गौरवशाली भारत

गौरवशाली भारत-८

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वंदेमातरम्

176.      चीन के कोवान्झाऊ में दीवारों पर उत्कीर्ण चित्र में कुबेर के दो पुत्र, सात कन्याओं के साथ जलक्रीडा करते हुए कालिया नाग तथा बालकृष्ण द्वारा कलिया नाग दमन का चित्र प्रदर्शित है. गरुड पर आरूढ़ विष्णु भगवान का भी चित्र है-पी एन ओक

177.      अयोध्या के सूर्यवंशी राजा की कन्या से कोरिया के राजा किम सुरो का विवाह हुआ था. कोरिया के इतिहास में लिखा है कि ईसवी सन ४९ में अयोध्या की राजकन्या ईश्वरीय आज्ञा के अनुसार नौका से सागर पारकर कोरिया में दाखिल हुई. जिस क्षत्रिय कोरियाई राजा से उस भारतीय राजकुमारी का विवाह हुआ वह राजा नौ फुट लम्बा था.

178.      वैदिक संस्कृति में आठ दिशाएं हैं-उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम, ईशान्य, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य. इन दिशाओं के पालक कुबेर, इंद्रा, यम, वरुण, इशाणु, अग्नि, राक्षस और वायु हैं जिन्हें अष्टदिक्पाल कहा जाता है. कोरिया में अष्टदिक्पालों की मूर्तियाँ बनती थी और पूजी जाती थी. उनमे से कुछ मूर्तियाँ ब्रिटिश म्यूजियम में प्रदर्शित है-पी एन ओक

179.      मिस्त्र का नाम ईजिप्त श्रीराम के पूर्वज अजपति का अपभ्रंश है. ईजिप्त की दंतकथाओं में दशरथ की कथाएं अन्तर्निहित हैं. इथिओपिया आदि उत्तर अफ़्रीकी देशों के साथ प्राचीन ईजिप्त के लोग भी खुद को कुशाईटस अर्थात कुश के प्रजाजन कहते थे-पी एन ओक

180.      रोमन सम्राट कॉन्टेस्टायिन ने ईसाई बनने के बाद लगभग ३१२ ईसवी में रामनगर (रोम) स्थित वाटिका (veatican) पर हमला किया और वहां के वैदिक धर्मी पापहर्ता (पीठाधीश) की हत्या कर वहां ईसाई बिशप को बैठाकर उसी को पापहर्ता उर्फ़ पोप घोषित कर दिया. वहां के वैदिक धर्मग्रंथ के भंडार को नष्ट करा दिया-पी एन ओक

181.      गाजा पट्टी के एक प्रमुख नगर का नाम रामल्ला है. आयरलैंड के wexford नगर के उत्तर में एक मील की दूरी पर Ramsfort house है. उस ईमारत में एक शिलालेख है जिसमें थॉमस राम के बारे में लिखा है. इंग्लैण्ड में सागर किनारे Ramsgate नगर है जो रामघाट या रामद्वार है. बड़ा बड़ा द्वार आदि को तोड़ने केलिए मोटी लकड़ी या खम्भे Ramrod कहलाता है. यूरोप, जर्मनी, रूस, मंगोलिया आदि में रामायण का मिलना, कुशाईटो (कुश के प्रजाजन) का साम्राज्य, ईजिप्त के प्राचीन नरेशों के रामसेने प्रथम, द्वीतीय नाम आदि सिद्ध करता है कि भगवान श्रीराम वैश्विक भगवान थे-पी एन ओक

182.      इराक के अंतिम राजकुल का नाम बर्मक था. अलबरूनी के इतिहास के अनुवादक एडवर्ड डी सचौ ने लिखा है कि इराक में नवबहार नगर नवबिहार का अपभ्रंश है. वह एक बौद्ध पीठ था. इस पीठाधीश के पद को परमक (परमगुरु) कहते थे. अरब-इस्लामी आक्रामकों ने जब इराक पर हमला कर इराक को बल पूर्वक मुसलमान बनाया तब से परमक उर्फ़ बर्मक की धर्मसत्ता समाप्त हो गयी. परमक उर्फ़ बर्मक के इस्लामिक राजा बन जाने के कारन उसके अनुयायी जनता उसी के आज्ञा से मुसलमान बन गयी.

183.      ईरान में प्रजा राज्य स्थापित होने से पूर्व जो अंतिम राजकुल था वह पहलवी घराना था. पहलवी वैदिक धर्म को मानने वाले क्षत्रिय लोग थे. महाभारत और पुराणों में उसका उल्लेख है. वशिष्ठ की कामधेनु जब विश्वामित्र छीनकर ले जाने लगे तो उस कामधेनु का रक्षण करने केलिए जो क्षत्रिय कुल दौड़ता आया वह पह्लव ही थे-पी एन ओक

184.      ईरान के राजा की जो उपाधियाँ होती थी उनमे उसे आर्यमिहिर कहा जाता था जिसका अर्थ है वैदिक संस्कृति के लोगों में सूर्य जैसा चमकने वाला श्रेष्ठ तारा. ईरान के राजचिन्ह में एक सिंह अपने दाहिने पैर से खड्ग धारण किया हुआ और अगले बाएँ पैर से पृथ्वी गोल को दबाया हुआ बताया गया है. यह कृण्वन्तो विश्वमार्यम का प्रतीक है. इसमें यह दर्शाया गया है कि सारी पृथ्वी पर राज्य सत्ता का तभी ठीक नियन्त्रण रह सकता है जब हाथ में खड्ग हो और हृदय सिंह जैसा पराक्रमी हो-पी एन ओक

185.      मुसलमानों द्वारा ईरान के पारसियों को बलपूर्वक मुसलमान बनाये जाने के बाबजूद मुस्लिम पिता से उत्पन्न ईरानी कवि साद ने कभी इस्लाम स्वीकार नहीं किया. वह अपने पूर्वजों की तरह विष्णु भक्त था. व्हम्बेरी ने अपने पुस्तक के पृष्ठ १२८ पर लीखा है कि, “Saadi even assumed the religion of the worshippers of Vishnu in order to extend and increase his knowledge of things.”

186.      ग्रीक इतिहासकार ओरियन के अनुसार मारकण्ड यह सागदियाना की राजधानी थी. मारकण्ड शायद वही नगर है जिसे ईरानी लोग आजकल समरकंद कहते हैं- Sir W Drummond का ग्रन्थ पेज ३२२

मारकण्ड वास्तव में मार्कण्डेय है अर्थात समरकंद नगर का पुराना नाम मार्कण्डेय नगर था क्योंकि वहां ऋषि मार्कण्डेय का आश्रम और गुरुकुल था. सागदियाना राजकुल प्राचीन शुद्धोधन शब्द है. समरकंद पर मुस्लिमों के अधिकार करने से पूर्व समरकंद बौद्ध नगर था और यहाँ का राजा भी बौद्ध था. अंतिम बौद्ध राजा का राजमहल अब तैमूर लंग का मकबरा कहा जाता है-पी एन ओक

187.      अनेक प्रमाणों से प्रतीत होता है कि प्राचीन भारतीय, ईरानी, तार्तर और चीनी लोगों की न्याय-व्यववस्था, धर्म और विद्या समान थे. तुराण (यानि तार्तर और चीन) के लोग ईरानियों जैसे ही सूर्यपूजक थे. अश्वमेध यज्ञ करते और सूर्य को रथ अर्पण करते. चीनी लोग भी सूर्यभक्त थे और वे ग्रहपूजन भी करते थे. (Sir W Drummond का ग्रन्थ खंड-२, पेज १३०)

188.      प्राचीनकाल में अरब लोग शैवपंथी थे. मोहम्मद…रब…मोज़ेस…मैमोनी आदि से पूर्व अनेक युग तक अरबों में शिवभक्ति ही प्रचलित थी. सारे मानव उसी धर्म के अनुयायी थे…विश्व के लगभग सारे ही प्रगत लोगों का वही धर्म था….विविध प्रकार के पत्थर-कोई गोल, कोई स्तम्भ के आकर का, कोई पिरामिड के आकार का, प्राचीन समय से पूजे जाते थे. ((Sir W Drummond का ग्रन्थ खंड-२, पेज ४०७-४३५)

189.      सर विलियम जोन्स कहते हैं की स्पष्ट प्रमाणों से और तर्क द्वारा यह बात सिद्ध हो चुकी है कि असीरिय और पिशदादी शासनों से पूर्व ईरान में एक बड़ा प्रबल राज्य प्रस्थापित था और वह वास्तव में हिन्दू राज्य था. वह सैकड़ों वर्ष रहा. अयोध्या और इन्द्रप्रस्थ के हिन्दू राजकुलों से उसका इतिहास जुड़ा हुआ है. (Collectania De Rebus Hibernicus, Writer, Lt. General Charles Vallancey, Pg. 465)

190.      बेबीलोनियन और असीरियन साम्राज्यों में सर्वत्र हिन्दू धर्म ही था. प्राचीन धर्मग्रंथों में पाए जाने वाले विपुल प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि उनके देव सूर्य होते थे. वे उसे बालनाथ कहते थे. उसका स्तम्भरूपी प्रतीक प्रत्येक पहाड़ी पर प्रत्येक कुञ्ज में प्रतिष्ठित था. उसका एक दूसरा रूप था बछड़े का, जिसका पर्व हर पूर्णिमा को हटा था. (इंडिया इन ग्रीस, लेखक एडवर्ड पॉकोक, पृष्ठ-१७८)

191.      सीरिया राज्य का नाम सूर्य से पड़ा है. सारा प्रदेश भी सूर्य से ही सीरिया कहलाया. प्राचीन समय में यहाँ सूर्यपूजक लोग ही रहते थे. यह सूर्य योद्धा लोग बड़ी संख्यां में पेलेस्टाइन में बसे. (इंडिया इन ग्रीस, लेखक एडवर्ड पॉकोक, पृष्ठ-१८२)

192.      निमरोद नाम का ईजिप्त का एक प्राचीन सम्राट था. विल्फोर्ड साहब का कहना है कि प्राचीन संस्कृत साहित्य में उसका मूल नाम निर्मर्याद (हिरण्यकाश्यप?) अंकित है. वह बड़ा क्रूर, दुराचारी, अत्याचारी था. उसने बेशुमार पशुहत्या और नरहत्या की. मुख से ज्वाला निकालने वाले कराल नरसिंह अवतार की जो कथा है उससे बेबिलोनिया नगर पर आ पड़ी आपत्ति का स्मरण होता है. परमात्मा ने कहा, “चलो हम पृथ्वी पर अवतार लेते हैं”. एसा कहकर भगवान नरसिंह अवतार में बेबिलोनिया में उतरे. बायबल के जेनेसिस यानि जन्म या आरम्भ XI-7 नाम के भाग में उल्लेख है. (थोमस मोरिस का ग्रन्थ, पेज-२६)

193.      इसमें कोई संदेह नहीं की मानवजाति तितर-बितर हुई तब जो लोग ईजिप्त में गए वे उस नरसिंह अवतार की स्मृतियाँ साथ ले गए. उनका वही नाम था जो भारतीय परम्परा में है. मैं यह पूर्ण आत्मविश्वास से कह रहा हूँ की ईजिप्त के शिलालेखों में तथा इतिहास में नरसिंह के पूर्व के तिन वैदिक ईश्वरावतार मत्स्य, वराह, वामन आदि पाए गए हैं. (थोमस मोरिस का ग्रन्थ, पेज-२६-३०)

194.      पूर्वकाल में यूरोपीय लोग तथा ग्रीक इतिहासकार आदि ईजिप्त का नाम AEgypt लिखा करते थे. वह संस्कृत अजपति है. रामचन्द्र रघुकुल के होने के कारन रघुपति भी कहे जाते थे उसी प्रकार उनके दादा का नाम अज होने से वे अजपति भी कहे जाते थे. अतः ईजिप्त देश अजपति राम का नाम धारण करता है. राम ही उस देश के राष्ट्रदेवता हैं इसी कारन पिरामिडों के आगे रामसिंह (स्विन्फिक्स) की विशालकाय प्रतिमा उस प्रदेश के रक्षक-देवता के रूप में प्रतिष्ठित है. प्राचीन ईजिप्त के लोग भी खुद को कुशाईट अर्थात कुश के प्रजाजन कहते थे-पी एन ओक

195.      ईजिप्त के राजाओं के नाम भी सयामी राजकुल के सामान राम पर ही आधारित थे जैसे रामेशस प्रथम, रामेशस द्वितीय आदि. रामेशस यानि राम+इशस यानि राम ही परमात्मा स्वरूप हैं. प्राचीन ईजिप्त में एक रूपवती नगरी थी. ग्रीक इतिहासकारों ने उसे रापता लिखना प्रारम्भ किया-पी एन ओक

196.      Apocryphal Gospel नामक ईसाई धर्मग्रन्थ में भगवान कृष्ण के कालिया नाग से युद्ध का उल्लेख पृष्ठ १३३ इस प्रकार है, “एक नाग द्वारा एक खिलाड़ी को दंश करने के कारन एक अवतारी बालक उस नाग से झपट पड़ा. उस खिलाड़ी के व्रण से विष वापस चूस लेने को बाल भगवान ने नाग को बाध्य किया. तत्पश्चात बाल भगवान द्वारा उस नाग को शाप देने पर तड़फड़ाकर वह नाग मर गया.” इस प्रकार भारतीय दंत कथा तथा कुरान जिसे हम अरबी दंतकथा कह सकते हैं और ईसाई Apocryphal Gospel का निकट सम्बन्ध है. (थोमस मोरिस का ग्रन्थ, पेज-३२२)

197.      भारतीय पुराणों के कई नाम ईजिप्त की दंतकथाओं में पहचाने जा सकते हैं. ईजिप्त के हय-गोप (Haye-Goptians) लोगों के परमेश्वर Ammon हिन्दुओं के ॐ ही हैं. शिव देवता ईजिप्त के जिस मन्दिर में हैं उसके दर्शनार्थ सिकन्दर ने जिस नगर की यात्रा की थी उस नगर से अभी भी उसका नाम जुड़ा हुआ है. वह नगर Alexandria है. (पृष्ठ ४३-४६, The Theogony of the Hindus)

198.      “Neibuhr, Valentia, Champollion, Waddington आदि विद्वानों के अनुसार ईजिप्त के उत्तर प्रांतीय देवस्थान दक्षिण प्रांतीय देव्स्थाओं से अधिक प्राचीन हैं. उन देवस्थानों से पता चलता है भारत ही ईजिप्त की सभ्यता का स्रोत है. Abydos और Sais के मन्दिरों में पाए गए इतिहासों का उल्लेख Josephus, Julius, Africanus और Eusebius ने किया है. वे सभी कहते हैं की ईजिप्त की धर्मप्रथा भारत वाली ही है. Manetho कहते हैं की ईजिप्त के राजकुलों के इतिहास से हिन्दू राज परम्परा अधिक प्राचीन है. अतः धर्म तथा संस्कृति में ईजिप्त से भी बढ़कर विश्व की प्राचीनतम परम्परा भारतीय ही है.” (Pg. 40-46, The Theogony of Hindus, Count Biornstierna)

199.      “भारत और ईजिप्त की धर्मप्रथाओं की तुलना करने पर उनमें बड़ी समानता प्रतीत होती है. दोनों में परमात्मा एक ही कहा गया है. फिर भी अनेक देवताओं की पूजा दोनों में होती है. त्रिमूर्ति की कल्पना, आत्मा का अस्तित्व, पुनर्जन्म, समाज के चार वर्ग-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र यह दोनों पद्धतियों के मुख्य लक्षण हैं. गंगा और नील नदी के किनारे दोनों के प्रतीक भी वही हैं. गंगा-तट पर के मन्दिरों में जैसा शिवलिंग है वैसा ईजिप्त के Ammon मन्दिर में भी है. (The Theogony of Hindus, Count Biornstierna)

200.      Eusebius नाम के ग्रीक इतिहासकार ने India as seen and known by Foreigners पुस्तक में लिखा है कि सिन्धु नदी के किनारे रहनेवाले लोग ईजिप्त के समीप इथिओपिया प्रदेश में आकर बसे. मैक्समूलर ने कहा है कि ईजिप्त तथा ग्रीक और असीरीय लोगों की दंतकथाएँ हिन्दू पुराणों पर आधारित थी. अन्तर्राष्ट्रीय संस्था Theosophical Society के भूतपूर्व अध्यक्ष कर्नल ओल कोट ने लिखा है कि आजकल जिसे ईजिप्त कहते हैं वहां भारत के प्रगत लोग बसे और उन्होंने निजी कलाओं का प्रसार किया.

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