महापराक्रमी पुष्यमित्र शुंग
जबतक सम्राट अशोक अपने गुरु चाणक्य की नीतियों पर चलता हुआ खड्गहस्त रहा, मौर्य साम्राज्य फलता फूलता रहा और फैलकर पश्चिम में ईरान तो पूर्व में म्यानमार की सीमा को छूने लगा. यह उत्तर में अफगानिस्तान, कश्मीर को सम्मिलित करते हुए दक्षिण में तमिलनाडू और केरल की सीमा तक पहुँच गया था, परन्तु, शस्त्र त्यागकर भेड़ी घोष (युद्ध विजय) के स्थान पर धम्म घोष की नीति अपनाते ही चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के खून पसीने से निर्मित विशाल मौर्य साम्राज्य देखते ही देखते भड़भडाकर गिरने लगा. कहा जाता है उसने अपने सैनिकों को भी निशस्त्र कर बौद्ध धर्म और अहिंसा के प्रचार में लगा दिया था. सिन्धु नदी के पार वर्तमान पाकिस्तान, अफगानिस्तान से ईरान सीमा तक का भारत तो लगभग बौद्ध ही हो गया था.
पर अशोक की अहिंसा ने उसके घर में ही हिंसा को जन्म दे दिया था. उसकी पांचवीं पत्नी तिष्यरक्षिता ने करुवाकी का पुत्र और युवराज कुणाल की ऑंखें फोड़वा दी. अशोक ने अपना सारा राजकोष बौद्ध धर्म के प्रचार, बौद्ध मठ और बौद्ध संघ पर लुटा दिया था. राजकोष खाली होता जा रहा था पर बौद्धों, बौद्ध मठों और बौद्ध संघों की पैसे की भूख बढ़ती ही जा रही थी. मौर्य साम्राज्य की बदहाली और खाली राजकोष ने अमात्यों को असंतुष्ट कर दिया और एक दिन अमात्यों ने बाध्य होकर अशोक को उसके घर में ही नजरबंद कर दिया और कुणाल के पुत्र सम्प्रति को राजा घोषित कर दिया. नजरबंदी की हालत में ही उसकी मृत्यु २३२ ईसवी पूर्व में हो गयी.
अशोक की शांतिप्रियता और अहिंसा की नीति के कारन उसके अधीन राजाओं और क्षत्रपों ने विद्रोह शुरू कर दिया था. उसने अपने वंशजों और अधीन राजाओं, क्षत्रपों को भी भेड़ी घोष के स्थान पर धम्म घोष की नीति का पालन करने का आदेश दिया था. अतः सम्प्रति के राजा बनते ही केन्द्रीय नियन्त्रण समाप्त हो गया और उन्होंने अपनी आजादी की घोषणा कर दी. काबुल का भागसेन सिन्धु तक अपना अलग राज्य बना लिया. वीरसेन गांधार में स्वतंत्र शासक बन गया. इतिहासकार हेमचन्द्र राय चौधरी लिखते हैं, “मौर्य साम्राज्य अशोक की मृत्यु के बाद छिन्न-भिन्न हो गया और उसके पुत्रों के बीच बंट गया. कुछ वाह्य प्रान्त साम्राज्य से निकल गया, राज्य के छिन्न भिन्न होने की क्रिया को सम्राट के परिवार के लोगों ने और भी द्रुतगामी बना दिया. साम्राज्य की दुरवस्था ने यवनों को पुनराक्रमण केलिए प्रोत्साहित किया. सीरिया का यवन (ग्रीक) राजा एन्टीयोकस प्रथम ने काबुल के राजा भागसेन को हराकर राज्य पर अधिकार कर लिया.”
मगध साम्राज्य ही नहीं मगध का भी बुरा हाल था
मगध साम्राज्य सामरिक और आर्थिक बदहाली का शिकार तो था ही सामाजिक और धार्मिक बदहाली का भी शिकार हो गया था. शस्त्रास्त्रों में जंग लगने के साथ ही क्षत्रियों की भुजाओं में भी जंग लग गया था. मौर्य राजाओं का सेना से सम्पर्क बिलकुल टूट गया था. सैनिक हताश, निराश और असंतुष्ट थे. शस्त्रोपजीवी भृत्य सैनिक बेरोजगार भटकने को बाध्य थे. अशोक के बौद्ध धर्म के प्रति अत्यधिक झुकाव और यज्ञों पर प्रतिबन्ध लगा देने के कारन हिन्दू नाराज और ब्राह्मण कंगाल थे तो बौद्ध भिक्षु और बौद्ध मठ मालामाल हो गये थे. मौर्य सत्ता पूरी तरह बौद्ध संघों के जकड़ में था. स्थानीय शासन पर बौद्ध मठों का अधिकार हो गया था. अत्याचारी मौर्य राजा शालिशूक के समय हिन्दुओं विशेषकर ब्राह्मणों पर बहुत अत्याचार हुए. इस समय बौद्ध मठों ने तो सारी हदें पार कर दी थी. वे मन्दिरों से देवी देवताओं की मूर्ति हटाकर बुद्ध की प्रतिमा रख देते थे. बृहद्रथ मौर्य के शासन तक मौर्य साम्राज्य पूरी तरह छिन्न भिन्न हो चूका था. मौर्य साम्राज्य कमोबेश मगध तक सिमट गया था.
महापराक्रमी योद्धा पुष्यमित्र शुंग
बृहद्रथ मौर्य एक जनविरोधी और प्रज्ञादुर्बल१ यानि बुद्धिहीन राजा था. एक दिन वह जंगलों से गुजर रहा था. अचानक एक शेर ने उस पर हमला कर दिया. वह किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा था पर इससे पहले की शेर राजा तक पहुंचता बिजली की फुर्ती से एक युवक बिच में आकर तलवार के एक ही वार से शेर के दो टुकड़े कर दिया. उस वीर योद्धा का नाम था पुष्यमित्र शुंग२; जन्म से ब्राह्मण, कर्म से क्षत्रिय. इसका परिवार मौर्यों का पुरोहित३ हुआ करता था पर अब वह बेरोजगार था. बृहद्रथ खुश होकर उसे अपना उपसेनापति बना लिया. जल्द ही वह अपने पराक्रम से मौर्य सेना का सेनापति बन गया था. उस मौर्य सेना का जिसके तलवारों और बाजुओं में जंग लगा हुआ था.
भारत पर यवनों का आक्रमण
यवन सेना (ग्रीक सैनिक) सिन्धु पार कर हरियाणा तक अधिकार कर चुके थे पर मौर्य राजा भेड़ी घोष के स्थान पर धम्म घोष का गाना गाने में मग्न था. वीर योद्धा पुष्यमित्र शुंग के लिए यह बर्दाश्त से बाहर था कि विदेशी यवन देश के भीतर घुसे जा रहे हों और मगध का सेना निष्क्रिय पड़ा रहे. उसने सेना से बात की. सेना ने उसका समर्थन किया और फिर सैनिक तयारी शुरू हो गयी. निहत्थे और बेकार सैनिक खड्गहस्त हो गये और सैनिक अभ्यास से शस्त्रास्त्रों की खनक गूंजने लगी. कुछ ही दिन बाद सेना निष्क्रिय से सक्रिय और चुस्त दुरुस्त हो राजा के सामने परेड केलिए तैयार था. सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने राजा बृहद्रथ को सेना का परेड देखने केलिए बुलाया. अपने शस्त्रसज्जित सेना को देखकर अहिंसक बृहद्रथ गुस्से से लाल हो गया.
उसने चीखते हुए पूछा, “ये सब क्या है?”
“यवन भारत के अंदर तक घुस आये हैं, उसे रोकने केलिए सेना की तैयारी है,” सेनापति ने जबाब दिया.
उसने गरजते हुए कहा, “हम शस्त्र विजय नहीं धम्म विजय में यकीन रखते हैं. किसकी अनुमति से तुमने सैन्य सन्गठन किया?”
पुष्यमित्र ने बेख़ौफ़ जबाब दिया, “जब राष्ट्र की सुरक्षा का प्रश्न हो तो ब्राह्मण किसी के आदेश की प्रतीक्षा नहीं करता!”
इस जबाब से तैश में आकर बुद्धिहीन बृहद्रथ पुष्यमित्र पर झपटा; पुष्यमित्र अपना बचाव करते हुए तलवार निकालकर उसका गर्दन काट दिया.
पुष्यमित्र का गर्जता हुआ आवाज गूंजा, ““ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र महत्वपूर्ण है. महत्वपूर्ण है मगध साम्राज्य! महत्वपूर्ण है हमारी मातृभूमि!! क्या तुमलोग राष्ट्र की रक्षा केलिए रक्त बहाने को तैयार हो?”
सैनिकों का एकमेव स्वर पूरे निनाद के साथ गूंजा, “हाँ, हम अपने राष्ट्र की रक्षा केलिए दुश्मनों का रक्त बहाने केलिए तैयार हैं!”
“तो मैं वादा करता हूँ मैं अपना सम्पूर्ण जीवन मगध सम्राज्य के सैनिक के रूप में मगध की रक्षा केलिए बिताऊंगा. मुझे राजा बनने की कोई अभिलाषा नहीं है. मैं आजीवन मगध का सेनापति बनकर अपना काम करूंगा.”
मगध का रक्षक पुष्यमित्र शुंग
पुष्यमित्र के मगध का शासन अपने हाथों में लेते ही सेना के साथ प्रजा में भी ख़ुशी की लहर दौड़ गयी. प्रजा अपने बुद्धिहीन, कायर राजा से परेशान थी. हर वक्त उन्हें विदेशी आक्रमण का भय और असुरक्षा की भावना बनी रहती थी. अब पराक्रमी योद्धा के हाथों में सत्ता आने से वे निश्चिन्त हो गये. इतिहासकार लिखते हैं, “सत्ता परिवर्तन को जनता ने स्वीकार किया, क्योंकि उत्तरकालीन मौर्य अत्याचारी हुए तथा यवन आक्रमण के वेग को रोकने में और मगध की सैनिक शक्ति की मर्यादा की रक्षा करने में असमर्थ हुए.”
पुष्यमित्र ने शासन अपने हाथ में लेते ही सबसे पहले सैन्य शक्ति मजबूत किया. शस्त्रोपजीवी भृत्य सैनिकों को बहाल किया. आर्थिक स्थिति मजबूत करने केलिए बौद्ध मठों और संघों को दिए जा रहे अनावश्यक अनुदान बंद करा दिए. बौद्ध मठों का अनावश्यक राजनितिक हस्तक्षेप भी खत्म कर दिया हालाँकि कुछ बौद्धों को मंत्रीमंडल४ में भी जगह दिया. मन्दिरों में जबरन रखवाये गये बुद्ध प्रतिमा के स्थान पर पुनः देवी, देवताओं की स्थापना हुई. यज्ञ और मन्दिरों में पूजा पुनः प्रारम्भ हो गया. जबरन या अनिच्छा से बौद्ध बनी जनता फिर से वैदिक धर्म के अनुयायी बन गये. पुष्यमित्र शुंग ने आदेश जारी कर सभी हिन्दुओं को मस्तक पर टीका लगाना अनिवार्य कर दिया. स्थानीय शासन के स्तर पर फिर से पंचायत व्यवस्था बहाल हो गया.
राजनीतिक बौद्धों का मगध विरोधी षड्यंत्र
सत्ता परिवर्तन और बौद्ध मठों तथा संघों को अनावश्यक अनुदान बंद कर देने, सत्ता में हस्तक्षेप खत्म कर देने से राजनितिक बौद्ध जिन्हें मुफ्त की मलाई खाने की आदत पड़ चुकी थी वे काफी नाराज थे. बौद्ध मठ राजनीती का अखाडा बनता जा रहा था. राजनितिक बौद्धों का विद्रोही स्वर भी गूंजने लगा. ऐसे ही समय में यवन शासक डिमेट्रियस ने मगध पर आक्रमण की योजना बनाया. उसका सेनापति मिनान्डर तक्षशिला पहुंचा जो पहले से ही बौद्धों का राजनितिक अखाडा बन चूका था.
यह वही प्रख्यात तक्षशिला था जहाँ कुछ दशक पहले तक पूरे विश्व से लोग शिक्षा ग्रहण करने आते थे. जहाँ के छात्रों के सहयोग से चाणक्य और चन्द्रगुप्त ने यवनों को न केवल भारत से बाहर खदेड़ दिया था बल्कि सम्पूर्ण भारत को एकसूत्र में बांधकर महान मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी. वही तक्षशिला अब बौद्धों के अय्याशियों, राजनीती और भारत विरोधी षड्यंत्र का अड्डा बन गया था. कहा जाता है यहाँ उत्तरवर्ती मौर्यों के मगध सम्राज्य के विरुद्ध यवनों के भारत विजय केलिए योजनायें बनती थी और षड्यंत्र हुआ करता था. यवन डिमेट्रियस का सेनापति मिनान्डर ने तक्षशिला पहुंचकर राजनीतक बौद्धों के सम्मुख प्रस्ताव रक्खा की यदि वे भारत विजय में यवनों की सहायता करेंगे तो वह खुद बौद्ध धर्म अपना लेगा. उन्हें बहुत धन और सुविधाओं का लालच भी दिया.
राजनितिक बौद्धों ने यवनों के इस प्रस्ताव का समर्थन किया और कुछ ही दिनों में इस प्रस्ताव की गूंज भारत के भीतर पाटलिपुत्र तक के बौद्ध मठों में भी सुनाई देने लगी. फिर यवन प्रदेश से आनेवाले बौद्ध भिक्षु जो अपने वस्त्रों के भीतर अस्त्र शस्त्र छुपाकर लाते थे धीरे धीरे भारत के विभिन्न बौद्ध मठों में छिपकर रहने लगे. पूरी तयारी के बाद डिमेट्रियस अपनी सेना को दो भागों में विभक्त कर भारत के भीतर घुस गया. एक भाग का नेतृत्व खुद डिमेट्रियस को करना था जिसे चितौड़ से होते हुए पाटलिपुत्र पहुंचना था. दुसरे भाग को सेनापति मिनान्डर के नेतृत्व में मथुरा, पान्चाल होते हुए पाटलिपुत्र पहुंचना था. बौद्ध मठों ने यवनों का पूरा साथ दिया. बौद्ध मठों में बौद्ध भिक्षुओं के रूप में छिपे यवन सैनिक रास्ता बनाते जा रहे थे और यवन सेना से मिलते जा रहे थे. डिमेट्रियस की सेना चितौड़ और मिनान्डर की सेना मथुरा तक पहुँचने में कामयाब हो गया.
पुष्यमित्र शुंग का षडयंत्रकारियों और यवन सेना पर प्रहार
पुष्यमित्र को जब यवनों के आक्रमण के साथ साथ इस षड्यंत्र का पता चला तो आग बबूला हो गया. यवन सैनिक बौद्ध भिक्षु के भेष में पाटलिपुत्र के बौद्ध मठों तक पहुँच गये थे. वह अपनी सेना को यवनों से युद्ध केलिए तैयार रक्खा ही था साथ ही साथ उसने बौद्ध मठों की भी तलाशी लेना शुरू कर दिया. जिन जिन बौद्ध मठों में यवन सैनिक छिपे हुए मिले वहां यवनों का सिर धड़ से अलग करने के साथ ही राजनितिक बौद्धों का सिर भी काट दिया और बौद्ध मठों को जमींदोज कर दिया. बौद्ध मठों की तलाशी लेता हुआ वह सेना के साथ आगे बढ़ता यवनों से भिड गया.
इधर उसका पुत्र विदिशा का उपराजा अग्निमित्र विदर्भ५ पर हमला कर यज्ञसेन को हराकर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया और फिर ईधर से ही मगध का संचालन करने लगा. उधर पुष्यमित्र की सेना यवनों को खदेड़ना शुरू कर दिया. भयानक संघर्ष हुआ. करीब एक वर्ष के सतत संघर्ष के बाद पुष्यमित्र शुंग ने यवनों को वापस अराकोसिया से पीछे धकेल दिया. वह तक्षशिला पहुंचकर गद्दार राजनितिक बौद्धों को दण्डित किया और बौद्ध मठों को तोड़कर वापस तक्षशिला का गौरवशाली गरिमा बहाल किया. उसने घोषणा की जो भी यवनों का साथ देनेवाले भारत विरोधी गद्दार बौद्धों का सिर कलम करेगा उसे पुरस्कृत किया जायेगा.
यवन स्रोतों के अनुसार पुष्यमित्र शुंग ने यवनों को बैक्ट्रिया तक ढकेल दिया था पर १६५-६० ईसवी पूर्व मिनान्डर के राजा बनने के बाद यवनों ने पुनः अराकोसिया, गांधार और पश्चिमी पंजाब तक अधिकार कर लिया था परन्तु वे पुष्यमित्र के जीवन काल में सिन्धु को पार करने की हिम्मत नहीं दिखा सके.
हिन्दुराष्ट्र भारत का पुनर्निर्माण
पुष्यमित्र शुंग पूरे उत्तर-उत्तर पश्चिम और पूर्वी भारत को पुनः एकसूत्र में बांध दिया था. शुंग ने ग्रीकों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात मगध लौटकर अश्वमेध यज्ञ कर मंडलों को एकजुट कर तत्कालीन विश्व का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की. दक्षिण का भारतीय राज्य बहुत पहले ही मौर्य साम्राज्य से आजाद हो चुके थे और वहां भी हिंदुत्व की वापसी तेजी से हो रहा था. अब पुरे भारत में वैदिक आर्य संस्कृति के साथ साथ वैदिक धर्म भी पुनः प्रस्थापित हो चूका था. पुष्यमित्र शुंग ने भरहुत स्तूप का निर्माण और साँची स्तूप की वेदिकाएँ (रेलिंग) बनाने का कार्य भी प्रारम्भ किया जिसे उसके पुत्रों ने पूरा करवाया६.
पुष्यमित्र शुंग ने अपने जीवन में दो अश्वमेघ७ यज्ञ किया था. अपने शासन के अंतिम दिनों में उसने दूसरा अश्वमेध यज्ञ किया. दूसरे अश्वमेघ यज्ञ का पुरोहित महर्षि पतंजली८ थे. इस अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा सिन्धु नदी के तट पर मिनान्दर के सैनिकों ने पकड़ लिया तो अग्निमित्र का पुत्र और पुष्यमित्र का पौत्र वसुमित्र ने उसे सिन्धु नदी के तट पर हराकर सिन्धु के पार खदेड़ दिया. पुष्यमित्र शुंग ने ३६ वर्ष तक राज किया.
पुष्यमित्र शुंग का पुत्र अग्निमित्र भी काफी शौर्यवान था. कहा जाता है उसने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत फिर से भारत का अंग बन गया. वो तिब्बत के बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया. वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की. उनके वंशज आज भी चीन में “शुंग” अथवा “चुंग” सरनेम ही लिखते हैं. शुंग वंश के शासनकाल में कई यवनों ने भी भागवत धर्म ग्रहण कर लिया था.
शुंग वंश के बाद कण्व वंश के ब्राह्मण राजाओं ने भी शुंगों के नीति का अनुसरण किया और वैदिक धर्म और संस्कृति को मजबूत किया. इसी समय दक्षिण में आन्ध्र के सातवाहनों का तेजी से उदय हुआ. उन्होंने दक्षिण में वैदिक आर्य संस्कृति और धर्म को मजबूत करने के साथ साथ यवनों को मार कर अरब तक ढकेल दिया. अब ईरान से लेकर कन्याकुमारी तक पूरा भारतवर्ष हिन्दू राष्ट्र था जिसमे सिन्धु पार के कुछ बौद्ध राज्य९ भी शामिल थे.
१. हर्षचरित में बाणभट्ट ने बृहद्रथ को प्रज्ञादुर्बल राजा कहा है.
२. हर्षचरित में पुष्यमित्र शुंग को ‘अनार्य’ कहा गया है. बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में उसे मौर्य वंश का राजा कहा गया है.
३. आश्वलायन श्रौतसूत्र में शुंगों का उल्लेख आचार्यों के रूप में मिलता है
४. दिव्यावदान का कथन है कि पुष्यमित्र ने कुछ बौद्धों को अपना मन्त्री नियुक्त कर रखा था
५. मालविकाग्निमित्र महाकवि कालीदास का नाटक है. इससे पता चलता है कि पुष्यमित्र का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था तथा उसने विदर्भ को जीत कर अपने राज्य में मिला लिया था. कालिदास यवन-आक्रमण का भी उल्लेख करते हैं जिसके अनुसार अग्निमित्र के पुत्र वसुमित्र ने सिंधु सरिता के दाहिने किनारे पर यवनों को पराजित किया था.
६. सुप्रसिद्ध कलाविद् हेवेल का विचार है कि, ‘साँची तथा भरहुत के तोरणों का निर्माण दीर्घकालीन प्रयासों का परिणाम था जिसमें कम से कम 100 वर्षों से भी अधिक समय लगा होगा
७. अयोध्या का लेख से पता चलता है कि पुष्यमित्र ने दो अश्वमेध यज्ञ किये थे.
८. पतंजलि का महाभाष्य
९. ये बौद्ध राज्य आगे चलकर पूर्व मध्यकाल में हिन्दू विरोधी मानसिकता और मुसलमानों के हाथों आसानी से खत्म होने के कारन ईरान से अफगानिस्तान, पाकिस्तान और कश्मीर तक भारत के इस्लामीकरण और भारत में मुस्लिम आक्रमण को बढ़ावा दिया.
मुख्य स्रोत:
१. भारत का बृहत् इतिहास, खंड-१, लेखक-हेमचन्द्र रायचौधरी, रमेशचन्द्र मजुमदार, कलिकिंकर दत्त
२. जे॰सी॰ घोष का “The Dynastic-Name of the Kings of the Pushyamitra Family,” J.B.O.R.S, Vol. XXXIII, 1937, पृष्ठ 359-360
३. प्राचीन भारत का इतिहास, लेखक झा एंड श्रीमाली
४. विकीपीडिया आदि
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