खान उर्फ़ बलबन के गुणगान में अपनी पूरी शक्ति लगा देता है. पूरे दस-ग्यारह पन्नों में उस शैतान का महिमा मंडन किया है जिसकी पोल हम अगले लेख में खोलने वाले हैं.
सवाल है, जब तत्कालीन मुस्लिम इतिहासकार जिन बादशाहों के कुकर्मों का दिल खोलकर बखान करते हैं जो सभी मुस्लिम शासकों को नराधम, रक्तपिशाच, हिंसक, बर्बर, हत्यारा, अपहरनकर्ता, बलात्कारी, मूर्तिभंजक, मंदिरों का विध्वंसक और लूटेरा साबित करता है तो फिर ये धूर्त वामपंथी इतिहासकार उन शैतानों को इन्सान और भगवान बनाकर भारत के लोगों के सामने क्यों पेश करते हैं? इसमें उनका निहित स्वार्थ और एजेंडा क्या है? यह हमें समझना होगा.
शैतान नासिरुद्दीन महमूद के अन्य कुकृत्य
ऊपर तो मिन्हाज-उस-सिराज- ने सिर्फ एक घटना का वर्णन किया है. ऐसे दर्जनों हैं.
मुगलों से लड़ने गया नासिरुद्दीन की सेना मुगलों से डरकर भाग गई और झेलम तथा सिन्धु के समीपवर्ती क्षेत्रों को लूटने और लगान वसूल करने लग गई. इतिहासकार मिन्हाज उस सिराज लिखता है, “ अपने साजो-सामान और हाथियों के साथ चनाब नदी पर अपना पड़ाव डाल रक्खा था. (उनके सेनापति) उलुघ खान (बलबन) अल्लाह के रहमोकरम से झेलम तथा जुद की पहाड़ियों को तबाह व बर्बाद कर अनेक गक्खरों (हिन्दू जाति) तथा विद्रोही काफ़िरों (हिन्दू, बौद्ध, जैन) को जहन्नुम रसीद कर रहे थे. इसके बाद उन्होंने सिन्धु के किनारे आगे बढ़कर आस-पास के सारे क्षेत्रों में तबाही फैला दी….मार्ग में जालन्धर की पहाड़ियों के एक मन्दिर को मस्जिद बनाकर उन लोगों ने उसमें ईद-ए-अजान पढ़ी.”
दूसरे साल नासिरुद्दीन की सेना पानीपत क्षेत्र पर हमला कर लूटने आई मगर जाटों ने उन्हें मारकर भगा दिया. तब नासिरुद्दीन ने कन्नौज के समीप एक हिन्दू राज्य जिसकी राजधानी नंदन प्राचीरों से घिरी हुई थी पर नाक बचाने के लिए हमला किया. पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “नर-भक्षी मुसलमानों का हर हिन्दू चीज पर टूट पड़ना एक स्वाभाविक बात थी. काफिरों की शक्ति को चकनाचूर करना उन लोगों का पहला और पवित्र कर्तव्य था. घमासान युद्ध हुआ, खून खराबा हुआ पर विजय नहीं मिली. कुछ ले देकर समझौता कर पीछे हटना पड़ा.”
“इसके बाद नासिरुद्दीन ने कर्रा पर हमला किया जहाँ उसका सेनापति पिशाच उलुघ खान ने असुरक्षित गांवों और कस्बों में तबाही मचा दी. हिन्दुओं, बौद्धों का कत्लेआम कर घरों को लूटा, स्त्रियों का अपहरण किया. पहले मुसलमान बनाया फिर गुलाम.”
वे आगे लिखते हैं, “ उलुघ खान अब दरबार में इतना प्रभावशाली हो गया की सुल्तान को अपनी बेटी का निकाह उसके बेटे से करना पड़ा. दहेज़ में इतना धन देना पड़ा की खजाना फिर खाली हो गया. खाली खजाना भरने केलिए पुनः लूट-हत्या अभियान शुरु हुआ. यमुना पार हिन्दू घरों को रौंद दिया गया. इस पाप की कमाई में दरबारी जू हुजुरिये मिन्हाज उस सिराज को भी हिस्सा १०० खर-भार के रूप में मिला.”
१२४४ ईस्वी में नासिरुद्दीन ने बरदार और पिंजौर के हिन्दू क्षेत्रों का सत्यानाश किया. कैथल नगर को लुटने के समय उसने हिन्दुओं का भयानक कत्लेआम करवाया और अपने सैनिकों को आज्ञा दिया कि “अगर कोई नागरिक जिन्दा बचकर भाग निकले तो वह इस कारनामे को ताजिंदगी न भूल सके.”
मेवात पर हमले का जिक्र करते हुए मिन्हाज लिखता है, “मेवात के इन बागी (हिन्दु) निवासियों और उनके देव (हिन्दू सरदार) को सजा देने केलिए सुल्तान ने उलुघ खान को नियुक्त किया…घाटियाँ और दर्रे साफ कर दिए गए, मजबूत किले ले लिए गए और इस्लाम के सिपाहियों की निर्दयी तलवारों की क्रूर धारों में असंख्य हिन्दू डूब गए.”
एक अन्य जगह मिन्हाज लिखता है, “उलुघ खान की तलवार ने सारी पहाड़ियों का सत्यानाश कर दिया. वह पहाड़ियों की घाटियों को पारकर एक दम भीतर सालमुर तक पहुंच गया…. मुसलमानों ने इसे पहली बार लूटा. चारों ओर तबाही फैला दी. इतनी अधिक संख्यां में विरोधी हिन्दुओं को काटा गया की उनकी संख्यां गिनी नहीं जा सकती थी. और न उसका वर्णन ही किया जा सकता है.” (पृष्ठ ३५६, भाग-२, इलियट एवं डाउसन) दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने केलिए व्याकुल महाशैतान बलबन ने शैतान नासिरुद्दीन महमूद को जहर दे दिया जिससे वह १२६५-६६ में मर गया.
स्रोत: भारत में मुस्लिम सुल्तान, लेखक-पुरुषोत्तम नागेश ओक
अन्य: इलियट एवं डाउसन, भाग-२; मध्यकालीन इतिहास, भाग-१, संपादक हरिश्चन्द्र वर्मा आदि
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