हिन्दू इमारतें
भारत के ऐतिहासिक इमारतों को मुस्लिम इमारतें, मस्जिदें, मकबरे आदि होने का झूठ अलेक्जेंडर कनिंघम नाम के लुच्चे अंग्रेज जो दुर्भाग्य से भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग का प्रथम अध्यक्ष था ने जानबूझकर फैलाया था. यहाँ तक की उनके सर्वेक्षकों ने जिन इमारतों को हिन्दू इमारतें पाया उन्हें भी डांटकर चुप करा दिया. जैसे की सर्वेक्षक जोसेफ बैगलर ने कुतुबमीनार और उसके आस पास के इमारतों को हिन्दू इमारतें घोषित किया तो धूर्त कनिंघम ने उसे चुप करा दिया-पी एन ओक
कनिंघम के फैलाये उस झूठ को ही मुस्लिमपरस्त, हिन्दूविरोधी वामपंथी इतिहासकार ज्यों के त्यों फ़ैलाने लगे. जब उनसे पूछा गया की उन इमारतों में जो शंख, चक्र, कमल, घंटी, स्वास्तिक आदि हिन्दू चिन्ह तथा हिन्दू इमारतों में स्तम्भों पर चारों ओर बनाये गये मानवाकृति, पशुआकृति; प्रवेश द्वारों पर हाथी आदि पशु क्यों बने हुए मिलते हैं जिन्हें मुसलमान हराम मानते हैं, जिनसे घृणा करते हैं तो उन्होंने कुतर्क किया की मुसलमान हिन्दू इमारतों को तोड़कर उनके मलवों से नई इमारते बना देते थे इसलिए ये चिन्ह रह जाते थे. जब यह साबित हो गया की तोड़कर गिराए गये मलबों से उच्च कोटि के बेहतरीन नई इमारतें नहीं बनाई जा सकती है तो कहने लगे चूँकि इमारत बनाने वाले कारीगर हिन्दू होते थे इसलिए उनमे हिन्दू प्रतीक चिन्ह होता है.
सवाल है, अंग्रेजों ने भी तो बड़े बड़े गिरजाघर बनाएं हैं और वे हिन्दू कारीगरों ने ही बनाया है. उनमे हिन्दू चिन्ह क्यों नहीं है? आज भी मुसलमान मस्जिदें बनाते हैं और बनाने वाले हिन्दू या हिंदुस्थानी कारीगर ही होते हैं तो वे मस्जिदों में पवित्र हिन्दू चिन्ह क्यों नहीं बनबाते? क्या आपको लगता है कि एक जिहादी काफिरों से काम कराएगा और काफिरों के पवित्र चिन्ह अपनी इमारतों बोले तो मस्जिद और मकबरों में बनबायेगा? वास्तविकता तो इसके ठीक विपरीत यह है कि तमाम अधिग्रहित हिन्दू इमारतें जो आज मुस्लिम इमारतें कही जाती है उनमे हिन्दू प्रतीक चिन्हों और मानव-पशुआकृतियों को यथासंभव तोड़ दिया गया है, उन्हें घिसकर मिटा दिया गया है या मिटाने की पूरी कोशिश की गयी है जो खुद उनकी चोरी को बयाँ करते हैं. पर वामपंथी इतिहासकार फिर भी बेशर्मी से उसी प्रकार दिन को रात बताने की कोशिश करते हैं जैसे वामपंथी पत्रकार रविश कुमार दिल्ली के इस्लामिक दंगे में दंगाई शाहरुख़ को अनुज मिश्रा बताकर लोगों को बरगला रहा था.
वैदिक स्थापत्यकला के ग्रन्थ
स्थापत्यकला के दर्जनों प्राचीन ग्रन्थ हैं और वे ग्रन्थ सिर्फ संस्कृत में हैं इसलिए वे वैदिक सभ्यता के धरोहर है. वैदिक स्थापत्य यानि वास्तुकला और नगर-रचना की पूरी विधि मूल तत्व आदि विवरण जिन संस्कृत ग्रंथों में मिलता है उन्हें अगम साहित्य कहा जाता है. ये ग्रन्थ बहुत प्राचीन हैं.
मानसार शिल्पशास्त्र के रचयिता महर्षि मानसार के अनुसार ब्रह्मा जी ने नगर-निर्माण और भवन-रचना विद्याओं में चार विद्वानों को प्रशिक्षण दिया. उनके नाम हैं-विश्वकर्मा, मय, तवस्तर और मनु. शिल्पज्ञान (Engineering) की सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ है भृगु शिल्पसन्हिता. किले, महल, स्तम्भ, भवन, प्रासाद, पुल, मन्दिर, गुरुकुल, मठ आदि बनाने की विधि बताने वाली अन्य संस्कृत ग्रन्थ हैं-मयमत, काश्यप, सारस्वत्यम, युक्ति कल्पतरु, समरांगन, सूत्रधार, आकाश भैरवकल्प, नारद शिल्पसन्हिता, विश्वकर्मा विद्याप्रकाश, बृहतसंहिता, शिल्पशास्त्र आदि.
वैदिक स्थापत्यकला क्या है
वैदिक स्थापत्य में ध्यानमग्न बैठे योगी की कल्पना की जाती है. आत्मा जैसे शरीर में गुप्त निवास करती है उसी प्रकार विशालकाय मन्दिर के अंदर एक छोटे से अँधेरे गर्भगृह में मूर्ति की प्रतिस्थापना की जाति है. जिस चबूतरे पर वह ईमारत बनी होती है वह उसकी बैठक मानी जाती है. पहली मंजिल उस वास्तुपुरुष का उदर स्थान होता है. दूसरी मंजिल छाती, कन्धों का भाग होता है. कुम्भज (गुम्बद) का निचला गोल भाग वास्तुपुरुष का गला और कुम्भज सिर होता है. कुम्भज पर उल्टा कमलपुष्प बाल का प्रतीक और उसके उपर कलशदंड शिखा का प्रतीक होता है. अतः इस शिल्प पर बनी जितनी भी प्राचीन या मध्यकालीन इमारते भारत या भारत के बाहर हैं वे सभी हिन्दू इमारते हैं और आप उनकी पड़ताल करें, वे हिन्दू इमारतें ही साबित होगी. साथ ही याद रखें तिन कुम्भज (गुम्बद) वाले जितनी भी इमारते हैं वे हिन्दू मन्दिर हैं जैसे राम, लक्ष्मण, सीता का मन्दिर (तथाकथित बाबरी ढांचा), राधा, कृष्ण, बलराम का मन्दिर (मथुरा जन्मस्थान का मन्दिर), शिव, पार्वती, गणेश का मन्दिर (तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद, काशी), ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि का मन्दिर.
वैदिक स्थापत्य पर बने राजमहल के ठीक सामने नगरदेव या इष्टदेव का मन्दिर होता था जैसे दिल्ली में लालकोट के सामने तथाकथित जामा मस्जिद (तैमूरलंग ने इसे मस्जिद बना दिया था), आगरा में बादलगढ़ के किला के सामने तथाकथित जामी मस्जिद, फतेहपुर सिकड़ी के राजमहल के सामने तथाकथित सलीम चिश्ती का मकबरा (यह सीकड़ राजपूतों के परिवार केलिए शिव मन्दिर था) आदि. उन्हें साधने वाला राजमार्ग ही नगर का अक्ष होता है. इसी राजमार्ग के दाएं बाएँ गली कुचे बनाए जाते हैं. इन्हें घेरने वाली नगर की मोटी दिवार होती थी जैसे दिल्ली, आगरा, पाटलिपुत्र आदि में था.
वैदिक स्तम्भ (मीनार)
स्तम्भ (मीनार) में अंदर से सीढ़ी, हर मंजिल पर छज्जे, मीनार के शीर्ष पर छत्र यानि कुम्भज (गुम्बद) हो तो वे हिन्दू स्थापत्यकला का दीपस्तम्भ के लक्षण हैं. उसे एक स्तम्भ भी कहा जाता है. जैसे पीसा का झुकी मीनार, अफगानिस्तान का गजनी नगर का मीनार, दिल्ली का विष्णुस्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ (कुतुबमीनार), ताजमहल के चारों कोनो पर स्थित स्तम्भ, अहमदाबाद का हिलता मीनार आदि-पी एन ओक
तथाकथित कुतुबमीनार और अलाई दरवाजा, अलाईमस्जिद वास्तव में विष्णुमन्दिर परिसर का हिस्सा है. अलाईमस्जिद वास्तव में विष्णुमन्दिर का खंडहर है जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. यहाँ शेषशय्या पर विराजमान भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति थी. कुतुबमीनार जो वास्तव में विष्णुस्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ है वो एक सरोवर के बिच स्थित था जो कमलनाभ का प्रतीक था. स्तम्भ के उपर कमलपुष्प पर ब्रह्मा जी विराजमान थे जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. मन्दिर से स्तम्भ तक जाने केलिए पूल जैसा रास्ता बना था. खगोलशास्त्री वराहमिहिर इस स्तम्भ का उपयोग वेधशाला के रूप में करते थे. यहाँ २७ मन्दिर २७ नक्षत्र का प्रतीक थे. वराहमिहिर के नाम पर ही उस एरिया का नाम आज भी महरौली है.
ब्रिटिश सर्वेक्षक जोसेफ बेगलर ने अपने सर्वेक्षण रिपोर्ट में पूरे कुतुबमीनार परिसर को हिन्दू ईमारत न सिर्फ घोषित किया है बल्कि उसे साबित भी किया है पर दुर्भाग्य से भारत सरकार, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और वामपंथी इतिहास्याकर उसे जबरन मुसलमानों का घोषित कर रखा है. जोसेफ बेगलर की रिपोर्ट Archaeological Survey of India; Report for the Year 1871-72 Delhi, Agra, Volume 4, by J. D. Beglar and A. C. L. Carlleyle की किताब में उपलब्ध है जिसे आप निचे के लिंक पर डाउनलोड कर सकते हैं, हालाँकि मुफ्त PDF पूरा नहीं है, बेहतर है खरीदकर पढ़ें.
https://www.forgottenbooks.com/en/books/ArchologicalSurveyofIndiaReportfortheYear187172_10019541
यह विशाल मन्दिर संभवतः चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनबाया था क्योंकि यहाँ पर जो लौहस्तम्भ है वो चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का ही है ऐसा उत्खनन से प्राप्त शिलालेख से भी पता चलता है. इतिहासकार पी एन ओक ने लिखा है ऐसा ही शेषशायी भगवान विष्णु का मूर्ति और मन्दिर अरब के मक्का, रोम के वेटिकन और इंग्लैण्ड में भी था. स्पेन के म्यूजियम में आज भी शेषशायी भगवान विष्णु की मूर्ति रखा हुआ है.
सभी ऐतिहासिक ईमारतें हिन्दुओं की बनाई हुई है
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “Invaders are never constructor, they are only destructor.”
वे लिखते हैं की “भारत से लेकर अरब तक या यूरोप तक जिन प्राचीन एतिहासिक इमारतों को इस या उस मुसलमानों के द्वारा बनाई बताई जाती है वे सब हिन्दुओं की हैं, यहाँ तक की ताजमहल और लाल किला भी. मुसलमानों ने सर्वत्र हिन्दू इमारतों, मन्दिरों, मठों, पाठशालाओं आदि का केवल विनाश किया है निर्माण कुछ भी नहीं.”
आप खुद सोचिये, क्या आपको लगता है कि गुलाम कुतुबुद्दीन, अलाउद्दीन खिलजी और अकबर जैसे अनपढ़, जाहिल, हिंसक, बर्बर, युयुत्सु, लम्पट, कामुक, नरपिशाच जो दो शब्द पढना लिखना भी नहीं जानते हों वे स्थापत्यकला के बारे में सोच भी सकते हो? क्या कोई मुसलमान या लुच्चे वामपंथी इतिहासकार मुस्लिम शिल्पशास्त्री का नाम या किताब बता सकता है जो हिन्दू ग्रन्थों की नकल न हो? इस्लाम में संगीत, कला, साहित्य केलिए कोई जगह नहीं है; औरंगजेब ने तो इन्हें गैरइस्लामिक कहकर सम्पूर्ण पाबंदी लगा दी थी.
वास्तविकता यह है कि मुसलमान पूरी उम्र हिंसा, लूटपाट, गैरमुस्लिमों का नरसंहार, बलात्कार तथा गैरमुस्लिमों या विरोधी मुस्लिमों का राज्य हडपने में बिता देते थे. उनके पास निर्माण केलिए वक्त ही कहाँ होता था. वे हिन्दू प्रतीक चिन्हों को यथासम्भव मिटाकर अधिग्रहित हिन्दू इमारतों में ही रहते थे. कालांतर में दरबारी चाटुकार जो मुसलमान जिन इमारतों का जबरदस्ती अधिग्रहण करते थे उन्ही के द्वारा बनबाया हुआ घोषित कर देते थे. अलाउद्दीन, अकबर या शाहजहाँ का कोई भी दरबारी इतिहासकार आज जिन्हें वामपंथी उनके द्वारा बनी इमारतें कहते है उनके बारे में कुछ नहीं लिखा है क्योंकि वे ऐसा करते तो झूठ फ़ैल जाता. इसलिए परवर्ती चाटुकार उन इमारतों को इसका उसका बना हुआ बताने लगते थे और वही काम आज वामपंथी इतिहास्यकार कर रहे हैं.
भारत के उन मन्दिरों, मठों, पाठशालाओं और भवनों का सचित्र वर्णन निचे के लिंक पर उपलब्ध है जो अब मस्जिद और मुस्लिम इमारतें कही जाती है.
आधार: वैदिक विश्वराष्ट्र का इतिहास, लेखक पी एन ओक
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