251. होलैंड देश के लोग जो डच (Dutch) कहलाते हैं वे भी वैदिक दैत्य वंश के ही हैं. जैसे प्राचीन नगर ब्रिह्दादित्य का नाम अब बहराईच है यानि आदित्य अब इच शब्द बन गया है-पी एन ओक
इसी तरह जर्मन Duetsch, Diot, Diota आदि दैत्य शब्द के ही अपभ्रंश हैं.
252. जर्मन मैक्स मुलर ने ऋग्वेद का अनुवाद अंग्रेजी में किया है जिसमे उसने अपना परिचय लिखा है-“मया शर्मन देश जातेन गोतीर्थ निवासिना मोक्षमूलर नाम्ना”
जर्मन को उन्होंने शर्मन लिखा है. सम्भवतः जर्मन शब्द संस्कृत शर्मन से ही बना हो. दूसरा शब्द गोतीर्थ है जो उन्होंने Oxford का अनुवाद लिखा है जो उचित ही है-पी एन ओक
253. Ancient humans were present in Germany at least 600,000 years ago. Similarly dated evidence of modern humans has been found in the Swabian Jura, including 42,000-year-old flutes which are the oldest musical instruments ever found and the 40,000-year-old Lion Man. (Wikipedia “Germany”)
जर्मनी में ६ लाख वर्ष पहले मानव की उपस्थिति प्राम्भिक मानव के वंशज को निर्देशित करता है. ४२००० वर्ष पुरानी बांसुरी जिसकी उत्पत्ति क्षेत्र भारतवर्ष निर्विवाद रूप से है तथा ४०००० वर्ष पुरानी नृसिंह भगवान की मूर्ति दोनों जर्मनी में वैदिक आर्य संस्कृति के द्योतक हैं.
254. Tacitus नाम के एक प्राचीन ग्रीक इतिहासकार लिखता है की जर्मन लोग प्रातः उठते ही प्रथम शौच और मुखमार्जन करते हैं जो निश्चित ही पूर्ववर्ती लोगों की प्रथा है. वे लम्बे, ढीले वस्त्र परिधान धारण करते हैं और लम्बे बाल रखकर सिर के उपर बालों की गांठ बांधते हैं जो ब्राह्मणों की प्रथा है. (पृष्ठ ६३ खंड १, Annals and antiquities of Rajsthan, by James Tod)
255. Tacitus यह भी लिखता है की “९ वीं सदी में अगस्टस के नेतृत्व में ईसाईयों के हमले के पूर्व जर्मन लोग मुख्यतः राईन और डेन्यूब नदी के किनारे बसे हुए थे.” डेन्यूब नदी के किनारे दनु के वंशज बसे हुए थे.
यूरोपीय परंपरा में देवी दनू एक नदी देवी थी. देन्यूब (डेन्यूब), दोन, डनीपर और डिनिएस्टर नदियां दनु अथवा दानव के नाम पर ही रखी गयी है-News18India
256. जर्मन लोग स्वास्तिक को स्वस्तिक ही कहते हैं. वह संस्कृत सु-अस्ति-क यानि मंगल करने वाला एसा शब्द है. यह स्वास्तिक चिन्ह केवल जर्मनी में ही नहीं अपितु सारे विश्व में प्रचलित था. रोमन राजघराने के खाने पिने के चांदी के बर्तनों पर भी स्वास्तिक खुदा होता था-पी एन ओक
257. महाभारतीय युद्ध से पहले ही हिन्दू लोग स्कन्दनाविय प्रदेश (Scandenevia) में जा बसे थे. यहाँ के लोगों की पौराणिक कथाएं भी वैसी ही है जैसे हिन्दुओं की. (The Theogony of Hindus, Count Biornstierno)
258. आयरलैंड की काउंटी मीथ में एक तारा हिल है. इसी इलाके में दुनिया के सबसे रहस्यमय शिव लिंग है जिसे पत्थर के चौड़े ईंटों का घेरा बनाकर उसे स्थापित किया गया था. कब स्थापित किया गया था, इसके बारे में लोगों को सही सही अंदाज नहीं है. वहां के लोग इसे रहस्यमय पत्थर के रूप में जानते हैं. लोग इसकी पूजा करते हैं.
द माइनर्स ऑफ द फोर मास्टर्स के अनुसार, कुछ खास जादुई ताकत रखने वाले एक ग्रुप के नेता “तुथा डि देनन” ने इसे स्थापित किया था. “तुथा डि देनन” का मतलब होता है देवी दनू के बच्चे. वैदिक परंपरा में दनू देवी का जिक्र मिलता है, जो दक्ष की बेटी और कश्यप मुनि की पत्नी थीं. यह इतना महत्वपूर्ण पत्थर था कि 500 ईस्वी तक सभी आयरिश राजाओं के राज्यभिषेक यहीं पर किया गया. 500 ईसवी में ईसाई आक्रमणकारियों ने आयरलैंड पर अधिकार कर लिया उसके बाद यह प्रथा बंद हो गई. (News18India.com)
259. एडवर्ड पोकोक अपने ग्रन्थ India in Greece के पृष्ठ ५३ पर लिखते हैं की यूरोपीय क्षत्रिय, स्कैंडिनेविया के क्षत्रिय और भारतीय क्षत्रिय सारे एक ही वर्ग के लोग है. पी एन ओक लिखते हैं की स्कैंडिनेविया वास्तव में “स्कन्दनावीय” है जो दैत्यों से लडाई के समय “स्कन्द की नावसेना” का बेस क्षेत्र या छावनी था. शंड नामक दानव ने स्कैंडिनेविया बसाया था. हालैंड देश के निवासी भी डच (Deutch) यानि दैत्य कहलाते हैं. होलैंड के लोगों केलिए एक और शब्द है Demonym जो Demon अर्थात दानव से ही बना हुआ लगता है.
260. पुराणों में दनु और मर्क का उल्लेख आता है जिनकी शिव के पुत्र स्कन्द से लडाई होती रहती थी. उसी दानव मर्क की स्मृति डेनमार्क देश के नाम में है. कुछ विद्वानों का मत है की दानव मर्क ने ही डेनमार्क बसाया था. मर्क हिरण्यकश्यप का पुरोहित और प्रह्लाद का शिक्षक था. कोलाहल युद्ध में शुक पुत्र शंड एवं मर्क का वध हुआ था. (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, भाग-३) और (पेज ५, http://oldisrj.lbp.world/UploadedData/4692.pdf )
261. ईरान का वेद जेंदा (अवेस्ता) की तरह स्केंडिनेविया में भी पवित्र ग्रन्थ “एद्दा” है जो वेद शब्द का ही अपभ्रंश है और इसमें वेद का ही विकृत अवशेष अभी तक बचा हुआ है इसका कारन यह है की स्केंडिनेविया पर ईसाईयों का हमला बहुत बाद में हुआ था जो लगभग ३०० वर्षों तक चला. डेनमार्क ने १५० वर्ष, नार्वे और आईसलैंड लगभग २०० वर्ष और स्वीडन ने ३०० वर्ष ईसाई आक्रमणकारियों से कठिन संघर्ष किया था.
262. Sanskrit and its kindred Literatures-Studies in Comparative Mythology ग्रन्थ में लॉरा लिखती है की “स्केंडिनेविया के Norse लोगों को सैकड़ों वर्ष बाद ईसाई बनाया गया. अतः उनकी विश्वोत्पति सम्बन्धी धारणाएं तथा पौराणिक कथाएं आदि मूलरूप में सुरक्षित हैं. दो एद्दा उनके पवित्र ग्रन्थ हैं. एक पद्य में है और दूसरा गद्य में. वे उसी प्राचीन norse (इंडो-यूरोपियन) भाषा में लिखे हुए हैं जो स्केंडिनेविया के चारों शाखाओं में बोली जाती थी. पद्य एद्दा अधिक प्राचीन है, उसमें ३७ मंडल हैं. उनमें से कुछ आध्यात्मिक हैं जो विश्वोत्पति का वर्णन करता है अन्य अध्यायों में देव और मानवों के आपसी व्यवहार तथा प्रादेशिक ख्यात व्यक्तियों का इतिहास है.”
263. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं “स्केंडिनेविया में दफन शिलाओं पर Assur नाम कई बार लिखा मिलता है. वह इस कारन की यूरोप में दानव, असुर उर्फ़ दैत्य लोगों का ही शासन था. स्वीडन में उपशाला नाम का विशाल स्वर्ण मन्दिर था. १०७० ईसवी तक उसमें त्रिमूर्ति Thor, Odin और Frey (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की पूजा होती थी, यज्ञ होता था, प्रसाद चढ़ाया जाता था. यहाँ प्रति नौ वर्ष पर उत्सव मनाया जाता था. उसके बाद ईसाई आक्रमणकारियों ने इस मन्दिर को नष्ट कर वहां ईसाई ध्वज फहरा दिया.”
264. कैस्पियन सागर के दक्षिणपूर्व में एस्ट्राबाद नामक आधुनिक नगर के पास प्राचीन नगर हिरकेनिया था. इसका प्राचीन नाम हिरण्यपुर था. यह नाम कश्यप ऋषि और दिति के पुत्र हिरण्यकश्यप के नाम पर पड़ा माना जाता है. राजा बलि का महल ‘सुतल’ सम्भवतः ट्रांसकैस्पियन जनपद में था.
(page-5, http://oldisrj.lbp.world/UploadedData/4692.pdf)
265. कश्यप ऋषि का आश्रम काश्यपीय सागर के कहीं निकट ही था. काश्यपीय सागर के आसपास ही असीरिया (असुर प्रदेश) है. असीरिया का ही एक राजा असुर बेनीपाल इराक तक के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था. असुर बेनीपाल की मूर्ति आज भी इराक के एक संग्रहालय में रखा हुआ है. सीरिया, इराक, जॉर्डन, इजिप्त के आसपास असुर राज करते थे. दनु के पुत्र दानव भी आस पास ही रहते थे. हयग्रीव उसमें सबसे शक्तिशाली था. हयग्रीव का मतलब होता है घोड़े जैसा मुख या गर्दन वाला. दनु के अन्य चार पुत्रों के नाम भी घोड़ा शब्द से शुरू होता है-अश्वगिरी, अश्वपति, अश्वसंकू और अश्वसिरास. अर्ब का मतलब भी घोड़ा होता है. अतः यह सम्भव है की अर्बस्थान नाम इन दानवों के नाम पर ही पड़ा हो.
266. बेबिलोनिया (इराक) में नरसिंह अवतार हुआ था और बाइबिल के Genesis यानि जन्म अथवा आरम्भ XI-7 नाम के भाग में इसका उल्लेख है. एसा थॉमस मॉरिस का मानना है. उन्होंने अपने ग्रन्थ में लिखा है कि इसमें कोई संदेह नहीं की जब मानवजाति तितर-बितर हुई तब जो लोग ईजिप्त में गए वे उस भयंकर (नरसिंह अवतार की) इतिहास की स्मृतियाँ साथ ले गए. उनका वही (नरसिंह) नाम था जो भारतीय परम्परा में है. (The History of Hindustan, its arts and its sciences as connected with the history of the other great empires. Writer-Thomas Maurice, Republished by Navrang, New delhi, 1974)
267. महर्षि पुलस्त्य का कार्यक्षेत्र पेलेस्टाईन (फिलिस्तीन) में था. वहीँ उनका आश्रम था और वृश्रवा वहीँ रहते थे. कैकसी से उनके तिन पुत्र रावण, कुम्भकरण और विभीषण तथा पुत्री सूर्पनखा हुई. रावण की मृत्यु के बाद शंखद्वीप (अफ्रीका) का समस्त उपरी भाग श्रीराम के पुत्र कुश के अधीन आ गया. इथियोपिया के पाठ्यपुस्तकों में कुछ सौ वर्ष पहले तक इथियोपिया के लोगों को कुशाईट अर्थात कुश की प्रजाजन पढ़ाया जाता था और कुश के पिता को हाम (राम का अपभ्रंश) बताया जाता था-पी एन ओक
268. इतिहासकार पी एन ओक लिखते हैं “इथोपिया के क्रिश्चयन, हब्शी सम्राट स्वर्गीय हेल सलासी को भारत के एक स्वामी कृष्णानंद ने एक अनोखी पवित्र वस्तु कहकर जब रामायण की प्रति भेंट की तो हेल सलासी ने यह कहकर कृष्णानंद को चकित किया की “हम अफ़्रीकी लोगों को राम की जानकारी कोई नई बात थोड़े ही है. हम सारे कुशाईट हैं.” उस भेंट के पश्चात स्वामी कृष्णानंद ने बाजार से शालेय इतिहास की कुछ पुस्तकें खरीदकर उन्हें बड़ी उत्कंठा से पढ़ा तो उसमे स्पष्ट लिखा था की अफ़्रीकी लोग कुशाईट हैं.”
269. Origin of the Pagan idols नाम के ग्रन्थ के भाग ४, अध्याय ५, पृष्ठ ३८० पर Rev. Faber लिखते हैं की “गाल (फ़्रांस) और ब्रिटेन के सेल्ट उर्फ़ केल्ट लोगों का धर्म वही था जो हिन्दुओं का या ईजिप्त के लोगों का था. Cananites, Phrygians Greeks तथा रोमन लोगों का भी वही धर्म था. Phoenicians, Anakim, Philistine, Palli तथा इजिप्तिशियन लोगों के राजा लोग सारे कुश के वंशज होने से कुशाईट कहलाते थे. उन्ही को Septuagent के अनुवादकों ने इथियोपियंस भी कहा है. ग्रीक भाषा में इथियोपियंस का अर्थ होता है काले किन्तु हब्शी नहीं.”
270. ईसापूर्व यूरोप में अम्बा, शिव, सरस्वती, गणेश, लक्ष्मी, अन्नपूर्णा आदि देवी देवताओं का पूजन होता था जिनकी स्मृति अभी भी “मदर गोडेस” और “फादर गॉड” आदि शब्दों में मिलता है. मरिअम्मा उर्फ़ मरिमाता वैदिक देवी थी जो यूरोप में आज कृष्ट की माता “मदर मेरी” के नाम से प्रचलित है. अन्नपूर्णा को “अन्ना पेरिना” कहकर पूजते हैं-पी एन ओक
271. एक हंगेरियन विद्वान Osnia Decoro लिखते हैं, “मेरे अपने देशवासियों को यह जानकारी देने में मुझे गर्व होता है की अन्य किसी यूरोपीय देश की अपेक्षा संस्कृत के अध्ययन से हंगेरी की जनता को बड़ा लाभ होगा. संस्कृत के अध्ययन से हंगेरियन जनता को निजी स्रोत, रहन सहन, रिवाज, भाषा आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त होगी क्योंकि संस्कृत का ढांचा हंगेरियन भाषा के ढांचे के समान है जबकि पश्चिमी यूरोपीय भाषाओँ से अलग. (पृष्ठ-३९४, इंडिया इन ग्रीस, एडवर्ड पॉकोक)
272. पोलैंड के Czestochowa नगर में एक प्राचीन देवी का स्थान है. उस देवी का नाम ब्लैक वर्जिन है जो वास्तव में काली माता है. वह देवी की मूर्ति Asna Gora नाम के मठ में प्रतिस्थापित है जो वास्तव में ईशान गौरी अर्थात शंकर गौरी मठ है. इससे निष्कर्ष निकलता है की वह प्राचीन समय में प्रसिद्ध शिव तीर्थक्षेत्र रहा होगा-पी एन ओक
273. शक स्लावकीय यह एक प्राचीन दैत्य वंशीय जमात यूरोप में थी. उन्ही की दूसरी शाखा शकसेनी (Saxseny) कहलाती थी. उसके कुछ लोग आंग्लभूमि में जा बसने से Anglo Saxson कहलाए. (खंड-४, पृष्ठ-६६)
274. द्वारिका और द्वारिकावासियों के समुद्र सम्पूर्ण तबाही के दौरान कुछ को छोड़कर यदुवंशी २२ जत्थों में द्वारिका से विभिन्न क्षेत्रों में प्रस्थान कर गये. उनमे से कुछ भगवान कृष्ण के आदेश पर युधिष्ठिर के राज्य चले गये. कुछ जत्थे अगस्त्य ऋषि के साथ दक्षिण भारत में प्रस्थान कर गये. प्राचीन भारत के इतिहास पुस्तक में झा और श्रीमाली लिखते हैं की, “अगस्त्य ऋषि द्वारा द्वारका से अट्ठारह राजाओं के समूह, वेलिर के अठारह कुलों एवं अरुवालरों का नेतृत्व किया. इन्होने मार्ग में आने वाले वनों का नाश कर कृषि योग्य बनाया और बसते गये. दक्षिण के वेलिर जाति द्वारिकाधीश कृष्ण के वंशज माने जाते हैं.”
275. यदुवंशियों के कुछ जत्थे उत्तर की ओर बढे और कश्मीर, तुर्किस्तान होते हुए इलावर्त (रूस) चले गये. १२ जत्थे पश्चिम एशिया की ओर निकले. उनमे से एक जत्था इराक के मोसूल में आकर रहने लगा. पश्चिम की ओर आने वाले ये सम्भवतः पहले यदुवंशी जत्थे थे जो मूसल युद्ध से हताहत होकर इस प्रदेश में आकर बसे थे (आधुनिक यजदी?). अन्य ग्यारह जत्थे भी मध्य एशिया से लेकर ग्रीक तक विभिन्न देशों में बस गये-पी एन ओक
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