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अशोक और अकबर महान, चन्द्रगुप्त मौर्य और विक्रमादित्य क्यों नहीं?

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महान कौन?

भारतवर्ष के ऐतिहासिक काल (जिसका लिखित और पुरातात्विक साक्ष्य दोनों उपलब्ध हो) में ही दर्जनों ऐसे पराक्रमी, महापराक्रमी और महान राजा, सम्राट भरे हुए हैं जो अशोक मौर्य से लाख गुना बेहतर थे और बेहतर हुए. पूरे भारतवर्ष को फिर से एकसूत्र में बांधनेवाला अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य के सामने ही अशोक मौर्य कहीं नहीं ठहरता है, सम्राट विक्रमादित्य की तो वह परछाई भी नहीं छू सका. इन दोनों की महानता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि लगभग आधे दर्जन परवर्ती राजाओं ने चन्द्रगुप्त की उपाधि धारण की थी और दर्जनों राजाओं ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी. फिर भी अशोक महान क्यों?

अशोक को एक सुखी-सम्पन्न, विस्तृत और शक्तिशाली महान मौर्य साम्राज्य विरासत में मिला था. पर अशोक ने अपनी मूर्खतापूर्ण भेड़ी घोष की जगह धम्म विजय (अहिंसा, निशस्त्रीकरण) की नीति से चन्द्रगुप्त मौर्य और चाणक्य के खून पसीने से निर्मित महान मौर्य साम्राज्य को जर्जर कर दिया और उसके सामने ही मौर्य साम्राज्य टूटकर बिखड़ने लगा. स्थिति इतनी बदतर हो गई थी कि मगध के मंत्रियों को बचे खुचे मौर्य साम्राज्य को बचाने केलिए अशोक को जबरन नजरबंद कर महल में कैद कर सम्प्रति को राजा बनाना पड़ा क्योंकि अशोक मगध के युवराज कुणाल को भी सुरक्षित नहीं रख सका था. वह आम जनता में इतना अलोकप्रिय हो चूका था कि अशोक के नजरबंद किए जाने का जनता ने मौन समर्थन किया और नजरबंदी की हालत में ही अशोक मर गया. उसके मरते ही सिर्फ पचास वर्ष के भीतर ही महान मौर्य सम्राज्य का अंत हो गया. फिर काहे का अशोक महान?

भारत के इतिहास के किताबों में पढ़े पढ़ाये जा रहे एकमात्र महान भारतीय सम्राट अशोक की यही हकीकत है! सवाल है, जब नेहरूवादी, वामपंथी इतिहासकारों ने भारतवर्ष के दर्जनों महान पराक्रमी सम्राटों, अजेय योद्धाओं को इतिहास की किताब से ही बाहर कर दिया तो फिर अशोक जैसे को महान क्यों घोषित किया?

जबाब है, यह नेहरूवादी, वामपंथी इतिहासकारों ने नहीं किया, बल्कि, कांग्रेस के पांच मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने इस्लामिक एजेंडे के तहत बुद्धिजीवी होने के भ्रम में पागल नेहरूवादी, वामपंथी इतिहासकारों से करवाया.

लेकिन क्यों….???

इसके तिन कारण है:

१. पहला अशोक का हिन्दू से बौद्ध बन जाना और उसके द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार करना

२. मौर्योत्तरकालीन भारत में बौद्ध ब्राह्मण शासन और ब्राह्मणों के विरोधी बन गये थे. प्रकारांतर से कहें तो अशोक को बौद्ध धर्म का अनुयायी और बौद्धों को हिन्दू धर्म और ब्राह्मण विरोधी बताकर बौद्धों को हिन्दुओं के विरुद्ध खड़ा किया जा सकता था

३. तीसरा और सबसे बड़ा कारण है-अरब से पाकिस्तान तक इराक, समरकंद, काबुल, काफिरिस्तान, बाजूर, स्वात आदि सहित करीब दर्जन भर बौद्ध राज्य थे पर एक भी बुद्धिष्ट या बौद्ध राजा या बौद्ध राज्य इस्लामिक आक्रमणकारियों का मुकाबला नहीं कर पाए. वे आसानी से कत्ल कर दिए गये या धर्मान्तरित कर दिए गये. जबकि दूसरी ओर हिन्दुओं, हिन्दू राजाओं और हिन्दू राज्यों ने इस्लामिक आक्रमणकारियों से डटकर मुकाबला किया और एक एक हिन्दू राज्यों के इस्लामीकरण में लाखों मुसलमान खप गये, उन्हें शताब्दियों लग गये और वह भी छल प्रपंच से ही जीत सके. मुस्लिम इतिहासकारों के किताब में भी यही दर्ज है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों के लिए अहिंसक बुद्धिष्ट और बौद्ध राज्य आसान शिकार थे.

इसलिए कांग्रेस के मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने स्वघोषित बुद्धिजीवी वामपंथी इतिहासकारों के सहयोग से बौद्ध धर्म का गुणगान और भारतीय सभ्यता, संस्कृति और सनातन धर्म के विरुद्ध दुष्प्रचार की नीति अपनाई ताकि गौरवशाली और शक्तिशाली हिन्दू प्रज्ञाहीन सेकुलर या अहिंसक बुद्धिष्ट बन जाएँ ताकि इस बचे खुचे दर उल हर्ब भारत को भी आसानी से दर उल इस्लाम बनाया जा सके. खुद को बुद्धिजीवी समझकर भारतीय सभ्यता, संस्कृति, धर्म और परम्परा के विरोध में पागल वामपंथियों को तो यह एहसास भी नहीं होगा कि वे इस्लामिक एजेंडे के महज मुहरे मात्र हैं.

अब मैं उपर्युक्त एक एक शब्द का एतिहासिक उदाहरणों के साथ विवेचना कर साबित करूंगा.

बौद्ध राज्यों का मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा पूर्ण सफाया हो गया

buddh
नमो बुद्धाय

अरब से लेकर वर्तमान पाकिस्तान तक लगभग दर्जन भर बौद्ध राज्य थे जो मुस्लिम आक्रमणकारियों के द्वारा कत्ल कर दिए गये या उन्होंने हिंसा और अत्याचार के आगे घुटने टेक इस्लाम कबूल कर लिया.

इराक

इराक के अंतिम राजकुल का नाम बर्मक था. अलबरूनी के इतिहास के अनुवादक एडवर्ड डी सचौ ने लिखा है कि इराक में नवबहार नगर नवबिहार का अपभ्रंश है. वह एक बौद्ध पीठ था. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं, “इस पीठाधीश के पद को परमक (परमगुरु) कहते थे. अरब-इस्लामी आक्रामकों ने जब इराक पर हमला कर इराक को बल पूर्वक मुसलमान बनाया तब से परमक उर्फ़ बर्मक की धर्मसत्ता समाप्त हो गयी. परमक उर्फ़ बर्मक के इस्लामिक राजा बन जाने के कारन उसके अनुयायी जनता उसी के आज्ञा से मुसलमान बन गयी”.

समरकंद

समरकंद नगर का पुराना नाम मार्कण्डेय नगर था क्योंकि वहां ऋषि मार्कण्डेय का आश्रम और गुरुकुल था. सागदियाना राजकुल प्राचीन शुद्धोधन शब्द है. समरकंद पर मुस्लिमों के अधिकार करने से पूर्व समरकंद बौद्ध नगर था और यहाँ का राजा भी बौद्ध था. अंतिम बौद्ध राजा का राजमहल अब तैमूर लंग का मकबरा कहा जाता है-पी एन ओक

समरकंद के बौद्ध राजा ने आक्रमणकारी मुसलमान कुतैवाह बिन मुस्लिम अल बाहिली (७०५-१५ ईस्वी) के आगे आत्म समर्पण कर दिया. मुस्लिम इतिहासकार अहमद बिन याहिया बिन जाबिर अपने किताब फुतुहुल बुलदान में लिखा है, “”Other authorities say that Kutaibah granted peace for 700,000 dirhams and entertainment for the Moslems for three days. The terms of surrender included also the houses of the idols and the fire temples. The idols were thrown out, plundered of their ornaments and burned…” (अनुवाद: स्टेफीन नैप)

बामियान

बामियान के बौद्ध राजा मुस्लिम आक्रमणकारियों से मामूली झड़प के बाद परास्त हो गये और कत्ल कर दिए गये. बौद्धों की अहिंसक स्त्रियाँ हिंसक जिहादी पैदा करने की मशीन बन गयी.

काबुल

मुस्लिम आक्रमणकारियों ने बामियान के बाद काबुल पर हमला किया. काबुल के बौद्ध राजा लघमान तुर्क ने बिना लड़े आत्मसमर्पण कर मुसलमान बनना स्वीकार कर लिया.

काफिरिस्तान, बाजूर, स्वात

जबतक हिन्दूशाही वंश का जयपाल और उसका बेटा अनंगपाल इस्लामिक शैतान मोहम्मद गजनवी से युद्ध करते रहे तीनों बौद्ध राज्य सुरक्षित रहे और वे चुपचाप तमाशा देखते रहे. गजनवी से अनंगपाल के परास्त होते ही गजनवी ने बिना किसी परिश्रम और क्षति के बौद्धों का कत्ल कर तीनों राज्यों का इस्लामीकरण कर दिया.

इस खंड को विस्तार से समझने केलिए पढ़े:

आपको जानकर आश्चर्य होगा की इसी इस्लामिक षड्यंत्र के तहत भारत के इतिहास से इस सच्चाई को ही गायब कर दिया गया है कि इस्लामपूर्व भारतवर्ष में और अरब तक दर्जनभर बौद्ध राज्य थे और उन्हें इस्लामिक आक्रमणकारियों ने जड़ मूल से इस तरह खत्म कर दिया की न एक भी बौद्ध बचा, न बुद्ध और न ही बौद्ध धर्म ताकि बौद्धों को इस्लाम की असलियत पता ही न चले. परिणामतः हिन्दू विरोधी नवबौद्ध यह सोचकर खुश होते है कि हिन्दूकुश में हिन्दुओं और ब्राह्मणों का कत्ल किया गया था. उन्हें पता ही नहीं है कि हिन्दू से कहीं ज्यादा बौद्ध, बुद्ध और बौद्ध धर्म इस्लाम के शिकार हुए हैं. यही इस्लामिक स्ट्रेटजी है जिनकी पूर्ति मुर्ख वामपंथी इतिहासकारों के मदद से हो रही है. इतना ही नहीं, बिहार और बंगाल के बौद्ध भी इस्लामिक शासन में आसानी से खत्म कर दिए गये थे जिसका परिणाम यह हुआ कि बौद्ध धर्म अपने उद्भव देश भारत में ही निर्मूल हो गया था.

अब आईये अशोक और कुछ अन्य सम्राटों के उपलब्धियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं जिससे सेकुलर इतिहास का भारत विरोधी षडयंत्र को और भी बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी.

महान मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य

सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य

अशोक के दादा चन्द्रगुप्त मौर्य अविवादित रूप से सम्राट अशोक से बहुत ही ज्यादा सफल और शक्तिशाली सम्राट था जिसने दुनिया के सर्वश्रेष्ट राजनीती और अर्थशास्त्र के विद्वान आचार्य चाणक्य की सहायता से पुरे भारत के छोटे छोटे राज्यों को साम, दाम, दंड और भेद की सफल नीति से एकजुट और अखंड भारत बनाने में सफल हुआ था. उसके समय भारत की आधिकारिक परिसीमा में मकरान तट से वर्तमान अफगानिस्तान, पाकिस्तान, भारत नेपाल, बंगलादेश शामिल था; सिर्फ सुदूर उत्तर-पूर्व और सुदूर दक्षिण के पल्लव, चोल, चेर राज्यों और कलिंग को छोड़कर, परन्तु कलिंग, पल्लव, चोल, चेर सहित इरान और दक्षिण पश्चिम मंगोलिया के राज्यों से भी समानता पर आधारित संधि समझौता था.

महावंश में तो कहा गया है कि “कौटिल्य ने चन्द्रगुप्त को (न केवल भारतवर्ष बल्कि) जम्बुद्वीप का सम्राट बनाया”. प्लूटार्क और जस्टिन ने भी लिखा है कि पूरा भारत चंद्रगुप्त के कब्जे में था. यह चन्द्रगुप्त और चाणक्य की अद्भुत जोड़ी का ही कमाल था जिसने विश्व विजेता सिकन्दर के भारतीय क्षत्रपों को मार भगाने में भूमिका निभाई थी भले ही निर्णायक लड़ाई महाराज पुरु ने लड़ी थी.

ईस्वी पूर्व ३०५ में चन्द्रगुप्त ने सिकन्दर के सेनापति सेल्युकस को हराकर उसे समझौता करने के लिए विवश किया और समझौते में न केवल उसे अपनी पुत्री चन्द्रगुप्त को ब्याहनी पड़ी बल्कि सिकन्दर के द्वारा जीते हुए लगभग सारे भारतीय प्रदेश जिसमे काबुल, कंधार, मकरान और हेरात भी शामिल था देना पड़ा. ३०० ईस्वीपूर्व तक चन्द्रगुप्त ने ग्रीकों को पीछे हटने को मजबूर कर अपना साम्राज्य बैक्ट्रिया और पूर्वी इरान तक बढ़ाने में सफल हो गया. वहीँ उसका दक्षिण विजय चोल, चेर, पंड्या और कलिंग को छोड़कर समस्त भारतवर्ष में हो गया. वास्तविकता तो यह है कि एतिहासिक काल में चन्द्रगुप्त मौर्य ने हि सर्वप्रथम चाणक्य की सहायता से खंड खंड में बंटे भारत को एक शक्तिशाली और पौराणिक अखंड भारतवर्ष में परिवर्तित करने में सफल हुआ था. चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद निश्चित रूप से अशोक ने भूसीमा विस्तार को इरान तक और उत्तर में दक्षिण पश्चिम मंगोलिया तक फैलाया था, परन्तु अशोक को विरासत में शक्तिशाली और अजेय साम्राज्य मिला था जबकि चन्द्रगुप्त ने अपने पराक्रम और आचार्य चाणक्य की बुद्धि से अपने हाथों महान सम्राज्य का निर्माण किया था. 

एतिहासिक कालखंड के महानतम सम्राट विक्रमादित्य

सम्राट विक्रमादित्य

चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद विक्रमादित्य सबसे शक्तिशाली और सफल सम्राट हुए. विक्रमादित्य जिसने सनातनी सम्वत को विक्रम सम्वत के नाम से पुनः प्रारम्भ किया, जिसका शासनकाल प्रथम ईस्वी पूर्व में था और जिनके सम्बन्ध में सिहांसन बत्तीसी और बेताल पच्चीसी किवदंतियां प्रचलित है. अरबी स्रोतों से पता चलता है कि सम्राट विक्रमादित्य का शासन अरब तक विस्तृत था. इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक के अनुसार मक्का में मक्केश्वर महादेव के मन्दिर का निर्माण इन्होने ने ही करवाया था. इनके पौत्र शालिवाहन का सम्राज्य भी अरब तक विस्तृत होने के प्रमाण मिलते हैं और वे भी अपने दादा विक्रमादित्य की तरह ही महान सम्राट और शासक थे.

सफल विजेता के रूप में गुप्त वंश के समुद्रगुप्त का नाम भी आता है, परन्तु शासन और प्रशासन के मामले में वह अपने ही पुत्र चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से पीछे छूट जाता है. चन्द्रगुप्त, विक्रमादित्य, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, मिहिर भोज आदि कुशल योद्धा, सेनानायक और महान विजेता होने के साथ साथ योग्य शासक भी थे. चन्द्रगुप्त और कौटिल्य की जोड़ी के शासन की बारीकी से अध्ययन करेंगे तो वह शासन एतिहासिक काल में भारत का स्वर्ण काल अनुभव होगा. मैं तो इन्ही वामपंथी इतिहासकारों के इतिहास के अध्ययन के आधार पर कहता हूँ कि चन्द्रगुप्त मौर्य और विक्रमादित्य का शासनकाल एतिहासिक काल का सर्वश्रेष्ट शासन काल था जिसके सामने आज का शासन और प्रशासन मेरी नजर में नरक समान ही है.

उपर्युक्त तो सिर्फ चंद उदहारण है. ऐसे दर्जनों पराक्रमी और महान सम्राट भारतवर्ष में भरे हुए हैं पर उनका दोष यह है कि वे सनातन संस्कृति, धर्म, सभ्यता के पोषक, संरक्षक और विजेता, अध्येता थे जो जिहादी, वामपंथी एजेंडे को सूट नहीं करता है. इसलिए भारतवर्ष के अधिकांश महान सम्राटों को इतिहास से ही मिटा दिया गया है या एक दो वाक्य में समेट दिया गया.

अनपढ़ अकबर नराधम औरंगजेब से कम नहीं था

अकबर जैसे अधम, लम्पट, कामुक, धर्मान्ध, युयुत्सु और हिंसक शासक की तुलना इन महान शासकों से कर मैं इन महानात्माओं को अपमानित करना नहीं चाहता. उसके कुकर्मों की विस्तृत जानकारी स्वर्गीय पुरुषोत्तम नागेश ओक की पुस्तक “कौन कहता है अकबर महान था” में दिया गया है.

सम्राट अशोक भारतवर्ष और हिन्दुओं के पतन का कारण था

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अशोक की धम्म नीति

इसके विपरीत अशोक जबतक अपने गुरु चाणक्य की नीतियों पर चलता हुआ खड्गहस्त रहा, मौर्य साम्राज्य फलता फूलता रहा और फैलकर पश्चिम में ईरान तो पूर्व में म्यानमार की सीमा को छूने लगा, परन्तु, शस्त्र त्यागकर भेड़ी घोष (युद्ध विजय) के स्थान पर धम्म घोष की नीति अपनाते ही चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के खून पसीने से निर्मित विशाल मौर्य साम्राज्य देखते ही देखते भड़भडाकर गिरने लगा. कहा जाता है उसने अपने सैनिकों को भी निशस्त्र कर बौद्ध धर्म और अहिंसा के प्रचार में लगा दिया था. उसकी अहिंसा और निशस्त्रीकरण की नीतियों ने सिर्फ मौर्य साम्राज्य को ही बर्बाद नहीं किया बल्कि वह भारतवर्ष के पतन का भी कारण था.

इसे विस्तार से समझने केलिए पढ़ें:

अशोक के धम्म नीति के कारण महान मौर्य साम्राज्य खत्म हो गया

इतिहासकार हेमचन्द्र राय चौधरी लिखते हैं, “मौर्य साम्राज्य अशोक की मृत्यु के बाद छिन्न-भिन्न हो गया और उसके पुत्रों के बीच बंट गया. कुछ वाह्य प्रान्त साम्राज्य से निकल गया, राज्य के छिन्न भिन्न होने की क्रिया को सम्राट के परिवार के लोगों ने और भी द्रुतगामी बना दिया. साम्राज्य की दुरवस्था ने यवनों को पुनराक्रमण केलिए प्रोत्साहित किया. सीरिया का यवन (ग्रीक) राजा एन्टीयोकस प्रथम ने काबुल के राजा भागसेन को हराकर राज्य पर अधिकार कर लिया.”

अशोक की मूर्खतापूर्ण धम्म नीति के कारण मौर्य साम्राज्य कैसे जर्जर हो गया था और उसके ही गलत नीतियों पर चलने के कारण उसके उत्तराधिकारियों ने सिर्फ पचास वर्ष के भीतर ही कैसे मौर्य साम्राज्य को मगध तक समेट दिया था इसे विस्तार से समझने केलिए पढ़ें:

यही कारण है कि सेकुलर भारत में सेकुलरों के लिए भारत के महान सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जिसने अखंड और शक्तिशाली भारत का निर्माण किया था या विक्रमादित्य जिसने अरब तक अपनी प्रभुता स्थापित की थी वे भारत के महान सम्राटों की गिनती में नहीं आते हैं क्योंकि इन्हें महान बता दिया गया तो हिंदू खुद को गौरवशाली, शक्तिशाली तथा दुनिया के सबसे समृद्ध और सुसंस्कृत सभ्यता के वाहक महसूस करने लगेंगे. अतः षड्यंत्र पूर्वक अशोक और अकबर को महान बनाया गया ताकि हिंदुओं को अपने अतीत में भी कोई महान सम्राट दिखाई नहीं दे और जो हिंदू अशोक में महान हिंदू सम्राट देखने की कोशिश करे उन्हें अंत में हिंदुत्व से भागता सम्राट और उसका टूटता विखड़ता साम्राज्य दिखे ताकि वे अपने हिंदू अतीत को कोसने पर मजबूर होकर आत्महीनता का शिकार और किंकर्तव्यविमूढ़ बन जाएँ.

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