मक्का का पुराना तस्वीर
यह ख़ुशी की बात है कि अंग्रेजों और वामपंथियों का हिन्दू विरोधी षड्यंत्र की हम हिन्दू विदेशी और अपने ही देश भारतवर्ष पर आक्रमणकारी है अब झूठ और मनगढ़ंत साबित हो चूका है. अब इतिहासकार मानने लगे हैं कि हिन्दू विदेशों से भारत नहीं आये बल्कि विश्वगुरु भारत के गौरवशाली हिन्दू भारत से निकलकर पुरे विश्व में वैदिक संस्कृति, सभ्यता, धर्म, शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान और व्यापार का प्रसार किये थे.आधुनिक इतिहास शोधों से अब स्पष्ट हो गया है कि लगभग पुरे एशिया पर इस्लाम पूर्व काल तक हिन्दुओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष शासन था. अरब में इस्लाम के उदय होने और सभी पैगन पंथी (हिन्दू, बौद्ध मूर्तिपूजक) लोगों को जबरन मुसलमान बना देने के बाद हिन्दू सभ्यता, संस्कृति और धर्म तथा इनके ज्ञान, विज्ञान, आध्यात्म, इतिहास आदि ग्रंथों को खोज खोजकर नष्ट कर देने के बाबजूद ऐसे हजारों सबूत अभी भी मौजूद है जो यह साबित करने केलिए पर्याप्त है कि इस्लामपूर्व अरब में भी हिन्दू सभ्यता, संस्कृति, धर्म परम्परा के ही लोग अर्थात हिन्दू ही रहते थे.
यूरोपियन विद्वान गोडफ्रे हिंगिस लिखते हैं, “सारे देशों में भारत में ही प्रथम मानव बस्ती हुई और वे भारतीय ही अन्य सारे जनों के प्रजनेता रहे. प्रलय के पूर्व ही भारतियों की सभ्यता चरम सीमा तक पहुंच चुकी थी. सारे विश्व में फ़ैल जाने से पूर्व मानव की जो श्रेष्ठतम प्रगति हो चुकी थी वह भारत के लोगों में स्पष्ट दीखती थी. यद्यपि हमारे पादरियों ने उस सभ्यता को छुपा देने का बहुत यत्न किए लेकिन वे पादरी उनके कुटिल दाव में अयशस्वी रहे”. (Page 66, The Celtic Druids, by Godfrey Higgins)
Sir W Drummond लिखते हैं, “प्राचीनकाल में अरब लोग शैवपंथी थे. मोहम्मद… रब…मोज़ेस… मैमोनी आदि से पूर्व अनेक युग तक अरबों में शिवभक्ति ही प्रचलित थी. सारे मानव उसी धर्म के अनुयायी थे…विश्व के लगभग सारे ही प्रगत लोगों का वही धर्म था….विविध प्रकार के पत्थर-कोई गोल, कोई स्तम्भ के आकर का, कोई पिरामिड के आकार का, प्राचीन समय से पूजे जाते थे. (Sir W Drummond का ग्रन्थ खंड-२, पेज ४०७-४३५)
दुनियाभर में शिव की पूजा का प्रचलन था, इस बात के हजारों सबूत बिखरे पड़े हैं. पुरातात्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहर मेसोपोटेमिया और बेबीलोन (इराक) में भी शिवलिंग की पूजा किए जाने के सबूत मिले हैं. हाल ही में इस्लामिक स्टेट द्वारा नष्ट कर दिए गए सीरिया का प्राचीन शहर पलमायरा, नीमरूद आदि नगरों में भी शिव की पूजा के प्रचलन के अवशेष मिलते हैं. (News18.com)
अरब के लोगों को कुशाई (Cushites) और श्यामई (Semites) कहा जाता है. कुश राम के पुत्र थे और Cushites खुद को कुश का प्रजाजन कहते हैं. इसी प्रकार श्याम कृष्ण का नाम है और कृष्ण श्याम रंग के भी हैं. Semites श्याम कृष्ण के अनुयायी ही थे. वास्तव में इस्लाम पूर्व काल में अरब के लोग भी भगवान राम, कृष्ण और शिव के अनुयायी ही थे क्योंकि ईसाई इस्लाम से पहले पुरे विश्व में केवल वैदिक धर्म ही था-पी एन ओक
कुश के कुल वाले नाम के कई वंशज निसंदेह अनादिकाल से अर्बस्थान में बसे हुए थे. कुश राम का पुत्र था. अफ्रीका और अर्बस्थान का कुश के साम्राज्य में अंतर्भाव था. (Origines, Part-3, Page-294, Writer-Sir William Drummond) इसी ग्रन्थ के पृष्ठ ३६४ पर अर्बस्थान की एक नदी का नाम “राम” बताया गया है.
प्राचीनकाल में Tsabaism (शैवइज्म अर्थात शिवपंथ) ही अरबों का धर्म था. वही Tsabaism समस्त मानवों का धर्म था…उस धर्म के तत्व उस समय के सारे ही सुबुद्धजन मानते थे. (Origines, Part-3, Page-411, Writer-Sir William Drummond)
अर्बस्थान तक के प्रदेशों में और उत्तरी ईरान में भी हिन्दू बड़ी संख्या में पाए जाते हैं. ये लोग वहीँ के प्राचीन निवासियों के वंशज हैं. वे किन्हीं अन्य देशों से आकर यहाँ नहीं बसे. जब हजारों की संख्यां में स्थानीय जन मुसलमान बनाए जाने लगे तो उनमें जिन्होंने किसी भी दबाब व प्रलोभन में फंसकर इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया, वे यह लोग हैं. (Memoirs of India, Writer-R.G. Wallace)
काबा शिव मन्दिर था और मुहम्मद का परिवार उस शिव मन्दिर का पुजारी
इस्लामी ज्ञानकोष में लिखा है कि महम्मद के दादा काबा मन्दिर के पुरोहित थे. मन्दिर के प्रांगण के पास ही उनके घर में या आँगन में खटिया पर बैठा करते. उनके उस मन्दिर में ३६० देव मूर्तियाँ हुआ करती थी.
महम्मद के घराने का नाम कुरैश था. कुरैश का मतलब होता है कुरु ईश अर्थात कुरु प्रमुख. महाभारत युद्ध समाप्त होने पर बचे खुचे कौरव वंशियों में से कुछ पश्चिम एशिया की ओर चले गये और वहीँ अपना राज्य स्थापित किये थे. कुरैश उनके ही वंशज हैं. यह भी सम्भव है कि कौरवों के वंशज वहां शासन करते हों. एसा ही एक कुरुईश कुल अर्बस्थान में काबा मन्दिर परिसर का स्वामी था. उसी कुल में महम्मद का जन्म हुआ था. महादेव उनके कुल देव थे. महम्मद काबा की सभी देव मूर्तियाँ भंग कर दी केवल शिवलिंग सुरक्षित रखा जिसे हज करने वाले आज भी माथे से लगाते हैं और चूमते हैं-पी एन ओक
काबा स्वयं ज्योतिषीय आधार पर इस प्रकार बना है कि उसकी चौडाई की मध्य रेखा की एक नोक ग्रीष्म ऋतू के सूर्योदय क्षितिज बिंदु की सीध में है और दूसरी शरद ऋतू के सूर्यास्त बिंदु की सीध में है. महम्मद के समय उसमे ३६० मूर्तियाँ होती थी. वह सूर्यपूजा का स्थान था. वायु के प्रचलन की आठ दिशाओं से उसके आठ कोने सम्बन्धित हैं. David A King, Prof. HKCES, Newyork City.
Berthold ने लिखा है, “हिझाज की प्रारम्भिक मस्जिदों का रुख पूर्व दिशा में था क्योंकि इस्लामपूर्व मुर्तिभक्त अरबों को पूर्व दिशा का महत्व था. काबा मन्दिर की प्रत्येक दीवार या कोना विश्व की एक-एक विशिष्ट दिशा से सम्बन्धित था” अर्थात काबा मन्दिर अष्टकोणीय था. सनातन संस्कृति में आठ दिशाएँ चारों ओर और दो उपर निचे, इस प्रकार दस दिशाएँ बताई गयी है. वैदिक स्थापत्य अधिकांशतः अष्टकोणीय ढांचे पर ही होते हैं. भारत में भी अधिकांश तथाकथित मुस्लिम इमारतें वैदिक स्थापत्य पर बनी हिन्दू इमारतें ही हैं.
अरब स्थान के मक्का नगर में स्थित काबा प्राचीन काल में वैदिक तांत्रिक ढांचे पर बना एक विशाल देवमंदिर था. वैदिक अष्टकोण के आकार का वह मन्दिर था. काबा के मन्दिर में जब किन्ही विशेष व्यक्तियों को प्रवेश कराया जाता है तो उन्हें आँखों पर पट्टी बंधकर ही अंदर छोड़ा जाता है ताकि वह अंदर शेष रही वैदिक मूर्तियों के बारे में किसी को कुछ बता न पाएं. मन्दिर में जो चौकोन है उसके बाएँ वह प्राचीन शिवलिंग दीवार में आधा चुनवाया गया है. उसकी परिक्रमा करने केलिए पुरे मन्दिर की ही परिक्रमा करनी पड़ती है. यहाँ जाने वाले सारे मोहम्मदपंथी एक दो नहीं बल्कि उसी वैदिक प्रथा के अनुसार इस शिवलिंग की सात परिक्रमा करते हैं-पी एन ओक
मक्का की देवमूर्तियों के दर्शनार्थ प्राचीन (इस्लामपूर्व) काल में जब अरब लोग यात्रा करते थे तो वह यात्रा वर्ष की विशिष्ट ऋतू में ही होती थी. शायद वह यात्रा शरद ऋतू में (यानि दशहरा-दीपावली के दिनों में) की जाती थी. प्राचीन अरबी पंचांग (वैदिक पंचांग के अनुसार) हर तिन वर्षों में एक अधिक मास जुट जाता था. अतः सारे त्यौहार नियमित ऋतुओं में ही आया करते थे. किन्तु जब से अरब मुसलमान बन गये, कुरान ने आधिक मास पर रोक लगा दी. अतः इस्लामी त्यौहार, व्रत, पर्व आदि निश्चित ऋतू में बंधे न रहकर ग्रीष्म से शिशिर तक की सारी ऋतुओं में बिखरे चले जाते हैं. (Travels in Arabia, Writer-john Lewis Burckhardt)
मुसलमानों की हज यात्रा एक इस्लामपूर्व परम्परा है. उसी प्रकार Suzafa और Merona भी इस्लामपूर्व काल से पवित्र स्थल माने जाते रहे हैं क्योंकि यहाँ Motem और Nebyk नाम के देवताओं की मूर्तियाँ होती थी. अराफात की यात्रा कर लेने पर यात्री Motem और Nebyk का दर्शन किया करते हैं. (Pg. 177-78, Travels in Arabia, Writer-john Lewis Burckhardt)
खुद इस्लाम शब्द संस्कृत ईशालयम से बना है जिसका अर्थ होता है देवता का मन्दिर. काबा प्राचीनकाल से अरबों का प्रमुख ईशालयम था. मोहम्मद का परिवार वहां के पुजारी थे और अरब के लोग उस ईशालयम के अनुयायी. इसलिए मोहम्मद पैगम्बर ने जब काबा ईशालयम पर कब्जा किया तो उसने अपने मुहम्मदी पंथ का नाम ईशालयम उर्फ़ इस्लाम (अरबी उच्चार) रखा-पी एन ओक
मोहम्मद ने जब काबा मन्दिर पर हमला किया तब मक्का की सुरक्षा का दायित्व एक अतिप्राचीन हिन्दू कुल का मुखिया अमरु के जिम्मे था. जब मुखिया अमरु को मुसलमानों को मक्का शहर सौंप देना पड़ा, तब उसने एक शिवलिंग और बारहसिंगों की दो स्वर्ण मूर्तियों को जमजम कुँए में फेंक दिया.
Sir William Drummond लिखते हैं, “Amru-Chief of one of the most ancient tribes…compelled to cede Meeca to the Ishmelites, threw the black stone (Shivling) and two Golden antelopes into the nearby well, Zamzam.”(Origines, Part-3, Page-268, Writer-Sir William Drummond) शिव को पशुपति कहे जाने के कारन काबा मन्दिर में शिव के साथ पशुओं की भी मूर्तियाँ थी-पी एन ओक
मक्का में हिन्दुओं का कवि सम्मेलन होता था
मक्का के ओकथ में कवि सम्मेलन हुआ करता था. उस सम्मेलन में पुरस्कृत कविता स्वर्ण थालों पर लिख मक्का में लटकाया जाता था. उन्ही कविताओं का संग्रह सैर उल ओकुल में किया गया है. महम्मद का चाचा उमर-बिन-ए-हज्जाम भी एक प्रसिद्ध कवि और भगवान शंकर का भक्त था. शिव की स्तुति में लिखी उसकी एक कविता भी सैर-उल-ओकुल ग्रन्थ में है. कविता का अर्थ निचे है:
यदि कोई व्यक्ति पापी या अधर्मी बने,
यह काम और क्रोध में डूबा रहे,
किन्तु यदि पश्चाताप कर वह सद्गुणी बन जाए
तो क्या उसे सद्गति प्राप्त हो सकती है?
हाँ अवश्य! यदि वह शुद्ध अंतःकरण से
शिवभक्ति में तल्लीन हो जाए तो
उसकी आध्यात्मिक उन्नति होगी.
हे भगवान शिव! मेरे सारे जीवन के बदले,
मुझे केवल एक दिन भारत में निवास का
अवसर दें जिससे मुझे मुक्ति प्राप्त हो.
भारत की एकमात्र यात्रा करने से
सबको पुण्य-प्राप्ति और संतसमागम का लाभ होता है.
सैर उल ओकुल के पृष्ठ २५७ पर मोहम्मद से २३०० वर्ष पूर्व जन्मे अरबी कवि लबी बिन-ए-अख्त्ब-बिन-ए-तुरफा की वेदों की प्रशंसा में लिखी हुई कविता का अर्थ निचे दिया है:
हे भारत की पवित्र भूमि तुम कितनी सौभाग्यशाली हो.
क्योंकि ईश्वर की कृपा से तुम्हे दैवी ज्ञान प्राप्त है.(१)
वह दैवी ज्ञान चार प्रकाशमान ग्रन्थद्वीपवृत सारों का मार्गदर्शक है.
क्योंकि उनमे भारतीय दिव्य पुरुषों की वाणी समाई है.(२)
परमात्मा की आज्ञा है कि सारे मानव उनसे मार्गदर्शन प्राप्त करें.
और वेदों के आदेशानुसार चलें.(३)
दैवी ज्ञान के भंडार हैं साम और यजुर जो मानवों की देन हैं.
उन्ही के आदेशानुसार जीवन बिताकर मोक्ष प्राप्ति होगी.(४)
दो और वेद हैं ऋग और अक्षर, जो भ्रातृता सिखाते हैं.
उनके प्रकाश से सारा अज्ञान अंधकार लुप्त हो जाता है.(५)
भारत के महान चक्रवर्ती सम्राटों राजा शालिवाहन, विक्रमादित्य आदि का साम्राज्य अर्बस्थान तक विस्तृत था. भविष्य पुराण में राजा शालिवाहन जिन्हें कुछ इतिहासकार परमार वंश और कुछ जैसे हेमचन्द्र रायचौधुरी सातवाहन वंश के मानते हैं के द्वारा मक्का के काबा में स्थित मक्केश्वर महादेव का पूजा करने की कथा है. अरबी इतिहासकार याकुबी ने एक हिन्दू राजा द्वारा बेबिलोनिया और इजरायिलों को दण्डित करने केलिए उनके ऊपर चढ़ाई करने की बात लिखी है.
सैर उल ओकुल के पृष्ठ ३१५ पर महम्मद से १६५ वर्ष पूर्व के कवि जिपहम बिन्तोई का सम्राट विक्रमादित्य की प्रशंसा में लिखी कविता सम्राट विक्रमादित्य के अर्बस्थान तक साम्राज्य विस्तृत होने के सबूत हैं जिसका अर्थ निचे दिया जाता है:
भाग्यशाली हैं वे जो विक्रमादित्य के शासन में जन्मे. वह सुशील, उदार, कर्तव्यनिष्ठ शासक प्रजाहित दक्ष था. किन्तु उस समय हम अरब परमात्मा का अस्तित्व भूलकर वासनासक्त जीवन व्यतीत करते थे. हममें दूसरों को निचे खींचने की और छल की प्रवृति बनी हुई थी. अज्ञान का अँधेरा हमारे पुरे प्रदेश पर छा गया था. भेड़िये के पंजे में तड़फड़ाने वाली भेड़ की भांति हम अज्ञान में फंसे थे. अमावस्या जैसा गहन अंधकार सारे अरब प्रदेश में फ़ैल गया था. किन्तु उस अवस्था में वर्तमान सूर्योदय जैसे ज्ञान और विद्या का प्रकाश, यह उस दयालु विक्रम राजा की देन है जिसने हम पराये होते हुए भी हमसे कोई भेदभाव नहीं बरता. उसने निजी पवित्र (वैदिक) संस्कृति हममें फैलाई और निजी देश (भारत) से यहाँ ऐसे विद्वान, पंडित, पुरोहित आदि भेजे जिन्होंने निजी विद्वता से हमारा देश चमकाया. यह विद्वान पंडित और धर्मगुरु आदि जिनकी कृपा से हमारी नास्तिकता नष्ट हुई, हमें पवित्र ज्ञान की प्राप्ति हुई और सत्य का मार्ग दिखा वे हमारे प्रदेश में विद्यादान और संस्कृति प्रसार के लिए पधारे थे.
कवि जिपहम बिन्तोई की विक्रमादित्य की प्रशंसा में लिखी कविता और महम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-हज्जाम के द्वारा लिखित कविता दोनों दिल्ली के लक्ष्मी नारायण मन्दिर के यज्ञशाला की दीवारों पर उत्कीर्ण है.
काबा मन्दिर में शेषशय्या पर विराजमान भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा थी
एकं पदं गयायां तु मकायां तु द्वितीयकम
तृतीयं स्थापितं दिव्यं मुक्त्यै शुक्लस्यम सन्निधौ
अर्थात विष्णु के पवित्र पदचिन्ह विश्व के तिन प्रमुख स्थान में थे-एक भारत के गया नगर में, दूसरा मक्का नगर में और तीसरा शुक्लतिर्थ के समीप. (हरिहरेश्वर महात्म्य, प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ)
काबा के मन्दिर को विश्व का नाभि कहा जाता था. इससे हमारा अनुमान है कि जिस विष्णु भगवान की नाभि से ब्रह्मा प्रकट हुए और ब्रह्मा द्वारा सृष्टि-निर्माण हुई उन शेषशाई भगवान विष्णु की विशालकाय मूर्ति काबा के देवस्थान में बीचोबीच थी और इर्दगिर्द अन्य ३६० मन्दिरों में सैकड़ों देवी देवताओं की मूर्तियाँ थी. गोरखपुर के किसी पीर के एक मुसलमान रखवाले ज्ञानदेव नाम लेकर आर्यसमाजी प्रचारक बन गये थे. ईरान के शाह के साथ वे चार-पांच बार हज कर आए थे. उनके कथन के अनुसार काबा के प्रवेश द्वार में एक Chandelier यानि कांच का भव्य द्वीपसमूह लगा है जिसके उपर भगवद्गीता के श्लोक अंकित हैं-पी एन ओक
Apocryphal Gospel नामक ईसाई धर्मग्रन्थ में अरब की कथाओं में भगवान कृष्ण के कालिया नाग से युद्ध का उल्लेख पृष्ठ १३३ इस प्रकार है, “एक नाग द्वारा एक खिलाड़ी को दंश करने के कारन एक अवतारी बालक उस नाग से झपट पड़ा. उस खिलाड़ी के व्रण से विष वापस चूस लेने को बाल भगवान ने नाग को बाध्य किया. तत्पश्चात बाल भगवान द्वारा उस नाग को शाप देने पर तड़फड़ाकर वह नाग मर गया.” इस प्रकार भारतीय दंत कथा तथा कुरान जिसे हम अरबी दंतकथा कह सकते हैं और ईसाई Apocryphal Gospel का निकट सम्बन्ध है. (थोमस मोरिस का ग्रन्थ, पेज-३२२)
इराक के अंतिम राजकुल का नाम बर्मक था. अलबरूनी के इतिहास के अनुवादक एडवर्ड डी सचौ ने लिखा है कि इराक में नवबहार नगर नवबिहार का अपभ्रंश है. वह एक बौद्ध पीठ था. इस पीठाधीश के पद को परमक (परमगुरु) कहते थे. अरब-इस्लामी आक्रामकों ने जब इराक पर हमला कर इराक को बल पूर्वक मुसलमान बनाया तब से परमक उर्फ़ बर्मक की धर्मसत्ता समाप्त हो गयी. परमक उर्फ़ बर्मक के इस्लामिक राजा बन जाने के कारन उसके अनुयायी जनता उसी के आज्ञा से मुसलमान बन गयी-पी एन ओक
बेबीलोनियन (इराक) और असीरियन साम्राज्यों में सर्वत्र हिन्दू धर्म ही था. प्राचीन धर्मग्रंथों में पाए जाने वाले विपुल प्रमाणों से यह प्रतीत होता है कि उनके देव सूर्य होते थे. वे उसे बालनाथ कहते थे. उसका स्तम्भरूपी प्रतीक प्रत्येक पहाड़ी पर प्रत्येक कुञ्ज में प्रतिष्ठित था. उसका एक दूसरा रूप था बछड़े का, जिसका पर्व हर पूर्णिमा को होता था. (इंडिया इन ग्रीस, लेखक एडवर्ड पॉकोक, पृष्ठ-१७८)
सीरिया राज्य का नाम सूर्य से पड़ा है. सारा प्रदेश भी सूर्य से ही सीरिया कहलाया. प्राचीन समय में यहाँ सूर्यपूजक लोग ही रहते थे. यह सूर्य योद्धा लोग बड़ी संख्यां में पेलेस्टाइन में बसे. (इंडिया इन ग्रीस, लेखक एडवर्ड पॉकोक, पृष्ठ-१८२)
सीरिया के पामीरा (Palmyra) स्थित मन्दिर के अंदर दुर्भाग्यवश तोड़-फोड़ दिखती है. धर्मान्ध मूर्ति भंजक मुसलमानों को सुंदर कलाकृतियों को छिन्न-भिन्न करने में एसा आसुरी आनंद होता था कि मानो वे अल्लाह की बड़ी सेवा कर रहे हैं. वहां का मन्दिर मस्जिद के रूप में प्रयोग किए जाने से उसकी और भी दुर्दशा हो गयी थी. वहां की नक्काशी, मूर्ति आदि पर कीचड़ का लेप चढ़ा दिया गया है. वहां के विशाल केन्द्रीय दालान में टहनियों, घास-फूस आदि से एक छत बना दी गयी है और उसके निचे पशु बांध दिए जाते हैं. (Remains of Lost Empires, Writer P.V.N. Myers, Page-34)
अरब में गौ पूजा
संस्कृत “ईड” का अर्थ है पूजा जैसे अग्निम इडे पुरोहितं अर्थात अग्नि को पूजा में अग्रस्थान दिया है. संस्कृत का यह ईड शब्द पूजा के अर्थ में पुरे विश्व में प्रचलित था जो मुसलमानों में ईद के नाम से सुरक्षित है. रोमन साम्राज्य में भी वर्षारम्भ की अन्नपूर्ण की पूजा को Ides of March अर्थात मार्च की पूजा कहा जाता है.
अरबी में “बकर” का अर्थ है गाय. संस्कृत “ईड” का अर्थ है पूजा. अतः “बकर ईद” का मतलब है गौ पूजा. इस्लामिक काल के पूर्व अर्बस्थान में वैदिक संस्कृति थी इसलिए अरब के लोग भी बकर ईद उत्सव अर्थात गौ पूजा उत्सव मनाते थे परन्तु जबरन मुसलमान बना दिए जाने के कारन उनका बकर ईद उत्सव गौ पूजा से वैसे ही पथभ्रष्ट हो गया जैसे मूर्तिपूजक अरब लोग मुसलमान बनने से मूर्तिविध्वंसक बन गये. कुरान में भी बकर अर्थात गाय नाम से एक पूरा खंड है.
रमजान और शबे बारात
रमजान, रामदान वास्तव में रामध्यान शब्द है. अर्बस्थान के लोग प्राचीन समय से रमझान के पुरे महीने में उपवास रखकर भगवान राम का ध्यान पूजन करते थे. इसीलिए रमझान का महीना पवित्र माना जाता है. जैसे हिन्दुओं में ३३ कोटि (प्रकार) के देवता होते हैं वैसे ही इस्लामपूर्व एशिया माईनर प्रदेश में रहने वाले लोगों के भी ३३ देवता होते थे. इस्लामपूर्व काल में शिवव्रत होता था. वह शिवव्रत काबा मन्दिर में बड़ा धूमधाम से मनाया जाता था. उसी का अपभ्रंश इस्लाम में शवे बारात हुआ है-पी एन ओक
इस्लामपूर्व अरबी सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान, विज्ञान भारतीय ही था
भारतियों को अरब लेखक हिन्दू कहा करते थे क्योंकि उस समय भारत निवासी सारे हिन्दू होते थे. फ्रेंच लोग भी भारतियों को हिन्दू ही कहते हैं. अरब ईरान के लोग हिन्दुओं का वैसे ही सम्मान करते थे जैसे मुसलमान आज सऊदी अरब के लोगों का करते हैं और हिन्दुस्थान की वे वैसे ही पूजा करते थे जैसे आज मुसलमान मक्का की और ईसाई रोम की करते हैं-पी एन ओक
वे मानते थे “हिन्दुओं का शासन और न्यायव्यवस्था बड़ी तत्पर, सरल और पूर्ण समाधान करने वाली होती थी. मदिरा और स्त्रीलम्पटता का कहीं नामोनिशान नहीं था” (विशारी मुकदसी, अरब निवासी) “हिन्दू लोग गणित में बड़े प्रवीण हैं. अरब लोग भारतियों से ही गणित सीखे”. (काजी सईद अदलसी, अरब)
वैदिक प्रलय की परम्परा भी सभी पंथों में दिखाई देती है. प्रलय के बाद मनु के द्वारा मानव की उत्पत्ति होती है. संस्कृत में मनु को मनु: अर्थात मनुह उच्चारण होता है. उसी मनुह का अपभ्रंश बाइबिल में नोहा और इस्लाम में केवल नूह बच गया. यहूदी, ईसाई और इस्लामी पंथ में जिस मूल धर्मप्रवर्तक अब्राहम का उल्लेख हुआ है, वे ब्रह्मा ही हैं. ब्रह्मा को अब्रम्हा कहना वैसी ही उच्चारण विकृति है जैसे स्कूल को अस्कूल और स्टेशन को अस्टेशन कहने में होती है. मुसलमानों में वही वैदिक ब्रह्मा अब्राहम के बजाए इब्राहीम उच्चारा जाता है.
उसी तरह ईश्वर का संस्कृत शब्द ईशस बाइबिल में Jesus, यहूदी में issac (ईशस) जबतक c का उच्चारण स होता रहा तब तक ईशस; इस्लाम में इशाक (issac अर्थात ईशस) कहलाता है. अतः स्पष्ट है सारे विश्व में प्राचीन काल में भगवान का नाम वैदिक परम्परा के अनुसार ईशस ही था-पी एन ओक
जिस प्रकार वैदिक परम्परा में तुलसी के पौधे को सम्मान दिया गया है, उसी प्रकार यहूदी, मुसलमानों और ईसाईयों में भी प्राचीनकाल में इसे सम्मान प्राप्त था. तुलसी के बारे में फोनी पार्क्स लिखते हैं-“इस पौधे को हिन्दू एवं मुसलमानों में उच्च सम्मान प्राप्त है. यह प्रोफेट में लिखा है कि उसने कहा, ‘हसन एवं हुसैन इस दुनिया में मेरे दो प्यारे तुलसी के पौधे हैं.” (Page-43, Oxford University Press, London 1975)
इस्लाम थोपे जाने से पूर्व अरब के लोगों में हिन्दू नाम का बड़ा प्रभाव तथा सम्मान दिखाई पड़ता है. वे अपनी सुंदर और लाडली बेटियों को “हिन्दा” या “सैफी हिंदी” कहकर पुकारा करते थे. संख्या और गणित की जननी भारत होने के कारण वे उसे “हिन्दिसा” कहते थे. भारतियों के प्रति अरब लोग बड़ी श्रद्धा और आदर रखते थे-पी एन ओक
सिद्दीकी के लेख में उल्लेख है कि अंकगणित, दशमलव पद्धति, बीजगणित, त्रिगुनमिति, भुमिति आदि गणित की विविध शाखाएँ अरब लोग भारतियों से ही सीखे. बगदाद नगर (जो हिन्दू वैदिक और वेदविद्या का केंद्र था) स्वयं संस्कृत नाम है. भग (उर्फ़ बग यानि ईश्वर) और दाद (यह दत्त यानि दिया हुआ इस अर्थ का संस्कृत शब्द है) का मतलब ईश्वर का दिया हुआ अर्थात भगवददत नगर है.
कुछ लोगों का यह कहना की बगदाद नगर का निर्माण खलीफा अल मंसूर ने ७६२-६३ में भारतीय स्थपति (इंजिनियर) और नगर-निर्माताओं की सहायता से करवाया था इस बात में सच्चाई नहीं है-पी एन ओक
यहूदी की तरह इस्लामी परम्परा के अनुसार भी एडम (आदिम) स्वर्ग से भारत में ही उतरा. भारत में उतरते ही आदम को परमात्मा का प्रथम दिव्य संदेश भारत में ही पहुंचा. मुसलमानों की धारणा है कि आदम का ज्येष्ठ पुत्र शिथ अयोध्या में दफनाया हुआ है. सिजदा अर्थात प्रणिपात या साष्टांग प्रणाम, अहरम अर्थात हज यात्रा में सिलाई रहित शरीर ढंकने के धवल वस्त्र और तवायफ अर्थात मन्दिर की प्रदक्षिणा आदि मुसलमानों में इसलिए रूढ़ है क्योंकि इस्लाम के पूर्व अर्बस्थान में वैदिक संस्कृति ही थी. मोहम्मद ने भी एकबार खुद कहा था, “भारत से ईश्वरीय सुगंध की वायु आती है.”
सूफी मंसूर की “अनल हक” अर्थात मैं ही सत्य हूँ घोषणा उपनिषदों की “सो अहम अस्मि” है. मंसूर का “हुलूल” यानि मानवी आत्मा परमात्मा का अंश है हिन्दू दर्शन है. वैदिक एकात्मता के सिद्धांत को अरबी में “वहदत उल वजूद” कहते हैं. आध्यात्मिक पंथ या मार्ग को “सुलूक” कहा जाता है. चार अवस्थाओं में से किसी भी अवस्था में परम सत्य का ज्ञान किया जा सकता है, एसी वैदिक धारणा है. वे अवस्थाएं हैं-जागृत, स्वप्न, सुप्त और तुरीय. अरबी में इन अवस्थाओं के नाम हैं-नासूत,जाबृत, मलकत और लुहुत.
योग का अरबी शब्द “जिक्र” यानि शारीरिक नियमन है. प्राणायाम को कहते हैं– हब्त-ई-दम. इस्लामपूर्व काल में अर्बस्थान के लोग इन सारी वैदिक आध्यात्मिक परम्पराओं का पालन करते थे. (वैदिक विश्वराष्ट्र का इतिहास, लेखक-पी एन ओक)
इराक की राजधानी बगदाद के संग्रहालय में एक प्राचीन मूर्ति है. उसमे सिंह पर आरूढ़ तीन देवियाँ हैं. स्पष्टतया वे लक्ष्मी, दुर्गा और पार्वती होंगी. रमजान, रामदान वास्तव में रामध्यान शब्द है. अर्बस्थान के लोग प्राचीन समय से रमझान के पुरे महीने में उपवास रखकर भगवान राम का ध्यान पूजन करते थे. इसीलिए रमझान का महीना पवित्र माना जाता है.
जैसे हिन्दुओं में ३३ कोटि (प्रकार) के देवता होते हैं वैसे ही इस्लामपूर्व एशिया माईनर प्रदेश में रहने वाले लोगों के भी ३३ देवता होते थे.
इस्लामपूर्व काल में शिवव्रत होता था. वह शिवव्रत काबा मन्दिर में बड़ा धूमधाम से मनाया जाता था. उसी का अपभ्रंश इस्लाम में शवे बारात हुआ है.
सऊदी अरब से हंसवाहिनी देवी सरस्वती की एक प्राचीन प्रस्तर मूर्ति प्राप्त हुई है जो ब्रिटिश म्यूजियम, लन्दन में रखा हुआ है-पी एन ओक
स्रोत-वैदिक विश्वराष्ट्र का इतिहास, भाग-१ व २. लेखक-पी एन ओक
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