हिन्दू इमारतें
मुझे महान राष्ट्रवादी इतिहासकार स्वर्गीय पुरुषोत्तम नागेश ओक से पत्राचार का अवसर प्राप्त हुआ था. मैं जब मुंबई में था तो उनके भारतीय इतिहास शोध संस्थान का सदस्य भी रहा हूँ. बाबरी मस्जिद तोड़े जाने पर जब मैंने उनसे पूछा था कि आपकी क्या राय है तो उन्होंने ॐ को ७८६ को उल्टा लिखकर समझाते हुए कहा था कि आक्रमणकारी कभी निर्माता नहीं थे. वे हिन्दू इमारतों का केवल स्वरूप चेंज कर देते थे जैसे उन्होंने ॐ को ७८६ (अरबी में उल्टा लिखा जाता है) कर दिया था. उन्होंने कहा था जिस ढांचे को तोड़ा गया वो वास्तव में श्रीराम मन्दिर ही था केवल उसका स्वरूप चेंज कर बाबरी मस्जिद बना दिया गया था.
अस्तु, मैं मन्दिर पाठशाला तोड़कर बनाये गये कई मस्जिदों मकबरों आदि का भ्रमण कर उनकी बातों की सत्यता जानने की कोशिश की. उनके लिखे किताबों को लेकर मैं दिल्ली आगरा में सबसे ज्यादा भटका और छान बिन किया और पाया की कम से कम ९०% मामलों में उनके तर्क और प्रमाण सही थे. उन्होंने कुछ हिन्दू इमारतों/मन्दिरों/पाठशालाओं जो अब मुस्लिम इमारत/मस्जिद कहा जाता है का विस्तार से वर्णन अपनी पुस्तकों में किया है. उनमे से प्रमुख हैं:
१. काशी विश्वनाथ उर्फ़ ज्ञानवापी मन्दिर, काशी-अब ज्ञानवापी मस्जिद
२. श्रीकृष्ण जन्मभूमि, मथुरा-अब ईदगाह मस्जिद
३. अनंगपाल तोमर का लाल कोट, दिल्ली-अब शाहजहाँ का लाल किला
वामपंथी इतिहास्यकार कहते हैं अनंगपाल तोमर द्वारा बनाया गया लाल कोट मिहिरपुर में था और फिर मिहिरपुर स्थित विष्णुध्वज और उस परिसर के मन्दिरों को कुतुबमीनार और मुसलमानों द्वारा निर्मित मस्जिद घोषित कर देते हैं. विस्तार से जानने केलिए पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक पढ़ें दिल्ली का लालकिला लाल कोट है.
४. वराहमिहिर का वेधशाला विष्णुध्वज-अब कुतुबमीनार
तथाकथित कुतुबमीनार और अलाई दरवाजा, अलाईमस्जिद वास्तव में विष्णुमन्दिर परिसर का हिस्सा है. अलाईमस्जिद वास्तव में विष्णुमन्दिर का खंडहर है जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. यहाँ शेषशय्या पर विराजमान भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति थी. कुतुबमीनार जो वास्तव में विष्णुस्तम्भ या ध्रुव स्तम्भ है वो एक सरोवर के बिच स्थित था जो कमलनाभ का प्रतीक था. स्तम्भ के उपर कमलपुष्प पर ब्रह्मा जी विराजमान थे जिसे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया. मन्दिर से स्तम्भ तक जाने केलिए पूल जैसा रास्ता बना था. खगोलशास्त्री वराहमिहिर इस स्तम्भ का उपयोग वेधशाला के रूप में करते थे. यहाँ २७ मन्दिर २७ नक्षत्र का प्रतीक थे. वराहमिहिर के नाम पर ही उस एरिया का नाम आज भी महरौली है.
ब्रिटिश सर्वेक्षक जोसेफ बेगलर ने अपने सर्वेक्षण रिपोर्ट में पूरे कुतुबमीनार परिसर को हिन्दू ईमारत न सिर्फ घोषित किया है बल्कि उसे साबित भी किया है पर दुर्भाग्य से भारत सरकार, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया और वामपंथी इतिहास्याकर उसे जबरन मुसलमानों का घोषित कर रखा है. जोसेफ बेगलर की रिपोर्ट Archaeological Survey of India; Report for the Year 1871-72
Delhi, Agra, Volume 4, by J. D. Beglar and A. C. L. Carlleyle की किताब में उपलब्ध है जिसे आप निचे के लिंक पर डाउनलोड कर सकते हैं, हालाँकि मुफ्त PDF पूरा नहीं है, बेहतर है खरीदकर पढ़ें.
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यह विशाल मन्दिर संभवतः चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने बनबाया था क्योंकि यहाँ पर जो लौहस्तम्भ है वो चन्द्रगुप्त का ही है ऐसा उत्खनन से प्राप्त शिलालेख से भी पता चलता है. इतिहासकार पी एन ओक ने लिखा है ऐसा ही शेषशायी भगवान विष्णु का मूर्ति और मन्दिर अरब के मक्का, रोम के वेटिकन और इंग्लैण्ड में भी था. स्पेन के म्यूजियम में आज भी शेषशायी भगवान विष्णु की मूर्ति रखा हुआ है.
५. हिन्दू मन्दिर-अब निजामुद्दीन दरगाह
निजामुद्दीन दरगाह मुस्लिम आक्रमणों में क्षतिग्रस्त एक प्राचीन मन्दिर है. इस दरगाह के चारों ओर अगणित मात्रा में अन्य मंडप, प्राचीरें, दुर्ग की दीवार के उभड़े हुए भाग, स्तम्भ, स्तम्भपीठें अभी भी देखी जा सकती है. ये वस्तुएं सिद्ध करती है कि यह किसी समय समृद्ध नगरी थी जो पदाक्रांत हुई और विजित हुई. ऐसे विध्वंस किये क्षेत्रों में मुस्लिम फकीर जा बसते थे. मृत्यु पश्चात उन्हें वहीं दफना दिया जाता था जहाँ वे रहते थे-इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक, भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें
६. हिन्दू राजप्रासाद-अब हुमायूँ का मकबरा
हुमायूँ का का मकबरा उपर वर्णित विशाल नगरी का अंश था. यह उस नगरी का केन्द्रीय राजप्रसाद था. हुमायूँ इसी अधिगृहित भवन में रहता था. पुरानी किला में जब शेर-मंडल की सीढियों से गिरा तो उसे यही लाया गया था और यहीं उसकी मृत्यु हुई थी. इसलिए उसे यहीं दफना दिया गया.
कनिंघम ने इसे जानबूझकर हुमायूँ का मकबरा कह रखा है जबकि वह वास्तव में लक्ष्मी का मन्दिर था. उस इमारत के केन्द्रीय कक्ष में G.Le.Bon नामक फ्रेंच व्यक्ति ने सन १८५२ के लगभग संगमरमर के बने विष्णु के चरण बने हुए देखे. उन्होंने अपने ग्रन्थ The World of Ancient India में विष्णु चरणों का चित्र पृष्ठ ३२७ पर प्रकाशित किया है. कनिंघम ने विष्णु चिन्ह उखाड़कर वहां हुमायूँ का नकली कब्र बना दिया है. हुमायूँ दिल्ली में दफनाया ही नहीं गया है क्योंकि अबुल फजल के अनुसार हुमायूँ की कब्र सरहिंद में है तथा फरिश्ता के अनुसार हुमायूँ आगरा में दफनाया गया.
इस इमारत की दीवारों पर अनेक स्थानों पर वैदिक शक्ति चक्र बना हुआ है. इस शक्तिचक्र के मध्य में कमल चक्र बना हुआ है. (भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें और वैदिक विश्वराष्ट्र का इतिहास भाग-४)
७. राजपूती भवन, दिल्ली-अब सफदर जंग का मकबरा
यह भवन पूरी तरह राजस्थान की राजपूती शैली में बना है. यह इमारत सुरक्षा-प्राचीर से घिरी हुई है जिसके किनारे पर बुर्ज और बीच बीच में पहरे की मीनारें हैं. अवध का प्रधानमन्त्री को अवध से अपमानित कर निकाल दिया गया था, वह बेरोजगार था. फिर उसके लिए इतना भव्य मकबरा किसने बनाया जबकि उसके निवास स्थान का कोई अता पता नहीं है? (भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें-पुरुषोत्तम नागेश ओक)
८. हिन्दू राजप्रासाद-अब फिरोजशाह कोटला
फिरोज शाह कई मूर्तिपूजकों को जिन्दा जला देने केलिए कुख्यात है. फिर धर्मोपदेशवाला हिन्दुओं का अशोक स्तम्भ वह क्यों लगाता? दरअसल फिरोजशाह ने इस स्तम्भ को उखाड़ फेंकने का यत्न किया था यह स्तम्भ के टूटे सिर से स्पष्ट है पर उखाड़ नहीं पाया क्योंकि इससे महल ही नष्ट हो जाता. सम्भव है यह महल अशोककालीन हो और इसे स्वयं अशोक ने बनबाया हो- भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें-पुरुषोत्तम नागेश ओक
९. राजपूती भवन-अब लोधी का मकबरा
लोधी का मकबरा राजपूती भवन है जिसे उसकी मृत्यु के बाद वहां दफन किया गया- भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें-पुरुषोत्तम नागेश ओक
१०. राजपूती मंडप-रोशन आरा का मकबरा
इस ईमारत की पूरी रचना शैली हिन्दुओं वाली है. भला हिन्दू विरोधी औरंगजेब हिन्दू शैली वाली मकबरा क्यों बनाएगा. रोशनआरा का मकबरा एक राजपूती मंडप है जो मकबरे में बदल दिया गया है-भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें-पुरुषोत्तम नागेश ओक
११. तेजो महालय, आगरा- अब ताज महल
ताजमहल वास्तव में तेजोमहालय है. इसका निर्माण आगरा मथुरा का राजा परमर्दिनदेव ने लगभग ११५५ ईस्वी में कराया था. शाहजहाँ के दरबारी इतिहासकार अब्दुल हामिद लाहौरी की पुस्तक बादशाहनामा के खंड-१ के पृष्ठ ४०३ से पता चलता है कि यह भवन उस समय मानसिंह भवन कहा जाता था और शाहजहाँ ने उसे राजा मानसिहं के पौत्र जयसिंह से अधिगृहित किया था. (पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक ताज महल मन्दिर भवन है आदि)
१२. बादलगढ़ का राजपूती किला, आगरा-अब अकबर का किला
यह एक प्राचीन राजपूती किला है जो बादलगढ़ के किला के नाम से आज भी जाना जाता है. पर वामपंथी इतिहासकार झूठ मूठ का बादलगढ़ के किला को नष्ट हुआ बताकर इसके पुनर्निर्माण का श्रेय अकबर को देते हैं. विस्तार से जानने केलिए पढ़ें पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक आगरा का किला हिन्दू भवन है
१३. फतेहपुर सिकड़ी का राजपूती राजप्रासाद-अब अकबर का महल
यह सीकड़ राजपूतों का भवन है. यह पूरी तरह हिन्दू मन्दिर और जैन मन्दिर शैली में बना है. विस्तार से जानने केलिए पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक फतेहपुर सिकड़ी हिन्दू भवन है पढ़ें या खुद जाकर देखें. नंगी आखों से भी यह पूरा का पूरा हिन्दू भवन, मन्दिर ही दिखता है.
१४. हिन्दुओं का इलाहाबाद का किला-अब अकबर का किला
अकबर से शताब्दियों पूर्व इलाहबाद का किला विद्यमान था. किले के भीतर अशोक स्तम्भ, पतालेश्वर मन्दिर और अक्षय वट का अस्तित्व भी प्रमाणित करता है कि यह किला अत्यंत प्राचीन है. सम्राट हर्षवर्द्धन संगम तट पर दान करने केलिए जब आते थे तो वे इसी किले में ठहरते थे. संगम तट पर स्नान करने केलिए बहुत विस्तृत नदी घाट बना हुआ था जिसे अकबर ने तुड़वा दिया था क्योंकि यहाँ वर्ष भर हजारों धर्म-प्रेमी भक्तों, यात्रियों का आना जाना लगा रहता था जिससे अकबर को खतरा महसूस होता था. शाहजहाँ के स्मृतिग्रंथों में भी दावा किया गया है कि उसने इलाहाबाद के ४८ हिन्दू मन्दिरों को नष्ट किया था- भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें-पुरुषोत्तम नागेश ओक
१५. भद्रकाली मन्दिर, कर्णावती-अब जामा मस्जिद अहमदाबाद
जामा मस्जिद नाम से पुकारी जाने वाली अहमदाबाद की प्रमुख मस्जिद पुरातन भद्रकाली मन्दिर था. वही नगर की अराध्य देवी का स्थान था. इस मन्दिर का एक बड़ा भाग अब कब्रस्तान के रूप में उपयोग में लाया गया है. संगतराशी से पुष्प, जंजीर, घंटियाँ और गवाक्षों जैसे अनेक हिन्दू लक्षण स्पष्ट दिखाई देते हैं. देवालय के दो आयताकार चोटियों में से एक को बिलकुल उड़ा दिया गया है जैसा की उन्मत्त मुस्लिम विजेताओं द्वारा नगर में प्रथम बार प्रविष्ट होने के अवसर पर ही हो सकता था-भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें, पुरुषोत्तम नागेश ओक
१६. रूद्र महालय मन्दिर, सिद्धपुर, गुजरात-अब जामी मस्जिद
सन १४१४ में गुजरात के सुल्तान अहमदशाह ने अपने राज्य भर के हिन्दू मन्दिरों को नष्ट करने केलिए एक अधिकारी नियुक्त किया. उसने इस कार्य को अत्यंत सफलतापुर्वक सम्पन्न किया. अगले वर्ष, सुल्तान स्वयं सिद्धपुर गया और सिद्धराज के सुप्रसिद्ध रूद्र-महालय मन्दिर को उसने तोड़ा और फिर इसको मस्जिद में बदल दिया…कुख्यात नृशंश अत्याचारी शाह महमूद वर्घरा का शासनकाल अभी प्रारम्भ होना शेष था. (अशोक कुमार मजुमदार, कारवां पत्रिका, अगस्त-१९५९)
१७. दिल्ली का सबसे बड़ा हिन्दू मन्दिर-अब जामा मस्जिद
पुराणी दिल्ली स्थित जमा-मस्जिद भी अपहृत हिन्दू मन्दिर है. इब्न बतूता, तैमुरलंग आदि मुसलमानों ने ही साफ साफ लिखा है कि वह मन्दिर था- भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें, पुरुषोत्तम नागेश ओक
१८. वाग्देवी का मन्दिर धार-अब कमालुद्दौला मस्जिद
इस मन्दिर की स्थापना परमार क्षत्रियों में महान राजा भोज ने १०३४ में करवाया था जो विद्वान, संगीतज्ञ, साहित्यकार, कवि आदि गुणों से सम्पन्न थे. उनके लिखे कई ग्रन्थ अभी भी उपलब्ध हैं. वे माँ सरस्वती के परमभक्त थे. उन्होंने ही अपनी राजधानी धार में वाग्देवी का मन्दिर स्थापित किया था.
कुछ वर्ष पूर्व जब इस तथाकथित मस्जिद का कुछ अंश उखड़कर निचे गिरा तो उसके प्रस्तर फलक पर संस्कृत नाटक उत्कीर्ण दिखाई पड़े. अब यह सत्य प्रस्थापित हो चूका है कि सरस्वती कंठाभरण नामक स्मारक संस्कृत साहित्य के अनूठे पुस्तकालय के रूप में था. इस मन्दिर में स्थापित वाग्देवी की पूर्ति ब्रिटिश संग्रहालय में रखा है.
१९. राजपूती महल-अब अकबर का मकबरा
इतिहासकारों का कहना है कि अकबर के यहाँ दफनाये जाने से पूर्व यह सिकन्दर लोधी का राजमहल था. किन्तु इसे सिकन्दर लोधी ने भी नहीं बनबाया था, यह भी अधिगृहित एक राजपूती भवन था. विंसेट स्मिथ का कहना है कि अकबर के अंतिम संस्कार अत्यंत गोपनीय तथा अनवहित रूप में किये गये थे. जिससे सिद्ध होता है कि उसको वहीँ दफना दिया गया था जहाँ उसकी बीमारी के बाद उसके प्राण निकले थे-पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक भारतीय इतिहास की भयंकर भूलें
इसके अतिरिक्त:
२०. इन्द्रनारायण मन्दिर-अब देवल मस्जिद
इस मन्दिर का निर्माण राष्ट्रकूट राजा इंद्र ने १० वीं शताब्ती में किया था जिसे १४ वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन तुगलक में तोड़कर मस्जिद बना दिया था. वामपंथी इतिहास्यकार बेशर्मी से इसे हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य का बेजोड़ नमूना बताते हैं.
२१. बिंदु माधव मन्दिर, वाराणसी-अब आलमगीर मस्जिद
२२. अराथाली मन्दिर, केरल-अब चेरमन जूमा
२३. आदिनाथ मन्दिर, मालदा-अब अदीना मस्जिद
पश्चिम बंगाल के पांडुआ में स्थित यह मन्दिर शिव मन्दिर था जिसे सिकन्दर शाह ने १४ वीं शताब्दी में तोड़कर मस्जिद बना दिया.
२४. सरस्वती मन्दिर, अजमेर-अब अढाई दिन का झोपड़ा
इस खंडहरनुमा इमारत में ७ मेहराब और ७० खंबे बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है. यहां पहले बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय था. इसका नाम अढ़ाई दिन का झोपड़ा इसलिए रखा गया है क्योंकि पहले परिसर के तीन मंदिरों को ढाई दिन के भीतर मस्जिद के रूप में बदल दिया गया था. तराई के दूसरे युद्ध (1192ई.) के बाद मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराकर विजेता के रूप में अजमेर से गुजरा तो वह यहां मंदिर से इतना भयभीत हुआ कि उसने उसे तुरंत नष्ट करके उसके स्थान पर मस्जिद बनाने का आदेश उसने अपने गुलाम कुतुबुद्दीन को दिया और सारा काम 60 घंटे में पूरा करने का आदेश दिया ताकि लौटते समय वह नई मस्जिद में नमाज अदा कर सके.
२५. काली मन्दिर, श्रीनगर-अब खानकाह ए मौला
२६. विजय सूर्य मन्दिर, विदिशा-अब बीजामंडल मस्जिद
२७. अटाला देवी मन्दिर, जौनपुर-अब अटाला मस्जिद
२८. शिव मन्दिर, फतेहपुर सीकरी-अब सलीम चिश्ती का मकबरा
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक ने इसे सीकड़ राजपूतों के परिवार केलिए निर्मित शिव मन्दिर कहा है
२९. लक्ष्मी मन्दिर, हैदराबाद-अब चारमिनार
३०. त्रिवेणी का विष्णु मन्दिर-हुगली, बंगाल-अब जफर खान गाजी का मस्जिद और मकबरा
त्रिवेणी हूगली का विष्णु मन्दिर जो अब जफर खान गाजी मस्जिद और मकबरा कहा जाता है का पूरा इतिहास निचे लिंक पर पढ़ सकते हैं:
उपर्युक्त तो सिर्फ कुछ चर्चित उदहारण हैं. वास्तविकता यह है कि ऐसे हजारों मन्दिर, मठ, पाठशाला आदि आज मस्जिद, मकबरा, मदरसा बना हुआ है जिसे आपको शोध करना है और इस सूचि को आगे बढ़ाना है तथा उसे जानकारी केलिए सभी लोगों तक पहुंचाना है.
इसके अतिरिक्त पुस्तक “Hindu Temple: What happened to Them” नामक पुस्तक जिसे सीताराम गोएल, अरुण शौरी आदि ने मिलकर लिखा है उसके पहले खंड में ऐसे २००० मस्जिदों को चिन्हित किया गया है जिन्हें हिन्दू मन्दिरों को तोड़कर बनाया गया था. यह भी केवल कुछ ही अपहृत मन्दिरों की सूचि है. इनमे पाकिस्तान और बांग्लादेश के मन्दिर या अन्य इमारतें जो अब मुसलमानों के कब्जे में है शामिल नहीं है.
बेहतर तो यह होता कि हिन्दुस्थान की आजादी के बाद भारत सरकार हिन्दू, बौद्ध, जैन इमारतों, मन्दिरों, पाठशालाओं आदि को भी मुक्त कर उन्हें हिन्दू, बौद्ध, जैन जनता को सौंप देती परन्तु मौलाना जवाहरलाल नेहरु जैसे हिन्दू विरोधी और मुस्लिम परस्त के हाथों में सत्ता चले जाने के कारण ऐसा नहीं हो सका. हिन्दुओं की अतिसहिष्णुता ही हिन्दुओं की कमजोरी रही है. हिन्दू जितना शांतिप्रिय बनने की कोशिश किये उन्हें उतना ही अधिक उदंडता और प्रहार का सामना करना पड़ा है. अतः हिन्दुओं, बौद्धों, जैनों को अतिसहिष्णुता और निष्क्रियता का त्याग कर अपने मन्दिरों, मठों और पाठशालाओं की मुक्ति केलिए लोकतान्त्रिक संघर्ष का मार्ग अपनाना चाहिए.
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