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रामायणकालीन पेलेस्टाइन का इतिहास

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पेलेस्टाइन का उपर्युक्त मानचित्र इजरायल के तीसरे यहूदी राजा डेविड (970-1000 BC) का है. बाईबल में इसका उल्लेख इजरायल के प्रथम और महान राजा के रूप में हुआ है. कुरान में इसका उल्लेख इजरायल के महान राजा और प्रोफेट के रूप में हुआ है जिसने युद्ध में फिलिस्तीनी राक्षस का वध किया था. राजा सुलेमान इसी का बेटा और उत्तराधिकारी था. ईसा मसीह का जन्म इसी राजकुल में हुआ था. राजा डेविड ने यहूदियों के 12 जत्थों को एकजुट कर पेलेस्टाइन में एक महान साम्राज्य का निर्माण किया था जिसे इजरायल कहा गया. इस साम्राज्य का विस्तार दक्षिण में मिस्र से लेकर उत्तर में लेबनान तक और पश्चिम में भूमध्य सागर से लेकर पूर्व में अरब के रेगिस्तान तक फैला हुआ था (स्रोत: ब्रिटेनिका)।

लेकिन हम यहाँ इजरायल और यहूदी की चर्चा नहीं बल्कि रामायण काल के पेलेस्टाइन की चर्चा करेंगे. बात उस काल की है जब असुरों (अरब और अफ्रीका के निवासी) और दानवों (आधुनिक जर्मनी और उसके उत्तर स्कैन्डिनेविया तक के निवासी) का तेज मंद पर चूका था (search in Google “where was asur lok). असुरों का ही एक प्रजाति श्रीलंका में रहता था. श्रीलंका पर ब्रह्मा के पुत्र, सप्तऋषियों में एक पुलस्त्य ऋषि के पौत्र कुबेर का अधिकार हो जाने के बाद उन्हें बीहड़ और खतरनाक जंगलों से घिरा शंख द्वीप (अफ्रीका) में शरण लेना पड़ा था. उनमें से एक था सुमाली जो आधुनिक सोमालिया (और इथियोपिया) में अपना राज्य बसाया था और दूसरा था उसका पुत्र माली जिसके नाम पर अफ्रीका में माली देश आज भी है. सुमाली चाहता था कि उसके वंश में फिर से तेजस्वी सन्तान पैदा हो जो कुबेर से श्रीलंका वापस दिला सके. इसके लिए उसने अपने बहन कैकसी को महर्षि पुलस्त्य के आश्रम में जाकर उनके पुत्र वृ:श्रवा से परिणय निवेदन केलिए तैयार किया ताकि आर्य (श्रेष्ठ) रक्त के संसर्ग से बलबान और तेजस्वी पुत्र प्राप्त हो सके.

महर्षि पुलस्त्य का आश्रम आधुनिक पेलेस्टाइन क्षेत्र में ही था जहाँ वे अपनी पत्नी और पुत्र के साथ रहते थे. उन्ही के नाम पर इस क्षेत्र का नाम पेलेस्टाइन पड़ा था. सुमाली की पुत्री कैकसी वहीँ आकर रहने लगी और एक दिन महर्षि पुलस्त्य के पुत्र वृ:श्रवा से परिणय निवेदन किया और वे शादी के बंधन में बंध गए. वृ:श्रवा और कैकसी से चार सन्तान हुए जिसमें सबसे बड़ा रावण के नाम से विख्यात हुआ. अन्य कुम्भकरण, विभीषण और सूर्पनखा थे. इन सब का जन्म आधुनिक पेलेस्टाइन में ही हुआ था. रावण ने कुबेर को हराकर श्रीलंका उससे छीन लिया था. श्रीराम रावण युद्ध के बाद जब रावण का उसके बंधू बांधवों के साथ संहार हो गया तो माली और सोमालिया से लेकर पूरा उत्तर अफ्रीका के लोग खुद को श्रीराम और बाद में उनके पुत्र कुश का प्रजा घोषित कर दिए जिन्हें कुशाईट कहा जाता है. हाम (राम का अपभ्रंश) को कुश का पिता बतलाते थे (see Wikipedia Kush & Kushite). परवर्ती काल में पेलेस्टाइन पर राक्षसों (रक्ष संस्कृति को मानने वाले) का अधिकार हो गया. इसीलिए फिलिस्तीन का अर्थ आज भी बर्बर, असभ्य, अशिक्षित, जंगली, निर्दयी, हिंसक आदि है (see google).

इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं “इथोपिया के क्रिश्चयन, हब्शी सम्राट स्वर्गीय हेल सलासी को भारत के एक स्वामी कृष्णानंद ने एक अनोखी पवित्र वस्तु कहकर जब रामायण की प्रति भेंट की तो हेल सलासी ने यह कहकर कृष्णानंद को चकित किया की “हम अफ़्रीकी लोगों को राम की जानकारी कोई नई बात थोड़े ही है. हम सारे कुशाईट हैं.” उस भेंट के पश्चात स्वामी कृष्णानंद ने बाजार से शालेय इतिहास की कुछ पुस्तकें खरीदकर उन्हें बड़ी उत्कंठा से पढ़ा तो उसमे स्पष्ट लिखा था की अफ़्रीकी लोग कुशाईट हैं. इथियोपिया के पाठ्यपुस्तकों में कुछ सौ वर्ष पहले तक इथियोपिया के लोगों को कुशाईट अर्थात कुश की प्रजाजन पढ़ाया जाता था और कुश के पिता को हाम (राम का अपभ्रंश) बताया जाता था”

Origin of the Pagan idols नाम के ग्रन्थ के भाग ४, अध्याय ५, पृष्ठ ३८० पर Rev. Faber लिखते हैं की “गाल (फ़्रांस, स्पेन, पुर्तगाल) और ब्रिटेन के सेल्ट उर्फ़ केल्ट लोगों का धर्म वही था जो हिन्दुओं का या ईजिप्त के लोगों का था. Cananites, Phrygians Greeks तथा रोमन लोगों का भी वही धर्म था. Phoenicians, Anakim, Philistine, Palli तथा इजिप्तिशियन लोगों के राजा लोग सारे कुश के वंशज (सही प्रजाजन) होने से कुशाईट कहलाते थे. उन्ही को Septuagent के अनुवादकों ने इथियोपियंस भी कहा है.

पेलेस्टाइन में आज भी राम के नाम पर एक नदी का नाम नाम है. फिलिस्तीन में रामल्ला शहर है जो राम + अल्ला अर्थात रामेश्वर शब्द है. इजिप्त दशरथ के पिता अज के नाम पर अजपति का अपभ्रंश है. इजिप्त के कई राजाओं के नाम राम से शुरू होते हैं जैसे रामसेसे प्रथम द्वितीय आदि. मध्य-पूर्व एशिया के कई राजाओं के नाम दशरथ थे.

श्रीराम और रामायण सिर्फ अफ्रीका और पेलेस्टाइन में ही नहीं यूरोप में भी खूब प्रचलित था. अत्री मुनि का कार्य क्षेत्र आधुनिक इटली था. कुछ विद्वान इसे अत्री शब्द का अपभ्रंश मानते हैं तो कुछ इसे अतल (पृथ्वी के चौदह भागों में से एक) शब्द का. रोम वस्तुतः राम का ही अपभ्रंश है. एडवर्ड पोकोक अपने ग्रन्थ के पृष्ठ १७२ पर लिखते हैं, “Behold the memory of …Ravan still preserved in the city of Ravenna, and see on the western coast, its great rival Rama or Rom”

प्रथम शताब्दी ईस्वी पूर्व तक रोम में एत्रुस्कन (Etruscan) सभ्यता थी. ये अत्री मुनि के अनुयाई और  वैदिक संस्कृति को मानने वाले लोग थे. इन्ही Etruscan लोगों का वाटिका (Vetican) में शिव और विष्णु का विशाल मन्दिर था जहाँ पापह पीठाधीश होते थे. वेटिकन पर जब इसाइयों ने हमला कर नष्ट कर दिया तो वहां के कुछ अवशेष जैसे कई शिवलिंग, पेंटिंग आदि एत्रुस्कन म्यूजियम में सुरक्षित हैं. उन पेंटिंग में रामायण कि कथाओं के कई प्रसंगों के चित्र भी हैं जो वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास भाग-३ में विभिन्न ग्रन्थों से लेकर दिए गये हैं. बीसवीं सदी में जर्मनी में भी खुदाई के दौरान दीवार पर बने श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान की कलाकृति मिली है.

एत्रुस्कन सभ्यता की विस्तृत जानकारी केलिए निचे लिंक पर क्लिक करें:

महाभारत काल के बाद यहूदी, इजरायल और पेलेस्टाइन की विस्तृत जानकारी केलिए निचे लिंक पर क्लिक करें:

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