226. रमजान, रामदान वास्तव में रामध्यान शब्द है. अर्बस्थान के लोग प्राचीन समय से रमझान के पुरे महीने में उपवास रखकर भगवान राम का ध्यान पूजन करते थे. इसीलिए रमझान का महीना पवित्र माना जाता है-पी एन ओक
227. मक्का की देवमूर्तियों के दर्शनार्थ प्राचीन (इस्लामपूर्व) काल में जब अरब लोग यात्रा करते थे तो वह यात्रा वर्ष की विशिष्ट ऋतू में ही होती थी. शायद वह यात्रा शरद ऋतू में (यानि दशहरा-दीपावली के दिनों में) की जाती थी. प्राचीन अरबी पंचांग (वैदिक पंचांग के अनुसार) हर तिन वर्षों में एक अधिक मास जुट जाता था. अतः सारे त्यौहार नियमित ऋतुओं में ही आया करते थे. किन्तु जब से अरब मुसलमान बन गये, कुरान ने आधिक मास पर रोक लगा दी. अतः इस्लामी त्यौहार, व्रत, पर्व आदि निश्चित ऋतू में बंधे न रहकर ग्रीष्म से शिशिर तक की सारी ऋतुओं में बिखरे चले जाते हैं. (Travels in Arabia, Writer-john Lewis Burckhardt)
228. मुसलमानों की हज यात्रा एक इस्लामपूर्व परम्परा है. उसी प्रकार Suzafa और Merona भी इस्लामपूर्व काल से पवित्र स्थल माने जाते रहे हैं क्योंकि यहाँ Motem और Nebyk नाम के देवताओं की मूर्तियाँ होती थी. अराफात की यात्रा कर लेने पर यात्री Motem और Nebyk का दर्शन किया करते हैं. (Pg. 177-78, Travels in Arabia, Writer-john Lewis Burckhardt)
229. इस्लामी ज्ञानकोष में लिखा है कि महम्मद के दादा काबा मन्दिर के पुरोहित थे. मन्दिर के प्रांगण के पास ही उनके घर में या आँगन में खटिया पर बैठा करते. उनके उस मन्दिर में ३६० देव मूर्तियाँ हुआ करती थी.
महादेव उनके कुल देव थे. महम्मद काबा की सभी देव मूर्तियाँ भंग कर दी केवल शिवलिंग सुरक्षित रखा जिसे हज करने वाले आज भी माथे से लगाते हैं और चुमते हैं-पी एन ओक
230. महम्मद संस्कृत शब्द है. अरबी में इसका कोई अर्थ नहीं होता है. यह नाम नहीं उपाधि है. महान मद: यस्य असौ महमद: अर्थात प्रतिभाशाली व्यक्ति या बड़ा घमंडी व्यक्ति. महम्मद के समर्थक उन्हें प्रतिभाशाली व्यक्ति के रूप में और महम्मद के विरोधी उन्हें बहुत घमंडी व्यक्ति के रूप में महम्मद सम्बोधित करते थे-पी एन ओक
231. महम्मद के घराने का नाम कुरैश था. कुरैश का मतलब होता है कुरु ईश अर्थात कुरु प्रमुख. महाभारत युद्ध समाप्त होने पर बचे खुचे कौरव वंशियों में से कुछ पश्चिम एशिया की ओर चले गये थे. कुरैश उनके ही वंशज हैं. यह भी सम्भव है कि कौरवों के वंशज वहां शासन करते हों. ऐसा ही एक कुरुईश कुल अर्बस्थान में काबा मन्दिर परिसर का स्वामी था. उसी कुल में महम्मद का जन्म हुआ था-पी एन ओक
232. नमाज के समय मुसलमान लोग झुकना, मुड़ना आदि जो शारीरिक क्रियाएँ करते हैं वे उनके प्राचीन योगासनों की प्रथा दर्शाते हैं. प्रतिदिन नमाज पढने वाले लोग अनजाने योगासन ही करते हैं. अरबी में नमाज को सलाट कहते हैं. उसका वही अर्थ है जो योग का है-आत्मा को परमात्मा से जोड़ना. (Namaz: The Yoga of Islam, Writer- Ashraf A Nizami)
233. विश्व में कहीं भी मस्जिद का रुख मक्का की दिशा में होना अनिवार्य है. परन्तु विश्व भर में एतिहासिक मस्जिद कहलाने वाली लगभग किसी भी इमारत का रुख मक्का की दिशा में नहीं है. काबा स्वयं ज्योतिषीय आधार पर इस प्रकार बना है कि उसकी चौडाई की मध्य रेखा की एक नोक ग्रीष्म ऋतू के सूर्योदय क्षितिज बिंदु की सीध में है और दूसरी शरद ऋतू के सूर्यास्त बिंदु की सीध में है. महम्मद के समय उसमे ३६० मूर्तियाँ होती थी. वह सूर्यपूजा का स्थान था. वायु के प्रचलन की आठ दिशाओं से उसके आठ कोने सम्बन्धित हैं. David A King, Prof. HKCES, Newyork City.
234. काबा का आकार सृष्टि के लगभग सभी तत्वों के सम्मिलित हिसाब के आधार पर बना है. अतः उसमे ब्रह्माण्डविद्या, रसायनविद्या, भौतिकशास्त्र, वायु ऋतमानशास्त्र, आयुर्वेद आदि सभी का विचार अंतर्भूत है (प्राइस)
हिझाज की प्रारम्भिक मस्जिदों का रुख पूर्व दिशा में था क्योंकि इस्लामपूर्व मुर्तिभक्त अरबों को पूर्व दिशा का महत्व था. काबा मन्दिर की प्रत्येक दीवार या कोना विश्व की एक-एक विशिष्ट दिशा से सम्बन्धित था. (Berthold).
235. अरबी इतिहास में सिन्धु पार के भारतियों को तुर्क और समनी (समानिद) कहा गया है क्योंकि उस समय तुर्क और समनी यानि शाहमनी सारे वैदिकधर्मी थे. समानिद क्षत्रिय राजवंश था जो मुस्लिम बन जाने के बाद भी अपने नाम के साथ मनु: का इस्लामी संक्षेप नूह शब्द लगाते थे जिससे पता चलता है कि वे जब हिन्दू थे तो खुद को स्मृतिकार मनु के वंशज कहलाने में गर्व महसूस करते थे-पी एन ओक
236. मक्का के ओकथ में कवि सम्मेलन हुआ करता था. उस सम्मेलन में पुरस्कृत कविता स्वर्ण थालों पर लिख मक्का में लटकाया जाता था. उन्ही कविताओं का संग्रह सैर उल ओकुल में किया गया है. उसके पृष्ठ ३१५ पर महम्मद से १६५ वर्ष पूर्व के कवि जिपहम बिन्तोई का सम्राट विक्रमादित्य की प्रशंसा में लिखी कविता है जिसका अर्थ निचे दिया जाता है:
भाग्यशाली हैं वे जो विक्रमादित्य के शासन में जन्मे. वह सुशील, उदार, कर्तव्यनिष्ठ शासक प्रजाहित दक्ष था. किन्तु उस समय हम अरब परमात्मा का अस्तित्व भूलकर वासनासक्त जीवन व्यतीत करते थे. हममें दूसरों को निचे खींचने की और छल की प्रवृति बनी हुई थी. अज्ञान का अँधेरा हमारे पुरे प्रदेश पर छा गया था. भेड़िये के पंजे में तड़फड़ाने वाली भेड़ की भांति हम अज्ञान में फंसे थे. अमावस्या जैसा गहन अंधकार सारे अरब प्रदेश में फ़ैल गया था. किन्तु उस अवस्था में वर्तमान सूर्योदय जैसे ज्ञान और विद्या का प्रकाश, यह उस दयालु विक्रम राजा की देन है जिसने हम पराये होते हुए भी हमसे कोई भेदभाव नहीं बरता. उसने निजी पवित्र (वैदिक) संस्कृति हममें फैलाई और निजी देश (भारत) से यहाँ ऐसे विद्वान, पंडित, पुरोहित आदि भेजे जिन्होंने निजी विद्वता से हमारा देश चमकाया. यह विद्वान पंडित और धर्मगुरु आदि जिनकी कृपा से हमारी नास्तिकता नष्ट हुई, हमें पवित्र ज्ञान की प्राप्ति हुई और सत्य का मार्ग दिखा वे हमारे प्रदेश में विद्यादान और संस्कृति प्रसार के लिए पधारे थे. (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास भाग-२)
237. जैसे हिन्दुओं में ३३ कोटि (प्रकार) के देवता होते हैं वैसे ही इस्लामपूर्व एशिया माईनर प्रदेश में रहने वाले लोगों के भी ३३ देवता होते थे. इस्लामपूर्व काल में शिवव्रत होता था. वह शिवव्रत काबा मन्दिर में बड़ा धूमधाम से मनाया जाता था. उसी का अपभ्रंश इस्लाम में शवे बारात हुआ है-पी एन ओक
238. महम्मद का चाचा उमर-बिन-ए-हज्जाम एक प्रसिद्ध कवि था. शिव की स्तुति में लिखी उसकी एक कविता भी सैर-उल-ओकुल ग्रन्थ में है. कवि जिपहम बिन्तोई की विक्रमादित्य की प्रशंसा में लिखी कविता और यह कविता दोनों दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मन्दिर के यज्ञशाला की दीवारों पर उत्कीर्ण है. महम्मद का चाचा उमर-बिन-ए-हज्जाम के कविता का अर्थ निचे है:
यदि कोई व्यक्ति पापी या अधर्मी बने,
यह काम और क्रोध में डूबा रहे,
किन्तु यदि पश्चाताप कर वह सद्गुणी बन जाए
तो क्या उसे सद्गति प्राप्त हो सकती है?
हाँ अवश्य! यदि वह शुद्ध अंतःकरण से
शिवभक्ति में तल्लीन हो जाए तो
उसकी आध्यात्मिक उन्नति होगी.
हे भगवान शिव! मेरे सारे जीवन के बदले,
मुझे केवल एक दिन भारत में निवास का
अवसर दें जिससे मुझे मुक्ति प्राप्त हो.
भारत की एकमात्र यात्रा करने से
सबको पुण्य-प्राप्ति और संतसमागम का लाभ होता है.
(वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास भाग-२)
239. सैर उल ओकुल के पृष्ठ २५७ पर मोहम्मद से २३०० वर्ष पूर्व जन्मे अरबी कवि लबी बिन-ए-अख्त्ब-बिन-ए-तुरफा की वेदों की प्रशंसा में लिखी हुई कविता का अर्थ निचे दिया है:
हे भारत की पवित्र भूमि तुम कितनी सौभाग्यशाली हो.
क्योंकि ईश्वर की कृपा से तुम्हे दैवी ज्ञान प्राप्त है.(१)
वह दैवी ज्ञान चार प्रकाशमान ग्रन्थद्वीपवृत सारों का मार्गदर्शक है.
क्योंकि उनमे भारतीय दिव्य पुरुषों की वाणी समाई है.(२)
परमात्मा की आज्ञा है कि सारे मानव उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करें.
और वेदों के आदेशानुसार चलें.(३)
दैवी ज्ञान के भंडार हैं साम और यजुर जो मानवों की देन हैं.
उन्ही के आदेशानुसार जीवन बिताकर मोक्ष प्राप्ति होगी.(४)
दो और वेद हैं ऋग और अक्षर, जो भ्रातृता सिखाते हैं.
उनके प्रकाश से सारा अज्ञान अंधकार लुप्त हो जाता है.(५)
(वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास भाग-२)
२४०. सऊदी अरब से हंसवाहिनी देवी सरस्वती की एक प्राचीन प्रस्तर मूर्ति प्राप्त हुई है जो ब्रिटिश म्यूजियम, लन्दन में रखा हुआ है-पी एन ओक
241. भारत में डाक व्यवस्था चालू है.उस डाक-सेवा का नाम है “अंजला”. प्राचीनकाल में ईरान में भी एक प्रकार की डाक-व्यवस्था उपलब्ध थी. उसे “अंगरस” कहा जाता था. उसमें और अंजला में कुछ समानता दिखती है. सम्भावना एसी लगती है की ईरानी डाक-सेवा भारतीय डाक-सेवा का अनुकरण रूप हो. (Page-147, A Voyage to East Indies, Writer-Fra Panoline da Tan Bartolomeo)
242. जबसे भारतीय राजाओं को विदेशी आक्रमणकारियों ने परास्त किया और लूटपाट का शिकार हुआ तब से भारतीय शस्त्र और विद्याओं का स्तर गिर गया है. अनेक व्यवसायों की मिलावट हो गयी है. आक्रमणों के पूर्व भारतीय लोग धनी और सुखी होते थे. नीति नियमों का पालन हुआ करता और न्याय तथा शांति का वातावरण हुआ करता था. मैंने स्वयम देखा है की त्रावणकोर नरेश राम वर्मा की संतानों को उसी तरह से शिक्षा दी जाति थी जैसे शूद्रों को. (Page-262-267, A Voyage to East Indies, Writer-Fra Panoline da Tan Bartolomeo)
243. Fra Panoline da Tan Bartolomeo के A Voyage to East Indies के अनुवादक ने टिपण्णी में लिखा है कि ग्रीक दर्शनशास्त्री पाईथोगोरस ने निजी शिक्षा भारत में ही प्राप्त की होगी क्योंकि उसके शिष्यों पर भी पांच वर्ष तक कोई प्रश्न नहीं पूछने का बंधन था जो भारत के वैदिक शिक्षण प्रणाली का हिस्सा है.
244. संस्कृत भाषा के प्रति जर्मन विद्वानों को बड़ी श्रद्धा, आदर और प्रेम होता है. उदाहरनार्थ आकाशवाणी द्वारा संस्कृत में क्रायक्रम आधुनिक युग में भारत से भी पहले जर्मन देश द्वारा आरम्भ किया गया. जर्मन भाषा का ढांचा संस्कृत जैसा ही होता है. प्रथमा से सम्बोधन तक की विभक्तियाँ, संस्कृत जैसी जर्मन भाषा में भी होती है क्योंकि प्राचीनकाल में जर्मनी में संस्कृत भाषा का प्रचलन था-पी एन ओक
245. सन १८१८ में W. Von Schlegel बॉन विश्वविद्यालय में संस्कृत का प्राध्यापक बना. उसने १८२३ में भगवद्गीता और १८२९ में रामायण का जर्मन में अनुवाद किया. १८१९ में एक जर्मन विद्वान Frammy Bapp का निष्कर्ष प्रकाशित हुआ की ग्रीक, लैटिन, फारसी और जर्मन भाषाओँ का संस्कृत से बड़ा गहरा सम्बन्ध है.
246. यूरोप में एतिहासिक और पुरातत्वीय उत्खनन ईसाई व्यक्तियों के द्वारा किये जाने के कारन प्राप्त वैदिक अवशेष या तो जानबूझकर छिपा दिए जाते हैं, नष्ट कर दिए जाते हैं या उनका गलत और विकृत अर्थ लगाते हैं. जैसे ग्रीस में भगवान कृष्ण की प्रतिमाएं इमारतों में पाई गयी, सिक्कों पर भी दिखाई दी फिर भी उनका कोई रिकार्ड नहीं रखा गया. इटली में उत्खनन में पाए गए प्राचीन घरों में रामायण प्रसंगों के चित्र अंकित होते हुए भी इटली के पुरातत्वविद उनकी बाबत पूर्णतया अनजान बने हुए हैं-पी एन ओक
247. ऋषिय प्रदेश (Russia) में अष्टांग आयुर्वेद का एक संस्कृत ग्रन्थ पाया गया है. साइबेरिया के कुछ क्षेत्रों में अभी भी रोगमुक्ति और लम्बी आयु के लिए अयुर्देवता की पूजा होती है. यह ग्रन्थ और एक आयुर्देवता की मूर्ति दिल्ली के हौज खास भवन में International Academy of Indian culture में प्रदर्शित है.
248. Asimov नामक एक रशियन विद्वान के अनुसार रशिया में जो विविध एतिहासिक वस्तु संग्रहालय है उनमे प्रदर्शनार्थ ब्रोंज धातु की परशु एवं विष्णु भगवान की मूर्तियाँ आदि है जो उस साईबेरिया प्रदेश के निवासी आदिघई लोगों की कलाकृतियाँ है. उनमे जो नक्काशी है वह भारतीय नक्काशी परम्परा से मिलती है. उनमे गज प्रतिमाएं भी हैं जबकि शीत प्रदेश में हाथी नहीं पाए जाते.
(वैदिक विश्वराष्ट्र का इतिहास, भाग-३, लेखक-पी एन ओक)
249. रशियन लेखागारों में लगभग ६०० प्राचीन दस्तावेज, ग्रन्थ, गाथाएं आदि हैं जो संस्कृत में या प्राचीन भाषाओँ में है. भारत सरकार को उसे मंगवाकर उसके अध्ययन शोधन की व्यवस्था करना चाहिए. वे वैदिक विश्व संस्कृति के धरोहर हो सकते हैं-पी एन ओक
250. जर्मन लोग अपने देश को Deutschland (डाइत्श लैंड) कहते हैं जो संस्कृत दैत्य स्थान का अपभ्रंश है-पी एन ओक
The German term Deutschland, originally diutisciu land (“the German lands”) is derived from deutsch, descended from Old High German diutisc “of the people” (from diot or diota “people”)-Wikipedia, Germany
Duetsch, Diot, Diota आदि दैत्य शब्द के ही अपभ्रंश हैं.
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