वैदिक ऋषि गण
यह सिद्ध करने के बाद की आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत महज साम्राज्यवादी षड्यंत्र था आज हम इस प्रश्न पर विचार करेंगे की क्या हम भारतीयों के पूर्वज आर्य जन सचमुच असभ्य, बर्बर, खानाबदोश, हिंसक, लूटेरा और आक्रमणकारी थे? आज हम धूर्त नेहरूवादी वामपंथी इतिहासकारों के एक और झूठ का पर्दाफाश करेंगे.
क्या असुर, दानव, दैत्य, राक्षस बेचारे लोग थे?
कभी आपने पढ़ा या सुना है की देवताओं ने असुर लोक/दानव लोक पर आक्रमण कर दिया और उसपर अधिकार कर लिया? अलवत्ता आप हर जगह यही पढते और सुनते हैं की असुरों/दानवों ने देव लोक पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया और देवता उनके डर से इधर उधर मारे मारे फिरते रहते थे. रावण जैसे राक्षस (रक्ष संस्कृति के संस्थापक) तो देवताओं को बंदी बनाकर अपने दरबार में खड़ा रखता था. दूसरी बात, देव जातियां और असुर/दानव/राक्षस जातियां इतने शक्तिशाली होते थे की ये मानवों (हिमालय के दक्षिण में राज करने वाले ब्रह्मा के प्रपौत्र महाराज मनु के वंशज मानव कहलाते थे) को कुछ समझते ही नहीं थे. चूँकि असुर/दानव मानवों पर अत्याचार करते थे इसलिए मानव इनके विरुद्ध देव जातियों का समर्थन/सहायता प्राप्त करते थे. देव जातियां संभवतः बलि (चढावा/शुल्क) के बदले इनके विरुद्ध इनकी सहायता करते थे.
तीसरी बात सुर (देवता), असुर/दानव और मानव तीनों जातियां एक ही मूल के थे. सुर, असुर और दानव ब्रह्मा के पौत्र कश्यप ऋषि के अलग अलग पत्नियों (प्रजापति की पुत्रियों) की सन्तान थे तो मानव ब्रह्मा के प्रपौत्र महाराज मनु के सन्तान थे. अतः चौथी बात देव-असुर संग्राम सत्ता के लिए पारिवारिक लड़ाई थी कोई जातीय संघर्ष नहीं था. इसलिए जैसा की आजकल वामपंथी इतिहासकार और अम्बेडकरवादी नवबौद्ध समझाने की कोशिश करते हैं की आर्य जन (देव और मानव जातियां) असुर और दानव (तथाकथित मूलनिवासी) पर आक्रमणकारी थे और यह जातीय संघर्ष था एक सफेद झूठ है. मजे की बात यह है की ये वामपंथी इतिहासकार पहले तो आर्यजनों को हिंसक, आक्रमणकारी और विजेता घोषित करते हैं और दुसरे ही पल उन्हें विजित क्षेत्रों में और अस्त्र शस्त्र को छोड़कर पशु चारक और पशुओं के चारागाह की खोज में दर दर भटकने वाला असभ्य, बर्बर और खानाबदोश बता देते हैं. भला कोई विजेता विजित क्षेत्र को छोड़कर खानाबदोश क्यों बनेगा?
वामपंथी इतिहासकारों की बेतुकी बातें
वामपंथी इतिहासकारों की माने तो लूटेरे, असभ्य और आक्रमणकारी आर्य हिंदुकुश को पार कर सिंधु घाटी की नगर सभ्यता पर हमला कर मार काट किये और फिर नगर छोड़कर, अपने हथियार रखकर कुछ पहाड़ों पर भेड़ और गाय चराने चले गए और कुछ गांव में खेती करने लगे क्योंकि ये तो पहले ही सिद्ध कर चुके थे की आर्य तो असभ्य थे, खानाबदोश थे, कबीलाई थे तो फिर नगर में तो रह ही नहीं सकते. इसलिए आये, आक्रमण किये, नगर पर अधिकार किये और फिर कोई भेड़ बकरी चराने चले गए और कोई खेती करने. क्या आपको यह बात कहीं से भी हजम होती है? क्या गोरी, बाबर, हून आदि नगरों दिल्ली/आगरा पर आक्रमण कर खेती करने लगे? एक आक्रमणकारी हथियार डालकर गांव में और पहाड़ों पर खेती और पशुपालन करेगा? शांति शांति चिल्लाएगा, यज्ञ करेगा? तब गांव की बाकी जनता उसे क्या जिन्दा छोड़ेगी? पर जन्मजात जड़ इन वामपंथी इतिहासकारों को कौन समझाये?
और भी मजेदार बात यह है की कम्युनिष्ट इतिहासकारों और अम्बेडकरवादी नवबौद्धों ने तो आजकल इन शक्तिशाली असुरों, दानवों और राक्षसों को जिनसे देवता और मानव सदैव भयभीत रहते थे उन्हें दलित, शोषित, पीड़ित जातीय समूह घोषित कर दिया है और इनके द्वारा वास्तविक पीड़ित लोग (देव और मानव जातियां अथवा आर्य जन) को आक्रमणकारी घोषित कर दिया है जो वास्तव में इनकी मानसिक दिवालियापन अथवा भारत की गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और सनातन धर्म से अज्ञानता का प्रदर्शन मात्र है और सर्वथा असत्य है.
अनार्य लोग कौन थे?
वैदिक संस्कृति, सभ्यता, धर्म, संस्कार को मानने वाले सभी लोग आर्य (श्रेष्ठ) कहलाते थे चाहे वे भारतवर्ष में रहते हों, अर्बस्थान, अफ्रीका या यूरोप में और नहीं माननेवाले अनार्य कहलाते थे. आज के संदर्भ में आर्य और संघर्ष की व्याख्या इन शब्दों में की जा सकती है: शांतिप्रिय आर्यों का देश भारत भीतरी और बाहरी अनार्य आतंकवादियों से सतत पीड़ित रहता है. भारत में आतंकी घुसपैठ कर निरंतर हमला करता रहता है, भारत के लोगों के जान माल का नुकसान करता रहता है जिससे हम भारतीय सदैव भयभीत रहते हैं, हमारा कोई भी पर्व त्यौहार आतंक के साए में ही बीतता है. इसी प्रकार हम भारतीय अनार्य नक्सलियों और अपराधियों से भी सतत परेशान रहते हैं. भारत उसका कड़ाई से मुकाबला करता है. कभी कभी आमने सामने का युद्ध भी होता है और भारत उनके नापाक हरकतों का मुंहतोड जबाब देता है, पराजित करता है. जरूरत पड़ने पर सर्जिकल स्ट्राईक भी करता है आदि.
अब आत्मरक्षा की लड़ाई लड़ने वाले आर्यों का देश भारत से अनार्य आतंकवादी, नक्सली और अपराधी हर बार पराजित होते है तो केवल इस कारण से हम भारत को हिंसक और आक्रमणकारी तथा अनार्य आतंकवादियों, नक्सलियों को मूलनिवासी नहीं कह सकते हैं. परन्तु वामपंथी इतिहासकार हमें अबतक यही समझाते रहे हैं. वामपंथियों ने भारत पर चीन के आक्रमण को भी चीन पर भारत का आक्रमण के रूप में दुष्प्रचार किया था.
वैदिक लोगों के शत्रु कौन थे?
वामपंथी इतिहासकारों की हिंदू विरोधी/भारत विरोधी षड्यंत्र को भेदने के लिए वेदों का अध्ययन जरूरी है. आइये उपर्युक्त बातों को वेदों में दिए गए विवरणों से सिद्ध करते हैं.
पहले हम वैदिक लोगों के शत्रुओं की बात करें के वे कौन लोग थे क्योंकि इनपर ही वैदिक लोगों को आक्रमणकारी सिद्ध किया गया है. वैदिक लोगों के शत्रुओं को चार भागों में बांटा जा सकता है:
१. असमाजिक तत्व- तम, तमोवृद्ध, मायाविन, तस्कर, दस्यु, धूर्त, दू:शंस आदि.
२. यायावर कबीले- व्यथि, अकर्म, मृध्रवाच, वृक, अधम, पिशाच, क्रव्यद, राक्षस, यातुधान आदि
३. सामान्य शत्रु- अमित्र, अरि, अराति, शत्रु, स्प्रुध आदि
४. वैचारिक मतभेद रखने वाले- वाघ्रिवाच, मृध्रवाच, अयाज्यु, अनिंद्र, अकर्म, अनस, अन्याव्रत, द्विश, पनि आदि.
अब उपर के वैदिक लोगों के शत्रुओं का अगर विश्लेषण करें तो पता चलेगा की इनमे अधिकांश समाज के भीतर के शत्रु हैं न की बाहर के और इन शत्रुओं से वैदिक लोगों के बाहरी होने का तो कोई सवाल ही पैदा नहीं होता है. जैसे, इनमे से अधिकतर शब्द निन्दापरक है जो अपने समाज के लोगों के भीतर ही सामाजिक और वैचारिक मतभेद रखने वाले लोगों के विरुद्ध प्रयुक्त है. असुर, वृत्र आदि का प्रयोग मार्ग (व्यापारिक मार्ग) अवरुद्ध करने वाले या घेरा डालने वाले लोगों के विरुद्ध हुआ है. बाहरी तत्वों में दस्युओं और जंगली कबीलों के उपद्रव प्रधान हैं. सम्भवतः ये जंगली लोग न केवल समय समय पर खेती और पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं अपितु स्वयं इन्हें (आर्य जन को) भी अकेला या असुरक्षित पाकर यातना देते हैं. अतः वे इन शत्रुओं को कोसते हैं, मनाते हैं की इनका बुरा हो.
“हे सोम देवता, जो मुझ भले मानस को भी लूट लेते हैं, जो मेरे जैसे सज्जन को भ्रष्ट कर देते हैं, उन्हें सांप काट ले, वे मौत के मुंह में चले जाएँ (७.१०४.२). जो चोर और उचक्के शत्रु हमारे अन्न और जल को दूषित कर देते हैं, घोड़ों और गायों को यातना देते हैं, हे अग्नि, उनका नाश हो जाए, उनके पूरे खानदान का नाश हो जाए (७.१०४.१०).
वैदिक संघर्ष की प्रकृति सुरक्षात्मक है न की आक्रामक
वेद पढ़ेंगे तो आपको पता चल जायेगा की वैदिक संघर्ष की प्रकृति सुरक्षात्मक है न की आक्रामक. वास्तव में देखा जाये तो यह अपने युग और परिवेश के अनुसार कम हिंसक और अधिक सहिष्णु सभ्यता थी. युद्ध उनकी विवशता थी, आत्मरक्षा का उपाय था. अतः जो उल्लेख शौर्य और युद्ध के आते हैं उनसे कहीं अधिक प्रखर है रक्षा के लिए उनके आर्तनाद जिनपर वामपंथी इतिहासकारों ने ध्यान नहीं दिया या जानबूझकर छोड़ दिया क्योंकि इनपर ध्यान देने से वैदिक लोगों को हिंसक, लूटेरा और आक्रमणकारी आरोपित नहीं किया जा सकता था. असुरों/राक्षसों से अत्याचारों और उत्पीड़नो के विरुद्ध त्राहि माम, त्राहि माम की यह पुकार वैदिक काल से लेकर परवर्ती साहित्य तक में गूंजती रहती है. वे सभी देवताओं के शौर्य की याद दिलाकर उनसे रक्षा की मांग करते हैं.
मर्त्य अघायु (शत्रु) चाहे वे पास हों या दूर, उनसे रक्षा करो, हमारी जान बचाए रखो, (१.२७.३) अग्नि, धूर्त हिंसकों से हमारी रक्षा करो. (१.३६.१५) जो हमारी जान लेना चाहते हैं, हमारे उपर क्रुद्ध रहते हैं, उनसे रक्षा करो. हे यज्ञ युप, इन नरभक्षी राक्षसों को जला डालो, इन पापियों से हमे बचाओ. (१.३६.१४) अग्नि अपने अदम्य रक्षा-उपायों से हमारी रक्षा करो. (१.९५.९) वरुण, जो चोर और उठाईगिरी हमे मारता हैं उससे हमे बचाओ. (२.२८.१०) हम कभी इन द्रोही हिंसकों के सम्पर्क में न आयें. (२.३५.६) अग्नि हमारी यज्ञ से प्रसन्न होकर इन निरंतर बढते हुए राक्षसों को मार डालो, और हमे बचाओ. (२.२३.१४) बृहस्पति इन चोरों, उचक्कों, द्रोहियों, दूसरों के माल पर नजर रखने वाले देव विरोधियों के हाथ में कहीं मुझ भक्त को न सौंप देना. (२.२३.१६) इन्द्र तुम्हारे साख के भरोसे रहने वाले हमलोगों को डर न लगे, हे अपराजिते जेता, हम तुम्हे नमस्कार करते हैं. (२.२८.१०) इन्द्र हमारे भय को दूर करे. (२.४०.१०) हे यज्ञ के देवता, हमारी ओर नजर करो, तुम्हारी रक्षा से हमारा भय दूर हो जाए. देवताओं, हमे नृशंस हिंसकों से बचाओ, इन अपकारियों से हमारी रक्षा करो.
यह खीज और विवशता अक्सर बद्दुआओं का रूप ले लेती है. शत्रुओं के जीवित सदस्य और गर्भस्थ शिशु तक मर जाएँ. जो हमें सताता है वो नरक में चला जाये (४.४.५, ६.४४.१७). अग्नि, चोरों और तस्करों को मैं तुम्हारे मुंह में झोंकता हूँ, इन्हें चबा चबा कर खा जाना, इन चोरों का मुंह नोच नोचकर खा जाना (१.७९.११). यहाँ इन शत्रुओं की स्थिति भी स्पष्ट है, ये वनचर या जंगली और कक्ष या नदी के कछार में छुपे रहकर प्रहार करने वाले या चारा लूटने वाले लोग हैं (२७.११.७७-७९).
ऐसे डरे सहमे लोग जिनकी विवशता और कातरता की गूंज पूरे वेदों में सुनाई देती है वे भला आक्रमणकारी हो सकते हैं? वास्तव में वैदिक संघर्ष सभ्यता और उत्पादकता के अपेक्षाकृत उच्च स्तर पर पहुंचे हुए और खुशहाल लोगों का बर्बर, लूटेरे, हिंसक, घुमक्कड कबीलों, असभ्य चोरों, डाकुओं, गिरिजनों, धन-दौलत और मवेशी चुराकर भागने वालों के विरुद्ध सतत संघर्ष की कहानी है जिसे हिंदू विरोधी, धूर्त वामपंथी इतिहासकारों ने षड्यंत्र पूर्वक उपर्युक्त हिंसक, लूटेरे और बर्बर लोगों के विरुद्ध आर्य (श्रेष्ठ) जनों के आक्रमण की कहानी के रूप में पड़ोस दिया है.
जैसे आज अपेक्षाकृत समृद्ध और विकसित हिन्दू समाज आतंकवादियों, नक्सलियों, अपराधियों से अपनी रक्षा केलिए सरकार से गुहार लगाता रहता है. अपेक्षित समृद्धि और वैभव में जीते हुए, अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित इन जनों की कामना युद्ध की नहीं शांति और व्यवस्था की है. “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्“ की यही कामना वैदिक काल से आजतक भारत में और हिंदु समाज में काव्यों, मंगलाचारणों, पूजा पाठों के बाद शांति पाठों में गूंजता रहता है. शांति की इतनी उत्कट कामना तत्कालीन जगत में कहीं अन्यत्र नहीं पाया गया है. यह शांतिपाठ उसी प्राचीन ऋग्वैदिक अंश हैं जिसके आधार पर वैदिक लोगों को धूर्तता पूर्वक असभ्य, बर्बर, आक्रमणकारी सिद्ध किया जाता है.
वेदों में शांति का पाठ
इन्द्र और पूषा अन्न लाभ के लिए शांतिकारक हों, धन-धान्य सकुशल रहे, वर्षा सुखकर हो, अतिवृष्टि या अनावृष्टि न हो, खेत के मालिक आराम से रहें, फसल अच्छी हो, हवा कल्याणकारक हो, आंधी तूफान न आए, धरती और आकाश शांतिकारक हों, मौसम खराब न हो और भूचाल आदि न आये, भेषजदाता और व्याधि कारक देव रूद्र शांतिकर हों, बीमारी महामारी न आए, उत्पादन कर्म से जुड़े लोग और दान पर जीने वाले चैन से रहें, कलाकार और शिल्पी सुख शांति से रहें, नदियाँ कल्याणकारक हों बाढ़ न आये, समुद्र कल्याणकारी हों, समुद्री यात्राओं के समय तूफान आदि न आये आदि कल्पना और कामना क्या किसी असभ्य, बर्बर, पिछड़े अर्थतन्त्र से जुड़े लोगों की हो सकती है?
अथर्ववेद में इन्द्र को वणिक कहा गया है. ऋग्वेद में भी इन्द्र को बार बार मधवा अर्थात महा धनी कहा गया है. सबसे बडी बात यह है की वैश्य वर्ण की उत्पत्ति ऋग्वेद से मानी गयी है. ऋग्वेद के रचनाकारों के आश्रयदाता ये वणिक लोग ही थे. ऋग्वेद के कई सूक्त व्यापार वाणिज्य के मार्ग के बाधाओं और व्यक्तियों की सुरक्षा के गुहार से सम्बन्धित है और वैदिक लोगों के अधिकांश शत्रु वास्तव में आर्यों के व्यापार वाणिज्य के शत्रु ही प्रतीत होते हैं. सम्भव है कई सूक्त वणिकों द्वारा कराये जाने वाले यज्ञ को ध्यान में रखकर ही रचना किये गए हों. यह भी सम्भव है की आर्य शब्द का प्रयोग तब उसी अर्थ में होता हो जिस अर्थ में उत्तर वैदिक काल में श्रेष्ठि शब्द का और आज महाजन शब्द का प्रयोग होता है जो कालांतर में सम्मान सूचक शब्द के रूप में रूढ़ हो गया हो.
वेदों में जातीय संघर्ष नहीं है
वास्तव में वैदिक लोगों के शत्रु वैसे ही थे जैसे आज के संदर्भ में हमारे शत्रु हैं:
१. व्यावसायिक शत्रु- चोर, डाकू, लूटेरे, अपहरणकर्ता, तस्कर आदि
२. सामाजिक शत्रु- अपराधी, आतंकवादी, नक्सलवादी आदि
३. वैचारिक शत्रु- जैसे देशभक्त, राष्ट्रवादियों और हिन्दुओं के विरोधी जिहादी, मिशनरी, देशद्रोही, वामपंथी, अर्बन नक्सली, छद्मसेकुलर आदि
४. भू-भौतिक शत्रु- असुरों का देश पाकिस्तान के संदर्भ में देवों का देश भारत
जैसे उपर्युक्त जातीय संघर्ष नहीं है वैसे ही वैदिक संघर्ष जातीय संघर्ष नहीं था. हम सबके पूर्वज वैदिक आर्य लोग महान थे. वैदिक सभ्यता विश्व की सबसे महान सभ्यता संस्कृति थी और वैदिक लोग भारतवर्ष के मूल निवासी और हमारे महान पूर्वज थे (पढ़ें हमारा लेख-आर्यों के आक्रमण का सिद्धांत ब्रिटिश सम्राज्यवादी षड्यंत्र था). सत्य, अहिंसा, प्रेम, बंधुत्व, शांति और विश्वबन्धुत्व उनका आशीर्वचन था. परन्तु वे अहिंसा परमोधर्मः के साथ धर्म हिंसा तथैवच के नीति का कड़ाई से पालन करते थे जो सत्य, न्याय, धर्म और खुद के अस्तित्व की रक्षा के लिए आवश्यक था.
सहायक ग्रन्थ-इतिहास, पुराण, ऋग्वेद एवं “हडप्पा सभ्यता और वैदिक साहित्य”
What a data of un-ambiguity and preserveness of valuable know-how concerning unpredicted emotions.
If you are going for finest contents like me, only pay a quick visit this web
site every day because it presents quality contents,
thanks
Hey there just wanted to give you a quick heads up.
The text in your post seem to be running off the screen in Firefox.
I’m not sure if this is a formatting issue or something to do with browser compatibility but I thought
I’d post to let you know. The layout look great though!
Hope you get the problem resolved soon. Many thanks
This is my first time go to see at here and i am actually
impressed to read all at alone place.
Thanks for your publication. One other thing is the fact that individual American states have their very own laws in which affect property owners, which makes it quite hard for the Congress to come up with a different set of recommendations concerning foreclosures on people. The problem is that each state has got own legal guidelines which may have impact in an adverse manner with regards to foreclosure policies.
Greetings from Idaho! I’m bored at work so I decided to browse your blog on my iphone during lunch break.
I love the knowledge you provide here and can’t wait
to take a look when I get home. I’m amazed at how fast your blog loaded on my cell phone ..
I’m not even using WIFI, just 3G .. Anyways, amazing blog!
Greetings from Colorado! I’m bored at work so I decided to browse your site on my iphone during lunch break.I enjoy the information you present here and can’t wait to take a look when I get home.I’m surprised at how fast your blog loaded on my mobile .. I’mnot even using WIFI, just 3G .. Anyways, very good site!
This design is incredible! You certainly know how to keep a reader
entertained. Between your wit and your videos, I was almost moved
to start my own blog (well, almost…HaHa!) Great job.
I really loved what you had to say, and more than that, how you presented
it. Too cool!
You’ve made some good points there. I looked on the web for more info about the issue and found most individuals will go along
with your views on this website.
An impressive share! I have just forwarded this onto a friend who was doing a little homework on this.And he actually ordered me lunch because I found it for him…lol. So allow me to reword this…. Thank YOU for the meal!!But yeah, thanks for spending time to talk about this issue here on your website.
Today, I went to the beachfront with my kids. I found
a sea shell and gave it to my 4 year old daughter and said “You can hear the ocean if you put this to your ear.” She placed
the shell to her ear and screamed. There was a
hermit crab inside and it pinched her ear. She never wants to go back!
LoL I know this is entirely off topic but I had to tell someone!
A fascinating discussion is definitely worth comment. I do
believe that you ought to publish more on this topic, it might
not be a taboo matter but typically folks don’t talk about such topics.
To the next! Many thanks!!
Thanks for sharing your thoughts. I truly appreciate your efforts and I am waiting for your further write ups thank you once again.
It’s an remarkable paragraph in support of all the web visitors; they
will get benefit from it I am sure.
Appreciating the commitment you put into your site and detailed information you offer.
It’s great to come across a blog every once in a while that isn’t the same outdated rehashed information. Excellent read!
I’ve saved your site and I’m adding your RSS feeds to my Google account.
I believe that is one of the most significant information forme. And i am glad studying your article. But wanna observation on some basic issues,The site style is great, the articles is truly great : D.Excellent task, cheers
You actually make it seem so easy with your presentation but I find this
matter to be really something which I think I would never understand.
It seems too complicated and extremely broad for me. I’m
looking forward for your next post, I will try to get the hang of it!
Some truly prize content on this website , bookmarked .
Hey, you used to write wonderful, but the last several posts have been kinda boring… I miss your great writings. Past several posts are just a little bit out of track! come on!
Someone essentially assist to make critically articles I might state. This is the very first time I frequented your website page and thus far? I amazed with the research you made to make this actual post amazing. Wonderful task!
hi!,I like your writing very much! percentage we keep up a correspondence extra about your post on AOL? I require a specialist in this house to unravel my problem. Maybe that is you! Taking a look forward to see you.
I have recently started a blog, the info you offer on this web site has helped me greatly. Thank you for all of your time & work. “Marriage love, honor, and negotiate.” by Joe Moore.
I’ve read some excellent stuff here. Certainly price bookmarking for revisiting. I wonder how a lot effort you put to make this kind of great informative website.
My partner and I stumbled over here from a different web address and thought I should
check things out. I like what I see so i am just following you.
Look forward to finding out about your web page again.
Great post! We will be linking to this particularly great
content on our site. Keep up the great writing.
An intriguing discussion is definitely worth comment. I think that you
need to publish more on this issue, it may not be a taboo matter but typically people don’t talk about such topics.
To the next! All the best!!
Hi, i feel that i noticed you visited my site thus i came to return the prefer?.I am attempting
to to find issues to improve my site!I assume its ok to use a few of your ideas!!
Thanks for some other excellent post. Where else could anybody get that type of information in such an ideal
method of writing? I’ve a presentation next week, and I’m at the search for such info.
Pretty section of content. I just stumbled upon your website and in accession capital to assert that I get in fact enjoyed account your
blog posts. Any way I’ll be subscribing to your augment and even I achievement
you access consistently fast.
Greetings! I know this is somewhat off topic but I was wondering if you knew where I
could locate a captcha plugin for my comment form?
I’m using the same blog platform as yours and I’m having problems finding
one? Thanks a lot!
Pretty section of content. I just stumbled upon your site and in accession capital to assert that
I acquire in fact enjoyed account your blog posts.
Anyway I will be subscribing to your augment and even I achievement
you access consistently fast.
I am sure this paragraph has touched all the internet viewers, its really really pleasant piece of writing on building up new webpage.
I constantly emailed this website post page to all my contacts, for
the reason that if like to read it next my links will too.
Thanks for sharing such a pleasant thinking, article is pleasant, thats why i have read it
entirely
Very nice post. I certainly appreciate this site.
Keep writing!
You have remarked very interesting details! ps decent website.
excellent points altogether, you just gained a new reader. What would you suggest about your submit that you simply made some days in the past? Any sure?
I went over this site and I conceive you have a lot of fantastic info, saved to my bookmarks (:.
This is a topic that’s near to my heart…
Cheers! Where are your contact details though?
Its not my first time to visit this web site, i am browsing
this web site dailly and take good data from here everyday.
Hello there! This article couldn’t be written any better!
Going through this article reminds me of my previous roommate!
He always kept preaching about this. I will send this information to him.
Fairly certain he’s going to have a good read. Thanks
for sharing!
You have brought up a very great details , thankyou for the post.
I like what you guys are up also. Such intelligent work and reporting! Carry on the superb works guys I have incorporated you guys to my blogroll. I think it will improve the value of my website :).
Wonderful article! We will be linking to this particularly great
content on our site. Keep up the great writing.
Hello there, You’ve done a fantastic job. I’ll definitely digg it
and personally suggest to my friends. I’m confident
they will be benefited from this site.
obviously like your web site however you have to test the spelling on quite a few of your posts.
A number of them are rife with spelling problems
and I in finding it very troublesome to tell the reality
on the other hand I will surely come again again.
What’s up colleagues, fastidious article and good urging commented at this place, I am in fact enjoying by these.
When I originally commented I seem to have clicked on the -Notify me when new comments are
added- checkbox and from now on whenever a comment is
added I receive 4 emails with the same comment.
There has to be a means you can remove me from that service?
Thank you!
excellent issues altogether, you simply received a new reader. What might you suggest in regards to your submit that you made some days in the past? Any certain?
It’s awesome to visit this web page and reading
the views of all colleagues on the topic of this paragraph, while I am also zealous of getting knowledge.
I like this site very much, Its a rattling nice post to read and get information. “The absence of war is not peace.” by Harry S Truman.
I like what you guys are up too. Such clever work and reporting!
Keep up the terrific works guys I’ve you guys to
blogroll.
I have read some just right stuff here. Certainly value bookmarking for revisiting.
I wonder how so much attempt you place to create any such fantastic informative
web site.
Rattling excellent info can be found on weblog.
The next time I read a blog, I hope that it doesnt disappoint me as much as this one. I mean, I know it was my choice to read, but I actually thought youd have something interesting to say. All I hear is a bunch of whining about something that you could fix if you werent too busy looking for attention.
My coder is trying to persuade me to move to .net from PHP.
I have always disliked the idea because of the expenses.
But he’s tryiong none the less. I’ve been using WordPress on a variety
of websites for about a year and am worried
about switching to another platform. I have heard good things about
blogengine.net. Is there a way I can transfer all my
wordpress posts into it? Any kind of help would be really
appreciated!