पाकिस्तान बनाने वाले देशद्रोही मुस्लिमों का कांग्रेस में शामिल हो जाना और सत्ता पर कांग्रेस की पकड़: देश में सांप्रदायिक सौहार्द, एकता और अखंडता को वास्तविक खतरा छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों से है. मुस्लिम लीग के जिन नेताओं ने बंटवारे का समर्थन किया वे विभाजन के बाद पाकिस्तान नही गए. वे रातोरात कांग्रेस में शामिल हो गए. पार्टी बदलने से उनकी मानसिकता नही बदली. वही विभाजनकारी मानसिकता सेकुलरवाद के नाम पर पोषित हो रही है. धूर्त मियां जवाहरलाल के समय से ही एसी मानसिकता बना दी गयी है कि मुस्लिमों के बुरे से बुरे कार्यों का यदि विरोध किया जाता है तो उसे हिंदू बनाम मुस्लिम का सांप्रदायिक रंग देकर विरोध की धार कुंठित कर मुस्लिमों की उछ्रिंखलता बढ़ाई जाती रही है. वास्तविकता तो यह है कि भारत के रक्तरंजित बंटवारे का समर्थन करनेवाली मानसिकता ही आज सेकुलरवाद का दूसरा नाम है.’ (साभार: दैनिक जागरण)
७. हिंदुओं को अगड़ी, पिछडी, दलित, सवर्ण, हरिजन आदि में बांटकर कमजोर करना और जातिगत आरक्षण के माध्यम से उसे संगठित रूप देना: हिंदुओं की एकता और अखंडता को भंग कर उसे कमजोर बनाने के लिए एक षड्यंत्र के तहत राजनेताओं ने उन्हें अपने वोट बैंक के हिसाब से विभिन्न वर्गों खंडों में बाँट कर उन्हें अगड़ी, पिछड़ी, दलित, महादलित, सवर्ण, हरिजन इत्यादि में बाँट लिया है पर उन्हें संगठित हिंदुस्तानी बनने नही दिया है. आरक्षण के माध्यम से हितों के टकराव को बढ़ावा देकर इस षड्यंत्र को संगठित रूप दे दिया गया है ताकि हिंदू कभी भी एक जुट न हो सकें. अब तो अनुसूचित जाति एवं जनजातियों को हिंदुओं से अलग दिखाकर उन्हें हिंदुओं से अलग करने का पूरा पूरा षड्यंत्र रच लिया गया है ताकि हिंदू कमजोर होकर लाचार हो जाएँ. सोनिया-कांग्रेस का सांप्रदायिक दंगा निरोधक बिल-२०११ ने मोरले मिन्टो की फूट डालो की नीति को भी पीछे छोड़ दिया.
८. हिंदुओं में एकता और संगठन का आभाव होना: हिंदुओं की सबसे बड़ी कमजोरी है उनका असंगठित होना और यह सिर्फ समाजिक धार्मिक कमजोरी ही नही है बल्कि यह राजनीतिक कमजोरी भी है जिसका खामियाजा हिंदुस्तान अतीत में मुस्लिम आक्रमण और अत्याचारी मुस्लिम शासन के रूप में भुगत चूका है. पर हिंदुओं और हिंदुस्तान का दुर्भाग्य है कि इन सब के बाबजूद हिंदुओं में आज तक समझ विकसित नही हो सकी है. वे एक होकर रहना नही सीखे है जिसका राजनीतिक परिणाम आज यह है कि हिंदुस्तान में हिंदुओं का कोई आवाज ही नही रह गया है. हिंदुस्तान में ही हिंदू दूसरे दर्जे का नागरिक बनकर रह गया है.
जब तब मुस्लिम जेहादी, आतंकवादी, कट्टरवादी उन्हें जहाँ तहां मार-पीटकर, लूटकर और आग लगाकर चल देते है पर इस देश की धर्मनिरपेक्ष सरकारें उस पर खेद जताने तक की भी आवश्यकता नही समझती क्योंकि वे जानते है हिंदू असंगठित है और वे विभाजित हिंदुओं का वोट और संगठित मुस्लिमों का वोट प्राप्त कर सत्ता पर काबिज हो जायेंगे.यही हाल अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों का भी है. ये खुद को मुस्लिमों का सबसे बड़ा रहनुमा साबित करने के लिए राष्ट्रहित को भी ताक पर रखकर कुछ भी करने को तैयार है. मसलन कांग्रेस मारे गए इस्लामी आतंकवादियों को पेंशन दे रही थी तो सपा आतंकवादियों को जेल से छुड़ाने के लिए प्रयत्नशील थी.
इनकी सामाजिक सुरक्षा सम्बन्धी नीतियां मुस्लिम वोट बैंक को ध्यान में रखकर और अधिकांशतः केवल मुस्लिमों के लिए बनायीं जा रही है और एसी बातों में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनेता प्रतियोगिता करते प्रतीत होते है. पर हिंदू विखंडित होने के कारण बहुसंख्यक होने के बाबजूद संगठित वोट बैंक नही बन पाए है इसलिए राजनीती में उनके हितों की बात करने वाला कोई नही है और जो कोई करता है और यदि कोई करने का दिखावा भी करता है तो राजनितिक, बुद्धिजीवी और पत्रकारिता के गलियारे में उसे सांप्रदायिक के नाम से जाना जाता है.
आतंकवाद के नाम पर नित्य हिंदू मारे जा रहे है पर हिंदू अपनी मौत का तमाशा देखने के लिए ख़ामोशी धारण किये हुए है. जब हिंदुस्तान में ही हिन्दुओ की यह दुर्गति है तो भला पाकिस्तान और बंगलादेश में नित्य मारे, लुटे, बलत्कृत और धर्मान्तरित होते हिंदुओं की बात करने वाला कौन है?
९. छद्मधर्मनिरपेक्ष राजनेता, मीडिया और बुद्धिजीवी का व्यापक प्रभाव: हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त नेहरूवाद और वामपंथ विचारधारा के प्रभाव के कारण राजनीती में जहाँ छद्मधर्मनिरपेक्षों का बोलबाला है तो वहीँ ऐसे दोगले और धूर्त लोग बुद्धिजीवी और प्रगतिवादी की श्रेणी गिने जाते रहे है. यह देश का दुर्भाग्य है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कुछ मीडिया इन दोगले धर्मनिरपेक्षवादियों और बुद्धिजीविओं के हाथों का खिलौना बनकर रह गयी है. फलतः आज का मीडिया खाशकर ई-मीडिया समाज का पथप्रदर्शक बनने के स्थान पर समाज का पथभ्रष्टक बन गया है.
१०. राष्ट्रवादी शिक्षा का आभाव बनाम मदरसों में हिंदू, हिंदुत्व और हिन्दुस्थान विरोधी धर्मान्ध शिक्षा: शिक्षण संस्थानों में हिंदुओं को धार्मिक शिक्षा देने पर पाबंदी है, किन्तु गैर-हिंदुओं को स्वतंत्रता दी गयी है जिसका दुष्परिणाम एक तो यह हो रहा है की हिंदू अपने सनातन धर्म और संस्कृति से विमुख हो रहे हैं तो वहीँ दूसरी ओर मुस्लिमों और ईसाईयों में धार्मिक कट्टरवादी शिक्षा के कारण कट्टरवाद और अराष्ट्रवाद बढ़ रहा है जिसके कारण देश की सुरक्षा और सांप्रदायिक सौहार्द को खतरा उत्पन्न हो गया है. सरकार मदरसों को अत्यधिक धन आवंटन कर रही है जबकि उसके खर्च का कोई हिसाब और नियंत्रण नहीं हैं. यहाँ तक की कट्टरवादियों के दबाव में उसे RTI के दायरे से भी मुक्त कर दिया गया है.
पाकिस्तान में हजारों मदरसे इस कारन से बंद कर दिए गए क्योंकि उसमे कट्टरवाद की तथा धर्म के साथ साथ बन्दुक की शिक्षा भी दी जा रही थी, परन्तु भारत में मदरसा को बढ़ावा दिया जा रहा है और इसके दुष्प्रभाव की व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है. मुस्लिमों के पिछडापन और उनमे अराष्ट्रवादी तत्वों के उद्भव का बिज इनमे ढूंढा जा सकता है. विकिलिक्स ने खुलासा किया है की मस्जिदों में लोगों को शैतान बनने की ट्रेनिंग दी जा रही है.
११. हिंदू विरोधी और राष्ट्रविरोधी विघटनकारी ताकतों को राजनितिक सह और सीमापार से सहयोग: भारत इस्लामी आतंकवाद से त्रस्त है और यह अब स्पष्ट हो चुका है कि भारत की इस इस्लामी आतंकवाद को केवल पाकिस्तान ही नही बल्कि कई अन्य इस्लामी संगठनों और देशों से सहयोग मिल रहा है. इससे से भी बुरी खबर तो ये है कि खुद भारत में इस्लाम के अनुयायी इन आतंकवादियों का साथ दे रहे है और हिंदु, बौद्ध आदि आतंकी हमला, दंगे आदि का बुरी तरह शिकार होकर मारे जा रहे है. परन्तु दुर्भाग्य देखिये सेकुलर राजनीती इन आतंकवादियों, अलगाववादियों, कट्टरवादियों और स्लीपर सेल के लिए बिछी हुई दिखाई पड़ती है.
१२. धर्मान्तरण द्वारा हिंदू और हिंदुस्तान को कमजोर करने का ईसाई षड्यंत्र और वोट के लिए राजनितिक संलिप्तता: भारत में धर्मान्तरण की तीव्र हुई गतिविधियां न केवल ईसाइयत के विश्वव्यापी षड़यंत्र का हिस्सा है बल्कि कैथोलिक इटालियन गैंग और भ्रष्ट कांग्रेसियों के सत्ता में बने रहने हेतु वोट बैंक की निम्नस्तरीय राजनीती का भी हिस्सा है जिसके कारन भारत की एकता अखंडता और सांप्रदायिक सौहार्द तथा समरसता को बनाये रखने की गम्भीर समस्या सामने आने लगी है. यदि जल्द ही इनपर काबू नही किया गया तो इसके गम्भीर परिणाम देश की एकता अखंडता और सम्प्रदयिक समरसता को तार तार कर देगा.
विवेकानंद ने सच ही कहा था यदि एक हिंदू धर्मान्तरण करता है तो देश के दो दुश्मन पैदा हो जाते है. परिणाम हमारे सामने है. गैर हिंदू बहुल क्षेत्र अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश आदि पहले ही भारत से अलग हो चुके है वर्तमान भारत की स्थिति इस लिहाज से और भी गम्भीर है. नगालैंड जहाँ ९२% से उपर ईसाई बन चुके है वरसों से भारत से अलग होने का प्रयास कर रहे है और इसके लिए आतंक का रास्ता भी अपनाये हुए है. मेघालय और मणिपुर भी ऐसे ही राज्य है. केरल में भी हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने के साथ ही समस्याएं उभरनी शुरू हो गयी है. जम्मू-कश्मीर की स्थिति से तो हर कोई वाकिफ है जहाँ ७८% मुस्लिम जनता होने के कारन अलगाववादियों, आतंकवादियों का बोलबाला है और वे येन केन प्रकारेण जम्मू-कश्मीर से भारत को अलग कर इस्लामी राज्य स्थापित करना चाहते है.
१३. भारतीय राजनीती, प्रशासन, न्यायालय और पुलिस तन्त्र पर भ्रष्टाचार हावी होना: भारतीय राजनीती, प्रशासन, न्यायालय और पुलिस तन्त्र पर भ्रष्टाचार हावी होने के कारण वे भ्रष्ट लोगों और हिंदू विरोधी और राष्ट्रविरोधी ताकतों के गुलाम हो चुके हैं. डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी कहते है कि पाकिस्तान की आईएसआई को सोनिया और राहुल सहित कई कांग्रेसियों के काले धन की जानकारी सबूत सहित प्राप्त हो गयी है और वे उसके बल पर इनपर प्रभाव डालने में सक्षम हो गए है. इसलिए वे सोनिया और राहुल के आईएसआई के साथ सम्बन्धों की सीबीआई से जाँच कराने की मांग भी कर चुके है.
यह तो सिर्फ एक उदहारण है. सच कहे तो पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार के कारण तथाकथित सेकुलरों या हिंदू विरोधियों और मुस्लिम परस्तों के गिरफ्त में है जिसका वे हिन्दुस्थान और हिंदुओं के विरुद्ध मनमाना दुरूपयोग कर रहे है.
१४. हिंदुओं का मजबूत राजनितिक, धार्मिक और सामाजिक संगठन का आभाव: पाकिस्तान और बंगलादेश में आजादी के वक्त हिंदू-सिक्ख करोड़ों में थे जो अब महज कुछ हजारों, लाखों में सिमट गए है. उस पर भी वे नित्य हिंसा, बलात्कार, लूट, अपहरण और धर्मान्तरण के शिकार हो रहे है. उनकी कोई परवाह करने वाला नही है. वहां की छोड़िये, सच देखा जाय तो खुद हिन्दुस्थान में हिंदुओं के साथ नित्य हो रहे भेद-भाव और अन्याय तथा राष्ट्रहित को ताक पर रखकर हो रहे मुस्लिम परस्ती के खिलाफ कोई आवाज उठाने वाला नही है.
तथाकथित हिंदूवादी संगठन राष्ट्रिय स्वयम सेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद, हिंदू महासभा आदि मृतप्राय अथवा लकवाग्रस्त है और हिन्दुस्थान में भी हिंदू सभ्यता, संस्कृति, धर्म और हिंदुओं के लिए आवाज उठाने में बिलकुल असमर्थ है फिर बंगलादेश और पाकिस्तान में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार पर आवाज उठाने की तो बात ही इनके एजेंडे से बाहर होगी.
निष्कर्षतः आवश्यकता एक ऐसे संगठन के निर्माण की है जो न केवल हिन्दुस्थान में बल्कि हिन्दुस्थान से बाहर भी हिंदुओं के लिए आवाज बुलंद करे. हिंदुओं के साथ हो रहे भेद भाव, अत्याचार और हिंसा को राष्ट्रिय अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाये और उनकी सुरक्षा के लिए संघर्ष करे. अतः हिंदुओं को एक मजबूत राजनितिक, धार्मिक और सामाजिक संगठन बनाने की आवश्यकता है ताकि हिंदुओं और हिन्दुस्थान को सुरक्षित रखने के लिए हिंदू एकता और हिदू शक्ति का स्रोत बन सके. जो शैतानो के विरुद्ध इंसानियत की ढाल बन सके. जो इस देश को और इस देश की युवा को धर्मनिरपेक्षता की हिंदू विरोधी राजनितिक षड्यंत्र से मुक्ति दिलाकर उसे हिंदू एकता की शक्ति का भागीदार बना सके. अंतर्राष्ट्रीय हिंदू एकता का संगठन कर विश्व के विभिन्न देशों में बसे हिंदुओं के लिए आवाज बुलंद कर सके और उन्हें संरक्षण प्रदान कर सके.
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