ऐतिहासिक कहानियाँ, मध्यकालीन भारत

तैमूर का काल रघुवंशी क्षत्राणी वीरांगना रामप्यारी गुर्जर

ram pyari
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वीरांगना रामप्यारी गुर्जर

तैमूर का नाम लेते ही एक महाक्रूर और भयानक शैतान का चेहरा हमारे सामने आ जाता है जो लाख-लाख हिन्दुओं, बौद्धों, जैनों के सिरों का पहाड़ बनाकर उसके चारों ओर नाचकर खूनी जश्न मनाता था. कहा जाता है कि तैमूर लंगड़ा ने इतनी हत्याएं की थी कि दुनिया की आबादी में 3 फीसदी की कमी आ गई थी. वर्ष 1398 में भारत पर आक्रमण करने वाला तैमूर इतनी बर्बरता फैलायी थी कि उसके वर्णन मात्र से रूह कांप जाती है. लेकिन भारतवर्ष की एक वीरागंना ऐसी थी जिसने युद्ध में न सिर्फ तैमूर लंगड़े को उसी की भाषा में जवाब दिया था बल्कि इस वीरांगना के युद्ध कौशल से डर कर तैमूर लंगड़े को भारत विजय का अभियान छोड़कर भागना पड़ा. उस वीरबाला गुर्जर क्षत्राणी का नाम था रामप्यारी गुर्जर.

बचपन से ही निडर और हठी थी रामप्यारी गुर्जर

श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के वंशज सहारनपुर के गुर्जर परिवार में जन्मी रामप्यारी बचपन से ही निडर और हठी स्वभाव की थी. पुरूषों की वेशभूषा पसंद करने वाली रामप्यारी पहलवान बनना चाहती थी और प्रतिदिन अपनी मां से इस संबंध में सवाल पूछंती थी और नियमित व्यायाम करती थी. युवा होने तक रामप्यारी युद्धकौशल में भी दक्ष हो गई थी. उसकी बुद्धमिता और युद्ध कौशल के चर्चे आस-पास के सभी इलाकों में थे.

भारत में इस्लाम की ध्वजा लहराना तैमूर का था मुख्य उद्देश्य

इस्लामिक आक्रमण से पूर्व समरकंद एक बौद्ध राज्य था. फिर समरकंद पर मुसलमानों का शासन हो गया. उसी समरकन्द के क्रूर आक्रांता तैमूर लंगड़ा ने वर्ष 1398 में भारतवर्ष पर आक्रमण कर नसीरूद्दीन तुगलक को हरा दिया और दिल्ली में लाखों लोगों की हत्या कर उनके सिरों का पहाड़ बनाकर जीत का खूनी जश्न मनाया. ब्रिटिश इतिहासकार विन्सेंट ए स्मिथ ने अपनी पुस्तक ‘द ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया: फ्रोम द अर्लीएस्ट टाइम्स टू द एण्ड ऑफ 1911’ में लिखा है कि भारत में तैमूर के अभियान का मुख्य उद्देश्य था, सनातन समुदाय का विनाश कर भारत में इस्लाम की ध्वजा लहराना.

रामप्यारी गुर्जर बनीं महिला सैनिकों की टुकड़ी की सेनापति

ram pyari gurjar
रामप्यारी गुर्जर फोटो साभार

रणनीति के मुताबिक सेना में 80 हजार पुरूष योद्धा शामिल किए गए और जोगराज सिंह गुर्जर इस सेना के मुखिया व हरवीर सिंह गुलिया सेनापति बने. साथ ही 40 हजार महिला सैनिकों की एक टुकड़ी भी तैयार की गयी और युद्धकुशल, परमवीर रामप्यारी गुर्जर को इस महिला सैनिकों की टुकड़ी की सेनापति बनाई गई. एक सुनियोजित तरीके से ५०० युवा अश्वारोहियों को तैमूर की सेना की जासूसी के लिए लगाया गया, जिससे उसकी योजनाओं और भविष्य के आक्रमणों के बारे में पता चल सके.

वीर रामप्यारी गुर्जर ने देशरक्षा हेतु शत्रु से लड़कर प्राण देने की प्रतिज्ञा की. जोगराज के नेतृत्व में बनी 40,000 ग्रामीण महिलाओं  की सेना को युद्ध विद्या के प्रशिक्षण व निरीक्षण का दायित्व भी रामप्यारी गुर्जर के पास था. इनकी चार सहकर्मियां भी थीं, जिनके नाम थे हरदाई जाट, देवी कौर राजपूत, चंद्रों ब्राह्मण और रामदाई त्यागी. इन 40,000 महिलाओं में गुर्जर, जाट, अहीर, राजपूत, हरिजन, वाल्मीकि, त्यागी तथा अन्य वीर जातियों की वीरांगनाएं शामिल थीं. इनमें से कई ऐसी महिलाएं भी थीं, जिन्होने कभी शस्त्र का मुंह भी नहीं देखा था पर रामप्यारी की हुंकार पर वह अपने को रोक ना पायी. जाट क्षेत्र के सभी गांवों के युवक-युवतियां अपने नेता के संरक्षण में प्रतिदिन शाम को गांव के अखाड़े पर एकत्र हो जाया करते थे और व्यायाम, मल्ल युद्ध तथा युद्ध विद्या का अभ्यास किया करते थे.

अंततः युद्ध का दिन समीप आ गया

अंततः युद्ध का दिन समीप आ गया. गुप्तचरों की सूचना के अनुसार तैमूर लंग अपनी विशाल सेना के साथ मेरठ की ओर कूच कर रहा था. सभी एक लाख 20 हजार पुरूष व महिला सैनिक केवल महाबली जोगराज सिंह गुर्जर के युद्ध आवाहन की प्रतीक्षा कर रहे थे. जोगराज सिंह गुर्जर ने कहा, “हमारे राष्ट्र को तैमूर के अत्याचारों ने लहूलुहान किया है. योद्धाओं, उठो और क्षण भर भी विलंब न करो. शत्रुओं से युद्ध करो और उन्हें हमारी मातृभूमि से बाहर खदेड़ दो”.

सभी योद्धाओं ने शपथ ली कि वे किसी भी स्थिति में अपने सैन्य प्रमुख की आज्ञाओं की अवहेलना नहीं करेंगे, और वे तब तक नहीं बैठेंगे जब तक तैमूर और उसकी सेना को भारत भूमि से बाहर नहीं खदेड़ देते.

रामप्यारी गुर्जर ने तैयार की अपनी सेना की तीन टुकड़ियाँ

रामप्यारी गुर्जर ने अपनी सेना की तीन टुकड़ियाँ बनाई. जहां एक ओर कुछ महिलाओं पर सैनिकों के लिए भोजन और शिविर की व्यवस्था करने का दायित्व था, तो वहीं कुछ महिलाओं ने युद्धभूमि में लड़ रहे योद्धाओं को आवश्यक शस्त्र और राशन का बीड़ा उठाया. इसके अलावा रामप्यारी गुर्जर ने महिलाओं की एक और टुकड़ी को शत्रु सेना के राशन पर धावा बोलने का निर्देश दिया, जिससे शत्रु के पास न केवल खाने की कमी होगी, अपितु धीरे धीरे उनका मनोबल भी टूटने लगे, उसी टुकड़ी के पास विश्राम करने को आए शत्रुओं पर धावा बोलने का भी भार था.

ईरानी इतिहासकार शरीफुद्दीन अली यजीदी द्वारा रचित ‘जफरनमा’ में इस युद्ध का उल्लेख भी किया गया है. महापंयत के 20 हजार हिन्दू योद्धाओं ने उस समय तैमूर की सेना पर हमला किया, जब वह दिल्ली से मेरठ के लिए निकलने ही वाला था और 9 हजार से ज्यादा शत्रुओं को रात में ही मार गिराया. क्रोध में विक्षिप्त हुआ तैमूर मेरठ की ओर निकल पड़ा पर यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी. जिस रास्ते से तैमूर मेरठ पर आक्रमण करने वाला था, वो पूरा मार्ग और उस पर स्थित सभी गांव निर्जन पड़े थे क्योंकि योजनानुसार जनता कीमती सामान और खाद्यपानी सहित पहले ही नगर और गाँव छोड़ देते थे.

रामप्यारी गुर्जर और पराक्रमी जोगराज गुर्जर की वीर सेना के आगे लाचार हुआ तैमूर

गुर्जर
जोगराज गुर्जर

इससे तैमूर की सेना अधीर होने लगी और इससे पहले वह कुछ समझ पाता, हिन्दू योद्धाओं ने अचानक ही उन पर आक्रमण कर दिया. इस वीर सेना ने शत्रुओं को संभलने का एक अवसर भी नहीं दिया और रणनीति भी ऐसी थी कि तैमूर कुछ कर ही ना सका. दिन में महाबली जोगराज सिंह गुर्जर के लड़ाके उसकी सेना पर आक्रमण कर देते और रात को कुछ क्षण विश्राम के समय रामप्यारी गुर्जर और अन्य वीरांगनाएं उनके शिविरों पर आक्रमण कर देती. रामप्यारी की सेना का आक्रमण इतना सटीक और त्वरित होता था कि वे गाजर मूली की तरह काटे जाते थे और जो बचते थे वो रात रात भर ना सोने का कारण विक्षिप्त से हो जाते थे. महिलाओं के इस आक्रमण से तैमूर की सेना के अंदर जिहाद का उत्साह ही क्षीण हो गया.

अर्धविक्षिप्त, थके हारे और घायल सेना के साथ आखिरकार हताश होकर तैमूर और उसकी सेना मेरठ से हरिद्वार की ओर निकाल पड़ी. पर यहां भी सेना ने फिर से अचानक ही उन पर धावा बोल दिया और इस बार तैमूर की सेना को मैदान छोड़कर भागने पर विवश होना पड़ा. इसी युद्ध में वीर हरवीर सिंह गुलिया ने सभी को चैंकाते हुये सीधा तैमूर पर धावा बोल दिया और अपने भाले से उसकी छाती छेद दी.

तैमूर के अंगरक्षक तुरंत हरवीर पर टूट पड़े लेकिन हरवीर तब तक अपना काम कर चुके थे. जहां हरवीर उस युद्धभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हुये तो तैमूर उस घाव से कभी नहीं उबर पाया और अंततः सन 1405 में उसी घाव में बढ़ते संक्रमण के कारण उसकी मृत्यु हो गयी. जो तैमूर लाखों की सेना के साथ भारत विजय के उद्देश्य से यहाँ आया था वो महज कुछ हजार सैनिकों के साथ किसी तरह भारत से भाग पाया.

आज भी भारतीय नारियों को रामप्यारी गुर्जर की तरह धीर, वीर और रणधीर बनने की जरूरत है ताकि देश के बाहर और भीतर के दुश्मनों का मुकाबला कर सके. नमन है ऐसे वीर बहादुर बाला को!

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27 thoughts on “तैमूर का काल रघुवंशी क्षत्राणी वीरांगना रामप्यारी गुर्जर

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