आधुनिक भारत, मध्यकालीन भारत

राजा भोज के वंशज कुछ परमार क्षत्रिय दलित कैसे बन गए?

parmar
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फेसबुक के एक पोस्ट पर जब मैंने एक “मिस्टर परमार” को खुद को मूल निवासी बताते हुए समस्त हिंदुओं और मुझे गाली देते देखा तो दंग रह गया. मैं स्तम्भित रह गया की भारत के गौरवशाली क्षत्रिय वंशों में से एक परमार (शासन: ८०० ईस्वी से १३०५ ईस्वी) जिसमे दिग्दिगंत विजेता वाक्पति मुंज जैसा सम्राट पैदा हुआ हो जो पश्चिमी चालुक्यों के शासक तैलप द्वितीय जैसे दक्षिण के विजेता जिसने महान चोलों को भी परास्त किया था को एक दो बार नहीं पूरे छः बार पराजित किया हो, जिसके पूर्वज राजा भोज जैसे महान उदार, प्रजावत्सल, विद्वान, कई ग्रंथों के रचयिता और कवि जिन्होंने धार नगरी की स्थापना की और वहाँ विश्व प्रसिद्द माँ सरस्वती की भोजशाला मंदिर की स्थापना की थी, जिस राजा भोज को पूरा भारत आदर और सम्मान की दृष्टि से आज भी देखता हो.

वाग्देवी की मूर्ति, भोजशाला, धार
राजा भोज द्वारा धार के भोजशाला मन्दिर में स्थापित वाग्देवी की मूर्ति, अब ब्रिटिश म्यूजियम में

उस महान परमारों के वंशज खुद को दलित और मूल निवासी बताकर अपने ही भाई बन्धु हिंदुओं को गाली दे रहे थे. हिंदू खुद को भारत के मूल निवासी कहें यह तो ठीक है परन्तु मैं अचम्भित था कि ये महान राजपूत वंश आज दलित कैसे बन गया!

मैंने उपर्युक्त संदर्भ का हवाला मिस्टर परमार को दिया और आशंका व्यक्त की कि उसके जैसे नीच सोच वाले और मुर्ख संततियों के कारण ही शायद महान परमार वंश आज पतित होकर दलित बनने को बाध्य हो गया होगा. मेरी बात पर वो अचम्भित हो गया. उसे शायद पता ही नहीं था की परमार भारत के गौरवशाली राजपूत वंशों में से एक थे और वह उस महान राजपूत वंश का हिस्सा है जो आज परमार, पोवार, पनबर, भोयर पवार, पंवार आदि सरनेम के साथ पूरी ताकत से अपना अस्तित्व बचाए हुए है.

परमार कौन थे

परमार
परमारों का चिन्ह

आइये जानते हैं परमार कौन थे. परमारों का इतिहास पदमगुप्त रचित नवसहसांक चरित और भविष्य पुराण में मिलता है. परमार अग्नि से उत्पन्न चार राजपूत वंश-चौहान, सोलंकी, गुर्जर-प्रतिहार और परमार में से एक है. भविष्य पुराण के अनुसार जब विश्वामित्र ने वशिष्ठ मुनि का कामधेनु गाय चुरा लिया तो विश्वामित्र मुनि से कामधेनु गाय वापस पाने केलिए वशिष्ठ मुनि ने माउन्ट आबू में यज्ञ किया जिसकी प्रसाद से एक वीर पुरुष का जन्म हुआ जो परमार अर्थात शत्रुहंता कहलाया. उसने कामधेनु गाय वापस लाकर दिया. इनके वंशज ही उपर्युक्त चार राजपूत जातियां थे.

राष्ट्रवादी इतिहासकार भारत के महान सम्राट विक्रमादित्य और उनके प्रपौत्र सम्राट शालिवाहन को परमारों के ही पूर्वज मानते हैं जिनका शासन अर्बस्थान के प्राचीन इतिहास तथा कवियों और भविष्य पुराण के अनुसार अरब के देशों तक फैला था. अर्बस्थान के मक्का मन्दिर का निर्माण संभवतः चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने ही करवाया था. इस बात कि पुष्टि इससे भी होती है कि परमारों की प्रारम्भिक राजधानी उज्जैन में थी जो चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य कि भी राजधानी था. कालान्तर में राजधानी ‘धार’, मध्य प्रदेश में स्थानान्तरित कर ली गई.

मध्यकालीन भारत में राष्ट्रकूटों के समय में उपेन्द्र अथवा कृष्णराजा (८००-८१८ ईस्वी) ने मालवा में स्वतंत्र परमार शासन की नीव रखी जिसमे सियक, वाक्पति मुंज और राजा भोज जैसे महान राजा राज किये जिनकी महानता और शूरता का वर्णन प्रारम्भ में किया गया है. महान साहित्यकार और राष्ट्रवादी इतिहासकार कन्हैयालाल मानिक लाल मुंशी ने अपने कई उपन्यास परमारों के गौरवशाली इतिहास पर लिखी है. १३०५ में मुस्लिम आक्रमणकारी अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर अधिकार कर धार नगरी को नष्ट-भ्रष्ट कर परमार वंश के गौरवशाली शासन का अंत कर दिया.

एक बड़ा प्रश्न

मेरे दिमाग में सवाल यह उठ रहा था कि आखिर वो कौन सी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई की यह महान क्षत्रिय वंश आज दलित बन गयी. विस्तृत खोज बिन करने पर पता चला कि सभी परमार खुद को दलित नहीं कहते हैं.

दरअसल मुसलमानों द्वारा विनाश और अत्याचार से बचने केलिए अधिकांश परमार क्षत्रिय मालवा छोड़कर पलायन कर गये. जो मुसलमानों के पहुँच से बहुत दूर उत्तरप्रदेश, बिहार आदि चले गये वे आज भी गर्व से खुद को परमार क्षत्रिय कहते हैं. जो आस पास जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान आदि चले गये वे सरनेम बदलकर पवार, पोवार, पनबर आदि वैश्य, क्षत्रिय बन गये. पर जो मालवा क्षेत्र या उसके आसपास यानि मध्य प्रदेश, गुजरात आदि में रह गये उनमें से अधिकांश अब दलित बन गये हैं. वैसे परमार भेड़ चराने वाली एक जनजाति भी है पर वह खुद को अभी भी क्षत्रियों के वंशज ही मानते हैं.

कुछ परमार दलित कैसे बन गये

इसमें कोई शक नहीं है कि कुछ परमार क्षत्रिय भी अन्य कई दलित जातियों की तरह इस्लामी शासन और अत्याचार के शिकार हुए हैं जैसे अतीत में महान विद्वानों के रूप में पूजित और लड़ाकू खट्टीक ब्राह्मण जिन्होंने सिकंदर महान की सेना को भी युद्ध में धूल चटा दिया था पर वे मुस्लिम शासन में अपना हिंदू धर्म बचाने केलिए सूअर पालने को विवश हुए और वे ब्राह्मण से दलित बन गए. इसी तरह कई ब्राह्मण और क्षत्रिय जातियां आक्रमणकारी मुसलमानों के शासन में पराजित होकर उनके गुलाम बनकर मलमूत्र उठाने को बाध्य हुए और वे अपना यागोपवित संस्कार त्यागकर भंगी और मेहतर बनने को बाध्य हुए, जैसे चंवरवंशी राजपूत मुगलों केलिए चमड़े का शोधन करने को बाध्य हुए और क्षत्रिय से चमार बन गये आदि.

विस्तृत जानकारी केलिए निचे लिंक पर पढ़ें: दलित जातियां दरिद्र बने क्षत्रिय, ब्राह्मण वैश्य लोग हैं.

डॉ भीमराव रामजी आंबेडकर ने भी अपने ग्रन्थ “शुद्र कौन थे” में लिखा है कि अधिकांश शुद्र क्षत्रियों के वंशज हैं. ऐसे ही सम्भव है कि १३०५ ईस्वी में अलाउदीन खिलजी ने जब परमारों को परास्त कर धार पर अधिकार कर लिया तो जो परमार उनकी तलवार से मरने और मुसलमान बनने से बच गए हों उन महान परमारों को जलील करने केलिए उन्हें कई छोटे कार्य करने को बाध्य कर दिया गया होगा जिसे बाद में इन्होने अपना किस्मत मान लिया होगा.

यह भी हो सकता है मुसलमानों के तलवार से बचने के लिए उन्होंने अपनी पहचान छुपा ली हो. ज्ञातव्य है कि इस्लाम की एक खास विशेषता है कि यह गैरमुस्लिमों के प्रतिष्ठित जातियों और प्रतिष्ठा के प्रतीक चिन्हों, श्रद्धा और एकजुटता का केंद्र मन्दिरों पर हमला करते थे ताकि धर्मान्तरित किये जाने के बाद वे अपने अतीत से कट जाएँ. इसी के तहत परमारों के प्रतिष्ठा और प्रतीक चिन्ह धार को न केवल नष्ट भ्रष्ट कर दिया गया बल्कि परमारों के गौरव का प्रतीक भोजशाला के सरस्वती मंदिर को भी तहस नहस कर दिया गया. मालवा पर मुस्लिम शासन के दौरान परमारों का प्रतिष्ठा स्तम्भ धार के सरस्वती मंदिर को भी मस्जिद के रूप में प्रयोग किया गया.

भोजशाला मन्दिर, धार
राजा भोज द्वारा १०३४ में निर्मित भोजशाला मन्दिर (फोटो साभार)

दरअसल मुस्लिम शासन में महान परमार वंशी राजपूतों को जलील कर उसे मुफलिसी की जिंदगी जीने को विवश किया गया और उनके अत्याचार और धर्मान्तरण से बचने केलिए अन्य राजपूत और ब्राह्मण जातियां जो अब दलित हैं उनकी तरह ये भी अपनी पहचान छुपाकर रहने को बाध्य हुए. आजादी के बात जब अनुसूचित जातियों का चयन हो रहा था तो उसका आधार सिर्फ हिंदुओं में व्याप्त छुआ-छूत नहीं था बल्कि मुस्लिम और ब्रिटिश अत्याचार से पीड़ित, शोषित और वंचित जातियां भी थी जो आर्थिक और समाजिक रूप से पिछड़ी थी और कालांतर में अपने मूल से भटक गयी थी. उनमे कुछ परमार जाति के लोग भी थे.

परमारों को अनुसूचित जाती में रखने का एक कारण और भी हो सकता है कि अंग्रेजी शासन में मुस्लिम अत्यचार के शिकार आर्थिक और सामाजिक रूप से बदहाल परमारों को डेंजिल इब्बेटसन ने “जाति” के रूप में नहीं बल्कि एक “ट्राईब” के रूप में उद्धृत किया था. बस अंग्रेजों के गुलाम नेहरूवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने इसके बाद और कुछ जानने की आवश्यकता ही नहीं समझी होगी और उन्होंने भी इन परमारों को जनजाति घोषित कर अनुसूचित जाती में रख दिया होगा. बची खुची कसर राजनितिक नवबौद्ध, कांग्रेसी-वामपंथी, जिहादी और मिशनरियों के गठजोड़ ने अपने अपने निहित स्वार्थों केलिए पूरा कर दिया और ये बेचारे अपने अतीत की गौरवशाली सच्चाई से अनभिज्ञ इनके षड्यंत्र में फंसकर अपने ही भाई बन्धु हिंदुओं को गाली देने लगे.

षड्यंत्र के शिकार हिन्दू

दरअसल दोष उस बेचारे का नहीं है, दोष सेकुलर षड्यंत्र का है. नेहरुवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने भारत के गौरवशाली इतिहास को भारत के इतिहास से पूरी तरह गायब कर दिया है. लोग आज अपने और अपने पूर्वजों के गौरवशाली इतिहास से वंचित हो मूर्खों की तरह अपने लिए प्रतिष्ठा का स्तम्भ तलाश करते हुए कभी आंबेडकरवादी, कभी नास्तिक और वामपंथी, कभी ईसाई तो कभी मुसलमान बनते हुए भटक रहे हैं.

जानबूझकर भारत के गौरवशाली इतिहास को इतने घिनौने तरीके से लिखा गया है कि कोई उसे पढ़ना नहीं चाहता और जो पढता भी है वामपंथी षड्यंत्र के कारण उसे अतीत से सिर्फ जिल्लत और निराशा ही हाथ लगती है. नेहरूवादी और वामपंथी अपने राजनितिक हितों केलिए यही चाहते भी हैं ताकि हिंदुओं को बरगलाकर अपनी राजनितिक दुकान चला सकें. हम हिंदुओं को जानबूझकर वास्तविक इतिहास और देव वाणी संस्कृत से वंचित किया गया ताकि हम कभी भी असलियत को नहीं जान पायें और इनके षड्यंत्र में फंसकर हिंदू धर्म और गौरवशाली भारत का पतन हो जाये.

हिन्दू दलित कैसे बने

आज जितने भी दलित जातियां हैं उनमे से केवल मुट्ठी भर जातियां ही कभी ब्राह्मणवाद के छूआछूत के शिकार थी और उसका आधार भी उनका निम्न आर्थिक क्रियाकलाप था जैसे मेहतर, भंगी, डोम, चमार आदि. ये चतुर्वर्ण से अलग पांचवे वर्ण में गिनी गयी है जिसका प्रथम उल्लेख नौ वी सदी में पश्चिमोत्तर भारत में आया है जो आज अफगानिस्तान पाकिस्तान के नाम से जाना जाता है. सम्भव है यहाँ भी इस शब्द का प्रयोग मुस्लिम अत्याचार और दुराचार के शिकार पतित हिन्दुओं के लिए किया गया हो. भारतीय ग्रन्थों में दलित जैसी किसी जातियों का उल्लेख नहीं है.

उपर्युक्त निम्न आर्थिक कर्म करनेवालों के लिए दलित शब्द का प्रथम प्रयोग उन्नीसवी सदी में महात्मा ज्योतिबा फुले ने किया था. आज जिन्हें दलित कहकर बरगलाया जाता है उनमे उपर्युक्त चंद वास्तविक दलित जातियों के अतिरिक्त अधिकांश वे जातियां है जो अत्याचारी, बलात्कारी और हिंसक मुस्लिम शासन में इस्लामी अत्याचार से बचने या इस्लामी अत्याचार, शोषण, उत्पीडन का शिकार होकर सामाजिक आर्थिक रूप से पिछड गए. पर मुस्लिम तुष्टिकरण में मग्न नेहरूवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने ब्राह्मणवाद के किचित त्रुटियों का सहारा लेकर छल पूर्वक इन सबकी दुखद स्थिति के लिए जिम्मेदार अत्याचारी मुस्लिम शासन और लुटेरी ब्रिटिश शासन की जगह सारा दोष धुर्ततापुर्वक ब्राह्मणों और राजपूतों के माथे मढ़ दिया.

उपसंहार

शतपथ ब्राह्मण और बृहदारण्यक जैसे चंद ब्राह्मण ग्रंथों में उद्धृत एक दो घटना का सहारा लेकर भारतीय संस्कृति को ही बदनाम किया गया. एक दो मुर्ख ब्राह्मणों की मूर्खता सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व ठीक उसी प्रकार नहीं कर सकते जैसे सउदी अरब के शरिया कानून के अध्यक्ष जब यह फतवा जारी करता है कि मुसलमानों के पास खाने को अन्न नहीं हो तो अपने बीबी को मारकर उसका मांस खाना हलाल है या बीबी के मर जाने के छः घंटे बाद तक उसके साथ संभोग करना हलाल है या मुस्लिम औरतों का बैंगन, केला, ककड़ी छूना हराम है आदि का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं है. मनुस्मृति के साथ भी नेहरूवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने ऐसा ही छलकर उसे बदनाम और हिंदुओं को आपस में लड़वाने का काम किया है.  

हमें मुस्लिम आक्रमणकारियों के अत्याचार, शोषण, उत्पीडन और हिंसा तथा ब्रिटिश साम्राज्य के अनंत लूट के कारण दलित बनने को बाध्य हुए हिंदुओं को उनके सच्चे इतिहास से परिचित करवाकर उनके दिल और दिमाग में फिर से आत्मसम्मान और गौरव की भाव जगाना होगा ताकि वे सम्मान के साथ सिर उठाकर जियें. उन्हें राष्ट्र और समाज की मुख्यधारा में शामिल करना होगा.

Disclaimer: इस लेख में ऐतिहासिक तथ्यों के अतिरिक्त व्यक्त विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं.

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11 thoughts on “राजा भोज के वंशज कुछ परमार क्षत्रिय दलित कैसे बन गए?

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  4. राजा भोज परमार(1005-1060) द्वारा लिखित पुस्तक सरस्वती कंठाभरण’, पढ़ ले उनकी लिखी बुक चेक कर लेना गूगल पर

    अब ये मत कहना की अग्निकुण्ड से कोई क्षेत्र निकला राजस्थान या गुजरात था

    श्रीः ॥ परमारवंश्यो भोजदेवः

    वासिष्ठ: सुकृतोद्भवोऽध्वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोङ्गयो भूपालः परमार इत्यधिपतिः सप्ताधिकाञ्चेर्भुवः । अद्याप्यद्भुतहर्षगड्दगिरो गायन्ति यस्योट विश्वामित्रजयोजितस्य भुजयोर्विस्फूर्जितं गुर्जरा:

    हिंदी में अनुवाद
    वशिष्ठ की स्त्री अरुंधति रोने लगी। मुनि उसकी दशा देखकर क्रोधित हो गए और मंत्र का पाठ करने के बाद, उन्होंने आहुति देकर अपने अग्नि कुंड से एक वीर उत्पन्न किया। वह वीर शत्रुओं को नष्ट करके वसिष्ठ की गाय को वापस ले आया। उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बनाया। माउंट आबू के गुर्जर, वसिष्ठ के अग्नि कुंड से पैदा हुए और विश्वामित्र को जीतकर, आज भी परमार नाम के राजा की महिमा को याद करते हैं।

    आबू पर्वत पर चार वंश अग्निकुंड से पैदा हुए,प्रतिहार,परमार,चौहान, चालुक्य वंश अग्नि से पैदा हुए और चारो वंश गुर्जर थे परमार भोज राजा ने लिखा है

    9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के
    परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।

    इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज  थे।

    लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

  5. Kisi ko bhi rajput bna dete ho khud bhoj parmar ki book padh lo 👇

    राजा भोज परमार(1005-1060) द्वारा लिखित पुस्तक सरस्वती कंठाभरण’, पढ़ ले उनकी लिखी बुक चेक कर लेना गूगल पर

    श्रीः ॥ परमारवंश्यो भोजदेवः

    वासिष्ठ: सुकृतोद्भवोऽध्वरशतैरस्त्यग्निकुण्डोङ्गयो भूपालः परमार इत्यधिपतिः सप्ताधिकाञ्चेर्भुवः । अद्याप्यद्भुतहर्षगड्दगिरो गायन्ति यस्योट विश्वामित्रजयोजितस्य भुजयोर्विस्फूर्जितं गुर्जरा:

    हिंदी में अनुवाद
    वशिष्ठ की स्त्री अरुंधति रोने लगी। मुनि उसकी दशा देखकर क्रोधित हो गए और मंत्र का पाठ करने के बाद, उन्होंने आहुति देकर अपने अग्नि कुंड से एक वीर उत्पन्न किया। वह वीर शत्रुओं को नष्ट करके वसिष्ठ की गाय को वापस ले आया। उसका नाम परमार रखा और उसे एक छत्र देकर राजा बनाया। माउंट आबू के गुर्जर, वसिष्ठ के अग्नि कुंड से पैदा हुए और विश्वामित्र को जीतकर, आज भी परमार नाम के राजा की महिमा को याद करते हैं।

    आबू पर्वत पर चार वंश अग्निकुंड से पैदा हुए,प्रतिहार,परमार,चौहान, चालुक्य वंश अग्नि से पैदा हुए और चारो वंश गुर्जर थे परमार भोज राजा ने लिखा है

    9वीं शताब्दी में परमार जगददेव के जैनद शिलालेख में कहा है कि गुर्जरा योद्धाओं की पत्नियों ने अपनी सैन्य जीत के
    परिणामस्वरूप अर्बुडा की गुफाओं में आँसू बहाए।

    इतिहासकार सर एथेलस्टेन बैनेस ने गुर्जर को सिसोदियास, चौहान, परमार, परिहार, चालुक्य और तोमर के पूर्वज  थे।

    लेखक के एम मुंशी ने कहा परमार,तोमर चौहान और सोलंकी शाही गुज्जर वंश के थे।

  6. I am also dalit parmar.but our grandman many time told us about our history that we belonge to parmar kshatriya rajvansh.now we check our manuscripts so there is a many proof about our dinesty. Jay hind, vande matram.

    1. me MP betul se hu mere purvaj dhara nagari se aaye the jo tapti nadi ke udagam chhetro ke aas paas bas gaye hame bhoyar parmar/panwar kahate h

  7. We Parmars are in Punjab.
    Our villages are few.
    Majority of Punjab Rajputs adopted Islam and now are in Pakistan

    We are financially sound than other communities.
    Govt of Punjab put us in b c catagery.
    After struggle we are in general catagery one again

    I have gone through these casts.
    One thing is clear
    Those who married in other cast they loose Rajput status

    Those who adopted other occupation were degraded

    Those who adopted careva were degraded.

    Careva means if a Rajput lady became widow and marry to some brother of his late husband

    Sati was a terrible custom some women might have escaped this

    Result is that all Parmars are of same blood but due to circumstances they are in different catagories.

    1. parmar rajput nhi h ham sirf parmar h

      kahi per hame gujjar kaha dete h kahi per hame jaat kaha dete h
      kahi per dalit kaha dete h kahi par rajput kaha dete h

      gujjar jese ek alg jaati h vese parmar bhi ek alg jaati h
      jiski kai saari upjaatiya h .

      jese me ek bhoyar parmar hu . vese hi ajit dhobal ,hariom panwar, renuka panwar , utrakhand ke kuchh purv cm ,sharad pawar , jaha pr jaao vaha alg prmar mil jate h
      kyoki jab dhara nagari se hamara palayan chalu huaa tb jo ek gaoo hota tha uske sare log ek kshetr me chale gaye 72 gaoo parmaro ke the jo alg alg jagah par jakar base h

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