चीन मुसलमानों पर भयानक अत्याचार करता है, लाखों मुसलमानों को सुधारने के नाम पर कैद कर रखा है और उन्हें मारकर उनके विभिन्न अंगों का व्यापार करता है। मुसलमानों को नमाज पढ़ने, दाढ़ी रखने और रोजा रखने नहीं देता है। कुरान पर प्रतिबन्ध लगा रखा है और उनके पास कुरान पाए जाने पर जेल भेज देता है। मस्जिदों को तोड़कर शौचालय बना देता है और तो और वह खुलेआम इस्लाम को धर्म नहीं मानसिक बीमारी और पागलपन बताता है। इतना होने के बाबजूद कोई भी मुसलमान, मुसलमान छोड़िये कोई भी मुस्लिम देश उसके खिलाफ चूं तक नहीं बोलता है। ऐसा लगता है मुसलमान, इस्लाम और स्वयं खुदा जो सात सहस्त्र फरिश्तों के साथ जिहादियों की सहायता का वादा कर रखे हैं वे सब चीन के आगे घुटने टेक दिए हैं।
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जबकि भारत में किसी मुसलमान को कोई थप्पड़ मार दे या उनके नमाज, दाढ़ी-टोपी पर टिपण्णी कर दें, कोई मोहम्मद के जीवनी पर सत्य बोल दे या कुरान से गैरमुस्लिमों के विरुद्ध हिंसा/हत्या या काफ़िर स्त्रियों को सेक्स स्लैव बनाने केलिए उकसाने वाली आयतों में सुधार की बात कर दें तो ये पूरे देश में हिंसा, दंगा, आगजनी और आतंक मचा देते हैं। यहाँ तक कि दुसरे मुस्लिम देश भी सच्चाई जाने वगैर या सच्चाई जानते हुए भी इस्लामिक रणनीति के तहत छाती पीटने लगते हैं। यही नहीं, दुसरे देशों में यदि इस्लामिक आतंकियों पर कार्यवाही होती है तो भी ये भारत में दंगे करने लगते हैं। कुछ ऐसा ही ये अब यूरोपियन देशों में भी करने लगे हैं। आखिर कारण क्या है? आईये समझते हैं।
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आप विद्यार्थी जीवन में विभिन्न कक्षाओं में उत्तीर्ण होने के लिए परीक्षा अवश्य दिए होंगे। आपके शिक्षकों ने आपको समझाया होगा कि सबसे पहले सरल प्रश्नों के उत्तर लिखें या हल करें। कठिन प्रश्न बाद में या अंत में हल करें। ठीक यही स्ट्रेटजी (रणनीति) इस्लाम, मुसलमान और मुस्लिम देश अपनाते हैं। मतलब चीन इस्लाम और मुसलमान केलिए कठिन प्रश्न है जबकि शांति, प्रेम, सहिष्णुता, वसुधैव कुटुम्बकम तथा जिओ और जीने दो की उद्दात विचारधारा वाला तथा विभिन्न राज्यों, क्षेत्रों, भाषाओँ और पंथों में विभाजित भारत इनके लिए प्रारम्भ से ही सरल प्रश्न रहा है। वहीँ अहिंसा में विश्वास रखने वाला दर्जनों बौद्ध राज्य बहुत ही आसान प्रश्न रहा जिन्हें इस्लाम और मुसलमानों ने इराक से शिनजियांग और तुर्रान तक तथा मध्य एशिया से बांग्लादेश तक बिना किसी कठिनाई के हल कर चूका है और अब उनका पूरा ध्यान जाति, पंथ, वर्ग, दलित, सवर्ण, क्षेत्रवाद, भाषावाद, आर्य, द्रविड़, राजनितिक पार्टियों, सामाजिक विचारधाराओं आदि में बंटे अवशेष भारत पर इस्लामिक कब्जे की है।
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अपने इस लक्ष्य की प्राप्ति केलिए वे पूरी रणनीति के तहत भारत के तिन टुकड़े कराकर दो टुकड़ों पर इस्लामिक कब्जे करने में सफल होने के बाद से ही लगे हैं। इसी रणनीति के तहत वे भारत का धर्म के आधार पर विभाजन कराने और 23 प्रतिशत मुसलमानों केलिए 35% भारतीय हिस्सों पर कब्जा करने के बाद हिन्दुस्थान में रह गये और नेहरु-गाँधी जैसे इस्लामिक मानसिकता वाले सत्ताधारी का समर्थन हासिल कर भारत के संविधान में मनमाना छेड़छाड़ करवाने में सफल हो गये ताकि हिन्दुस्थान पर आसानी से इस्लामिक कब्जा कर सकें।
परिणामतः भारत स्वतंत्रता के बाद भी कभी चैन से नही रहा और अनवरत सांप्रदायिक दंगे, हिंसा, हत्या, रेप, लूट आदि का उसी प्रकार शिकार होता रहा है जैसे आजादी पूर्व था। इतना ही नहीं, ये एकजुट मुस्लिम वोट की राजनितिक शक्ति बनकर भारत के स्वार्थी, भ्रष्ट, गद्दार और सत्तालोलुप राजनितिक पार्टियों को अपना गुलाम बना चुके हैं जो इनके जिहाद, जनसंख्या जिहाद, लैंड जिहाद, लव जिहाद, आतंकवाद, अलगाववाद, दंगे, हत्या, रेप , लूट आदि के पोषक और संरक्षक बन गये हैं और स्थति तेजी से विकराल होती जा रही है। सिर्फ भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा ही नहीं हिन्दुओं (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) का अस्तित्व खतरे में आ चूका है।
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यही नहीं ये भारत के इतिहास को विकृत कर हिन्दुओं और भारतियों को अपने मूल और सत्य इतिहास से वंचित करने में भी सफल हो गये हैं। किसी भी सभ्यता संकृति और धर्म को नष्ट करना हो तो सबसे पहले वहाँ की शिक्षा व्यवस्था को विकृत कर देना चाहिए ये अंग्रेजों से अच्छी तरह सीख लिया था। इतिहास भविष्य का दर्पण होता है क्योंकि इतिहास की हमारी समझ ही किसी राष्ट्र और समाज का भविष्य का निर्धारण करता है। इतिहास हमारे अच्छे-बुरे, सही-गलत, सफल-असफल कार्यों और उसके परिणामों का लेखा जोखा होता है। इनका समुचित विश्लेषण कर ही राष्ट्रनीति, कूटनीति, युद्धनीति, सामाजिक और प्रशासनिक नीतियाँ बनती है। इतिहास को विकृत कर ये भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा केलिए बनने वाले सभी शैक्षणिक, संवैधानिक और सामरिक रणनीतियों को ही ध्वस्त करने में सफल हो गये हैं।
वास्तविक इतिहास से अनभिज्ञ हम भारतीय किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाति, पंथ, वर्ग, दलित, सवर्ण, क्षेत्रवाद, भाषावाद, आर्य, द्रविड़, विभिन्न राजनितिक पार्टियों, सामाजिक विचारधाराओं आदि में बंटकर बहुसंख्यक होते हुए भी राजनितिक रूप से जर्जर और कमजोर हो चुके हैं जबकि वे अपनी एकजुट मुस्लिम वोट के कारण बहुत बड़ी राजनितिक शक्ति बन चुके हैं। वे इतनी बड़ी राजनितिक शक्ति बन चुके हैं कि हिन्दुओं और हिन्दुस्थान की एकता, अखंडता और सुरक्षा केलिए उठाये गये किसी भी संवैधानिक, कानूनी और सामरिक नीतियों को आसानी से सफल नहीं होने दे सकते हैं।
अपनी राजनितिक एकजुटता के बदौलत वे हम हिन्दुओं के पैसे पर खा रहे हैं, घरों में रह रहे हैं, लाखों करोड़ों रुपये सरकारी स्कीमों के तहत उठा रहे हैं और हमारी ही टैक्स के पैसों से हम काफ़िर हिन्दुओं (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) को कुरान के आदेशानुसार कैसे खत्म करना है, हमारा घर हिन्दुस्थान को कैसे बर्बाद कर इस्लामिक स्टेट बनाना है ये सब मदरसों में पढ़ा रहे हैं और पढ़ रहे हैं पर हम हिन्दू कुछ नहीं कर पा रहे हैं।
वास्तव में देखा जाये तो वे भारत का प्रश्न हल करने के बहुत करीब पहुँच चुके हैं। उनकी मार्ग में अब सिर्फ तिन बाधाएं हैं पहला, भारत की सेना, दूसरा 20% राष्ट्रवादी, देशभक्त और जागरूक हिन्दू और तीसरा आरएसएस। जिस दिन इन तीनों में से एक भी दीवार वे भेदने में सफल हो गये हिन्दुओं और हिन्दुस्थान का अस्तित्व खत्म हो जायेगा। हम हिन्दुओं को अपना अस्तित्व बचाना है, अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना है और अपना घर हिन्दुस्थान को सुरक्षित करना है तो तीन काम हर हाल में करने होंगे पहला, केंद्र में हर हाल में हिन्दुओं की राष्ट्रवादी सरकार उतना ही जरुरी है जितना जीने के लिए हवा और पानी।
दूसरा, हम हिन्दुओं (हिन्दू, बौद्ध, सिक्ख, जैन) को इजराईल का यहूदी बनना पड़ेगा और खुद को सैनिक जीवन में ढालना पड़ेगा। इस्लामिक स्ट्रेटजी, चालबाजी, मक्कारी अर्थात अल-तकिया को समझना होगा और उन्हें उन्हीं की भाषा में जबाब देना होगा ताकि हम उनके लिए भारत के प्रश्न को कठिन से कठिन बना सकें।
और तीसरा, केंद्र की राष्ट्रवादी सरकार को सवैतनिक/अवैतनिक AITNF (Ante Islamic Terrorism National Force) को मंजूरी और अस्त्र शस्त्र देना होगा क्योंकि इस्लाम का हर मुसलमान लश्कर ए तोइबा अर्थात इस्लाम की सेना होता है, मौलवी, मौलाना, मुफ़्ती, हाफिज आदि विभिन्न स्तरीय सैनिक और प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. उन्हें मदरसों में आवश्यक ट्रेनिंग और मस्जिदों से आवश्यक अस्त्र शस्त्र जरूरत पड़ने पर मिल जाते हैं। अतः किसी भी विषम आंतरिक परिस्थियों से निबटने केलिए स्वयंसेवी AITNF बहुत ही जरुरी होगा। तभी हम उनके सामने भारत के प्रश्न को कठिन से कठिनतर बना सकते हैं। साथ ही उन्हें जिहाद और गजबा ए हिन्द की मानवता और इंसानियत विरोधी हिंसक बर्बर मानसिकता से विचलित और हतोत्साहित कर सच्चे और अच्छे नागरिक बना सकते हैं।
भारत का संविधान, कानून और न्यायव्यवस्था इंसानों और गाय बैलों केलिए है। जहरीले साँपों से भी ज्यादा खतरनाक वहशी, आत्मघाती और खूंखार जानवरों को नियंत्रित करने में यह बिलकुल असक्षम है। लोकतान्त्रिक व्यवस्था इन्हें और भी घातक बनाता है और वे लोकतान्त्रिक देशों पर आसानी से कब्जा कर लेते हैं। लेबनान इसका सबसे बढ़िया उदहारण है। सिर्फ राष्ट्रवादी सरकार, इजरायल की नीति और इस्राइलियों की तरह सशस्त्र, सबल और सक्षम बनकर ही इन्हें नियंत्रित किया जा सकता है।
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