इस तस्वीर को ध्यान से देखिए. आउट ऑफ़ अफ्रीका सिद्धांत वस्तुतः आउट ऑफ़ इंडिया सिद्धांत ही है. पूरा विश्व अब मानने लगा है कि विश्व की प्राचीन सभ्यता वास्तव में भारत से ही पूरी दुनिया में फैली. पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के कांग्रेसी सरकार और वामपंथी इतिहासकार भारत में सत्य के विपरीत ठीक उल्टा सिद्धांत बना रखें हैं. जब भारत की सरकार और शिक्षा तन्त्र ही झूठ का लबादा ओढ़ रखा हो तो फिर दुसरे देश क्या करें? इसलिए इतिहास के अन्वेषक पूरे विश्व के विद्वान किंकर्तव्यविमूढ़ हो आउट ऑफ़ अफ्रीका सिद्धांत की ओर देखते हैं जो की सत्य नहीं है.
आधुनिक एतिहासिक खोजों, पुरातात्विक साक्ष्यों, नृजातीय शोधों और भौगोलिक विश्लेषणों से यह स्पष्ट हो गया है की आर्य कोई जाती समूह नहीं था बल्कि आर्य प्रतिष्ठा सूचक शब्द था. विदेशों से भारत में कभी भी बृहत स्तर पर कोई भी स्थानान्तरण (Migration) नहीं हुआ था और भारत पर आर्यों के आक्रमण का मिथक ब्रिटिश सम्राज्यवादी षड्यंत्र मात्र था जबकि वास्तविकता यह है की भारतवर्ष वैदिक लोगों का मूल प्रदेश था और हड़प्पा सभ्यता वास्तव में वैदिक सभ्यता का ही अंग था. वैदिक लोगों का मूल क्षेत्र आज के अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान से लेकर भारत में उत्तर में कश्मीर और पूर्व में बंगाल से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक फैला था. पढ़ें-https://truehistoryofindia.in/aryan-invation-theory-was-british-conspiracy/
इसी तरह ऋग्वेद के ऋचाओं के विश्लेषणों से यह भी स्पष्ट हो गया है कि आर्य आक्रमणकारी न होकर खुद आक्रमित थे. वैदिक संघर्ष कोई जातीय संघर्ष नहीं बल्कि सभ्यता के भीतर ही उत्पादकता के अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर पहुंचे हुए और खुशहाल वैदिक लोगों का बर्बर, लूटेरे, हिंसक, घुमक्कड कबीलों, असभ्य चोरों, डाकुओं, गिरिजनों, मवेशी चुराकर भागने वालों के विरुद्ध सतत संघर्ष की कहानी है जिसे हिंदू विरोधी, धूर्त वामपंथी इतिहासकारों ने षड्यंत्र पूर्वक उपर्युक्त हिंसक, लूटेरे और बर्बर लोगों के विरुद्ध आर्य (श्रेष्ठ) जनों के आक्रमण की कहानी के रूप में पड़ोस दिया है जबकि उपर्युक्त लोगों से सुरक्षा का गुहार, विवशता और कातरता की गूंज ही पूरे वेदों में सुनाई देती है. पढ़ें- https://truehistoryofindia.in/aryans-were-invaders-or-victims/
आर्यों का आदि देश भारत सिद्ध हो जाने के बाद देशी विदेशी इतिहासकारों के शोधों के हवाले से आज हम यह साबित करेंगे की जिन साक्ष्यों के आधार पर वैदिक लोगों को विदेशी साबित करने का षड्यंत्र किया गया वास्तव में वही साक्ष्य चीख चीख कर यह साबित करते हैं की उन क्षेत्रों में जो वैदिक लोग थे वे वास्तव में भारत से ही गये थे. धूर्त अंग्रेजों और भारत के नेहरूवादी, वामपंथी इतिहासकारों को छोड़कर स्वदेशी और विदेशी इतिहासकार तथा शोधकर्ता इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं.
सिन्धु घाटी की सभ्यता वैदिक सभ्यता थी
इतिहासकार भगवान सिंह ने अपने पुस्तक हडप्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य में विस्तार से सप्रमाण इस बात को रखा है की वैदिक जन ही भारतवर्ष के मूल निवासी थे, हडप्पा सभ्यता मूलतः वैदिक सभ्यता ही थी. वैदिक सभ्यता विश्व की सबसे विकसित, प्रगतिशील और व्यापार तथा उत्पादकता के उच्च स्तर पर पहुंची हुई सभ्यता थी. वैदिक जनों का व्यापार पुरे एशिया और यूरोप तक होता था. पुरे यूरेशिया में वैदिक लोगों के व्यावसायिक प्रतिष्ठान थे. वैदिक व्यापारियों के साथ वैदिक धर्म प्रचारक भी विभिन्न क्षेत्रों की यात्रा करते थे और वहां वैदिक सभ्यता संस्कृति और धर्म का वैसे ही प्रसार करते थे जैसे अशोक के समय बुधिष्टों ने और आधुनिक काल में ईसाई मिशनरियों ने किया और कर रहे हैं. अब आइये अन्य शोधों, खोजों और साक्ष्यों पर चर्चा करते हैं:
ईरान के पारसी भारतीय वैदिक लोग थे
मैक्समूलर ने अवेस्ता और वैदिक भाषा पर अपने विचार रखते हुए कहा की ईरान में ईरानी भाषा का प्रसार भारत से हुआ. वे लिखते हैं, “मैं आज भी मानता हूँ की जेंड (अवेस्ता) संस्कृत के छंद शब्द का तद्भव है जिसका प्रयोग पाणिनि ने वैदिक भाषा के लिए किया है. यदि वैदिक सिरे से विचार किया जाये तो जोरास्टर के अनेक देवता वेदों के आदिम और प्रमाणिक देवताओं की मात्र परछाईयाँ और विकृतियाँ प्रतीत होते हैं. अब यह भौगोलिक साक्ष्यों के आधार पर भी साबित किया जा सकता है की जोरास्टर मताबलम्बी फारस में आने से पहले भारत में बसे हुए थे. जोरास्टर मतावलंबी और उनके पूर्वज वैदिक काल के दौरान भारत से रवाना हुए थे, यह उतने ही दो टूक ढंग से सिद्ध किया जा सकता है जैसे यह की मेसिनिया के निवासी यूनान से रवाना हुए थे.” (V M Apte, Vedic Rituals)
यह वही मैक्समुलर हैं जो प्रारम्भ में आर्यों के आक्रमण के सिद्धांत का समर्थन किया था और ऋग्वेद का काल सिर्फ १००० ईस्वी पूर्व निर्धारित किया था, परन्तु मृत्यु पूर्व उन्होंने इसे अपनी गलती स्वीकार कर ली थी. हालाँकि धूर्त भारतीय वामपंथी इतिहासकार उनकी गलती से कोई सबक नहीं लेकर हिन्दू विरोधी मानसिकता के कारन दुष्प्रचार में लगे रहे.
मिस्टर मिल्स अवेस्ता के तीसरे खंड के अनुवाद की अपनी भूमिका में ऋग्वेद और अवेस्ता के तुलनात्मक काल-निर्धारण पर विविध दृष्टियों से विचार करने के बाद इस मान्यता का खंडन करते हैं की गाथा ऋग्वेद के प्राचीन अंशों से पुराणी है. उनके मत से, “गाथाएं ऋग्वेद के पुराने अंशों से बहुत बाद की है. उन्होंने कहा की हॉग का यह बात स्वीकार नहीं की जा सकती की गाथाओं में एकाएक और इरादतन पुराने देवताओं को ख़ारिज कर दिया गया, न ही यह की धार्मिक मतभेद के कारन भारतीय दक्षिण की ओर प्रव्रजित हो गये. यह प्रक्रिया निश्चय ही ठीक इससे उलटी थी. (Mill L.H., The Zend Avesta (Pt. III) SBES, XXXI, Delhi).
अर्थात इन्होने अवेस्ता को ऋग्वेद के पुराने ऋचाओं से बाद का माना जिसका मतलब था की अवेस्ता ऋग्वेद का अनुकरण या कहें वैदिक लोगों के अनुकरण में भारत से विस्थापित वैदिक लोगों के द्वारा लिखा गया था.
दरअसल, भारतीय और ईरानी शाखाओं के बिच जिस धार्मिक मतभेद को आजतक प्रव्रजन का कारन बताया जाता रहा है उसके विषय में गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी यह कथा प्रस्तुत करते हैं, “ऋग्वेद के दसवें मंडल के ८६ वें सूक्त से आरम्भ करके आगे के सूक्तों में एक वाक्क्लह का संकेत प्राप्त होता है. ऋज्रास्व ऋषि का दौहित्र जरथुस्त्र नाम का एक व्यक्ति हुआ उसके हृदय में स्वभावतः उस काल के ब्राह्मणों के प्रति द्वेष था. जरथुष्ट्र ने परम्परा से चले आते हुए इंद्र के प्राधान्य को अस्वीकार किया और इसके स्थान पर वरुण को प्रतिष्ठित किया. इसका संकेत ऋकसंहिता के नेद्र देवममंसत मंत्राश में पाया जाता है. उपस्थित ऋषियों में न्रिमेध, वामदेव, गार्ग्य अदि ने इंद्र का पक्ष लिया और सुपर्ण, कण्व, भरद्वाज आदि ने वरुण का पक्ष लिया तथा वशिष्ठ आदि ऋषियों ने अपने अपने स्थान पर दोनों का सम्मान माना. अतः वरुण के समर्थक जरथुस्त्र के नेतृत्व में भारत से ईरान की ओर प्रस्थान कर गये. (गिरधर शर्मा चतुर्वेदी, वैदिक विज्ञान और भारतीय संस्कृति, पटना तथा Indian Civilisation in the Rigvedas, Yeotmal by P R Deshmukh)
जतिंद्र मोहन चटर्जी मानते हैं की अवेस्ता भृगु की रचना है और भृगु वरुण के उपासक थे. जिस विभेद की बात की जाती है वह उस पौराणिक प्रसंग में मूर्त है जिसमे भृगु को विष्णु की छाती पर लात मारते दिखाया गया है. अवेस्ता में गौ को नियमित रूप से अग्न्या या अवध्य मानना और गोमेज या गोमूत्र की पवित्रता के उल्लेख पुनः इसे भारत में गौ के देवीकरण के बाद के विश्वास की पुष्टि करते हैं. (अथर्व ज़रथुस्त्र गाथा, जे एम् चटर्जी) ऋग्वेद के पुराने ऋचाओं में ही कुत्ते के वध का निषेध किया गया है. अवेस्ता में कुत्ते के वध को घोर पाप माना गया है-गो वध से अधिक गर्हित, मनुष्य के वध से भी अधिक घोर. ईरानी दंड-संहिता के अनुसार यदि मनुष्य का वध करने पर चालीस कोड़े लगते थे तो कुत्ता मारने पर सौ कोड़े.
बाल्टिक क्षेत्र की वैदिक संस्कृति
बाल्टिक क्षेत्र लिथुआनिया और लाट्विया को मूल भारोपीय निवास माना जाता है. डॉ सुनीति कुमार चाटुर्ज्या के अनुसार वैदिक भाषा से इस क्षेत्र की भाषा का गहरा समानता दिखाई देता है और वैदिक ऋचाओं की तरह कुछ मन्त्र (दायना) यहाँ पढ़े जाते रहे हैं और कुछ धुप अन्गियारी जैसी रीतियाँ भी यहाँ प्रचलित रही है. वे आगे लिखती है, “उन्नीसवीं शताब्दी में जब बाल्टिक जनों लाटविया और लिथुआनिया के लोगों ने अपने राष्ट्रिय साहित्य दायना का अध्ययन आरम्भ किया तो अपने भारतीय उत्तराधिकार के प्रति सचेत हुए. लाटवियन लेखक फ्रे. माल्बग्रिस ने तो १८५६ में लिखा था की लातवियन जन रूसियों और जर्मनों की ही तरह गंगा के तट से आये थे. लातवियन परम्परा के अनुसार बर्तनायाक्स ज्ञान और विज्ञान लेकर भारत से आये थे. इस गहन विद्या के शिक्षक विदेवुड्स थे. प्राचीन लिथुआनी पुजारिने अपनी प्राचीन भारोपीय रीती का पालन करने के लिए पवित्र अग्नि जलाया करती थी और जैसा की एक आधुनिक लिथुआनी कवी ने सुझाया था, लिथुआनिया में यह रीती सिन्धु तट से आई थी.” ( Balts and Aryans in their Indo-European Background, Simla; मत्स्य पुराण, रामप्रताप त्रिपाठी, मानव गृहसूत्र, रामकृष्ण हर्षजी)
विदेवुड्स का गहन ज्ञान लेकर वहां पहुँचना और इसके बाद उनकी ही भाषा और संस्कृति की छाप उस पुरे क्षेत्र में कायम हो जाना इस बात का कुछ आभास दे सकता है की स्थानीय ज्ञान विज्ञान और संस्कृति का स्तर क्या रहा हो सकता है. इसी की पुष्टि ईरानी परम्परा में भी होती है. (हड़प्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य, भगवान सिंह)
यूनान के वैदिक लोग
जिन लोगों को इस सभ्यता के निर्माण का श्रेय दिया जाता है वे भारतीय भाषा-भाषी थे. ये यूनान में कब और कैसे पहुंचे और किस तरह उन्होंने अपने को उस शिखर बिंदु पर पहुँचाया, इस विषय में काफी उलझन है परन्तु यूनान की भाषा अपने ठीक पड़ोस की यूरोपियन भाषाओँ से उतना गहरा साम्य नहीं रखती है जितना गहरा साम्य यह संस्कृत के साथ प्रकट करती है-भगवान सिंह
बरो लिखते हैं, “ग्रीक में केन्तुम वर्ग की किसी भी अन्य भाषा से निकट सम्पर्क के लक्षण नहीं दिखाई देते इसके विपरीत भारतीय-ईरानी और अर्मीनियाई से इसका निकट सम्बन्ध है. क्रियाओं की रूपावली में तो यह बात खासतौर से पाई जाती है. इस द्वीप में मूलतः आर्य भाषा-भाषी पूर्व की ओर से ही पहुँच सकते थे. (The Sanskrit Language, London. T Barrow) डॉ सुनीति कुमार चाटुर्ज्या लिखती है, “ईरानी आर्यों के वस्त्रों का बहुत विश्वसनीय प्रस्तुतीकरण छठी शताब्दी इसवी पूर्व की हखामानी मूर्तियों और टेपेस्ट्री के अवशेषों में पाया जाता है. पारसी आर्यों ने भारतीय आर्यों की तरह कुले वस्त्र पहनने की आदत डाल ली थी, यह प्राचीन मूर्तियों में देखा जा सकता है. यूनानियों ने सादे अनसिले कपड़ो का चुनाव किया जो भारतीय आर्यों के दो वस्त्र खंडों धौत्र और उत्तरीय में भी पाया जाता है.” ( Balts and Aryans in their Indo-European Background, Simla; Wonder that is India)
एशिया माईनर की वैदिक सभ्यता
एशिया माईनर में बोगजकुई से प्राप्त हित्ती अभिलेखों में वैदिक देवताओं के नाम आते हैं जिसका साम्य केवल भारत से ही है. इसी प्रकार अश्व-पालन की एक पुस्तक में जिन संख्यावाचियों का प्रयोग हुआ है उनका भी सम्बन्ध केवल भारत से ही जुड़ता है. हित्ती वैदिक संस्कृत से सबसे अधिक साम्य रखती है इसलिए यह कल्पित किया गया की मूल भारोपीय भाषा जिन दो शाखाओं में पहले विभाजित हुई उनमे से एक भारतीय हित्ती शाखा है और दूसरी शेष भारोपीय भाषाओं की शाखा. (B K Chatopadhayay, Mohenjodaro and Aryan Colonisation of Mesopotamia)
उत्तरी मेसोपोटामिया के सिरे पर मितन्नी क्षेत्र के बराक से हड़प्पा के ककुद्याँ वृषम के आशय की एक मुहर भी मिलती है. मितन्नी जिनकी भाषा आर्य भाषा थी, इस मुहर को देखते हुए हड़प्पा के व्यापारी प्रतीत होते हैं. इस पर वामपंथी इतिहासकारों के सरताज डीडी कौशाम्बी यह सुझाते हैं की “एशिया माईनर में पहुंचे आर्य उस शाखा के है जिसने भारत पर आक्रमण किया था और जो या तो यहाँ से पराजित होने के कारन अथवा यहाँ की जलवायु आदि रास न आने के कारन एशिया माईनर की ओर लौट गये.” इसकी माने तो जो आर्य यहाँ रह गये उन्हें तो मुहर ढालना नहीं आया परन्तु जो यहाँ से भाग गये वे भागते भागते मुहर ढालना सीख गये, जो यहाँ रह गये उन्हें न तो मुहर बनाना आया और न ही मुहरों की लिपि से परिचित हुए. वामपंथी इतिहासकारों के गुरु मार्क्सवादी इतिहासकार डीडी कौशाम्बी का एतिहासिक सोच ऐसे ही भारत विरोधी मानसिकता की पराकाष्ठा से भरा पड़ा है जिसकी चर्चा हम पहले भी कई बार कर चुके हैं.
अस्तु, हित्ती प्रभाव क्षेत्र के विषय में सभी अध्येता इस विषय में एकमत हैं की वहां आर्य भाषा-भाषी जनों की संख्या थोड़ी थी और आम जनता की भाषा से उनकी भाषा बिलकुल भिन्न थी. इस थोड़ी संख्या का ही परिणाम था की इस क्षेत्र की भाषा पर आर्य-भाषा का इतना नगण्य प्रभाव पड़ा की यदि किलाक्षारी अभिलेखों का उद्धार न हो गया होता तो कोई इस बात का अनुमान भी नहीं कर सकता था की कभी यहाँ एसी कोई भाषा किसी भी वर्ग के द्वारा प्रयोग में लायी जाती थी – भगवान सिंह ऐसे में इसे आर्यों का मूलक्षेत्र बताकर यहाँ के चंद आर्य भाषा भाषी लोगों के द्वारा आर्यावर्त पर आक्रमण की बात करना मुर्खता नहीं तो और क्या हो सकता है. बट कृष्णा घोष लिखते हैं, “यद्यपि एशिया माईनर में हित्तियों का अधिकार हो गया था परन्तु यह हित्तियों का मूल निवास नहीं था. हित्ती सम्राज्य के पहले यह असीरिया के अधीन था जो धीरे धीरे १९५० ईस्वी पूर्व तक खत्म हो गया. जाहिर है की यह आर्य भाषा भाषी हित्ती आक्रमण के कारन हुआ जिनके उपरिलिखित अभिलेख को लगभग १४०० ईस्वी पूर्व के आस-पास रखा जाता है.
दजला फरात में वैदिक जन
बेबीलोन के प्राचीन परम्पराओं के आधार पर इसका इतिहास लिखते हुए बेरोस (तीसरी शताब्दी इसा पूर्व) ने लिखा की दैत्यों का एक दल पूर्व की ओर से समुद्र-मार्ग से फारस की खाड़ी में पहुंचा. इसका नेता ओएनेस (भारतीय उषनस ?) था. अपने साथ उन्नत तकनीक लेकर आनेवाले इन लोगों के प्रति सुमेरियनों की कृतज्ञता इस स्वीकारोक्ति में देखी जा सकती है की इन आने वाले विलक्षण लोगों ने ही धातु विद्या, कृषि और लेखन आदि का प्रसार किया और उन सभी चीजों का आरम्भ किया जो उन्नत जीवन के लिए आवश्यक है, और उस समय से लेकर आज तक कोई नया अविष्कार नहीं हुआ.” (The Sumerian Oxford, Wooley C Leonard)
रे हेरोस ने भी बेरोसस और बाईबल में वर्णनों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया की सुमेर में सभ्यता का प्रसार हड़प्पा सभ्यता के निर्माताओं ने किया था. वह अपनी मान्यताओं पर अंत तक कायम रहे. कुछ अन्य लोगों ने इस प्रेरणा के पीछे बलूची संस्कृतियों का, विशेषतः कुल्ली के लोगों का हाथ दिखाई देता रहा जिनके बनाये हुए घिया पत्थर के डिब्बे सुमेरिया और मेसोपोटामिया में आरम्भ से ही मिलने लगते हैं. (Proto Indian origin of the Sumerian civilisation, Saradar Panikkar Sastyabda, Structure and Fundction in Primitive Society, London)
सैग्स लिखते हैं, “सुमेर में स्थानीय आबादी थी ही नहीं. इसबात के अकाट्य पुरातात्विक साक्ष्य है की एरिदु काल, जिसे ४५०० इसवी पूर्व या इससे कुछ बाद में रखा गया है से पहले बेबिलोनिया में मानव संस्कृति का कोई अवशेष नहीं मिलता. (Thed Greatness that is Babylon, London)
सुमेरी देवताओं के नाम यद्यपि सुमेरी भाषा से मिलते हैं, पर ये प्रधान वैदिक देवताओं के प्रतिरूप हैं, यथा, सूर्य-शम्स, मरुतस-मरुत इंद्रा-म्रदुक, वरुण-रम्मन, सोम या चन्द्र-सिन, वृत्र–तैमत आदि. सुमेरी जनों की, विशेषतः महिलाओं की वेश-भूषा और केश विन्यास की शैली पर भृत्य प्रभाव देखा गया है जो आँखों में काजल, होठों पर लाली, वालों में तेल और शरीर पर उबटन लगाती थी. बेबीलोन में अश्वमेघ का प्रचलन इस बात का प्रमाण है की मिश्र से लेकर एलाम तक के क्षेत्र में ये आर्य व्यापारी कितने प्रभावशाली बने हुए थे और उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा क्या थी (बेबीलोन एंड इंडिया, कुप्पुस्वामी शास्त्री). मिश्र के ३००० ईस्वी पूर्व के सबसे प्राचीन प्रसिद्द शासकों में रामसेसे में राम शब्द बहुत ही मायने रखता है.
मध्य एशिया में वैदिक सभ्यता
मैक्समुलर ने इसी क्षेत्र में मूल भारोपीय जनों को बसा माना था जहाँ से अपने छोटे भाइयों को पश्चिम उत्तर की ओर विदा करने के बाद बड़े भाई ने दक्षिण की राह पकड़ी थी और भारत में उतर आये थे. इसी क्षेत्र के पश्चिमी भाग के लिए मीदिया शब्द का प्रयोग होता रहा है. जरथुष्ट्र और उनके समर्थक इसी क्षेत्र के थे. मीदिया अथवा मंद सम्भवतः पौराणिक काल का मद्र राज्य है जहाँ की राजकुमारी माद्री महाभारत के पांडवों की माता थी. मद्र नरेश शाल्व की वीरता से भी सभी परिचित होंगे.
ग्रियसन लिखते हैं, “जो लोग अन्य बातों में मतभेद रखते हैं वे यह मानते हैं की मंद आर्य थे. मूलतः वे जहाँ कहीं से भी आये रहे हों, हमें इस बात का स्पष्ट संकेत नहीं मिलता की वे दक्षिण या दक्षिण पूर्व से या जैसा की कुछ लेखक सोचते हैं, भारत से आये थे, परन्तु उनके देवता वे ही थे जिनके नाम भारत में पाते हैं और यह की वे सतेम भाषी थे, जो प्राचीन संस्कृत से अधिक निकटता रखती है. (Linguistic Survey of India, Vol-I, Delhi)
इन क्षेत्रों में हडप्पा से मिलती जुलती संस्कृति, वस्तुएं और मोहरें प्राप्त होती है. इनका प्रसार केंद्र सोवियत विद्वानों ने भी भारत को माना है (The Urban Revolution in South Turkmenia, Antiquity)
इस लेख में जो दिए गए हैं वे मूलतः इतिहासकार भगवान सिंह के हडप्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य से लिए गए हैं. इसके अतिरिक्त महाभारत युद्ध पश्चात जब द्वारिका नष्ट हो गया तब यदुवंशी २२ जत्थों में विश्व के विभिन्न हिस्सों में जा बसे थे. उनमें से कुछ एशिया से यूरोप तक बस गये थे. उन्हीं यदुवंशी जत्थों में से एक जत्था आज यहूदी कहलाता है (आगे नवीन शोध में पढ़ें-यहूदी वास्तव में यदुवंशी हैं) . इतनाही नहीं विदेशी इतिहासकारों और विद्वानों द्वारा शोधपरक ऐसे दर्जनों ग्रन्थ उपलब्ध है जिससे कम से कम पुरे एशिया, यूरोप और अफ्रीका में अनंत काल से लेकर ईसा और इस्लाम पूर्व काल तक वैदिक सभ्यता, संस्कृति, धर्म, परम्परा के प्रचलन का सबूत मिलते हैं. आगे प्रत्येक देश और प्राचीन सभ्यताओं में वैदिक संस्कृति के सबूत क्रमबद्ध प्रस्तुत किए जायेंगे.
I will immediately seize your rss feed as I can’t to find your e-mail
subscription link or newsletter service. Do you have any?
Please let me recognise so that I may just subscribe. Thanks.
It is the best time to make some plans for
the future and it’s time to be happy. I’ve read this put up and if I may just
I wish to counsel you some attention-grabbing issues or suggestions.
Perhaps you could write subsequent articles relating to this article.
I want to read even more things approximately it!
Pretty nice post. I just stumbled upon your blog and
wished to say that I’ve truly enjoyed surfing around your blog posts.
In any case I will be subscribing to your rss feed and I
hope you write again soon!
Ahaa, its good conversation on the topic of this paragraph here at this webpage,
I have read all that, so now me also commenting at this place.
Thanks for the good writeup. It in fact was a leisure account it.
Glance complex to more introduced agreeable
from you! However, how could we communicate?
Wow, wonderful weblog layout! How long have you been running a blog for?
you made running a blog glance easy. The
overall look of your site is wonderful, as
smartly as the content material!
This site definitely has all of the information I needed about this subject and didn’t know who to ask.
Hello! Someone in my Facebook group shared this website
with us so I came to take a look. I’m definitely enjoying the information. I’m book-marking and will be tweeting this to my followers!
Terrific blog and great style and design.
I am really loving the theme/design of your blog. Do you ever run into any web browser compatibility issues?
A small number of my blog readers have complained about my blog not operating correctly in Explorer but looks great in Safari.
Do you have any tips to help fix this problem?
I’d like to find out more? I’d love to find out more details.
Thanks for ones marvelous posting! I seriously enjoyed reading it, you are a great author.I will make sure
to bookmark your blog and definitely will come back at some
point. I want to encourage yourself to continue your great posts,
have a nice afternoon!
I am truly happy to read this web site posts which carries lots of valuable facts, thanks for providing such data.
Your way of describing the whole thing in this paragraph
is truly good, all can without difficulty understand it, Thanks a lot.
Great info. Lucky me I found your site by chance (stumbleupon).
I have saved it for later!
Really enjoyed this post.Really thank you! Keep writing. makaberzux
I like this site very much so much excellent info .
Really enjoyed this post.Really thank you! Keep writing. makaberzux
Hello, I would like to subscribe for this webpage to obtain hottest
updates, so where can i do it please help.
Hello Dear, are you really visiting this site regularly, if so afterward you will definitely get pleasant knowledge.
I am curious to find out what blog system you happen to be utilizing?
I’m having some minor security issues with my latest blog
and I’d like to find something more risk-free. Do you have any solutions?
I pay a quick visit everyday a few websites and websites to
read articles or reviews, but this weblog presents feature based posts.
Hi! I know this is kinda off topic however , I’d figured I’d
ask. Would you be interested in trading links or maybe guest writing a blog article or vice-versa?
My blog discusses a lot of the same topics as yours and
I think we could greatly benefit from each other.
If you happen to be interested feel free to send me an email.
I look forward to hearing from you! Excellent blog
by the way!
Hello there, just became alert to your blog through Google,
and found that it is really informative. I’m going to watch out
for brussels. I will appreciate if you continue this in future.
Many people will be benefited from your writing. Cheers!
I visit each day some blogs and information sites to read articles, except this website provides feature based writing.
Thanks for sharing your thoughts about when. Regards
Woah! I’m really digging the template/theme of this site. It’s simple, yet effective. A lot of times it’s tough to get that “perfect balance” between user friendliness and visual appeal. I must say you have done a excellent job with this. Additionally, the blog loads extremely quick for me on Firefox. Outstanding Blog!
As I web site possessor I believe the content material here is rattling excellent , appreciate it for your hard work. You should keep it up forever! Good Luck.
I’ve learn a few good stuff here. Certainly value bookmarking for
revisiting. I wonder how a lot effort you set to make this
sort of wonderful informative site.