वीरता की प्रतिमूर्ति सिंध के राजा दाहिर सेन
अरब में इस्लाम का उदय
मक्का के काबा मन्दिर के पुजारी के घर मोहम्मद पैगम्बर का जन्म हुआ जिन्होंने सातवीं सदी के प्रारम्भ में इस्लाम मजहब की शुरुआत की. इस्लाम के उदय के साथ ही अर्बस्थान के यहूदियों, ईसाईयों, बौद्धिष्टों, हिन्दुओं आदि को तलवार के दम पर मुसलमान बना दिया गया. सन 634 ईस्वी से लेकर 651 के बिच पारसियों को, सन 640 से 655 ईसवी के बिच इजिप्ट के कुशाईट और ईसाई सहित लगभग सभी लोग मुसलमान बना दिये गए. नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को, उतरी सूडान आदि देशों के कुशाईटस (कुश की प्रजा) को भी कुछ वर्षों में ही पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म मे बदल दिया गया.
तुरगस्थान (तुर्की) के बुधिष्ट तो जल्द धराशायी होकर मुसलमान बन गये पर हिन्दू थोड़े वीर निकले. इसलिए तुर्को के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में शुरू हुआ तो उन सबको मुसलमान बनाने में पुरे सौ साल लग गये. इसी तरह इराक के अंतिम बौद्ध राजकुल का नाम जिसका नाम बर्मक था उस पर जब मुस्लिम आक्रामकों ने हमला कर इराक को बल पूर्वक मुसलमान बना दिया और परमक उर्फ़ बर्मक की धर्मसत्ता समाप्त कर दी गयी. परमक उर्फ़ बर्मक के इस्लामिक राजा बन जाने के कारन उसके अनुयायी जनता उसी के आज्ञा से मुसलमान बन गयी.
पुलस्त्य ऋषि का प्रदेश पेलेस्टाइन (फिलिस्तीन), ईसाई बने सूर्यवंशी क्षत्रियों का प्रदेश सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 ई. के बीच मुसलमान बना दिया गया. मर्केंडेय (समरकंद) नगर के बौद्ध राजा को भी खत्म कर वहां इस्लाम का परचम लहरा दिया गया. अब बारी भारतवर्ष की थी, पर इस्लामिक आक्रमणों केलिए भारतवर्ष के वीरों से मुकाबला करना इतना आसान नहीं था. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं, “यूरेशिया के महान वैदिक आर्य संस्कृति के लोग “अहिंसा परमोधर्म:” की मूर्खतापूर्ण माला जपते हुए “हिंसा लूट परमोधर्म:” की संस्कृति में समाते जा रहे थे. पर अहिंसा की बीमारी से ग्रस्त भारतवर्ष में तब भी खड्गधारी सनातनी योद्धाओं की कमी नहीं थी.
सिंध के महाप्रतापी ब्राह्मणवंशी राजा चाच
भारत और मुसलमानों के बिच वीर राजपूत और क्षत्रानियाँ दीवार बनकर खड़े हो गये थे. सन 636 ईस्वी में खलीफा उमर ने भारत पर पहला हमला मुंबई के निकट ठाणे पर करवाया. एक भी शत्रु जिंदा वापस नही जा पाया. कुछ वर्षों बाद अरबी लुटेरों का गिरोह भरूच पर आक्रमण किया. इस बार भी सभी लुटेरे मारे गये. जब खलीफा की गद्दी पर उस्मान बैठा तो उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल अरबी लड़ाकों को भारत भेजा, पर सेना का पूर्णतः सफाया हो गया और सेनापति हाकिम बंदी बना लिया गया. हाकिम को भारतीय राजपूतो ने बुरा हाल करके वापस अरब भेज दिया ताकि वह सेना की दुर्गति का हाल उस्मान तक पहुंच सके. दुबारा जब हाकिम नुकण और कीकण पर हमला किया और वहां से स्त्रियों और बच्चों का अपहरण कर लूट के सामान के साथ भाग रहा था तब भारतीय वीरों ने उस शैतान को घेरकर उसके अन्य जिहादियों सहित मौत के घाट उतार दिया. निराश और हताश होकर इस खलीफा ने और आक्रमण करने का विचार ही त्याग दिया. सिंध के राजा चाच वास्तव में बहुत खूंखार किस्म के योद्धा थे. कहा जाता है उनके समय का सिंध राज्य गुजरात से इराक़ को छूता था.
वीरता की प्रतिमूर्ति सिंध के राजा दाहिर सेन
परन्तु काफिरों (इस्लाम को नहीं माननेवाले) के विरुद्ध जिहाद लड़ना, कुफ़्र भंग करना (देवी देवताओं की मूर्तियों को नष्ट करना) और काफिरों के देश को इस्लामिक राज्य में बदलने को इस्लामिक आक्रमणकारियों का पहला कर्तव्य और सबसे बड़ा धर्म घोषित किया गया था, इसलिए कुछ वर्षो बाद मुहम्मद सिनान सीना ताने भारत आया. अल बिलादुरी लिखता है, “यह बहुत अच्छा, सर्वगुण सम्पन्न था. यह पहला आदमी था जिसने अपने सभी सैनिकों को अपनी पत्नियों से तलाक दिला दिया और उन्हें गारंटी दिया था की भारतीय स्त्रियों को लूटकर खूब मजे करायेंगे.” मगर उसका यह कामुक स्वप्न चूर हो गया. भारतीय लड़ाकों के हाथों इनके सभी जिहादी साथी कुत्ते की मौत मारे गये और खुद सिनान दुम दबाकर भाग खड़ा हुआ और दुबारा भारत की ओर देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका. फिर जियाद आया जिसे वीर जाटों और मेदों ने बहादुरी से लड़कर मार गिराया. जियाद का बेटा अब्बाद भारत के वर्तमान अफगानिस्तान वाले भाग पर धावा बोला, वहां से भी वीर योद्धाओं ने उन्हें मार भगाया.
सिंध के ब्राह्मणवंशी राजा चाच की 671 ईसवी में मृत्यु के बाद 679 ईसवी में दाहिर राजा बने. राजा चाच ने तो मुस्लिम आक्रमणकारियों के छक्के छुड़ा दिए थे. राजा दाहिर भी इतने जबरदस्त लड़ाका थे कि हर बार आक्रांताओ को मुंह की खानी पड़ी और भारत उनके लिए दूर की कौड़ी रहा.
इस्लामिक आक्रमणकारी शैतान मुहम्मद बिन कासिम
फिर बगदाद की गद्दी पर खलीफा का गवर्नर सबसे क्रूर शैतान हज्जाज बिन यूसुफ बैठा. इसीका दामाद था खूनी शैतान मुहम्मद बिन कासिम. बायोग्राफिकल डिक्शनरी में पेस्क्युअल डी ग्यानगोस ने हज्जाज के बारे में लिखा है की “इस पागल नरपिशाच ने अपने आदमियों द्वारा एक लाख बीस हजार लोगों को कटवाकर फिकवा दिया था. जब यह मरा तो उसके जेलखाने में 30 हजार पुरुष और २० हजार स्त्रियाँ बंद पाई गयी.” कहा जाता है जब नरपिशाच कासिम सिंध पर कब्जा करने में लगा था उस समय कराची (देवल) से बगदाद और दमिश्क जाने वाली सड़क पर हिन्दू, बौद्ध स्त्रियों, बच्चों और मनुष्यों की हड्डियाँ बिखरी पड़ी रहती था.
एकबार खलीफा और हज्जाज अपनी कामुक लिप्सा केलिए लंका से सुंदर औरतें जहाज से मंगवा रहा था. अरबी इतिहासकार लिखता है श्रीलंका को सुंदर औरतों के कारन अरबी लोग जवाहरातों का द्वीप कहकर पुकारते थे. दमिश्क और बगदाद जाते वक्त जहाज देवल बन्दरगाह पर रुका. अरबी शैतानों ने वहां भी कुछ औरतों को बंदी बनाकर ले जाने की कोशिश की तो सीमा रक्षकों ने सभी अरबों को मारकर भगा दिया और बंदियों को आजाद कर दिया. खलीफा और हज्जाज बहुत निराश हुआ और उसने भारत के विरुद्ध जिहाद की घोषणा की. इतिहासकार एच एम इलियट लिखते हैं, ‘इन क्रूर धर्मोन्मादी लोगों ने खुले आम अपना लम्पट जीवन विलासिता और कामुकता में होम किया था तथा इसी प्रकार के धर्म का इन्होने चारों ओर प्रचार किया.”
हज्जाज ने एक टूकड़ी सईद और मुज्जा के नेतृत्व में हमले के लिए भारत भेजा जिन्हें दाहिर ने मकरान के तट पर मार गिराया. फिर उबैदुल्ला और बुदैल के नेतृत्व में मुसलमानों ने हमला किया वे भी मारे गये. जब वालिद खलीफा बना तब हज्जाज ने अपने जैसे ही क्रूर शैतान मोहम्मद बिन क़ासिम को क्रूर लड़ाकों के साथ आक्रमण के लिए भेजा. कासिम ने अपनी सारी ताकत से दाहिर पर आक्रमण किया पर दाहिर के सैनिकों ने उसे छठी का दूध याद दिला दिया. कई दिनों की भयानक लडाई के बाद कासिम की क्रूरता से भयभीत उसके मंत्री ने जब शांति संधि की बात की तो दाहिर ने कहा, “उनसे कैसी शांति? वे हमारी स्त्रियों का बलात्कार कर रहे हैं, उनको लूटकर अरब के बाजार में बेच रहे हैं, हमारे मन्दिरों को मस्जिद बना दे रहे हैं और हिन्दुओं को जबरन तलवार के बलपर मुसलमान बना रहे हैं और इंकार करने पर मौत के घाट उतार दे रहे हैं.” एक मंत्री की तो संधि की बात पर उसने गुस्से में गर्दन ही काट दी. वह वीरता के साथ लड़ता रहा और कासिम के छक्के छुरा दिए.
राजनीतिक बौद्धों की गद्दारी
तब हिन्दू राजा दाहिर से ईर्ष्या करनेवाले निरोनकोट और सिवस्तान के राजनीतिक बुद्धिष्टों ने गद्दारी करते हुए शैतान कासिम की भारी मदद की (इतिहासकार राय मजुमदार चौधरी ने इस मत का समर्थन किया है). उनकी१ मदद से क़ासिम ने छल से अपने कुछ सैनिकों को रात के समय औरतो के वेश में स्थानीय औरतों के झुण्ड में दाहिर की सेना के पास भेजा. रोती बिलखती आवाजो के कारण राजा दाहिर उनकी मदद के लिए आए और कासिम ने अंधेरे का फायदा उठा कर अकेला दाहिर पर हमला बोल दिया. दाहिर हजारों हत्यारो के बीच लड़ते रहे, उनकी तलवार टूटी, फिर भालों ने उन्हें भेद दिया. शरीर से भाला निकाल कर लड़े फिर तीरों ने भेद दिया और वे लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त किये. सिंध की राजधानी अलोर पर कासिम ने अधिकार कर लिया. पर कासिम केलिए अभी भी रास्ता आसान नहीं था. दाहिर की पत्नी मैना बाई ने राओर के किले के भीतर से ही सैन्य संचालन किया और कासिम के दांत खट्टे कर दिए परन्तु अंततः मुसलमान किला फ़तेह करने में कामयाब हो गये और किले की औरतें रानी सहित जौहर कर ली.
हज्जाज ने कासिम को संदेश भेजा, “काफिरों को जरा भी मौका मत देना. तुरंत उनके सिर कलम कर देना…यह अल्लाह का हुक्म है.”
राजा दाहिर की दूसरी पत्नी रानी बाई बरह्मणाबाद के किले से अपने पुत्र जयसिम्हा के साथ कासिम की सेना से जमकर मोर्चा ली. कासिम की सेना में नये बने मुसलमान जो कल तक दाहिर को अपना राजा मानते थे वे भी जुड़ गये थे. फिर भी जयसिम्हा ने गुरिल्ला युद्ध के द्वारा कासिम की सेना के छक्के छुड़ा दिए. छः महीनों तक कासिम घेरा डाले रहा. मुसलमानों ने फसलें जला दी. जलाशयों में जहर घोल दिया. पर बात नहीं बनी तो एकबार फिर छल से काम लिया गया और कुछ गद्दारों ने किले का फाटक रात्रि को खोल दिया और फिर किले पर कब्जा कर १६००० लोगों का नरसंहार किया गया. यहीं से दाहिर की दो पुत्रियों२ सुर्यदेवी और परिमल देवी को बंदी बनाकर ख़लीफा वालिद के पास भेज दिया. कासिम की सेना के राओर और बरह्मणाबाद की ओर जाते ही दाहिर का पुत्र फूफी ने राजधानी आलोर पर पुनः अधिकार कर लिया. कासिम को उसे जीतने केलिए फिर से कड़ी लडाई की पर असफल रहा. मगर विश्वासघात ने पुनः सिर उठाया. फूफी की सेना में एक अरबी मुसलमान भी नौकरी करता था. उसने एक रात कासिम केलिए नगर का द्वार खोल दिया और नगर पर पुनः कासिम का अधिकार हो गया. इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “सभ्य और सीधे-सादे हिन्दुओं ने कभी यह नहीं सोचा था की उनकी सेना में एक भी मुसलमान का होना देशद्रोह और विश्वासघात के सांप को दूध पिलाना होगा.”
राजा दाहिर की बहादुर पुत्रियाँ
उधर लुट और गुलामों के झुण्ड के साथ दाहिर की पुत्री दोनों सुंदर और कोमलांगी वीर बालाएं दमिश्क पहुंची. उनकी सेवा शुश्रूषा कर पेशी योग्य बनाया गया. इतिहासकार इलियट लिखते हैं, “खलीफा वालिद ने दुभाषिये से बड़ी छोटी का पता लगाने को कहा ताकि बड़ी का भोग पहले लगाया जा सके और छोटी का बाद में. बड़ी को अपने पास रखकर खलीफा छोटी को वापिस हरम में भेज दिया. खलीफा उसकी सुन्दरता से मुग्ध हो गया था. उसने उसके कमनीय शरीर पर अपना हाथ रख, उसे अपनी ओर खिंचा” उसकी कामाग्नि भड़क उठी और वो जल्द से जल्द उसे बाँहों में भरने को उतावला था की तभी सूर्यदेवी विद्युत् की गति से पीछे हटती हुई खड़ी हो गयी और बोली, “यह कैसा नियम है आपलोगों का. पहले तिन रात हम दोनों बहनों को कासिम ने अपने पास रखा और फिर आपके पास भेज दिया. सम्भवतः अपने नौकरों की जूठन खाने का ही रिवाज है आप लोगों में.”
तीर निशाने पर लगा था. ख़लीफा वालिद के कामाग्नि पर एकाएक घड़ों पानी पर गया. गुस्से में तिलमिलाते हुए उसने कासिम को सांड की खाल में बंदकर तत्काल पेश करने का हुक्म दिया. हुक्म की तामिल हुई और कुछ दिनों बाद ही शैतान कासिम के मृतक शरीर को सांड की खाल में बंदकर खलीफा के सामने पेश किया गया. खलीफा ने दोनों बहनों को बुला लिया और बोला, “देखो, किस प्रकार मेरे आदमियों ने मेरी आज्ञा का पालन किया है”
सूर्यदेवी ने मंद मुस्कान के साथ कहा, “निसंदेह आपकी आज्ञा की पूर्ति हुई है. पर आपका मस्तिष्क एकदम खाली है. कासिम ने मेरा स्पर्श भी नहीं किया था. मगर उस शैतान ने हमारे राजा की हत्या की, हमारे देश को तहस नहस कर दिया, हमारे सम्मान को नष्ट कर गुलामी के दलदल में ढकेल दिया. इसीलिए प्रतिशोध और बदले केलिए हमने झूठ बोला. उसने हमारे जैसे दस हजार स्त्रियों को बंदी बनाकर बलात्कार किया था, कई शासकों को मौत के घात उतार दिया था, सैकड़ों मन्दिरों को अपवित्र कर मस्जिदें और मीनारें बना दी थी.” (इलियट एंड डाउसन, पेज २११)
खलीफा वालिद और हज्जाज भी मर गया
ख़लीफा वालिद सुन्न हो गया. इतिहासकार कहते हैं की शोक की तीव्र लहर में ख़लीफा ने अपनी हथेली काट खायी, वह अत्यंत मुर्ख बन गया था. अपने विश्वसनीय जल्लाद को मौत के घाट उतारने पर शर्म, शोक और गलती का उसे इतना कठोर आघात पहुंचा की जल्द ही वह मर गया. हज्जाज अपने ही जैसा शैतान अपना भतीजा और दामाद कासिम की दर्दनाक मौत से पहले ही सदमे से मर गया था. इसप्रकार उन दोनों वीर बालाओं ने अपनी बुद्धिमता और बहादुरी से भारत के तीनों दुश्मनों को मौत की नींद सुला दिया था.
राजा दाहिर की बहादुर पुत्रियों ने वीरगति का वरण किया
अब राजा दाहिर की दोनों पुत्रियों केलिए खुद की बलिदान की बारी थी. नया खलीफा सुलेमान उन दोनों की अद्भुत सुन्दरता पर पागल था. उन्हें भोगने की प्रबल अभिलाषा से उसने समझाने बुझाने केलिए बहुत हाथ पैर मारे पर उनके रौद्र रूप देख प्राणों के भय से उनकी इज्जत के साथ खेलने की हिम्मत नहीं हुई. अपने क्रोध की विवशता में, शैतानहन्ता उन बीर बालाओं को उसने भयंकर यातनाएं दी. उसने इन दोनों बीर बालाओं को घोड़े के पूंछ से बांधकर दमिश्क की सड़कों पर घसीटने की आज्ञा दी. उनके शरीर के चिथड़े चिथड़े हो गये थे पर उनकी आँखों और होठों पर विजय का गर्व और मुस्कान को वे नहीं मिटा पाए. धन्य हैं भारत की एसी वीर बालाएं. मैं उन्हें शत शत प्रणाम करता हूँ!
इस्लामिक छल और अत्याचार
इसप्रकार एकबार फिर इस्लाम ने शक्ति से नहीं छल से ही पहली बार भारत मे जीत का स्वाद चखा था जैसे यह ईरान, इजिप्ट, अफ्रीकन देश आदि में जीता था. सीरिया की जीत की कहानी भी इसी तरह शर्मनाक है. मुसलमानो ने सीरिया के ईसाई सैनिकों के आगे अपनी औरतों को कर दिया. मुसलमान औरते गयी ईसाइयों के पास की मुसलमानो से हमारी रक्षा करो, ईसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी. फिर क्या था, सारी चुड़ैलों ने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया. आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने सिंध विजय के बाद हिन्दूओं और बौद्धों के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया, हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए, तालाब में डूब मरीं. स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी. सिंध के राजा दाहिर और सिंध की जनता से गद्दारी कर मोहम्मद बिन कासिम को सहयोग देनेवाले राजनितिक बुद्धिष्ट भी नहीं बख्शे गये. उन्हें भी मौत या मुसलमान बनने में से एक को चुनना पड़ा. तारीखे हिंद और चचनामा के अनुसार अरब के मुस्लिम आक्रमणकारियों ने कराची के पास देवल मे 700 बौद्ध साध्विओ का सामूहिक बलात्कार किया.
१. कुछ अन्य इतिहासकारों का मत है कि नरपिशाच कासिम ने गाँव के कई मुखिया और उनके स्त्री बच्चों को बंधक बना लिया. उन्हें स्त्रियों का बलात्कार कर बेच देने तथा बच्चों को कत्ल करने की धमकी दी जिससे गाँव के मुखिया और स्त्री पुरुष कासिम की बात मानने को तैयार हो गये. फिर गाँव के सभी पुरुषों को बंधक बनाकर उनके स्त्रियों को अपने सैनिकों के साथ बचाओ बचाओ चिल्लाते हुए राजा दाहिर के पास भेज दिया. राजा दाहिर की मृत्यु के बाद सभी को जबरन मुसलमान बना दिया गया और इनमे से कुछ मुखिया ने राजा दाहिर के पुत्रों के विरुद्ध लडाई भी लड़ी.
२. इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक का मत है की राजा दाहिर की दोनों पुत्री सूर्यदेवी और परिमल देवी बरह्मणाबाद के किले में अपनी माँ रानी बाई के साथ जौहर कर अग्नि समाधी ले ली थी. खलीफा वालिद दाहिर की दोनों पुत्रियों की सुन्दरता के बारे में सुन चूका था इसलिए वह कासिम से उन दोनों लडकियों को भेजने का दबाब बना रहा था. कासिम उनका पता लगाने केलिए सिंध में आतंक और स्त्रियों के अपहरण का नंगा नाच कर रहा था. इसलिए दो वीर बालाओं ने एक स्त्री के सहयोग से खुद को सूर्यदेवी और परिमल देवी के रूप में पेश किया था. उनमे से सूर्यदेवी की पहचान जानकी के रूप में हुई है.
मुख्य स्रोत-भारत में मुस्लिम सुल्तान, लेखक पुरुषोत्तम नागेश ओक
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