नव धर्मान्तरित ज्यादा खतरनाक होते हैं
भाग-4: शैतान शायर मोहम्मद इक़बाल
(कारण, नव धर्मान्तरित को साबित करना होता है कि 1. जिस नाले में उसने डुबकी लगाई है वह पवित्र गंगाजल से बेहतर है और 2. उसे नाले में रहने केलिए अनुकूलित होना पड़ता है।)
मोहम्मद इकबाल का जन्म 9 नवंबर 1877 को अविभाजित भारत में पंजाब के सियालकोट में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सियालकोट आ गए। इनके पिता हिंदू थे जिनका नाम रतन लाल था, जिन्होंने बाद में इस्लाम धर्म कबूल कर लिया। इकबाल का पूरा नाम था मोहम्मद इकबाल मसऊदी था। कहा तो यह भी जाता है कि वह बीरबल के वंशज थे। बीरबल के तीसरे पीढ़ी के बेटे कन्हैयालाल (उर्फ़ सहज सप्रू) ही इकबाल के दादा थे। कन्हैयालाल के बड़े बेटे रतन लाल ने आगे चलकर इस्लाम कबूल कर अपना नाम नूर मोहम्मद रख लिया था। उन्होंने इमाम बीबी नाम की मुस्लिम महिला से शादी कर ली और इन्ही नूर और बीबी के घर में मोहम्मद इकबाल का जन्म हुआ था।
साल 1904 में ताराना-ए-हिंद यानी ‘सारे जहां से अच्छा’ लिखने वाले इकबाल ऐसे बदले कि कुछ साल बाद 1910 में उसने तराना-ए-मिल्ली लिखा और गाने लगे “मुस्लिम हैं, हम वतन है, सारा जहां हमारा”। लेकिन सेकुलरिज्म का ऐसा षडयंत्र किया गया है कि हम उसके अल-तकिया (दिखाबा, झूठ) को तो रोज पढ़ते रटते हैं पर उसके सच की चर्चा तक नहीं होती।
इकबाल ने पाकिस्तान के लिए “तराना-ए-मिली” (मुस्लिम समुदाय के लिए गीत) लिखा, जिसके बोल- चीन-ओ-अरब हमारा, हिन्दोस्तां हमारा; मुस्लिम है, हम वतन है, सारा जहाँ हमारा”। तराना-ए-मिल्ली (उर्दू: ترانۂ ملی) एक कविता है जिसमें मोहम्मद इकबाल मसऊदी ने मुस्लिम उम्माह (इस्लामिक राष्ट्रों) को श्रद्धांजलि दी और कहा कि इस्लाम में राष्ट्रवाद का समर्थन नहीं किया गया है। उन्होंने दुनिया में कहीं भी रह रहे सभी मुसलमानों को एक ही राष्ट्र के हिस्से के रूप में मान्यता दी, जिसके नेता मुहम्मद हैं, जो मुसलमानों के पैगंबर है।
इकबाल को जवाहरलाल नेहरू के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र से भी चिढ़ थी। 1930 में इलाहाबाद में आयोजित मुस्लिम लीग के सम्मेलन में लीग के अध्यक्ष के रूप में उसने कहा था कि देश में शांति तब तक नहीं हो सकती जब तक कि मुसलमानों को अपना अलग राष्ट्र नहीं मिल जाता। यह विचार दो राष्ट्र के सिद्धांत का आधार बना। संदर्भ बताते हैं कि शुरुआत में वह अलग पाकिस्तान के हिमायती नहीं था। उसका पहला प्रस्ताव था, एक संघीय भारत, जिसमें मुस्लिमों की जगह निश्चित हो। मुस्लिमों का अपना अर्द्ध स्वायत्त राज हो जहां इस्लामी कानून को लागू किया जा सके। इस सोच के बावजूद मुस्लिम कट्टरपंथी इकबाल से खुश नहीं थे क्योंकि इकबाल हिंदू को काफिर (पापी, वाज़िब उल क़त्ल अर्थात क़त्ल के योग्य) नहीं मानते थे। इसलिए खुद को सच्चा मुसलमान साबित करने केलिए उसने मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की मांग रख दिया।
इकबाल मसऊदी पाकिस्तान का जनक बन गया क्योंकि वह “पंजाब, उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बनाने की अपील करने वाला पहला व्यक्ति था”। इंडियन मुस्लिम लीग के 21 वें सत्र में, अपने अध्यक्षीय संबोधन में उसने इस बात का उल्लेख किया था जो 29 दिसंबर, 1930 को इलाहाबाद में आयोजित की गई थी। भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इक़बाल ने ही उठाया था। 1930 में इसी के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई। इसके बाद इसने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उसके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इसे पाकिस्तान में राष्ट्रकवि माना जाता है; अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है।
1938 में जिन्नाह को लेकर भाषण का अंश, “केवल एक ही रास्ता है। मुसलमानों को जिन्ना के हाथों को मजबूत करना चाहिए। उन्हें मुस्लिम लीग में शामिल होना चाहिए। भारत की आज़ादी का प्रश्न, जैसा कि अब हल किया जा रहा है, हिंदुओं और अंग्रेजी दोनों के खिलाफ हमारे संयुक्त मोर्चे द्वारा काउंटर किया जा सकता है। इसके बिना, हमारी मांगों को स्वीकार नहीं किया जाएगा। लोग कहते हैं कि हमारी मांग सांप्रदायिक है। यह मिथ्या प्रचार है। ये मांगें हमारे राष्ट्रीय अस्तित्व की रक्षा से संबंधित हैं।।। संयुक्त मोर्चा मुस्लिम लीग के नेतृत्व में गठित किया जा सकता है। और मुस्लिम लीग केवल जिन्ना के कारण सफल हो सकता है। अब जिन्ना ही मुसलमानों की अगुआई करने में सक्षम है।
पाकिस्तान बनाने में अग्रणी होने के संबंध में जिन्ना पर इकबाल का प्रभाव बेहद “महत्वपूर्ण”, “शक्तिशाली” और यहां तक कि “निर्विवाद” के रूप में वर्णित किया गया है। इकबाल ने जिन्ना को लंदन में अपने आत्म निर्वासन को समाप्त करने और भारत की राजनीति में फिर से प्रवेश करने के लिए प्रेरित किया था। अकबर एस अहमद के अनुसार, अंतिम वर्षों में, 1938 में उनकी मृत्यु से पहले, इकबाल धीरे-धीरे जिन्ना को अपने विचार अनुसार परिवर्तित करने में सफल रहे, जिन्होंने अंततः इकबाल को उनके “मार्गदर्शक” के रूप में स्वीकार कर लिया। अहमद के अनुसार इकबाल के पत्रों में उनकी टिप्पणियों में, जिन्ना ने इकबाल के इस विचार से एकजुटता व्यक्त की कि भारतीय मुसलमानों को एक अलग मातृभूमि की आवश्यकता है।
आधार : दैनिक जागरण, न्यूज 18, विकिपीडिया आदि