भगवान कल्कि को समर्पित श्री हरिहर मंदिर के बारे में माना जाता है कि इसका निर्माण सृष्टि के आरंभ में भगवान विश्वकर्मा ने किया था। हिन्दू धर्मशास्त्रों में इस मंदिर का विशेष महत्व है। शास्त्रों में इसे भगवान विष्णु और भगवान शिव की एकता का प्रतीक बताया गया है। हिन्दू ग्रंथों में लिखा है, ““यथा शिवस्तथा विष्णु, यथा विष्णुस्तथा शिवः” जिसका अर्थ है ‘जैसे शिव हैं, वैसे ही विष्णु हैं; जैसे विष्णु हैं, वैसे ही शिव हैं।’
संभल महात्म्य में जामा मस्जिद को तीर्थों का केंद्र बिंदु दर्शाया है
संभल नगर धार्मिक नजरिये से भी ऐतिहासिक है। संभल महात्म्य पुस्तक नगर के साहित्यकार वाणी सरण शर्मा ने लिखी है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि संभल में 68 तीर्थ और 19 कूप हैं। इन सभी तीर्थ और कूपों का केंद्र बिंदु हरिहर मंदिर है। किताब में यह भी लिखा है कि 24 कोसीय परिक्रमा का दायरा के अनुसार हरिहर ही केंद्र बिंदु है। जिसमें सभी तीर्थ और कूप की दूरी लिखी है। जिसमें सभी तीर्थ और कूप की मान्यता भी लिखी है।
स्कंद पुराण हिन्दू धर्म के अठारह प्रमुख पुराणों में सबसे बड़ा पुराण है। इस पुराण में उल्लेख है कि कलियुग में भगवान कल्कि का अवतार संभल में होगा। मंडलीय गजेटियर 1913 में भगवान विष्णु के प्रसिद्ध मंदिर होने का भी जिक्र है। इसमें मोहल्ला कोटपूर्वी के नजदीक दर्शाया गया है। साथ ही उल्लेख किया गया है कि अब मंदिर अस्तित्व में नहीं है। वाद में गजेटियर का भी उल्लेख किया गया है।
भारतीय पुरातत्व विभाग का सर्वे रिपोर्ट
भारतीय पुरातत्व विभाग (Archeological Survey of India) की साल 1879 की रिपोर्ट जिसमें संभल की जामा मस्जिद का पूरा सर्वेक्षण है। ये रिपोर्ट ASI के तत्कालीन अधिकारी एसीएल कारले ने संभल की जामा मस्जिद का 1875 में सर्वेक्षण करके तैयार किया था। इस रिपोर्ट का टाइटल है Tours in the Central Doab and Gorakhpur 1874–1875 and 1875–1876
एसीएल कारले लिखते हैं कि संभल की प्राचीन नगर रूहेलखंड के मध्य में महिष्मत नदी के तट पर स्थित है। सतयुग में इस नगर को सबरत और सम्भलेश्वर, त्रेतायुग में महादगिरी, द्वापर में पिंगला कहा जाता था। कलियुग में यह संभल या संस्कृत संभल-ग्राम कहा जाता है। संभल में मुख्य ईमारत जामी मस्जिद है जिसे हिन्दू दावा करते हैं कि यह वास्तव में हरि मंदिर है जिसे बाबर के आदेश पर हिन्दू बेग कुचिन (मीर हिन्दू बेग) ने तोड़फोड़ कर परिवर्तित किया था। रिपोर्ट में इसे पृथ्वीराज चौहान से भी संबंधित बताया गया है।
सर्वे की रिपोर्ट कहती है, ‘संभल में एक इमारत जामा मस्जिद है, जिसके बारे में हिंदू दावा करते हैं कि यह मूल रूप से हरिहर मंदिर था। इसमें 20 वर्गफीट केंद्रीय गुंबदाकार कक्ष है। असमान लंबाई के दो विंग है, जो उत्तर की ओर 50 फीट 6 इंच है जबकि दक्षिणी विंग केवल 38 फीट 1 इंच है। प्रत्येक विंग के सामने 3 मेहराबदार द्वार हैं, जो सभी अलग-अलग चौड़ाई के हैं। मुस्लिम इस इमारत के निर्माण को सम्राट बाबर के समय का मानते हैं और मस्जिद के अंदर एक शिलालेख की ओर इशारा करते हैं, जिसमें साफतौर पर बाबर का नाम लिखा है, लेकिन हिंदू दावा करते हैं कि यह एक जालसाजी है और इसकी तारीख काफी बाद की है। हिंदू दावा करते हैं कि इस स्लैब पर या इसके पीछे मंदिर से संबंधित मूल हिंदू शिलालेख हैं।’
मुस्लिमों ने भी कबूला
रिपोर्ट में आगे लिखा है, ‘संभल के कई मुसलमानों ने मेरे (सर्वे अधिकारी) सामने कबूल किया कि बाबर के नाम वाला शिलालेख जाली है और मुसलमानों को इमारत पर 1857 के गदर के समय या उससे थोड़ा पहले यानी लगभग 25 साल पहले ही कब्ज़ा मिला था। उन्होंने इमारत पर बलपूर्वक कब्ज़ा किया था और तब ज़िले के जज के सामने इस मामले पर एक मुक़दमा चला था और मुसलमानों ने मुख्य रूप से जाली शिलालेख और मुसलमानों के एक साथ मिलकर ‘अल्पसंख्यक’ हिंदुओं के खिलाफ झूठी गवाही देने के ज़रिए मुक़दमा जीता था।’
रिपोर्ट में आगे लिखा है, ‘संभल के हरि मंदिर में बाबर के जाली शिलालेख में यह देखा जा सकता है कि बाबर का नाम ग़लत दिया गया है। शिलालेख में मैंने इस प्रकार पढ़ा: शाह जाम फ़ुलहम्मद बाबर लेकिन इस बादशाह का असली नाम “शाह ज़हीर-उद-दीन मुहम्मद बाबर” था। इस इमारत का टिन गुंबद शायद अपनी तरह का अनूठा है।’
हिंदू मंदिर का दावा
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संभल के हरिहर मंदिर के सेंट्रल स्क्वायर शैली के हिंदू मंदिर की दीवारें पत्थर से ढंकी बड़ी ईंटों से बनी हुई प्रतीत होती हैं, लेकिन मुसलमानों ने दीवारों पर जो प्लास्टर लगाया है, उससे यह छिप जाता है कि वे किस सामग्री से बनी हैं और मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि कई स्थानों पर जहाँ प्लास्टर टूटा हुआ था, जाँच करने पर मैंने पाया कि कुछ स्थानों पर पत्थर दिख रहे थे। मेरा मानना है कि मुसलमानों ने अधिकांश पत्थरों को हटा दिया, विशेष रूप से उन पत्थरों को जो हिंदू धर्म के निशान के तौर पर दिखते थे। इन पत्थरों का फ़र्श बनाने में ऐसे प्रयोग किया गया कि इन पर बनी मूर्तियां नीचे की ओर रख दी गईं।
सर्वे रिपोर्ट में आगे लिखा है, ‘मैंने वह निशान देखे, जिनसे पता चलता है कि पत्थर के आवरण के समय दीवारें बहुत मोटी थीं। मंदिर के बाहरी प्रांगण की बाहरी सीढ़ियों के नीचे मैंने लाल बलुआ पत्थर में मूर्तिकला के कुछ टुकड़े देखे, जिनमें से एक नालीदार स्तंभ का ऊपरी भाग था। इसे मस्जिद में बदलने के लिए इमारत में जोड़े गए मोहम्मदी विंग्स छोटी ईंटों से बने हैं। यानी जहाँ भी दीवारों पर प्लास्टर नहीं था, वहां मैंने पाया कि ईंटें छोटी थीं और मिट्टी के गारे में लगी हुई थीं।
पुरानी रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासा
रिपोर्ट के पेज 25 और 26 में ASI ने अपने सर्वेक्षण में पाया था कि मस्जिद के अंदर और बाहर के खंभे पुराने हिंदू मंदिर के हैं, जिसे प्लास्टर लगा कर छुपा दिया गया है। ASI ने अपने इस दावे के पीछे तर्क दिया था कि सर्वेक्षण के दौरान ASI के अधिकारी ने पाया कि मस्जिद के एक खंभे से प्लास्टर उखड़ा हुआ है और ईंटों के पीछे सर्वे करने पर पता लगा कि इसके पीछे लाल रंग का खंभा है जो ना सिर्फ मस्जिद के कालखंड से प्राचीन है बल्कि ऐसे खंभे हिंदू मंदिरों के होते हैं। मस्जिद के खंभों के अलावा ASI ने अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट में बताया था कि मस्जिद के गुंबद का जीर्णोद्धार हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था, साथ ही मस्जिद के हिन्दू खंभे, मुस्लिम खंभों से बिल्कुल अलग हैं।
बाबरनामा के अनुसार, “हिन्दू बेग कुचिन 932 हिजरी (इस्लामी साल) में हुमायूँ के चेले थे और उन्होंने उनके लिए संभल पर कब्ज़ा किया था। इसलिए, ऐसा लगता है कि उन्हें काबुल से महिलाओं को ले जाते समय संभल जाने का आदेश दिया गया था… 933 हिजरी में संभल में उन्होंने एक हिन्दू मंदिर को मस्जिद में बदल दिया था। यह बाबर के आदेश पर किया गया था और मस्जिद पर आज भी मौजूद एक शिलालेख में इसका जिक्र है।”
आगे आइन-ए-अकबरी में लिखा है, “संभल शहर में हरिमंडल (विष्णु का मंदिर) नाम का एक मंदिर है जो एक ब्राह्मण का है, उसके वंशजों में से दसवाँ अवतार इस स्थान पर प्रकट होगा।
मेरठ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ। विघ्नेश त्यागी जो इतिहासकार और लेखक हैं उन्होंने अपनी किताब युग युगीन पुस्तक में हरिहर मंदिर होने का हवाला दिया है। जिसमें लिखा है कि हरिहर मंदिर पृथ्वीराज चौहान के शासन 1178 से 1193 तक रहा। इस दरमियान ही पृथ्वीराज चौहान ने संभल को दूसरी राजधानी का दर्जा दिया था। उस समय भी संभल में यह देवालय बना था। पृथ्वीराज चौहान का ठिकाना सेना के कैंप में हुआ करता था। मोहल्ला कोट आबाद था।
प्रोफेसर ने लिखा है कि बाबर के शासन में इसको मस्जिद बनाया गया। उस समय की लिखावट की जानकारी या उससे पहले की लिखावट की जानकारी लिपी शास्त्र से सामने आ सकती है। यदि खोदाई की जाए तो देवालय होने के कई प्रमाण मिलेंगे।
इतिहासकार और भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ ओमजी उपाध्याय ने कहा कि बाबरनामा से लेकर तारीख ए बाबरी में इस बात के कई प्रमाण मिलते हैं कि संभल की जामा मस्जिद भगवान विष्णु के हरिहर मंदिर को तोड़ कर बनी है, बाबरनामा जिसे खुद बाबर ने लिखा था और जिसका अंग्रेजी अनुवाद बेवरेज ने किया है उसके पेज नंबर 687 पर साफ साफ लिखा है बाबर के आदेश पर उसके दरबारी मीर हिंदू बेग ने संभल के हिंदू मंदिर को जामा मस्जिद में परिवर्तित किया।
डॉ ओमजी उपाध्याय की माने तो इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहां इस्लामी आक्रांताओं ने मंदिरों को मस्जिद में परिवर्तित किया, ऐसा इसलिए नहीं था कि जगह की कमी थी ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि भारत की हिन्दू आबादी के सामने आक्रांताओं को दिखाना था कि वो उनके गुलाम हैं और ऐसा एक दो के साथ नहीं किया बल्कि 1800 से ज्यादा मस्जिदों का इतिहास पूर्व में किताबों में दर्ज है जो कभी हिंदू मंदिर थे।
हिंदू पक्ष के याचिकर्ता हरिशंकर जैन ने कहा कि अयोध्या, काशी, मथुरा, भोजशाला, कुतुब मीनार और अब संभल की मस्जिद के बाद अभी और भी ऐसी मस्जिदें हैं जो हिंदू मंदिर तोड़ कर बने हैं और आने वाले दिनों में वो कोर्ट में उसके लिए भी लड़ेंगे।