वंदेमातरम्
151. लेखक Spencer Lewis के ग्रन्थ The mystical Life of jesus के पृष्ठ १३५ पर मुकुटधारी शिशु का एक चित्र मुद्रित है और उसके निचे लिखा है, “Research has revealed that a similar statue of a holy child was exhibited on Chrismas Day in many lands before the Christian era.”
152. चैत्र से प्रारम्भ होनेवाला मास अरब, यूरोप में एकाम्बर द्वितीयाम्बर आदि संख्यावाची शब्दों में भी गिना जाता था. यूरोपियनों के ईसाई बनने पर नवमास मार्च (जैसे इंग्लैण्ड में २२ मार्च जो १७५२ ईसवी तक चला) को रूढ़ हो गया. उसी मार्च महीने को प्रथम मास मानकर सेप्टेम्बर (सप्तअम्बर), ऑक्टोबर (अष्टअम्बर), नवेम्बर (नवअम्बर), दिसम्बर (दशअम्बर) आदि क्रमशः ७ वा, ८ वा, ९ वा, १० वा आदि मास बना था. फिर अचानक से एक आदेश के तहत जनवरी को नव मास अथवा प्रथम महीना मान लिया गया-पी एन ओक
153. लेखक Spencer Lewis ने अपने ग्रन्थ The mystical Life of jesus के पृष्ठ १५६ पर लिखा है कि “क्रिस्तस नाम या उपाधि पूर्ववर्ती देशों के अनेक गूढ़ पंथों में देवावतार की द्योतक थी. क्रिस्तस यह मूलतः ईजिप्त के एक देवता का नाम था. ईजिप्त के लोग जिसे ‘ख’ कहते थे उसे ग्रीक ‘क्ष’ लिखते थे. ग्रीक ‘क्ष’ का उच्चारण ‘क’ भी किया जाता था. इसी कारन ईजिप्त का ‘खरु’ ग्रीक भाषा में ‘कृ’ लिखा जाता था.”
क्रिस्तस मूलतः कृष्णस शब्द है. ‘ष्ण’ का उच्चारण ही ष्ट या स्त था. एसा उच्चारण भारत के कई प्रदेशों में भी होता है. अतः स्पष्ट है कि कृष्ण ही कृष्ट, कृष्त, ख्रीष्ट है तथा कृष्णनीति ही कृष्टनीति, ख्रीस्टनीति, क्रिश्चनीति है. ईशस कृष्ण का रोमन/ग्रीक उच्चार ही जीसस कृष्ट या क्राईस्ट है. जीसस नाम का कोई व्यक्ति कभी पैदा नहीं हुआ. ईजिप्त में ब्रिटिश-फ़्रांस युद्ध के समय भी कृष्ण मन्दिर था-पी एन ओक
154. दिसम्बर अर्थात दशम्बर अथवा दसवां महिना. रोमन में X का मतलब होता है १०. इसलिए X’mas का मतलब भी होता है दसवां महीना. दूसरी बात, Spencer Lewis ने लिखा है कि, “प्राचीन लोग शुभ अक्षर XP लिखा करते थे”. X कृष्ण शब्द का अद्याक्षर था क्योंकि ग्रीक ‘क्ष’ का उच्चारण ‘क’ भी किया जाता था. उसी तरह P परमात्मा या परमपिता का. अतः X’mas का मतलब संस्कृत कृष्णमास था जिसका अपभ्रंश अब क्रिसमस हो गया है. अपने अतीत के इतिहास को नष्ट भ्रष्ट कर देने और नकार देने के कारन यूरोपियनों की एसी हालत हो गयी है जिन्हें X’mas का सही मतलब भी पता नहीं है-पी एन ओक
154. ईसाई, इस्लामी और वामपंथी तीनों इतिहास के दुश्मन होते हैं. ये तीनों अपने अतीत के इतिहास को निकम्मा और गैरजरूरी बताकर नष्ट कर देते हैं. अगर भारत में घर घर में रामायण, महाभारत, वेद, पुराण आदि नहीं होते तो ये तीनों मिलकर भारत के गौरवशाली अतीत को भी नष्ट करने में सफल हो गये होते-पी एन ओक
155. जेरुसलम का तथाकथित Dome on the Rock मस्जिद प्राचीन अष्टकोणीय मन्दिर है. उसके गुम्बद के निचे अंदर जो रॉक अथवा चट्टान है वह स्वयम्भू महादेव थे. वही वहां के देवता हैं. भक्तगण उन्ही की पूजा और परिक्रमा करते हैं. परवर्ती काल में कुछ भावुक लोग उस पवित्र चट्टान के टुकड़े पूजा केलिए घर ले जाने लगे इसलिए उसे जाली से बंद कर दिया गया है. अब लोग जाली के बाहर से चट्टान की परिक्रमा करते हैं. जाहिर है चट्टान की पूजा और परिक्रमा अतीत के मन्दिर की यादें है इस्लामिक पूजा पद्धति नहीं-पी एन ओक
156. इस्लाम संस्कृत ईशालयम से बना है जिसका अर्थ होता है देवता का मन्दिर. काबा प्राचीनकाल से अरबों का प्रमुख ईशालयम था. मोहम्मद का परिवार वहां के पुजारी थे और अरब के लोग उस ईशालयम के अनुयायी. इसलिए मोहम्मद पैगम्बर ने जब काबा ईशालयम पर कब्जा किया तो उसने अपने मुहम्मदी पंथ का नाम ईशालयम उर्फ़ इस्लाम (अरबी उच्चार) रखा-पी एन ओक
157. जापान में सरस्वती, गणेश, कृष्ण आदि वैदिक देवताओं के हजारों मन्दिर हैं. जापानी डाक-विभाग द्वारा भी मुरलीधर कृष्ण का टिकट इराक की तरह ही श्रद्धा भाव से प्रकाशित किया गया है-पी एन ओक
158. ग्रीस के कोरिन्थ नगर के म्यूजियम में दीवार पर एक वृक्ष की छाया में पैर के आगे दूसरा पैर धरे हुए भगवान कृष्ण का बांसुरी बजाते और धेनु चराते एक चित्र प्रदर्शित है. अज्ञानी यूरोपीय पुरातत्वविदों ने उसके निचे लिख रखा है “एक देहाती दृश्य”. ग्रीस के नरेशों के सिक्कों पर ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी तक कृष्ण-बलराम की प्रतिमाएं खुदी होती थी. कृष्ण की मूर्तियाँ यूरोप अफ्रीका आदि देशों के मन्दिरों में होती थी और उन्हें रधमंथस, हेराक्लिज, हरक्यूलीज, हिरम, हर्मिस, कृष्ण, कृष्ट, इशस आदि नामों से जाना जाता था-पी एन ओक
(सिकन्दर मन्दिरों में पूजा करता था और कई मन्दिर बनबाया था इसके पर्याप्त प्रमाण हैं. ईसा पूर्व दूसरी सदी में पुष्यमित्र शुंग के समय सिंध पार के ग्रीक राजा मेनान्डर बौद्ध धर्म अपना लिया था. आगे सातवाहनों ने उन्हें अरब तक खदेड़ दिया. हो सकता है इसका प्रभाव ग्रीस की जनता पर पड़ा हो और उनमे से कुछ बौद्ध तो कुछ सनातन धर्म के विरोधी हो गये हों. धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से कमजोर पड़ने पर जब रोमन ईसाईयों ने हमला कर उन्हें ईसाई बनाया होगा तो स्वाभाविक है ईसाईयों ने ग्रीस के प्राचीन वैदिक अतीत को नष्ट भ्रष्ट कर दिया होगा-MKV)
159. यहूदी लोगों को Judaist और Jew भी कहा जाता है. ये यदुकुल के लोग हैं. यदु का अपभ्रंश यहूदी है और जदु उच्चारण से अपभ्रंश जुडेई हुआ. ज्यू लोगों का केलेंडर ३७६१ BC से प्रारम्भ हुआ जो ईसवी सन २०१९-२० में ५७८० वा वर्ष चल रहा है. उनके संवत को Passover वर्ष कहते हैं. Passover का अर्थ है देश छोड़कर निकला जाना. अर्थात उन्हें द्वारिका राज्य छोड़े और कृष्ण से बिछड़े हुए ५७८० वर्ष हो गया. वे जब द्वारिका से बिछड़े तब से उन्होंने निजी सम्वत गणना आरम्भ की. अतः महाभारतीय युद्ध हुए लगभग ५७८१ वर्ष होना चाहिए-पी एन ओक
(इजरायल के लोग भ्रमवश खुद को ईजिप्त से इस्रायेल भागकर आये हुए समझते हैं क्योंकि एसा हिब्रू बायबल में लिखा है. परन्तु विस्तृत अध्ययन से पता चलता है इस बात का न तो कोई एतिहासिक और न ही पुरातात्विक आधार है. सभी स्रोतों में इसे मिथक कहा गया है. कुछ इतिहासकार इन्हें दक्षिण ईजिप्त के Cannan के कननाईट से जोड़ते हैं. हम जानते हैं Cannan मूलतः कान्हा शब्द है और कननाईट कान्हापंथी ही थे. अतः सम्भव है यदु लोग द्वारिका से निकलकर पहले ईजिप्त गये हों परन्तु वहां अनुकूल परिस्थिति नहीं होने के कारन वे इस्रायल आ गये हों-MKV)
160. The Chosen People ग्रन्थ के लेखक अलेंग्रो लिखते हैं की, “यहूदियों के प्रख्यात पूर्वज तथा उनके भगवान के नाम सेमेटिक (अर्थात अरबी) परम्परा के नहीं है. वे तो किसी प्राचीनतम पौर्वात्य सभ्यता ही नहीं अपितु प्राचीनतम जागतिक परम्परा के हैं.”
यहूदियों के पूर्वज और भगवान प्राचीनतम पौर्वात्य सभ्यता के होने का मतलब स्पष्ट है भारतीय पूर्वज और कृष्ण भगवान.
161. प्राचीन कम्बोडिया (कम्बोज) में सम्भवतः उड़ीसा के राजाओं का राज्य था. कम्बोडिया और उड़ीसा दोनों के प्राचीन नृत्य, गान, वेशभूषा, वाद्य, गहने और प्रासाद तथा मूर्ति शैली में गहरी समानता है-पी एन ओक
162. स्याम (थाईलैंड) के लोग आज भले ही बौद्ध धर्म मानते हों परन्तु उनकी संस्कृति वैदिक परम्परा की है. वहां के राजपुरोहित वैदिक धर्मी यानि हिन्दू ही होते हैं. स्याम के राजा का राज्याभिषेक प्राचीन वैदिक संस्कारों से वैदिक मन्त्रों सहित होता है. प्रत्येक राजा को राम की पदवी दी जाती है. बैंकोक से पहले स्याम की राजधानी अयूथ्या था जिसे म्यांमार ने युद्ध में तबाह कर दिया था-पी एन ओक
163. स्याम (थाईलैंड) की प्राचीन राजधानी अयूथ्या का वर्णन इतिहास में इन शब्दों में मिलता है:
देवदूतों का नगर, अमरपुरी, इंद्र की रत्नजड़ित चमकती धमकती बस्ती, शोभायमान मन्दिरों से भरी अयूथ्यानरेश की नगरी, राजा के विशाल एवं सुंदर महलों का नगर, विष्णु और अन्य समस्त देवी देवताओंका निवास स्थान आदि-पी एन ओक
164. मलय प्रदेश (मलेशिया) की राजधानी कोलालम्पुर चोलानाम्पुरम का अपभ्रंश हैं. यहाँ चोल राजाओं का शासन था.नगर के मध्य में एक विशाल शिवमंदिर था जिसमे स्फटिक के विशाल शिवलिंग की पूजा होती थी. उत्खनन में उस नगर के मध्यवर्ती भाग में शिवमंदिर के अवशेष पाए गये हैं जिन्हें अरबों ने नष्ट कर दिया था. वहां के राज परिवार और रियासत में अभी भी आर्य संस्कृति और संस्कृत के शब्द विद्यमान हैं जैसे श्री, महादेवी, महाश्री, राम हुसैन, लक्ष्मण हुसैन आदि-पी एन ओक
165. जावा, सुमात्रा और बाली द्वीपों (इंडोनेशिया) पर इस्लामिक आक्रमण से पूर्व वैदिक धर्म और आर्य संस्कृति ही प्रचलन में था. इस्लामिक आक्रमण के बाद वैदिक धर्म तो लगभग खत्म हो गया है परन्तु आर्य संस्कृति का लोप अभी नहीं हुआ है. चोलों के समय यहाँ चोलवंश का शासन था. बाली द्वीप में तो अभी तक चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का हिन्दू धर्म ही प्रतिष्ठित है. वहां के पंडित पंडा कहा जाता है. बाली में परम्परागत सारे उत्सव, त्यौहार, व्रत, पर्व आदि अभी तक वैदिक पद्धति से मनाए जाते हैं-पी एन ओक
166. ऑस्ट्रेलिया के माओरी जनजाति प्राचीन वैदिक संस्कृति के लोग हैं. वे अभी भी ललाट पर तिलक लगाते हैं. उनकी शक्लें तमिलों से मिलती है और भाषा भी तमिल से मिलती जुलती है-पी एन ओक
167. वैवस्त मनु स्वयं सूर्य (प्रजापति वरुण के छोटे भाई, न की Sun) पुत्र थे और मनु से ही सारे मानव हुए. इस दृष्टि से जापानी राजकुल की उत्पत्ति सूर्य से माना जाना जापान की वैदिक परम्परा ही सिद्ध करती है-पी एन ओक
168. शाक्य मुनि (इच्छवाकू वंशी शाक्य क्षत्रिय) सिद्धार्थ गौतमबुद्ध एक सीधा-सादा हिन्दू साधू था. उसने न ही कभी हिन्दू धर्म का त्याग किया और न ही कोई दूसरा धर्म स्थापन किया. जन्म से मृत्यु तक सिद्धार्थ हिन्दू ही रहा, किन्तु राजसी जीवन त्यागकर साधू बन जाने पर सिद्धार्थ के त्याग से प्रभावित विश्व के अधिकांश लोग उसके व्यक्तिगत अनुयायी बन गये-पी एन ओक
169. चीन का धर्म और संस्कृति निसंदेह हिन्दू स्रोत की है. एक समय था कि लोयंग प्रान्त में ही ३००० हिन्दू साधू और दस सहस्त्र भारतीय कुटुम्ब बसे हुए थे जो वैदिक धर्म, संस्कृति और कला को बराबर चला रहे थे. (पृष्ठ ११३, Ideals of the East, लेखक ओकाकुरा)
170. यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि चीन का धर्म भारत से उद्भूत है. (पृष्ठ ८५, The Theogony of the Hindus)
171. रामायण में चीन का उल्लेख कोषकार (रेशम का कोष निर्माण करने वाले) कीड़ों का प्रदेश के रूप में हुआ है. (पृष्ठ ८, खंड-२, आर्यतरंगिनी, लेखक-ए. कल्याणरामन)
172. चीन देश में किसी शिशु का जन्म होते ही उसका जन्म समय, तारीख और राशी लिखी जाती है. प्रवास को निकलते समय भी ज्योतिषियों से योग्य मुहूर्त पूछा जाता था. यहाँ के ज्योतिषी बड़े प्रवीन हैं और उनकी कही बातें अधिकतर सच निकलती थी. (पृष्ठ १९१, खंड-२, मार्कोपोलो का प्रवास वर्णन)
173. चीन का ज्ञानकोष सम्पादन करने वाले प्राध्यापक Huang Xin Chuang कहते हैं, “चीन के राजकुलों की वेदों पर बड़ी श्रद्धा थी. लगभग सारे ही राजघराने वेदों का चीनी भाषा में अनुवाद करा लेते थे. योग और आयुर्वेद के संस्कृत ग्रन्थों का भी चीनी भाषा में अनुवाद हुआ है. लगभग पांच सहस्त्र प्राचीन संस्कृत ग्रंथों के अनुवाद चीनी भाषा में उपलब्ध हैं. भारत में उपलब्ध ह्स्तलिखितों से भी कई चीनी अनुवाद अधिक प्राचीन हैं.”
174. दक्षिण चीन सागरतट पर कोवान्झाऊ नाम का नगर है. वहां उत्खनन में शिव, विष्णु आदि वैदिक देवताओं की मूर्तियाँ तथा दीवारों पर खुदे अनेक देवी देवताओं के चित्र पाए गये. वहां के एक प्राचीन खंडहर में कृष्ण, हनुमान, लक्ष्मी, गरुड़ आदि की मूर्तियाँ और चित्र पाए गये. यह सारी सामग्री स्थानीय म्यूजियम ऑफ़ ओवेर्सिज कम्युनिकेशन में प्रदर्शित है-पी एन ओक
175. चीन के जन्जिओंगचोंग शहर में चार फूट ऊँची विष्णु भगवान की मूर्ति, करीब ७१ नृसिंह भगवान की मूर्ति मिली. वहां विष्णु पुराण की कथाएं, कैलाश पर शिव पार्वती आदि कथाएं चित्रित मिली. वहां के म्यूजियम के अधिकारी डॉ Yang Qin Zhang के अनुसार वहां का एक मन्दिर भारत के मदुरई के मीनाक्षी मन्दिर शैली का बना हुआ है-पी एन ओक
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