गक्खर (या खोक्खर) राजपूत भारत के इतिहास में अपनी वीरता और शूरता के लिए जाने जाते हैं. खासकर विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध लडाई में इन्होने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. इन्होने आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को खत्म किया, कुतुबुद्दीन, इल्तुतमिश, बलबन और मोहम्मद बिन तुगलक जैसे नरपिशाचों को धूल चटाया. परन्तु लड़ते लड़ते ये धीरे धीरे कम और कमजोर होते गए और एक दिन ऐसा भी आया की विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों से अपनी प्रजा की जान माल और अस्मत की सुरक्षा केलिए इस्लाम का ढोल भी गले में बांधना पड़ गए.
इन्ही लोगों में से एक थे शेख खोक्खर (या गक्खर) जो नाम से तो मुसलमान बन गये परन्तु अपने देश धर्म और अपनी हिन्दू प्रजा केलिए और विदेशी आक्रमणकारियों से उनकी सुरक्षा केलिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया.
उन्ही का पुत्र था जशरथ खोक्खर (या दशरथ गक्खर) जो १४२०-१४४२ ईस्वी तक खोक्खरों के राजा थे. उन्होंने पंजाब, जम्मू, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और खैबर पख्तुनवां पर शासन किया. १४३१ ईस्वी में वे दिल्ली पर भी विजय प्राप्त करने में सफल रहे थे.
राजा शेख खोक्खर की ओर से विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों से युद्ध के दौरान एकबार जशरथ खोक्खर को समरकंद में बंदी बना लिया गया था. पर शीघ्र वे आजाद हो गये. उन्होंने तैमुर के वंशज सम्राट शाहरुख़ की बेटी से शादी की थी. (Role of Khokhars in Duggar history). बाद में वे पंजाब लौट आये.
राजा जशरथ खोक्खर
राजा शेख खोक्खर की मृत्यु के बाद जशरथ खोक्खर राजा बने और उन्होंने बची खुची इस्लाम का जुआ भी अपने कंधे से उतार फेंका. कश्मीर के राजा जैन-उल-आबदीन द्वारा सहायता मांगे जाने पर उन्होंने अली शाह के विरुद्ध उसकी सहायता की और अली शाह को हराया. सुल्तान अली पकड़ा गया. हिन्दुओं ने उसके गिरोह को नष्ट कर दिया.
दिल्ली के शैतान खिज्र खां की मृत्यु का समाचार पाकर वीर जशरथ ने व्यास और सतलज नदी पार की और वह उन धर्मान्तरित हिन्दुओं पर टूट पड़े, जो मुस्लिम गिरोहबाज गुर्गे बनकर सारी क्रूर मुस्लिम कलाएँ सीख चुके थे. राय जशरथ की चमकती तलवार को देखकर ये नए धर्मान्तरित हिन्दू तलवन्जी के राय कुमालुद्दीन और राय फिरोज नौ दो ग्यारह हो गये. लुधियाना, रोपड़ और जालन्धर के क्षेत्र को राय जशरथ ने अपने अधिकार में ले लिया. मजबूर होकर जीरक खान ने जालन्धर दुर्ग भी सौंप दिया.
मुस्लिम कपट की आदत से लाचार अपनी नाक बचाने केलिए जीरक खां ने जशरथ राय के सहायक तूष्ण राय के एक पुत्र को उड़ाकर दिल्ली ले जाने की योजना बनाई. जालंधर के किले से ३ मील दूर बेनी नदी के किनारे जशरथ का पड़ाव था. उन्हें इस योजना की भनक मिल गयी. उन्होंने स्वयं जिरक खां को पकड़ा, कैद किया और लुधियाना पहुंच गए.
दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध युद्ध
दिल्ली का सुल्तान मुबारिक शाह को अब वीर हिन्दू नेता जशरथ गक्खर से खतरा पैदा हो गया. जशरथ एक वीर हिन्दू राजा तथा पंजाब और सिंध का शेर था. प्रत्येक हिन्दू के लिए वह प्रातः स्मरणीय है. मुस्लिम लुटेरा मलिक सुलतान शाह लोदी जशरथ की विजयी तलवार के भय से लुधियाना दुर्ग में थर थर काँप रहा था. उसने गिड़गिड़ाकर दिल्ली के सुल्तान मुबारिक शाह से सहायता की प्रार्थना की. जशरथ के इस शक्ति उत्थान को मुबारिक अपनी गद्दी केलिए खरनाक समझ रहा था. १४२१ को उसने दिल्ली से पंजाब केलिए प्रस्थान कर दिया. मुसलाधार वर्षा के बीच दोनों ओर की सेनाएं नदी के आर-पार लुधियाने के समीप खड़ी थी. उस स्थान की सारी नौकाएँ जशरथ के अधिकार में थी. काफी प्रयास के बाबजूद लुटेरी मुस्लिम सेना को एक नाव भी नहीं मिली.
जम्मू के हिन्दू शासक राय भीम मुस्लिम क्रूरता और बर्बरता से घबराकर मुस्लिम सेना का गाईड बन गया. जशरथ का गढ़ टेखर जीता नहीं जा सका. आस पास के ग्रामीण क्षेत्रों को लूट कर मुस्लिम सेना लाहौर लौट गई. याहिया बिन अहमद सरहिन्दी लिखता है, “१४२१ ईस्वी के दिसम्बर में सुल्तान ने बर्बर लाहौर शहर में प्रवेश किया. इसमें उल्लुओं के आलावा कोई जिन्दा नहीं था. सुल्तान किले और दरवाजों की मरम्मत कराते हुए एक महीने तक यहाँ ठहरे.”
लाहौर का प्राचीन हिन्दू नाम लवपुर है. सुल्तान मुबारिक के पीछे ही पीछे जशरथ भी था. उसने लाहौर के किले को घेर लिया. लाहौर के किले के घिरे मुसलमानों पर ३५ दिन तक आक्रमण कर जशरथ उसकी सेना का सफाया कर रहे थे. मुस्लिम भक्ति दिखलाता हुआ उसकी पीठ पर मुसलमनों का पिट्ठू बना भीम कलानौर में जशरथ की सेना पर हमला कर रहा था. दोनों के बीच में जशरथ अडिग, अजेय खड़ा था. भीम पराजित हुआ. सुल्तान चुपके से दिल्ली सरक गया. संभवतः इसी समय जशरथ ने जम्मू पर अधिकार कर लिया. भीम की हिन्दू सेना अपने हिन्दू द्रोही राजा की मृत्यु से मुक्ति की साँस ली. उन्होंने वीर हिन्दू जशरथ को अपना राजा स्वीकार कर लिया.
अपराजित योद्धा जशरथ खोक्खर
उस काले काल में जब मुस्लिम सेनाओं के जत्थे हिंदुत्व को निगलने की तयारी कर रहे थे हिन्दू शौर्य से भरपूर जशरथ सूर्य की भांति चमका था. उसकी कूट नीति एवं रण-चातुरी ने हिंदुत्व को विजय का महान मार्ग दिखाया है. कृतज्ञ वंशजों को उसकी याद हमेशा ताज़ी रखनी चाहिए.
३० अप्रैल, १४२८ ईस्वी को जब मुबारक शाह दिल्ली लौटकर मौज मस्ती और रंगरेलियों में डूबा हुआ था उसे खबर मिली की वीर जशरथ लाहौर, कलानौर, जालन्धर और कांगड़ा के साथ सारे पंजाब को अपने अधिकार में ले लिया है. बयाना ने फिर बगाबत कर दी है. इससे खिन्न और उद्विग्न होकर सुल्तान फिर ग्वालियर लुटने निकल पड़ा.
१४३१-३२ ईस्वी में अदम्य, अविजित अपराजित हीरो जशरथ ने दिल्ली-गद्दी पर बैठे विदेशी सुल्तान के विरुद्ध दूसरा अभियान छेड़ दिया. जालन्धर ले लिया गया. इसका विरोध करने केलिए मलिक सिकंदर आया और कैद हो गया.
धर्मान्तरित हिन्दू शेख अली
जब सुल्तान इन सारी ललकारों के बीच दिल्ली में आराम कर रहा था, शेख अली जो एक जबरन धर्मान्तरित हिन्दू था, ने मुल्तान की सेना पर हमला कर दिया. शेख अली के ह्रदय में हिन्दू देश भक्ति की आग जल रही थी. तीव्र प्रहार से इस वीर व्यक्ति ने तुसुम्ब-दुर्ग को अपने अधिकार में कर लिया. गालियों का बौछाड़ करते हुए बड़े दुखी दिल से इतिहासकार याह्या अहमद सरहिन्दी ने लिखा है कि, “सारे मुसलमान नापाक जालिम काफिरों (हिन्दुओं) के कैदी हो गये.”
बयाना और ग्वालियर भी बागी ही थे, दूसरी बगाबत का बिस्फोट पंजाब के समाना में हुआ. विकट जशरथ सुल्तान की सेना पर टूट पड़ा और उसे तितर बितर कर दिया. बौखलाकर सुल्तान लूट के लिए मेवात की ओर मुड़ गया.
दिल्ली की मुस्लिम सत्ता के अधीन, एक के बाद दुसरे केंद्र को छीनता धर्मान्तरित हिन्दू शेख अली पंजाब होकर आगे बढ़ता गया. तारीखे मुबारकशाही से स्पष्ट हो जाता है की वह अपने लुटे हिन्दू धर्म और खुनी सुल्तानी तलवार के निचे भय से कांपते अपने देशवासियों का बदला लेने के लिए निकला था. मुस्लिम सैनिकों के लाहौरी कमांडर मलिक युसूफ और मलिक इस्माईल हिन्दू तलवार से भयभीत होकर रातों-रात लाहौर किले से भाग निकले. उनका पीछा करने केलिए शेख अली ने एक सेना भेज दी, पीछा करने वालों ने अनेक लोगों को मार गिराया. दुसरे दिन शेख अली ने नगर के सारे मुसलमानों को कैद कर लिया. मुस्लिम इतिहासकार याह्या तारीखे मुबारकशाही में लिखता है, “इस्लाम की गद्दी को नष्ट करने और मुसलमानों को कैद करने के अतिरिक्त शेख अली को और कोई काम नहीं था.”
इतिहासकार पुरुषोतम नागेश ओक लिखते हैं, “मध्यकालीन इस्लामी जीवन और करतूतों का स्वाद चखने के बाद शेख अली ने मुसलमानों की नकल की और उन लोगों को उनके कारनामों का स्वाद चखाने लगा. जशरथ और अली शेख ने यह साबित कर दिया की हिंदुस्तान के लिए लाहौर सैकड़ों बार जीता जा सकता है.”
अन्य प्रतिघात और विद्रोह
१९ जनवरी, १४३४ ईस्वी को जब सुल्तान मुबारक शाह नमाज की तयारी कर रहा था की मिरां सदर ने पहरे पर से अमीरों को हटा दिया. विदाई लेने के बहाने कुछ हिन्दू घोड़ों पर चढ़कर आए. सुधारून कंगु अपने दल के साथ बाहर ही ठहर गया की सुल्तान की सहायता केलिए कोई भीतर ना जा सके. सिन्धुपाल तेजी से भीतर गया और उसने राजा के सर पर ऐसा वार किया कि उसके जीवन का अंत हो गया.
मुबारक शाह के मौत के बात शैतान खिज्र खां का पोता मुहम्मद शाह सुल्तान बना. वह सिन्धुपाल के पीछे था. सिन्धुपाल बयाना, अमरोहा, नारनौल और दोआब के कुछ क्षेत्रों को वापिस हिन्दू-अधिकार में लेने केलिए प्रयत्नशील था. इसी क्रम में चारों ओर से मुस्लिम सेना से घिर जाने के कारण सिन्धुपाल ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को घर में बंद कर घर में आग लगा दिया और वीर हिन्दू परम्परा के अनुसार लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की. कंगू और अन्य क्षत्रियों को पकड़कर महल में उस जगह लाया गया जहाँ मुबारक शाह ने दम तोड़ा था और उनकी हत्या कर दी गयी.
बहलोल लोदी और जशरथ खोक्खर
इस समय तक दिल्ली का भावी सुल्तान बहलोल लोदी का सितारा बुलंद हो चुका था. सुल्तान ने उससे खुस होकर लाहौर और दीपालपुर की जागीर लूटने केलिए बहलोल लोदी को दे दी जो उस समय जशरथ के राज्य का हिस्सा था. चौंकिए मत दिल्ली के मुस्लिम सुल्तान जागीरों का बंटबारा इसी प्रकार करते थे जो मुग़ल काल में में भी कायम रहा.
बहलोल लोदी जशरथ की शक्ति को जानता था इसलिए उसने जशरथ से एक समझौता कर उस वीर योद्धा की सहायता लेने का विचार किया. जशरथ की सहायता पा जाने का आश्वासन मिलने पर बहलोल लोदी ने आस पास के क्षेत्रों को अपने काबू में कर सुल्तान से टक्कर ले ली. १४४५ ईस्वी में मुहम्मद शाह मर गया. बहलोल लोदी ने मृत सुल्तान के पुत्र अलाउद्दीन को सुल्तान घोषित कर खुद संरक्षक बन गया और एक दिन उसकी हत्या कर खुद दिल्ली का सुल्तान बन गया.
मुख्य स्रोत:
- इलियट एवं डाउसन
- भारत में मुस्लिम सुल्तान, लेखक पुरुषोत्तम नागेश ओक
नोट: इलियट एवं डाउसन के राजा शेख खोक्खर और पुरुषोत्तम नागेश ओक के शेख अली संभवतः एक ही व्यक्ति हो सकते हैं.
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