नव धर्मान्तरित ज्यादा खतरनाक होते हैं
भाग-1: सूर्य नारायण मिश्रा उर्फ़ मुर्शिद कुली खान
(कारण, नव धर्मान्तरित को साबित करना होता है कि 1. जिस नाले में उसने डुबकी लगाई है वह पवित्र गंगाजल से बेहतर है और 2. उसे नाले में रहने केलिए अनुकूलित होना पड़ता है।)
डेक्कन सी में एक कुलीन ब्राह्मण परिवार जो भिक्षा मांगकर अपना गुजरा करते थे इस्लामिक अत्याचार और हिंसा से त्रस्त हिन्दुओं के बीच पेट भरने भर की भिक्षा जुटाने में भी असमर्थ हो गये। ऊपर से मुगलिया कर चुकाने का दबाब। मजबूर होकर उन्होंने अपने एक दस वर्षीय बेटे सूर्य नारायण मिश्रा को मुग़ल अधिकारी हाजी शफी को बेच दिया।
जदुनाथ सरकार के अनुसार, मुर्शिद कुली खान मूल रूप से सूर्य नारायण मिश्रा के रूप में हिंदू थे, जिनका जन्म डेक्कन सी में 1660 ईस्वी में हुआ था। लगभग दस वर्ष की आयु में उन्हें हाजी शफी नाम के एक फ़ारसी को बेच दिया गया जिसने उनका खतना किया और उन्हें मोहम्मद हादी नाम से बड़ा किया। 1690 ईस्वी में शफी ने मुगल दरबार में अपना पद छोड़ दिया और मुर्शिद कुली खान के साथ फारस लौट आए। शफी की मौत के लगभग पांच साल बाद, मुर्शीद भारत लौट आया और मुगल साम्राज्य में विदर्भ के दीवान अब्दुल्ला खुरसानी के अधीन काम किया। राजस्व मामलों में उनकी विशेषज्ञता के कारण, उन्हें मुगल सम्राट औरंगजेब द्वारा देखा गया था और उन्होंने फतवा आलमगिरी की वित्तीय रणनीतियों को आधार बनाते हुए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
औरंगजेब ने मुर्शिद कुली खान को ईस्वी 1700 में बंगाल का दीवान नियुक्त किया। इस पद पर नियुक्त होने के तुरंत बाद, क़ुली ख़ान ढाका गए और वहाँ के अधिकारियों को औरंगजेब का ताबेदार बना दिया जिससे औरंगजेब बहुत प्रसन्न हुआ। मुर्शिद कुली खां को 1717 में मुगल शासक फरुख्शियर द्वारा बंगाल का सूबेदार बनाया गया। यह मुग़ल सम्राट द्वारा नियुक्त अंतिम सूबेदार था, इसी के साथ बंगाल में वंशानुगत सूबेदारी शासन की शुरुवात हुयी। बाद में इसने खुद को मुग़ल शासन से अलग कर लिया और बंगाल पर अपना अधिकार कर लिया। उस समय उड़ीसा, झारखण्ड और बिहार भी बंगाल का ही हिस्सा था। मुर्शिद कुली खान जब मुगलिया प्रतिद्वंदी से ढाका में असुरक्षित महसूस किया तो दिवानी कार्यालय को मुक्सुदाबाद स्थानांतरित कर दिया जिसका उसने नाम मुर्शिदाबाद कर दिया।
मुर्शिद कुली खान की चर्चा सैन्य प्रशासन और राजस्व प्रशासन के लिए होता है पर राजस्व प्रशासन की आड़ में हिन्दुओं और बौद्धों का जबरन धर्मान्तरण की चर्चा गायब हो जाता है। मुर्शिद ने मुसलमानों को जहाँ कर में छूट के साथ नाना प्रकार की सुविधाएँ दी वहीँ हिन्दुओं पर नाना प्रकार के कर लगाये और उन्हें सख्ती से वसूला भी और जो कर चुकाने में असमर्थ हो जाता उन्हें परिवार सहित मुसलमान बनने को बाध्य करता। उस समय वह एक करोड़ पच्चीस लाख रूपया सालाना वार्षिक कर वह औरंगजेब को भेजता था। उसने राजस्व उगाही की आड़ में हिन्दुओं को निचोड़ दिया ताकि वे मुसलमान बनने को बाध्य हों।
यही नहीं, इसने हिन्दू कर्मचारियों के लिए समान गलती पर मुस्लिम कर्मचारियों से दुगुने दंड का प्रावधान कर रखा था। मंदिरों को तोड़ने और बड़े मंदिरों, पाठशालाओं को मस्जिद, मकतब में बदलने में भी इसने मुग़ल आक्रमणकारियों का अनुशरण किया। बंगाल में “सूफी आतंकियों” के बाद हिन्दुओं, बौद्धों का सबसे ज्यादा धर्मान्तरण मुर्शिद कुली खान के 27 वर्ष के शासन में हुआ। 1727 ईस्वी में मुर्शिद कुली खान मर गया।