६ दिसम्बर, १९९३ को भारत का कलंक बाबरी विध्वंस हुआ
भारत में उपलब्ध स्थानीय अभिलेख, क्षेत्रीय इतिहास, अनुश्रुति और भारतीय ग्रन्थों में उपलब्ध जानकारी के अनुसार अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीराम का भव्य मन्दिर बनाने का पहला श्रेय मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम के बड़े पुत्र कुश को जाता है. अर्केओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा श्रीरामजन्मभूमि की खुदाई में मन्दिर के तिन परतों का पता चला जिसमे द्वितीय परत प्रथम ईसापूर्व के महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य द्वारा बना माना जाता है. और उसके लगभग एक हजार वर्ष बाद ग्यारहवीं-बारहवीं शताब्दी में अयोध्या के गहड़वाल वंश के शासक गोविन्दचन्द्र द्वारा निर्मित या जीर्णोद्धार किया हुआ था (स्रोत: ASI द्वारा उत्खनन में प्राप्त विष्णुहरि शिलालेख).
बाबर के आदेश पर उसके सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में बने इसी श्रीराम मंदिर को 21 मार्च 1528 को तोप से ध्वस्त कर दिया था. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के प्रथम अध्यक्ष जनरल कनिंघम ने लिखा है कि मीर बाकी ने यह काम १७४००० रामभक्तों को कत्ल करने के बाद अंजाम दिया था.
राममन्दिर के लिए लड़े गये ७६ युद्ध
पारंपरिक स्रोतों से प्राप्त इतिहास के अनुसार राम मंदिर की वापसी के लिए 76 युद्ध लड़े गए. कई बार ऐसा भी हुआ जब विवादित स्थल पर मंदिर के दावेदार राजाओं-लड़ाकों ने कुछ समय के लिए अधिकार भी किया पर यह स्थाई नहीं रह सका. जिस वर्ष मंदिर तोड़ा गया उसी वर्ष पास की भीटी रियासत के राजा महताब सिंह, हंसवर रियासत के राजा रणविजय सिंह, रानी जयराज कुंवरि, राजगुरु पं. देवीदीन पांडेय आदि के नेतृत्व में मंदिर की मुक्ति के लिए जवाबी सैन्य अभियान छेड़ा गया. शाही सेना को उन्होंने विचलित जरूर किया पर पार नहीं पा सके. 1530 से 1556 ई. के मध्य हुमायूं एवं शेरशाह के शासनकाल में 10 युद्धों का उल्लेख मिलता है जिसमे हजारों हिन्दू वीरगति को प्राप्त हुए.
हिंदुओं की ओर से इन युद्धों का नेतृत्व हंसवर की रानी जयराज कुंवरि एवं स्वामी महेशानंद ने किया. रानी स्त्री सेना का और महेशानंद साधु सेना का नेतृत्व करते थे. इन युद्धों की प्रबलता का अंदाजा रानी और महेशानंद के साथ उनके सैनिकों की बलिदान से लगाया जा सकता है. 1556 से 1605 ई. के बीच अकबर के शासनकाल में भी 20 युद्धों का जिक्र मिलता है. इन युद्धों में अयोध्या के ही संत बलरामाचार्य बराबर सेनापति के रूप में लड़ते रहे और अंत में वीरगति प्राप्त की.
मुगलों का विध्वंसकारी नीति जारी रहा
इन युद्धों का परिणाम यह रहा कि अकबर को इस ओर ध्यान देने के लिए विवश होना पड़ा. अकबर ने बीरबल और टोडरमल की राय से बाबरी मस्जिद के सामने चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की इजाजत दी. अकबर के ही वंशज औरंगजेब की नीतियां कट्टरवादी थीं और इसका मंदिर-मस्जिद विवाद पर भी असर पड़ा. 1658 से 1707 ई. के मध्य उसके शासनकाल में काशी विश्वनाथ मन्दिर, मथुरा के श्रीकृष्णजन्मभूमि मन्दिर सहित कई बड़े बड़े हिन्दू मन्दिरों का विध्वंस किया गया जिसमें राम मंदिर के लिए 30 बार युद्ध हुए. इन युद्धों का नेतृत्व बाबा वैष्णवदास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदंबा सिंह आदि ने किया.
रामजन्मभूमि की मुक्ति केलिए सिक्ख गुरुओं का योगदान
माना जाता है कि इन युद्धों में दशम गुरु गोबिंद सिंह ने निहंगों को भी राम मंदिर के मुक्ति हेतु संघर्ष के लिए भेजा था और आखिरी युद्ध को छोड़ कर बाकी में हिंदुओं को कामयाबी भी मिली थी. ज्ञातव्य हो की सिक्खों के पहले गुरु गुरुनानक ने भी १५१०-११ में अयोध्या आकर राममन्दिर का दर्शन किया था. अस्तु, इस दौर में मंदिर समर्थकों का कुछ समय के लिए राम जन्मभूमि पर कब्जा भी रहा पर औरंगजेब ने पूरी ताकत से हमला कर लाखों हिन्दुओं को हत्या कर उसे पुनः मस्जिद में तब्दील कर दिया.
मुगलों के पतन के बाद भी संघर्ष जारी रहा
१८ वीं शताब्दी के मध्य तक मुगल सत्ता का तो पतन हो गया पर मंदिर के लिए संघर्ष बरकरार था. १८४७-१८५७ इसवी के मध्य अवध के आखिरी नवाब रहे वाजिद अली शाह के समय बाबा उद्धव दास के नेतृत्व में दो बार युद्ध का उल्लेख मिलता है. परिणामस्वरूप नवाब ने एक हिन्दू, एक मुस्लिम और एक ईस्ट इंडिया कम्पनी के प्रतिनिधि को शामिल कर कमीशन का गठन किया. कमिशन का निष्कर्ष था की वहां कभी मस्जिद था ही नहीं. कमिशन ने अपनी रिपोर्ट में यह भी बताया की मीर बाकी ने मंदिर तोड़कर जिस ढांचे का निर्माण कराया था, इसके एक पत्थर पर यह स्पष्ट रूप से लिखा है की यह फरिश्तों के अवतरण का स्थल है.
ब्रिटिश सरकार का हिन्दू विरोधी षडयंत्र
इसी का असर था की हिन्दुओं मुस्लिमों की एकता प्रतिष्ठित हुई और अयोध्या-फ़ैजाबाद के स्थानीय मुस्लिमों ने बैठक कर तय किया की मुस्लिम राम मन्दिर केलिए बाबरी मस्जिद का दावा छोड़ देंगे. अंग्रेजों को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने इस मुहीम के सूत्रधार आमिर अली एवं बाबा रामशरण दास को विवादित स्थल के कुछ ही फासले पर स्थित इमली के पेड़ पर फांसी दे दी क्योंकि १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दू-मुसलमानों की एकजुट हमले से चिंतित ब्रिटिश शासन ने तबतक हिन्दू मुस्लिमों की एकजुट विरोध के काट केलिए मुस्लिम तुस्टीकरण कर फूट डालो राज करो की नीति अपना ली थी.
ब्रिटिश सरकार ने १८५९ में विवादित जगह पर एक तार का बाड़ बनाकर वहां हिन्दू और मुसलमान दोनों को पूजा और नमाज की इजाजत दे दी जबकि उसके पहले वहां नमाज कभी नहीं पढ़े गये जैसा की सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने निर्णय में लिखा है की १८५६ से पहले वहां नमाज पढ़े जाने के कोई सबूत नहीं मिले हैं.
रामजन्मभूमि की मुक्ति केलिए कानूनी लड़ाई की शुरुआत
रामजन्मभूमि के लिए कानूनी लड़ाई की शुरुआत १८१३ ईसवी में हुई जब ब्रिटिश सत्ता के समक्ष हिन्दू संगठनों ने यह दावा किया की १५२८ में बाबर के आदेश पर रामजन्मभूमि पर स्थित मन्दिर को तोड़कर उसे मस्जिद बना दिया गया था. अतः रामजन्मभूमि सम्पूर्ण रूप में हिन्दुओं को सौंप दिया जाये. इसके बाद साल 1885 में पहली बार महंत रघुबर दास ने ब्रिटिश शासन के दौरान ही अदालत में याचिका देकर मंदिर बनाने की अनुमति मांगी थी.
ब्रिटिश काल में बाबरी ढांचे को तोड़ने के प्रयास
ब्रिटिश काल में विवादित ढांचे को पुनः तोड़ने का प्रयास १९३४ में महंत रामचन्द्र परमहंस के नेतृत्व में किया गया जिसमें विवादित ढांचे को आंशिक रूप से तोड़ने में ही सफलता मिली. अंग्रेजों ने उसकी पुनः मरम्मत करा दी. इसके बाद 23 दिसंबर 1949 को हिंदुओं ने ढांचे के केंद्र स्थल पर रामलला की प्रतिमा रखकर पूजा-अर्चना शुरू की. इसके बाद से ही मुस्लिम पक्ष ने यहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया और वह कोर्ट चला गया.
रामजन्मभूमि के विरुद्ध जवाहरलाल नेहरु का षड्यंत्र
इस बात से क्रुद्ध होकर दुष्ट मोहम्मद जवाहरलाल नेहरु उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पन्त को रामजन्मभूमि से भगवान श्रीराम की मूर्तियों को हटाकर उस स्थल को पूरी तरह मस्जिद के तौर पर मुस्लिमों को सौंप देने का आदेश दिया. मुख्यमंत्री ने यह आदेश फ़ैजाबाद के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को दिया. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने रिपोर्ट दिया की एसा करना सम्भव नहीं है. यदि एसा किया गया तो भयानक अशांति और दंगे हो सकते हैं. नेहरु के लाख दबाव के बाबजूद जिलाधीश श्री के के नायर अपनी बात पर अड़े रहे और यथास्थिति बनाये रखा. इसी दौरान श्री गोपाल सिंह विशारद ने कोर्ट में वाद दायर कर वहां १९५० में हिन्दुओं को पूजा पाठ करने का अधिकार प्राप्त कर लिया और हिन्दु विरोधी मोहम्मद नेहरु कुछ नहीं कर सका.
रामजन्मभूमि पर मन्दिर निर्माण केलिए आन्दोलन की शुरुआत
१९८६ में रामजन्मभूमि पर नये सिरे से श्रीराम मन्दिर के निर्माण केलिए आन्दोलन स्वर्गीय अशोक सिंघल, स्वर्गीय महंत रामचन्द्र परमहंस, योगी आदित्यनाथ के गुरु स्वर्गीय अवेद्यनाथ, श्री मोरोपंत पिंगले, श्री ओंकार भावे, श्री गिरिराज किशोर, श्री लाल कृष्ण आडवाणी आदि ने प्रारम्भ किया. १९९० में पुनः एकबार बाबरी के कलंक को धोने का प्रयास किया गया परन्तु गद्दार मुल्लायम सिंह यादव ने रामभक्तों पर गोलियां चलवाकर दर्जनों रामभक्तों के प्राण ले लिए. १०० करोड़ हिन्दुओं और श्रीराम मंदिर केलिए अपने प्राणों के उत्सर्ग करने वाले लाखों पुण्यात्माओं के सिने में चुभने वाले बाबर के उस कलंक से मुक्ति एक बड़े संघर्ष के बाद ६ दिसम्बर, १९९२ को श्री कल्याण सिंह सरकार में ४६३ वर्षों बाद मिली जबकि वे रामभक्तों के कत्लेआम की इजाजत देने की जगह अपना इस्तीफा देना मंजूर किया.
नेहरु-गाँधी परिवार का षड्यंत्र जारी रहा
इसके बाबजूद श्रीराम मन्दिर की बाधाएं समाप्त नहीं हुई. राम मन्दिर निर्माण में ईसाई-मुस्लिम नेहरु-गाँधी खानदान सबसे बड़ी बाधा बन गयी. इसने अर्केओलोजिकल सर्वे की खुदाई में विवादित भूमि के निचे राम मन्दिर के प्राचीन अवशेष के सबूत मिलने की बात कहने वाले ASI के सदस्य के. के. मुहम्मद पर झूठ बोलने का दबाब बनाया और झूठ नहीं बोलने पर उन्हें टीम से निकाल दिया. सुप्रीमकोर्ट के फैसला आने के बाद के के मुहम्मद ने कहा “मैंने सोचा भी नहीं था की फैसला इतना सही होगा. मैं दोषमुक्त महसूस कर रहा हूँ उस बात केलिए जब मैंने कहा था की मस्जिद से पहले वहां राम मन्दिर मौजूद था. कुछ लोग मेरे पीछे पड़ गये थे.”
ज्ञातव्य है की खुदाई में ASI को विवादित भूमि के निचे एक विशाल संरचना और लगातार निर्माण के साक्ष्य मिले जो विवादित ढांचा के बनने तक जारी था. वहां से नक्काशीदार ईंटें, देवताओं की युगल खंडित मूर्तियाँ और नक्काशीदार वास्तुशिल्प जिसमें पत्तों के गुच्छे, अमल्का, कपोतपाली, दरवाजे के हिस्से, कमल की आकृतियाँ, गोलाकार पूजा स्थल जो सम्भवतः भगवान शिव का मन्दिर था आदि मिला.
इतना ही नहीं, इन ईसाई-मुस्लिम नेहरु-गाँधी खानदान ने राममन्दिर पर फैसले को डिरेल करने केलिए कोर्ट में हलफनामा देकर भगवान श्रीराम को काल्पनिक करार दिया. गुजरात के गोधरा में ५९ रामभक्तों की जघन्य हत्या पर चर्चा किये वगैर यह लेख अधुरा होगा. २७ फरवरी २००२ को अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस से वापस लौट रहे रामभक्तों जो की एस-६ बोगी में बैठे थे को कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं और उनके समर्थकों ने गोधरा में घेरकर पथराव शुरू कर दिया. पत्थरबाजी से बचने केलिए जब रामभक्तों ने खिड़की किवाड़ बंद कर लिया तो पुरे बोगी को मुसलमानों ने पेट्रोल डालकर आग लगा दिया जिसमें ५९ रामभक्त झुलस कर वीरगति को प्राप्त हो गये.
भारत विरोधी वामपंथी इतिहासकार
नेहरु-गाँधी खान दान द्वारा पाले गये गद्दार नेहरुवादी-वामपंथी इतिहासकारों ने भी रामजन्मभूमि के मुद्दे को भटकाने की कोशिश की. सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड की तरफ़ से पेश 15 इतिहासकारों में से 12 हिन्दू थे. तिन मुस्लिम इतिहास्यकार तो अपने कौम और मजहब की दलाली कर रहे थे उनसे कोई उम्मीद नहीं थी पर इन १२ सेकुलर-वामपंथी हिन्दू गद्दारों का भी कहना था कि अयोध्या में राम मंदिर कभी था ही नही!
गवाह नं 63 आर एस शर्मा
गवाह नं 64 सूरज भान
गवाह नं 65 डी एन झा
गवाह नं 66 रोमिला थापर
गवाह नं 72 बी एन पाण्डेय
गवाह नं 74 आर एल शुक्ला
गवाह नं 82 सुशील श्रीवास्तव
गवाह नं 95 के एम श्री माली
गवाह नं 96 सुधीर जायसवाल
गवाह नं 99 सतीश चंद्रा
गवाह नं 101 सुमित सरकार
गवाह नं 102 ज्ञानेन्द्र पांडेय
वामपंथी इतिहासकारों का झूठ उजागर हुआ
अर्केओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के रिपोर्ट के बाद इन गद्दारों के झूठ का पोल खुल गया और इन्होने इलाहबाद हाईकोर्ट में स्वीकार किया की ये अपने एसी रूम में बैठकर रामजन्मभूमि का इतिहास लिखे थे न की तथ्यों पर. इसीलिए इलाहबाद हाईकोर्ट ने इनके एतिहासिक दस्तावेजों को इतिहास नहीं इनके निजी विचार बताकर कूड़े के डब्बे में फेंक दिया. JNU के वामपंथी गद्दारों ने भी १८ इतिहास ग्रन्थ लिखकर रामायाणकालीन अयोध्या को अफगानिस्तान में साबित करने और रामजन्मभूमि पर कोई मन्दिर न होने की षड्यंत्रकारी झूठ फैलाया जो फर्जी साबित हुआ.
भारत के सुप्रीमकोर्ट का रामजन्मभूमि के पक्ष में फैसला
इसके बाद भी इस हिन्दू विरोधी खानदान के गुर्गों ने सुप्रीमकोर्ट में रामजन्मभूमि के मुद्दे को अटकाने लटकाने और भटकाने की बहुत कोशिश की परन्तु संयमी हिन्दू समाज जानता था दुश्मन चाहे लाख अटका ले भटका ले परन्तु रामजन्मभूमि पर सारे सबूत श्रीराम मन्दिर के पक्ष में है इसलिए ये कुछ भी कर ले एक दिन राम मन्दिर के पक्ष में फैसला जरुर आएगा और १०० करोड़ हिन्दुओं के दिलों में नश्तर की तरह चुभा ये विवाद हल होगा. ९ सितम्बर, २०१९ के एतिहासिक दिन हम हिन्दुओं को ४९१ वर्ष के लम्बे संघर्ष के बाद सफलता मिली. आज अयोध्या में रामजन्मभूमि पर श्रीराममन्दिर के पुनर्निर्माण की शुभ घड़ी ४९२ वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद आ गयी है. ५ अगस्त, २०२० को श्रीराममन्दिर निर्माण भूमिपूजनोत्सव हुआ और अब श्रीराम मन्दिर का पुनर्निर्माण कार्य प्रारम्भ हो चूका है. सभी भारतवासियों को बधाई!!
स्रोत-सुप्रीमकोर्ट में रामजन्मभूमि पर सुनवाई के दौरान विभिन्न समाचार पत्रों के माध्यम से प्राप्त की गयी जानकारी
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