पिछले दो लेखों, मध्य एशिया का वैदिक इतिहास: सावित्री-सत्यवान से बौद्ध राज्यों के उदय तक और मध्य एशिया का वैदिक इतिहास: बौद्ध राज्यों के उदय, विस्तार और तीर्थस्थलों के भ्रमण, से साबित हो गया है कि मध्य एशिया भारत और भारतियों के लिए विलायंत नहीं बल्कि भारतवर्ष का ही हिस्सा था. प्राचीन मद्र, साल्व राज्य और कम्बोज महाजनपद मध्य एशिया में ही था. सावित्री-सत्यवान और नकुल सहदेव के मामा साल्व नरेश शल्य मध्य एशिया के ही थे. उन्ही हिन्दुओं में से कुछ ने परवर्ती काल में बौद्ध धर्म अपनाकर अपने राज्यों को बौद्ध धर्मी राज्य घोषित किया था. बौद्ध धर्म अपनाने और जबरन मुसलमान बनाये जाने से पहले मध्य एशिया के लोग आर्य संस्कृति और धर्म को ही मानने वाले लोग थे.
परन्तु हम भारतियों को अब भारतवर्ष के इस हिस्से का इतिहास नहीं पढ़ाया जाता है. और कुछ बताया भी जाता है तो उन्हें विदेशी और अहिंदू तथा भारत पर आक्रमणकारी के रूप में पढ़ाया जाता है. जब लाखों वर्षों से यहाँ रह रहे हम भारतीय हिन्दुओं को ही वामपंथी, नेहरूवादी इतिहासकार विदेशी और अपने ही देश पर आक्रमणकारी साबित करने में लगे थे तो फिर शक, हूण, कुषाण, पहलव आदि मध्य एशियाई आर्यों को विदेशी और आक्रमणकारी कहें तो आश्चर्य कि क्या बात है.
दरअसल कांग्रेस के पांच मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों के दबाब में षड्यंत्र के तहत लिखे गये भारत के असत्य इतिहास में जानबूझकर भारतवर्ष के उन तमाम हिन्दू, बौद्ध राज्यों के इतिहास पूरी तरह गायब कर दिए गए हैं जिनका अरबों और बाद में तुर्कों ने तलवार के बल पर इस्लामीकरण कर दिया है ताकि भारत के लोग इस कटे, फटे अवशेष भारत को ही भारतवर्ष मान ले और पहले कि तरह सेकुलर, अहिंसक, अतिसहिष्णु और मूर्ख बने रहें. परन्तु इस अवशेष भारत की एकता, अखंडता और सुरक्षा सुनिश्चित करना है तो हमें जन जन तक सत्य इतिहास पहुंचाना ही होगा. मध्य एशिया के इतिहास के इस हिस्से में हम अरबी आक्रमणकारियों द्वारा मध्य एशिया और मध्य पूर्व एशिया के हिन्दू, बौद्ध राज्यों, वहां के हिन्दुओं, बौद्धों और उनके धर्मों के सम्पूर्ण विनाश का इतिहास लिख रहें हैं जो सौ प्रतिशत प्रमाणिक एवं सत्य है क्योंकि यह विवरण प्रमाणिक स्रोतों से ही लिया गया है.
मध्य एशिया पर इस्लामिक आक्रमण
अरब में इस्लाम के उदय के बाद अरबों ने ६७३ ईस्वी से आधुनिक उज्बेकिस्तान के सोगदियाना के बौद्ध राज्यों पर हमला शुरू कर दिया और ७०९-७१२ ईस्वी तक कुतैबाह इब्न मुस्लिम के नेतृत्व में समरकंद, बुखारा और खोराज्म के राज्यों को जीत लिया और इस प्रकार मध्य एशिया इस्लामिक खिलाफत के अंतर्गत आ गया.
फिर अरबों ने तलवार के बल पर यहाँ लोगों का जबरन इस्लाम में धर्मांतरण किया. सभी हिन्दू, बौद्ध, जोराष्ट्र धर्म स्थलों को नष्ट कर दिया गया. यहाँ के लोगों ने इस्लामिक आक्रमणकारियों से मुक्ति पाने केलिए दशकों संघर्ष किया. बुखारा के बौद्ध तो इस्लामिक आतंकियों के भय से चार बार मुसलमान बने और मौका मिलते ही वापस बौद्ध धर्म अपना लेते थे पर नौंवी शताब्दी तक मध्य एशिया के सभी शक, हूण, कुषाण, ग्रीक (यवन), जो मूलतः धर्मान्तरित बौद्ध और हिन्दू (आर्य धर्मी) थे, तलवार के नोक पर मुसलमान बना दिए गये या कत्ल कर दिए गए. अरबों के आक्रमण और अत्याचार के इस लम्बे दौर में मध्य एशिया का अर्थव्यवस्था और भारतीय हिन्दू, बौद्ध संस्कृति पूरी तरह नष्ट हो गया.
खोरासन के अरबी जेनरल कुतैबाह इब्न मुस्लिम ने मध्य एशिया के कई क्षेत्रों पर अधिकार किया जिसमें समरकंद भी था जहाँ उसने कई देवी देवताओं के मूर्तियों को नष्ट किया. [ Phillip K. Hitti, History of The Arabs, Palgrave Macmillan, p. 213]
मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा बहुत से बौद्ध मठों के नष्ट किये जाने के साक्ष्य मिलते हैं परन्तु फिर भी कुछ स्थानों पर बौद्ध धर्म बहुत दिनों तक जीवित रहा. Bertolf Spuler नर्शाखी द्वारा लिखित ऐसे बहुत से उद्धरण रखते हैं और बताते हैं कि कुतैबाह मुस्लिम द्वारा ७१२-१३ में विजय के बाद बुखारा के निवासी जबरन मुसलमान बनाये जाने के बाबजूद चार बार वापस बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गये थे. बौद्ध मठ के स्थान पर वहां मस्जिद बना दिया गया था फिर कुछ बुद्धिष्ट वहां दशवीं शताब्दी तक बचे हुए थे.
इसी तरह बौद्ध धर्म दुसरे कुछ स्थानों पर भी बचे हुए थे जैसे प्राचीन बुखारा, दक्षिणी तुर्किस्तान के सिमिंगन, बामियान और काबुल जहाँ पर्याप्त संख्यां में भारतीय बसे हुए थे. पर यहाँ धार्मिक भेदभाव (गैर मुस्लिमों के साथ), उत्प्रवासन, धर्मांतरण के कारण आगे बढ़ नहीं सका. इसके अतिरिक्त मुसलमानों द्वारा सिल्क व्यापार मार्ग पर अधिकार कर लेने के कारण भी बौद्ध धर्म और बौद्ध मठों का अंत हो गया. [Iran in the Early Islamic Period: Politics, Culture, Administration and Public Life between the Arab and the Seljuk Conquests, 633-1055. Bertold Spuler. p. 207. ]
अरबों ने बल्ख पर विजय प्राप्त की जो बौद्ध धर्म का एक केंद्र था. विजय के बाद बल्ख में इस्लामिक रूढ़िवादियों द्वारा उनका (बौद्धों का) कठोर अपमान किया जाता था. नवा विहार का बौद्ध मठ, जो राष्ट्रीय प्रतिरोध का प्रतीक बन गया था उसे ६६३ ईस्वी में नष्ट कर दिया गया. अरबों ने गैर-मुसलमानों को अपने धर्म का पालन करने की अनुमति दी जब तक उन्होंने जजिया नामक पोल-टैक्स का भुगतान किया. बौद्ध मंदिरों के विनाश के अलावा, पुराने शहर का कुछ हिस्सा अरब विजय के दौरान भी नष्ट हो गया था. इसके साथ ही, कई अन्य विहार भी मध्य एशिया में अरब विजय के बाद सिर्फ एक शताब्दी के भीतर नष्ट कर दिए गये. आठवीं शताब्दी के कोरियाई यात्री हुइचाओ ने अरब शासन के तहत बल्ख में कुछ हीनयानवादियों को रिकॉर्ड किया था पर लगातार विद्रोह के परिणामस्वरूप शहर को ७०५ ईस्वी तक बर्बाद कर दिया गया. (विकिपीडिया)
बौद्ध राज्य खोतान, यारकंद और काशगर पर इस्लामिक आक्रमण
काशगर के पूर्व में बौद्ध नगरों पर इस्लामी हमलों और विजय की शुरुआत तुर्किक कारखानिद सतोक बुगरा खान द्वारा की गई थी जो ९६६ में इस्लाम में परिवर्तित हो गया था. काशगर क्षेत्र के चारों ओर कारखानिद शासनकाल के दौरान बौद्ध धर्म इस्लाम से हार गया [International Dictionary of Historic Places: Asia and Oceania. Taylor & Francis. pp. 457]. फिर इस्लामी काशगर और बौद्ध खोतान के बीच एक लंबा युद्ध हुआ, जो अंततः नये इस्लामिक मुल्क काशगर द्वारा बौद्ध खोतो की विजय में समाप्त हुआ.
शक यारकंद और काशगर के मूल निवासी थे. ये संभवतः क्षत्रिय वंशी थे क्योंकि महाभारत में शकों का उल्लेख लड़ाकू जाति के रूप में हुआ है. भारतीय ग्रंथों में युद्धिष्ठिर केलिए भी युद्धिष्ठिर शक का प्रयोग हुआ है और विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन को भी शालिवाहन शक कहा गया है. बौद्ध बनने से पहले ये आर्य धर्मी हिन्दू थे और भारतीय नाम अर्थात हिन्दू नाम रखते थे. शकों और हूणों के आर्य धर्मी हिन्दू होने का सबसे बड़ा प्रमाण ये है कि शक और हूण भारत में प्रारम्भ से हिन्दू सभ्यता संस्कृति धर्म का ही पालन करते रहे हैं. यहाँ तक कि सम्राज्यवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने तो राजपूतों को इन्ही मध्य एशियाई शकों और हूणों का वंशज घोषित कर रखा है.
Iranic Saka peoples originally inhabited Yarkand and Kashgar in ancient times. The Buddhist Saka Kingdom of Khotan was the only city-state that was not conquered yet by the Turkic Uyghur (Buddhist) and the Turkic Qarakhanid (Muslim) states and its ruling family used Indian names and the population were devout Buddhists….the Karakhanid leader Yusuf Qadir Khan conquered Khotan around 1006. [ James A. Millward (2007), Eurasian Crossroads: A History of Xinjiang. Columbia University Press. pp. 55]
The Taẕkirah १७००–१८४९ के बीच कुछ सूफी मुसलमानों द्वारा लिखा गया ग्रन्थ है. इसमें खोतान, यारकंद और काशगर के बौद्ध राज्यों के विरुद्ध कारखानिद युसूफ कादिर खान के हमले में उसे सहयोग करने केलिए आये चार जेहादी इमामों का वर्णन है जो सम्भवतः इराक से आया था. उस किताब में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा बुद्धिष्टों के भयानक नरसंहार का वीभत्स वर्णन है:
Accounts of the battles waged by the invading Muslims upon the indigenous Buddhists takes up most of the Taẕkirah with descriptions such as “blood flows like the Oxus”, “heads litter the battlefield like stones” being used to describe the murderous battles over the years until the “infidels” were defeated and driven towards Khotan by Yusuf Qadir Khan and the four Imams. [Thum, Rian “Modular History: Identity Maintenance before Uyghur Nationalism” and The Journal of Asian Studies, The Association for Asian Studies. 71 (3): p. 632-633]
वे चारों जिहादी इमाम उस युद्ध में मारे गये थे पर बिडम्बना देखिए जिस खोतान के हिन्दू, बौद्ध शकों को उन्होंने भयानक पैशाचिक विनाश किया, जबरन मुसलमान बनाये जाने के बाद वही हिन्दू, बौद्ध शक या खोत उन चारों को संत मानकर पूजने लगे हैं. बुगरा खान द्वारा खोतान के बौद्धों पर हमले का वर्णन करते हुए इतिहासकार Valerie Hansen लिखते हैं:
Bughra Khan and his son directed endeavors to proselytize Islam among the Turks and engage in military conquests. The Islamic conquest of Khotan led to alarm in the east and Dunhuang’s Cave 17, which contained Khotanese literary works, was closed shut possibly after its caretakers heard that Khotan’s Buddhist buildings were razed by the Muslims, and Khotan had suddenly ceased to be Buddhist. [ Valerie Hansen, The Silk Road: A New History. Oxford University Press. pp. 227–228]
इस युद्ध को जापानी प्रोफेसर तोको मोरियासु ने जिहाद कि संज्ञा दी है. कारखानिद तुर्किक लेखक महमूद अल-काशगिरी तुर्किक भाषा में इस विजय पर एक कविता लिखा है जिसका अंग्रेजी अनुवाद निम्नलिखित है:
We came down on them like a flood,
We went out among their cities,
We tore down the idol-temples,
We shat on the Buddha’s head!
वे आगे लिखते हैं, “Idols of “infidels” were subjected to desecration by being defecated upon by Muslims when the “infidel” country was conquered by the Muslims, according to Muslim tradition.” [Takao Moriyasu (2004). The history of Uighur Manichaeism on the Silk Road: Research on Manichaean sources and their historical background. Otto Harrassowitz Verlag. pp. 207]
भारत के किसी भी इतिहासकारों में यह सत्य लिखने कि क्षमता है? नहीं, क्योंकि झूठ, मक्कारी, मुस्लिम तुष्टिकरण, भारत विरोधी मानसिकता और राजनितिक प्रपंच ही उनका पेशा है. इन्हें किसी भी मानक पर इतिहासकार नहीं कहा जा सकता है.
बौद्ध राज्य उईघुर पर इस्लामिक आक्रमण
बौद्ध राज्य उईघुर जो आज के चीन अधिग्रहित शिनजियांग प्रान्त में था जहाँ के बौद्ध उइगर बौद्ध कहलाते थे उनके राज्य कोचों और तुर्फान को इस्लामिक धार्मिक युद्ध गजवा के द्वारा मुस्लिम चगताई खिज्र ख्वाजा ने जीत लिया. [James A. Millward, Eurasian Crossroads: A History of Xinjiang. Columbia University Press. pp. 69]
उसके बाद चगताई ख्वाजा ने कारा डेल पर हमला किया जहाँ उईगर बौद्धों का ही बौद्ध राज्य था और तलवार के बल पर पूरी आबादी को मुस्लिम बना दिया. और फिर बिडम्बना देखिए, तलवार के नोक पर मुसलमान बनाने के बाद उनके दिमाग में ब्रेनवाश कर यह घुसा दिया गया है कि काफ़िर कालमुख ने तुर्फान में बौद्ध मठ बना दिया था. वे लोग तो सदा से मुसलमान ही थे.
After being converted to Islam, the descendants of the previously Buddhist Uyghurs in Turfan failed to retain memory of their ancestral legacy and falsely believed that the “infidel Kalmuks” (Dzungars) were the ones who built Buddhist monuments in their area. [“The Encyclopaedia of Islam – Hamilton Alexander Rosskeen Gibb, Bernard Lewis, Johannes Hendrik Kramers, Charles Pellat, Joseph Schacht]
दरअसल मुसलमान धर्मान्तरित मुसलमानों के बच्चों का ब्रेनवाश कर अपने ही पूर्वजों के सभ्यता, संस्कृति, धर्म, परम्परा और राष्ट्र के विरोधी बना देते थे. ये उनके राजनीती का हिस्सा था. इसलिए मुसलमान जिन राज्यों पर अधिकार करते थे वहां का पूरा इतिहास, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक साक्ष्य मिटाने के साथ साथ बच्चों का ब्रेनवाश करते थे ताकि जबरन बनाये गये मुसलमानों के बच्चे बाद में किसी मोड़ पर सत्य इतिहास को जानकर विद्रोही न बन जाएँ. आगे भी वे ये करते रहे. यही काम अफगानिस्तान में किया गया. फिर पाकिस्तान, कश्मीर और बांग्लादेश में और अब भारत में भी मुसलमानों का ऐसे ही ब्रेनवाश किया जा रहा है.
शिनजियांग प्रान्त के उईगर बौद्ध ही अब उईगर मुसलमान कहलाते हैं जिन्हें फिर से इन्सान बनाने के नाम पर चीन लाखों कि संख्यां में जेल में बंद कर रखा है और जिनके हाथों से जबरन कुरान छीन लिया है, नमाज, दाढ़ी, टोपी पर प्रतिबन्ध लगा दिया है और कई मस्जिदों को शौचालय बना दिया है.
मुस्लिम इतिहासकारों के किताबों में हिन्दू-बौद्ध राज्यों के विनाश का वर्णन
फुतुहुल बुल्दान के लेखक-अहमद बिन याहिया बिन जाबिर उर्फ़ बिलादुरी ने ६५३ ईस्वी में इब्न समुराह द्वारा सिस्तान पर हमले का वर्णन करते हुए लिखा है “On reaching Dawar, he surrounded the enemy in the mountain of Zur, where there was a famous Hindu temple.” “…Their idol of Zur was of gold, and its eyes were two rubies. The zealous Musalmans cut off its hands and plucked out its eyes, and then remarked to the Marzaban how powerless was his idol…”
समरकंद पर कुतुबैयाह बिन मुस्लिम (७०५-७१५ ईस्वी) के हमले का वर्णन करते हुए लिखा है, “Other authorities say that Kutaibah granted peace for 700,000 dirhams and entertainment for the Moslems for three days. The terms of surrender included also the houses of the idols (बौद्ध मूर्ति) and the fire temples (सूर्य मन्दिर). The idols were thrown out, plundered of their ornaments and burned…”
तारीख ए ताबिरी के लेखक अबू जफर मुहम्मद बिन जरीर अत ताबिरी ने खुरासान (Beykund) पर कुतैबाह बिन मुस्लिम (७०५-७१५ ईस्वी) के हमले का वर्णन करते हुए लिखा है,
“बेकुंड पर (७०६ ईस्वी) कब्जे से उसे अपार धन सम्पदा लूट में मिला जो मुसलमानों को पूरे खुरासान को जीतकर उसके लूट में मिले सम्पदा से भी ज्यादा था. वहां के बेचारे सौदागर व्यापार केलिए विदेशों में थे जब उनके देश पर दुश्मनों द्वारा हमला हुआ. जब वे लौटकर घर आये तो उन्हें उनके घर लुटे हुए और खाली मिले और फिर उन्होंने अपनी कमाई अपने पत्नियों और बच्चों को आक्रमणकारियों से छुड़ाने केलिए दे दिए. उन स्त्रियों से लूटे गये जेवरातों से ही पिघलाने पर १५०००० मस्कल सोना मिला. लूट के सामानों में एक सोने कि मूर्ति भी मिली जो ५०००० मस्कल का था जिनकी दोनों आँखें मोतियों के थे जिनकी चमक और सुन्दरता देखकर कुतैयबाह कि आँखें प्रशंसा और आश्चर्य से चकित हो गया. वे सब खलीफा के सिपहसालार हेजाज के पास भेज दिए गये एक अनुरोध के साथ कि राजमहल के लूट में जो भारी मात्रा में हथियार मिले हैं उन्हें सैनिकों में बाँटने कि अनुमति दे दिया जाये.”
उसने समरकंद पर कुतैबाह बिन मुस्लिम (७०५-७१५ ईस्वी) के हमले का वर्णन करते हुए लिखा है “अंततः युद्ध का मशीन कुतैबाह द्वारा (७१२ ईस्वी) नगर कि सुरक्षा को भंग करने में सफलता मिली और उसके कुछ सबसे जाबांज प्रतिरक्षक कुतैबाह के धनुर्धारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए. अगले दिन युद्ध बंद हो गया जब उन्होंने आत्मसमर्पण का वादा किया. उस अनुरोध को कुतैबाह ने मान लिया और अगले दिन समरकंद के राजकुमार के साथ एक संधि-पत्र तैयार किया गया जिसके तहत समरकंद को दस लाख दिरहम का भुगतान करना था और तिन हजार गुलाम देना था जिसमे यह स्पष्ट रूप से लिखा था कि गुलाम बच्चे, बुड्ढ़े या शारीरिक रूप से अक्षम नहीं होने चाहिए.
उस संधि पत्र में आगे लिखा था कि उनके धार्मिक विभाग के मंत्रियों को उनके मन्दिरों से निष्काषित किया जायेगा और मन्दिरों कि मूर्तियों को नष्टकर जला दिया जायेगा. साथ ही कुतैबाह को नगर के सबसे प्रमुख मन्दिर को मस्जिद बनाने कि अनुमति दी जाये.”
उसने आगे लिखा है, “…Kateibah accordingly set fire to the whole collection with his own hands; it was soon consumed to ashes, and 50,000 meskals of gold and silver, collected from the nails which had been used in the workmanship of the images.”
याकूब बिन लैथ (८७०-८७१ ईस्वी) द्वारा बल्ख और काबुल पर हमले का वर्णन करते हुए उसने लिखा है, “उसने बामियान पर अधिकार कर लिया, जहाँ वह सम्भवतः हेरात के रास्ते पहुंचा था, और फिर बाह्लीक (बल्ख) कि ओर बढ़ा जहाँ उसने नौशाद मन्दिर को नष्ट किया. बल्ख से लौटते हुए उसने काबुल पर हमला किया. पंजीर से लौटते हुए वह अवश्य हिन्दू शाही वंश की राजधानी से गुजरा होगा ताकि वहां के पवित्र मन्दिरों को लूट सके जो कि शाही वंश के शासकों के राज्याभिषेक का प्रतिष्ठित स्थान था, जो इसकी मूर्तिकला की सम्पत्ति से सम्पन्न था…”
उसने आगे लिखा है, “काबुल से लूट का कितना माल संग्रह किया गया इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है. त्वारीख-ए-सिस्तान के अनुसार ५० सोने कि मूर्तियाँ और चांदी मिले थे जबकि मसूदी हाथियों के बारे में लिखा है. जब बगदाद पहुंचा तो बगदाद के लोग हाथियों और मूर्तिपूजकों के भगवान को देखकर अचम्भित रह गये जिसे याकूब द्वारा खलीफा के पास भेज दिया गया और उसने बताया कि वे बहुत मूल्यवान थे.”
(साभार: StephenKnapp.com, मूल किताब Hindu Temples: What Happened to them)
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