इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “भारतीय मुस्लिम शासक चाहे वह अकबर या औरंगजेब, अहमदशाह या अलाउद्दीन या कोई भी हो वह बलात्कार, अत्याचार, कपट और दुष्टता का साक्षात् अवतार था. सभी एक दुसरे से बढ़कर शैतान थे. इस सच्चाई को पहचानने केलिए सभी को साम्प्रदायिकता का चश्मा उतारकर उन्हें देखना, जांचना और परखना होगा.”
अलाउद्दीन खिलजी उन्ही शैतानों में से एक अनपढ़ महाखूंखार शैतान था. खिलजी मध्य एशिया का तुर्की थे जो अफगानिस्तान में आकर रहने लगे थे. अलाउद्दीन जुलाई १२९६ ईस्वी में अपने चचा सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर खुद सुल्तान बन गया था. मृत सुल्तान के अमीरों और मलिकों को अपनी ओर मिलाने केलिए उसने हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के घरों से लुटे गये सम्पत्तियों और स्त्रियों को उनमें बांटकर उन्हें अपनी ओर मिला रहा था.
तारीखे फिरोजशाही में बर्नी ने लिखा है, “१२९६ ईस्वी के अंत में अलाउद्दीन ने एक बड़ी सेना लेकर बड़ी शानो शौकत व तड़क भड़क के साथ दिल्ली (नगर) में प्रवेश किया. वह कुश्क-ए-लाल अर्थात लाल कोट (या लाल किला) की ओर बढ़ा जहाँ उसने निवास किया.”
जी हाँ, आप ठीक समझ रहे हैं. बर्नी ने उसी लाल किला की बात लिखा है जिसे फर्जी वामपंथी इतिहासकार शाहजहाँ द्वारा बनाया घोषित कर रखे हैं जबकि इतिहासकार पुरुषोतम नागेश ओक के अनुसार, “यह कम से कम शाहजहाँ से १२०० वर्ष पूर्व निर्मित होना चाहिए क्योंकि अकबरनामा तथा अग्निपुराण दोनों ही यह स्वीकार करते हैं कि राजपूतों की तोमर जाती के हिन्दू राजा अनंगपाल ने ३७६ ईस्वी में एक भव्य और आलिशान दिल्ली का निर्माण किया था.”
अपने चचा जलालुद्दीन खिलजी के परिवारों के साथ विश्वासघात
जलालुद्दीन खिलजी का बड़ा बेटा अरकली खान जो मुल्तान का सुल्तान था और हिन्दू, बौद्ध नारियों का बलात्कार, हिन्दू बौद्ध बालकों और निशस्त्र पुजारियों की हत्या के लिए कुख्यात था उसने भी अलाउद्दीन की शैतानी शक्ति, जो उलुघ खान और जफर खान के नेतृत्व में भेजी गयी थी, के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. अलाउद्दीन ने भी उनको यथोचित आदर-सम्मान देने का वचन दे दिया.
इधर जबकि मृत सुल्तान जलालुद्दीन के पुत्र और परिवार दिल्ली आ रहे थे अलाउद्दीन ने उन्हें रास्ते में ही खत्म करने का भार नुसरत खान को सौंप दिया. नुसरत खान उनके दल को एक सुनसान जंगल में रोका और उनके सभी सम्पतियों को लूटकर और उनके जवान और खूबसूरत स्त्रियों को छांटकर बाकी सबको हलाल कर दिया. इन लुटे हुए सम्पत्तियों और स्त्रियों में से चार भाग आपस में बांटकर नियमानुसार एक भाग सुल्तान अलाउद्दीन केलिए संरक्षित कर भेज दिया गया. जिन्हें जिन्दा छोड़ा भी गया उनकी आँखें गर्म लोहे से फोड़ दी गयी. इस प्रकार अंधे किये गये मृत जलालुद्दीन के पुत्रों और दामादों को हांसी के दुर्ग में भेज दिया गया.
अलाउद्दीन खिलजी के हिन्दू विरोधी दमनकारी कानून
इतिहासकार बर्नी लिखता है, “अलाउद्दीन का हिन्दू विरोधी पाशविक कानून सभी शहरों एवं ग्रामों में इतनी कठोरता से लागु किया जाता था कि चौधरी और मुकादम घोड़े पर नहीं चढ़ सकते थे, शस्त्र नहीं रख सकते थे, महीन कपडे नहीं पहन सकते थे और पान नहीं खा सकते थे.”
“नजराना जमा करने के समय यह कानून सभी पर लागु होता था… लोगों को हुक्म का ऐसा गुलाम बना लिया गया था कि एक कर अधिकारी एक साथ बीस मुकादम या चौधरियों की गर्दन बांधकर लात-घूंसों से भुगतान वसूल कर सकता था. कोई भी हिन्दू अपना सर ऊँचा नहीं कर सकता था और उनके घरों में सोना या चांदी, टंका या जीतल तो दूर रहा किसी भी चीज का आधिक्य दृष्टिगोचर नहीं होता था. आभाव से असक्त होकर चौधरियों और मुकदमों की पत्नियाँ भाड़े पर मुसलमानों के घर जाती थी… भुगतान वसूल करने के लिए घूंसों, गोदाम-बंदी, जंजीर-बंदी और जेल आदि उपायों का प्रयोग किया जा था…..लोग नजराना वसूल करने वाले अधिकारी को बुखार से भी बुरा समझते थे. कर संग्रह नहीं कर सकने वाले अधिकारी को जेल में डालकर लात घूंसों और कोड़ों से पीटा जाता था. कर-संग्रह विभाग की नौकरी से लोग मृत्यु को श्रेयस्कर समझते थे.” (वही, पृष्ठ १८२-८३, भाग-३)
जियाउद्दीन बर्नी एक स्थान पर अल्लादीन खिलजी और एक काजी के बीच हुई वार्तालाप का वर्णन करता है. वह लिखता है, “सुल्तान ने काजी से पूछा-हिन्दुओं के लिए कानून में क्या विधान है-नजराना भुगतान करनेवाला या नजराना देनेवाला?”
“काजी ने उत्तर दिया-उन्हें नजराना भुगतान करनेवाला कहा गया है. अफसर उनसे चांदी मांगे तो बिना कोई प्रश्न पूछे, अत्यंत विनीत होकर बड़े आदर और सम्मान के साथ स्वर्ण देना चाहिए. अगर अधिकारी उसके मुंह में धुल फेंके तो धुल खाने के लिए उसे बिना किसी हिचकिचाहट के अपना पूरा मुंह खोल देना चाहिए. उन लोगों के मुंह में गंदगी फेंकना (और उसे खाना) मुकादमों (नजराना भुगतान करनेवालों) से अपेक्षित स्वीकृति है (अर्थात मुंह में थूकना चाहे तो हिन्दुओं को स्वेच्छा से अपना मुंह खोल देना चाहिए).
इस्लाम का गौरव बढ़ाना (हमारा) कर्तव्य है… अल्लाह उन लोगों से घृणा करता है क्योंकि वे कहते हैं उन लोगों को कुचलकर रक्खो. हिन्दू लोगों को दबाकर रखना हमलोगों का खास धार्मिक कर्तव्य है क्योंकि ये लोग पैगम्बर के कट्टर शत्रु हैं. पैगम्बर ने हमें उन लोगों को हलाल कर देने, लूट लेने और बंदी बना लेने की आज्ञा दी है क्योंकि पैगम्बर ने कहा है-‘उन लोगों को इस्लाम में बदल दो या हलाल कर दो अथवा गुलाम बनाकर उनकी धन सम्पत्ति को नष्ट कर दो…उस महान उपदेशक (हानिफ़) ने जिनकी विचारधारा हमलोग मानते हैं, हिन्दुओं पर जजिया लगाने की स्वीकृति दी है. दूसरी विचारधाराओं के उपदेशकों ने सिर्फ एक ही विकल्प को माना है-मृत्यु या इस्लाम.”
“सुल्तान ने कहा-काजी, तू बहुत बड़ा विद्वान है…यह एकदम कानून के अनुसार है कि हिन्दुओं को कुचलकर और दबाकर रखना चाहिए… हिन्दू लोग तबतक हुक्म नहीं मानेंगे, समर्पण नहीं करेंगे जबतक की उन लोगों को एकदम गरीब न बना दिया जाये. इसलिए मैंने यह आज्ञा प्रसारित कर दी है कि हर वर्ष उन लोगों के पास सिर्फ गुजारे भर के लिए ही अनाज दूध और दही छोड़ा जाये-जिससे वे लोग न कभी सम्पत्ति जमा कर सकें और न संगठित हो सकें.” (पृष्ठ १८५, भाग-३, इलियट एवं डाउसन) “रणथम्भोर से लौटने के बाद सुल्तान प्रजा के साथ बड़ी बुरी तरह पेश आया और उन्हें अच्छी तरह निचोड़ा.” (वही, पृष्ठ-१८८)
अलाउद्दीन खिलजी का हिन्दू राज्यों पर आक्रमण
१२९७ ईस्वी में मुगलों ने पंजाब पर आक्रमण कर दिया. अलाउद्दीन ने सेना भेजी, जालन्धर के निकट विकट संग्राम हुआ और मुगल भाग खड़े हुए. इस बीच अलाउद्दीन की सेना ने जाते और आते वक्त जालन्धर और आसपास के क्षेत्रों में हिन्दुओं, बौद्धों की सम्पत्तियों और हिन्दू, बौद्ध स्त्रियों की भयानक लूटपाट की.
मुगलों पर विजय के बाद शैतान अलाउद्दीन खिलजी और खूंखार बन गया. उसने गुजरात पर आक्रमण किया. यदुवंशी राजा करणराय अपनी राजधानी अन्हिलवाड़ को छोड़कर अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरी के यादव रामदेव राय के यहाँ शरण लिया. अलाउद्दीन की शैतानी सेना ने गुजरात को जी भरकर लूटा और राजा करणराय की पत्नी कमलादेवी को भी लूट के माल सहित अलाउद्दीन के हरम में पहुंचा दिया गया.
इतिहासकार बर्नी लिखता है, “प्रतिवर्ष अलाउद्दीन खिलजी के यहाँ दो-तिन पुत्र उत्पन्न होते रहते थे.” निश्चय ही पुत्रियों की संख्यां की तो कोई गिनती ही नहीं थी.
बर्नी लिखता है, “सारा गुजरात आक्रमणकारियों का शिकार हो गया; महमूद गजनवी की विजय के बाद पुनर्स्थापित सोमनाथ की प्रतिमा को उठाकर दिल्ली लाया गया और लोगों के चलने केलिए उसे नीचे फैला दिया गया.” (पृष्ठ १९३, भाग-३, इलियट एवं डाउसन)
अलाउद्दीन खिलजी जैसा ही उसका शैतान सिपहसालार नुसरत खान खम्भात नगर के सारे हिन्दू व्यापारियों को लूटा. उसी दौरान एक खूबसूरत हिन्दू बालक अलाउद्दीन खिलजी के हाथ लग गया जो उसके अप्राकृतिक यौन लिप्सा की पूर्ति का साधन बन गया. पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “पवित्र हिंदुत्व के नियंत्रण से छूटकर नए धर्म परिवर्तन की अतिरिक्त भयंकरता और जोश के साथ, इतिहास में वह बालक कुख्यात मलिक काफूर के नाम से जाना जाता है क्योंकि जल्दी ही वह भी जंगली मुस्लिम लूटेरों के रूप में विकसित हो गया जो हमें पाषाण युग के आदिमानव का स्मरण दिलाता है.
“इसी बीच लूट के माल का बंटबारे केलिए कुछ गुट आपस में उलझ परे और नुसरत खान से बगाबत कर दिया जिसमें नुसरत खान का एक भाई भी मारा गया. अलाउद्दीन खिलजी को जब इस बात की जानकारी मिली तो उसने आदेश दिया कि, “हत्यारों की पत्नियों की बेइज्जती करके उनके साथ भयंकर दुर्व्यवहार किया जाये, तदुपरांत उन लोगों को दर-दर भटकने वाली वेश्या बनाने के लिए दुष्ट पुरुषों को सौंप दिया जाय. उसने बच्चों को उनकी माताओं के सर पर रखकर कटवा दिया. इस प्रकार का अपमान किसी भी धर्म या मत में कभी नहीं हुआ है.” (वही, पृष्ठ १६४-६५, भाग-३)
अलाउद्दीन ने अब पर्वतीय गढ़ रणथम्भौर को चकनाचूर करने की ठानी. वीर पृथ्वीराज चौहान के वंशज हम्मीर देव इसके शासक थे. दो शैतान उलुघ खान और नुसरत खान ने इस गढ़ को घेर लिया (१२९९-१३०१ ईस्वी). मिटटी का ढेर बनाने केलिए जब एक दिन नुसरत खान दुर्ग की दीवार के समीप आया तब हिन्दू सैनिकों ने दुर्ग से एक विशाल चट्टान लुढकाकर उसका काम तमाम कर दिया.
रणथम्भौर का विजय
सीधे युद्ध में रणथम्भौर के किले को जीतने में अलाउद्दीन खिलजी को काफी नुकसान उठाना पड़ा था. तब उसने इस्लामिक छल-कपट की नीति का सहारा लिया. उसने मोटी रकम और जागीर का लालच देकर हम्मीर देव का मुख्यमंत्री रणमल्ल को अपने पाले में कर लिया. उस गद्दार ने मुस्लिम शत्रुओं की सेना के लिए किले का दरवाजा खोल दिया और मुस्लिम सेना किले के भीतर घुस गयी.
द्वार पर भयंकर मार-काट मची. ऐसा लगा अलाउद्दीन खिलजी को वीर राजपूतों के तलवारों के भय से एक बार फिर खाली हाथ ही भागना पड़ेगा. पर मुस्लिम सेना के महासागर के समक्ष वीर राजपूतों की तलवारें दर्जनों शत्रुओं का संहार कर एक एक कर जमीन पर गिरने लगी. कपट और संख्यां बल के आधार पर शैतान अलाउद्दीन खिलजी रणथम्भोर विजय करने में सफल हुआ. विजय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने गद्दार मंत्री रणमल्ल को इनाम में भयंकर यातनाएं देकर मौत दिया और उसके स्त्रियों को मुसलमानी हरम में खिंच लिया. इसी की पुत्री से फिरोजशाह नामक एक और शैतान पैदा हुआ जो भविष्य के भारत का विध्वंसक था.
(नोट- अलाउद्दीन खिलजी, महारानी पद्मिनी और चितौड़ की कहानी सर्वविदित है इसलिए उसे यहाँ फिर से लिखने की आवश्यकता नहीं है.)
धर्मान्तरित हिन्दू हाजी मौला का विद्रोह
शैतान अलाउद्दीन खिलजी के नृशंस हत्या और हिन्दू, बौद्ध स्त्रियों के बलात्कार की शैतानी क्रूरता से आहत हिन्दू से धर्मान्तरित गुलाम हाजी मौला बना शख्श ने अलाउद्दीन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. अलाउद्दीन से अधिकार पत्र पाने का बहाना कर वह कोतवाल से मिलने गया. ज्यों ही कोतवाल उससे मिलने अपने घर से बाहर निकला उसने उसे निचे पटककर हलाल कर दिया. बर्नी लिखता है, “हाजी मौला तब लाल प्रासाद (लाल किला) की ओर बढ़ा और वहां एक छज्जे पर बैठकर सभी कैदियों को मुक्त कर दिया. खजाने से स्वर्ण टंकाओं की थैलियाँ ला लाकर लोगों में बाँट दिया. शस्त्रागार से शस्त्र एवं शाही अस्तबल से घोड़े लाकर बागियों में बांटे दिया. लाल कोट से घुड़सवारों का एक दल लेकर हाजी मौला सुल्तान शमसुद्दीन का पोता अलावी के घर से उसे लाकर गद्दी पर बैठा दिया. (वही, पृष्ठ १७६-७७)
परन्तु चार दिन बाद ही अलाउद्दीन तख्त पलट दिया और हाजी मौला और अलावी का सिर काटकर भाले के नोक पर रखकर पुरे शहर में घुमाया गया.
अलाउद्दीन खिलजी का धर्मान्तरित शैतान मलिक काफूर
अलाउद्दीन खिलजी ने १३०६ ईस्वी में दक्षिण को लूटने के लिए अपना गुलाम मलिक काफूर के नेतृत्व में सैनिक अभियान भेजा. बहाना यह बनाया गया की देवगिरी के यादव राजा रामदेव राय ने वार्षिक नजराना नहीं भेजा है. मलिक काफूर ने देवगिरी (अब औरंगाबाद) को घेरकर ध्वस्त कर दिया और गुजरात के शरणार्थी यादव राजा करणराय की पुत्री देवल देवी को अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खान के हरम में भेज दिया. फिर उसने पुरे महाराष्ट्र को रौंद दिया. अनेक मन्दिर मस्जिदों में बदल दिए गये.
१३०९ ईस्वी में मलिक काफूर ने आन्ध्र की राजधानी वारंगल के शासक नरपति का दमन कर पुरे वारंगल लूट खसोट लिया. १३१० ईस्वी में इसने बल्लाल राजाओं की राजधानी द्वार समुद्र पर आक्रमण किया और नष्ट कर दिया.
दक्षिण के लूट में मलिक काफूर ने ६१८ हाथी, २०००० घोड़े, ९५००० मन स्वर्ण तथा अन्य कीमती हीरे जवाहरात दिल्ली सल्तनत को भेंट की पर नियमानुसार ये सिर्फ लूट का पांचवां हिस्सा ही था.
शैतान अलाउद्दीन खिलजी का पतन
शैतान मलिक काफूर इतना शक्तिशाली हो गया कि अलाउद्दीन, उसकी पत्नी और पुत्र के झगड़े से लाभ उठाकर अलाउद्दीन की पत्नी और पुत्र को बंदी बना लिया. उसके बढ़ते शक्ति से ईर्ष्यालु अन्य दरबारियों ने षड्यंत्र कर उसे मौत के घाट उतार दिया.
उधर गुजरात के मुस्लिम सेनानायक ने खुली बगाबत कर दी. राणा हम्मीरदेव ने भी चितौड़ वापिस ले लिया. दक्षिण में राजा रामदेव राय के दामाद हरपाल देव ने देवगिरी पर साहसिक आक्रमण कर दिया. मुस्लिम दुर्गपति दुम दबाकर भाग खड़े हुए. देवगिरी का सम्मान पुनः लौटा लिया गया. इन सब घटनाओं से विचलित होकर शैतानों के शैतान महाशैतान अलाउद्दीन खिलजी १३१६ ईस्वी में जहन्नुम केलिए रवाना हो गया और धरती का बोझ कुछ कम हो गया.
आधार ग्रन्थ:
- भारत में मुस्लिम सुल्तान, भाग-१, लेखक-पुरुषोत्तम नागेश ओक
- तारीख ए फिरोजशाही, लेखक-जियाउद्दीन बर्नी
- इलियट एवं डाउसन, भाग-३ आदि.
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