हम सभी अपने देश, अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति और अपने धर्म से प्यार करते है, उसका पालन करते हैं। हम सभी धर्मों का समान आदर कर सकते है पर हम धर्मनिरपेक्ष कैसे हो सकते है? धर्मनिरपेक्षता राज्य की प्रकृति है व्यक्ति का नहीं। धर्मनिरपेक्ष राज्य का उत्तरदायित्व है कि वह पक्षपात रहित होकर सभी धर्मों और मताबलम्बियों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित करे।
भारतीय संविधान में उल्लिखित पन्थनिरपेक्षता का यही आशय है। पर नेहरु और कांग्रेस शासित भारत में धोखे से धर्मनिरपेक्ष होने और धर्मनिरपेक्षता बनाये रखने की जिम्मेदारी भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म , परम्परा को माननेवाले मूलनिवासियों पर डाल दी गई है। और राज्य को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर विदेशी सभ्यता, संस्कृति, धर्म, परम्परा को माननेवाले लोगों के तुष्टिकरण में लगा दिया है। इसीलिए भारत में मुस्लिम और ईसाई जन्मजात धर्मनिरपेक्ष माने जाते है क्योंकि सांप्रदायिक होने का ठीका और धर्मनिरपेक्ष होने की जवाबदेही तो नेहरु और कांग्रेस ने हिंदुओं को दे रखा है। मुस्लिम परस्त और हिंदू विरोधी होना धर्मनिरपेक्ष होने के प्राथमिक लक्षण है और हिंदू,हिंदुत्व और हिंदुस्तान की बात करनेवाला हिंदू सांप्रदायिक है।
इसलिए गैरमुस्लिमों के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करनेवाला; हम भारतियों को अपने कट्टर, धर्मांध, नफरती मानसिकता के कारण आतंक, हिंसा, दंगा की आग में झोंकनेवाला; नित्य भारत और हम भारतियों के विनाश केलिए षड्यंत्र करनेवाले लोग खुद को गर्व से सेक्युलर कहते हैं जबकि 140 करोड़ लोगों के हित की बात करनेवाला नरेन्द्र मोदी सम्प्रदायिक है। इसी तरह देश की संसाधनों पर मुस्लिम का पहला हक कहनेवाला, सांप्रदायिक आरक्षण, हिंदू विरोधी सांप्रदायिक बिल बनानेवाला, आतंकवादियों को संरक्षण और उनके परिजनों को पेंशन देनेवाला, केवल मुस्लिमों के लिए छात्रवृति, ऋण आदि देनेवाला कांग्रेस तथा मुस्लिम आतंकवादियों को जेल से रिहा करवाने वाला और मुस्लिमों को दंगों में संरक्षण देनेवाला समाजवादी पार्टी धर्मनिरपेक्ष है।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर इस प्रकार का दोगलापन, मुस्लिमतुष्टिकरण और हिन्दू विरोधी नीतियों को देखकर हमने RTI के तहत पूछा कि संविधान, संसद या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धर्मनिरपेक्ष/पंथनिरपेक्ष की क्या परिभाषा निश्चित की गई है कृपया उसकी प्रति उपलब्ध कराएँ। आश्चर्य की बात है कि उत्तर यह मिला की संविधान, संसद या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा धर्मनिरपेक्ष/पंथनिरपेक्ष शब्द की कोई भी परिभाषा रिकार्ड में नहीं है। यानि सभी अपने अपने एजेंडे के अनुसार धर्मनिरपेक्ष शब्द की परिभाषा गढ़कर मुस्लिमतुष्टिकरण तथा हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को नष्ट करने में लगे हैं।
हिंदुओं के अतिरिक्त अन्य कोई चाहे वो कश्मीर के पाकिस्तान में होने पर प्रधानमंत्री बनने का सपना देखनेवाला फारूक अब्दुल्ला हो या खुद को आई एस आई का एजेंट और पाकिस्तान समर्थक बतानेवाला शाही इमाम हो या बंगलादेशी घुसपैठियों को नहीं बसाने पर हिंदुस्तान की ईंट से ईंट बजा देने की संसद भवन में बात करनेवाला सांसद असौद्दीन ओवैशी हो या वन्दे मातरम का विरोध करनेवाले, भारत का तिरंगा जलानेवाला और पाकिस्तान और लादेन के समर्थन में नारा लगानेवाला मुसलमान हो या लोभ लालच देकर हिंदुओं को धर्मान्तरित करनेवाला धूर्त ईसाई हो या सत्ता के लिए खुद धर्मान्तरण करानेवाली सोनिया गाँधी हो, ये सब के सब धर्मनिरपेक्ष है।
वास्तविकता तो ये है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ राजनितिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु हिंदुओं को मुर्ख और कमजोर बनाने का राजनितिक षड्यंत्र है। भारत में मुस्लिमपरस्ती और हिंदू विरोधी वोट बैंक की राजनीति को धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पोषित कर मुस्लिम-ईसाई-पारसी नेहरु-गाँधी ‘खान’दान द्वारा हिंदुओं को कमजोर बनाने का राजनितिक षड्यंत्र रचा गया है।
स्पष्ट है भारत में धर्मनिरपेक्षता सिर्फ राजनितिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए है। जो हिन्दू खुद को इन मानकों पर धर्मनिरपेक्ष कहते है वे मुर्ख है और राजनितिक षड्यंत्र के शिकार है। मुस्लिम कहते है मैं धर्मनिरपेक्ष नही हूँ मेरा धर्म इस्लाम है, ईसाई कहते है मैं धर्म निरपेक्ष नही हूँ यीशु मेरा भगवान है, सिर्फ मुर्ख सेक्युलर हिंदू ही खुद को धर्मनिरपेक्ष मानकर गौरवान्वित होते है। इसीलिए धर्मनिरपेक्ष भारत में छद्मधर्मनिरपेक्षता का शिकार भी ये ही होते है।
देश में छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों की पौ बारह होने का एकमात्र कारन यह है कि हम हिंदुओं में एकता का अभाव है और वे इसी कमजोरी का फायदा उठाते रहे है। हिंदू-मुस्लिम एकता का सबसे बड़ा दुश्मन तथाकथित धर्मनिरपेक्षवादी राजनेता, मीडिया और बुद्धिजीवी हैं। जबतक ये रहेंगे देश की एकता अखंडता पर खतरा बना रहेगा। अतः अब भी समय है कि देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए सभी देशभक्त, जिम्मेदार नागरिक और राष्ट्रवादी इन दोगले और छद्मधर्मनिरपेक्षवादियों के विरुद्ध खड़े हो जाएँ। अन्यथा वो दिन दूर नही जब देश में गृहयुद्ध छिड़ जाए और आप इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष नेताओं के द्वारा जाने अन्जाने बढ़ावा दिए गये इस्लामी हिंसा के शिकार हो जाएँ और राष्ट्र तबाह हो जाये।
अतः सभी भारतवासियों से अपील है की वे छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों के विरुद्ध खुलकर सामने आये। इससे पहले की हमारा धैर्य, हमारी अतिसहिष्णुता एकबार फिर हमें अंतहीन अत्याचार और दुराचार की पुनरावृति की ओर ले जाये सभी हिन्दुओं, बौद्धों, सिक्खों, जैनों से अपील है कि वे संगठित होकर छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों से देश को मुक्त करने का प्रयास करे।