मध्यकालीन भारत

दिल्ली का अफगानी शैतान सिकंदर लोदी

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वर्णसंकर शैतान सिकंदर लोदी दिल्ली का सुल्तान शैतान बहलोल लोदी का तीसरा पुत्र था. सरहिंद के हिन्दू सुनार की अपहृत कन्या जिबा के साथ बलात्कार से इसका जन्म हुआ था. इसने हिन्दू हत्याकांड में अपने पूर्वजों से दूना उत्साह दिखाया था. इसका हत्या उन्माद इतना भयंकर था कि इसके दल के इसके धर्म भाई नियामतुल्ला ने अपनी ‘तारीखे जहाँ लोदी’ में इसके हत्याकांड को बार बार एक कसाई का काम लिखा है-पुरुषोत्तम नागेश ओक

अपनी पुस्तक “क्रिसेंट इन इंडिया” पृष्ठ १५४ पर श्री आर एस शर्मा लिखते हैं कि’ “फिरोजशाह तुगलक और औरंगजेब की भांति, कट्टरता सुल्तान सिकंदर लोदी की मुख्य दुर्बलता थी. हिन्दू मन्दिरों को तबाह बर्बाद करना उसके अभियान का नियमबद्ध कारनामा था. (मथुरा, धौलपुर आदि स्थानों की भांति) जहाँ कहीं भी उसका हाथ पड़ा, हिन्दू मन्दिर नहीं बचे. उसने यमुना के पवित्र घाट पर हिन्दुओं का स्नान करना वर्जित कर दिया था. यहाँ तक की नाई भी वहां हिन्दुओं की हजामत नहीं कर सकते थे.

बंगाल के एक ब्राह्मण ने रुढ़िवादी मुसलमानों की घृणा को जनता के बीच यह कहकर भड़का दिया की इस्लाम और हिंदुत्व दोनों ही सच्चे धर्म हैं और ये दोनों धर्म सर्वशक्तिमान परमेश्वर तक ले जानेवाले अलग-अलग मार्ग हैं. उसने इस अपराधी को दरबार में भेजने के लिए बिहार के गवर्नर को लिखा. यहाँ उसने काजियों से पूछा की इस प्रकार का उपदेश देने की अनुमति है या नहीं. उन्होंने निर्णय दिया की चूँकि ब्राह्मण ने सच्चाई स्वीकार की है अतएव उसे इस्लाम स्वीकार करने का अवसर मिलना चाहिए अन्यथा दूसरा विकल्प मृत्यु ही है. ब्राह्मण को मृत्यु-दंड मिला क्योंकि उसने अपना धर्म त्यागकर इस्लाम स्वीकार नहीं किया.”

“भारतीय जनता का इतिहास और संस्कृति, दिल्ली के सुल्तान” के पृष्ठ १४६ पर लिखा है कि, “दुर्भाग्य से इस्लाम का कट्टर भक्त सिकन्दर दुसरे धर्मों को नहीं देख सकता था. हिन्दू माँ से उत्पन्न और हिन्दू राजकुमारी से विवाह करने को उत्सुक सिकन्दर का व्यवहार अपनी विशाल प्रजा के प्रति अविवेचनिय है. जब वे शाहजादा थे, उस समय भी उन्हें थानेश्वर के हिन्दू तालाबों पर आक्रमण करने से रोका गया था …जैसा की मन्दरेल, उत्गिर और नरवर के व्यवहार से प्रगट होता है, सिकन्दर प्रायः मन्दिरों को नष्ट कर देते थे और उनके स्थान पर मस्जिद या भवन बना देते थे.

मथुरा में उन्होंने हिन्दुओं को पवित्र घाटों पर स्नान तथा क्षौर कर्म करने से रोका दिया था. उन्होंने नगरकोट से लायी हुई खंडित हिन्दू प्रतिमाओं को तोल का बट्टा बनाने के लिए कसाईयों को दे दिया था. इन सबसे बढ़कर उन्होंने उलेमानों से विचार-विमर्श कर बोधन ब्राह्मण को, जिसने अपने धर्म के साथ साथ इस्लाम की सच्चाई भी स्वीकार की थी, मरवा डाला था.”

जौनपुर के साथ संघर्ष

जौनपुर पर शर्की मुसलमानों का कब्जा था. बर्बर, धर्मान्ध और असुरक्षित मुस्लिम सुल्तानों के अविराम क्रूर-अत्याचारों के कारण कराहती जौनपुर की हिन्दू जनता ने अपने विदेशी और पाशविक अत्याचारियों को मार भागाने के लिए विद्रोह खड़ा कर दिया. एक वीर राजपूत सरदार जूगा उनका नायक था. जुगा के कुशल नेतृत्व में राजपूत जाति बचगोटी ने मुस्लिम गिरोह का अधिकांश भाग साफ कर दिया.

हिन्दुओं को घृणा की दृष्टि से देखने वाला सिकंदर जूगा को जाउन्द दुर्ग से हटा नहीं सका था. उसने जौनपुर के शासक हुसैन शर्की को समाचार भेजा की एक मुसलमान होने के नाते यह आपका कर्तव्य है कि आप एक हिन्दू जूगा को धोखे से फंदे में डाल दें और आप ऐसा करेंगे तो मैं सिकन्दर के जाल में फंसे हिन्दू मेजबानों का रक्त पीकर तृप्त हो जाऊंगा और आपको जौनपुर का स्वतंत्र शासक मान लूँगा. मगर हुसैन शर्की उसके जाल में नहीं फंसा. बाद में कई लड़ाईयां हुई, अंत में हुसैन शर्की को बंगाल भागना पड़ा.

इन दोनों मुसलमानों की लडाई में हिन्दू राज्य कुतुम्ब का बुरा हाल हो गया. उन दोनों की सेनाओं ने उनके राज्य में लूट पाट, डकैती, निर्मम हत्या, स्त्रियों और बच्चों का अपहरण किया, मन्दिरों को मस्जिद बनाया. अपनी जनता और राज्य की दुर्गति से क्षुब्ध होकर वीर राजा बलभद्र ने सिकंदर के विरुद्ध खुला युद्ध की घोषणा कर दी. वीर हिन्दू राजा बलभद्र और उन्हीं के सामान उनके वीर पुत्र वीर सिंह देव ने लालची मुसलमानों का जीना हराम कर दिया. सिकंदर उनकी सेना से बचता रहा और पन्ना राज्य की सिमाओं में लूट-पाट मचाकर निर्दोष नागरिकों को काट काटकर फेंकता रहा. वृद्धावस्था से अशक्त और मुस्लिम शत्रुओं द्वारा अपनी प्यारी प्रजा की चमड़ी छिलने और चाबुक प्रहार से दुखित बलभद्र राय ने सरगुजा जाते समय अपनी अंतिम साँस ली. मगर उनके वीर पुत्र वीरसिंह देव ने अपना नाम सार्थक किया.

फंफूद में उन्होंने सिकन्दर लोदी के सर पर ऐसा प्रहार किया की सिकन्दर को जौनपुर भागना पड़ा. उसके पास अनाज, नमक दाल आदि का आभाव हो गया. उधर हुसैन शर्की और वीरसिंह देव के भाई लक्ष्मी चंद ने भी सिकन्दर के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया. चारों ओर से घिरा सिकन्दर स्वर्गीय राजा बलभद्र राय के पुत्र शालिवाहन के पास दया और शांति की भीख मांगने अपने दरबारी खान खानान को दूत बनाकर भेजा.

ग्वालियर के साथ संघर्ष

ग्वालियर से संधि-वार्ता के दौरान दूत वीर निहाल सिंह ने सिकन्दर के कायर, कपटी और नीच व्यवहार के लिए बीच दरबार में बार बार धिक्कारा जिससे वह क्रुद्ध होकर हिन्दू राज्य ग्वालियर को नेस्तानोबूद करने की कसम खा ली.

एक के बाद दुसरे हिन्दू क्षेत्रों को निगलने वाला सिकन्दर सचमुच एक नर भक्षी था. वह प्लेग की भांति ग्वालियर पर बरस पड़ा. ग्वालियर गढ़ की पहाड़ियों के निचे भव्य भवनों का समूह है. ग्वालियर दुर्ग द्वार की ओर अनेक महल खड़े हैं. राजा मानसिंह और उनके वीर पुत्र विक्रमादित्य ने सिकन्दर लोदी को मार भगाया. इसी बीच राजा विनायक देव ने धौलपुर पर फिर से अपना अधिकार कर लिया.

सिकंदर लोदी का लूट अभियान

१५०४ ईस्वी में भूखे भेड़िए की भांति सिकन्दर मन्दरैल दुर्ग के आस पास रहने वाले हिन्दुओं का शिकार करने के लिए टूट पड़ा. दुर्ग पर अधिकार करने के बाद सुल्तान ने मन्दिर को नष्ट करने और उनके स्थान पर मस्जिद बनाने की आज्ञा दी. दुर्ग की रक्षा के लिए मियां माकन और मुजाहिद खान को छोड़कर वे खुद आसपास की जमीन को लूटने निकले जहाँ उन्होंने बहुत से लोगों को कसाई की भांति काट डाला, बहुतों को बंदी बना लिया सारी झाड़-झाड़ियों और निवास स्थानों को उखाड़ कर नष्ट कर डाला एवं अपनी प्रतिभा के इस प्रदर्शन से अपने को तृप्त और गौरवान्वित कर वे अपनी राजधानी बयाना लौट आए (पृष्ठ ८, भाग-५, इलियट एवं डाउसन)

वर्षा ऋतू के बाद सिकंदर एकबार फिर हिन्दू क्षेत्रों को लूटने के लिए अपने इस्लामी अभियान पर निकला. इस अभियान में उसने डेढ महीना धौलपुर में बिताया उसके बाद चम्बल चले गए….सिकन्दर खुद जिहाद छेड़ने तथा काफिरों की जमीन लूटने आगे बढे. उन्होंने जंगलों में भाग जाने वाले बहुत से हिन्दू लोगों को एक कसाई की भांति कटवा डाला. बाकी लोगों को लूटकर बेड़ियों में जकड दिया गया (वही पृष्ठ १००)

इस विनाश से क्रोधित होकर वीर पिता और पुत्र मानसिंह तथा विक्रमादित्य ने मुस्लिम गिरोह का आपूर्ति मार्ग बंद कर दिया. सिकन्दर पर आकस्मिक आक्रमण कर उसकी अधिकांश सेना नष्ट कर दी. सिकन्दर भी मरने से बाल बाल बचा और आगरा भाग गया.

वर्षा ऋतू के बाद सिकंदर लाहौर गया. वहां एक महिना रहने के बाद १५०९ ईस्वी में हाथकंद का मार्ग पकड़ा. उन्होंने इसको मूर्ति पूजकों और डाकुओं (यानि हिन्दुओं) से साफ कर दिया. जब उन्होंने उस स्थान के बागियों (यानि हिन्दुओं) को मौत के घाट उतार दिया और प्रत्येक स्थान पर छोटी चौकियां स्थापित कर दी तब वे अपनी राजधानी वापिस आ गए.

शैतान सिकंदर लोदी का मकबरा

अंत में २१ नवम्बर १५१७ ईस्वी को गले के कैंसर से इस शैतान की मृत्यु हो गयी. इतिहासकार पुरुषोतम नागेश ओक लिखते हैं, “इस प्रकार एक वास्तविक शैतान की भांति सिकंदर लोदी का सारा जीवन लूट, बलात्कार, नर-संहार, विनाश हिन्दुओं के सामूहिक इस्लामीकरण और मुस्लिम दुर्व्यवहार के लिए सारे हिन्दू मन्दिर और महलों के मस्जिद और मकबरे में रूपांतरण की एक दुःख भरी लम्बी गाथा है. किस प्रकार मुसलमानों ने अपने सह्स्त्रवर्षीय विनाश और लूट से भव्य भवनों, सम्पन्न मन्दिरों और सुवासित उपवनों से भरे पुरे और फलते-फूलते हिन्दुस्थान को बिखरे खंडहरों, निर्धन झोपड़ियों और उजड़े रेगिस्तान में बदल दिया है, सिकन्दर इसका एक ज्वलंत उदहारण है.”

स्रोत: भारत में मुस्लिम सुल्तान, भाग-१, लेखक: पुरुषोत्तम नागेश ओक

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6 thoughts on “दिल्ली का अफगानी शैतान सिकंदर लोदी

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