गौरवशाली भारत

गौरवशाली भारत-५

गौरवशाली भारत - ५
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101.      यूरोप में सारे ड्रुइडो का धर्मप्रमुख जिसे सामान्यजनों को पापी ठहराकर बहिष्कृत कराने या पापमुक्त घोषित करने का अधिकार था उसके पद का संस्कृत नाम था पाप-ह यानि पापहर्ता या पापहंता. रोम में उसके धर्मपीठ को Vatican संस्कृत शब्द वाटिका कहा जाता था. उसी पाप-ह शब्द से पोप शब्द बना. किन्तु फ्रेंच आदि अन्य यूरोपीय भाषाओँ में उस धर्मगुरु को अभी भी उसके मूल संस्कृत शब्द पाप या पाप-ह ही कहते है.(पी एन ओक)

102.      The Celtic Druids, Writer-Godfrey Higgins, Picadilly, 1929 ग्रन्थ की भूमिका में हिगिंस ने लिखा है, “उत्तर भारत के निवासी बौद्ध लोग, जिन्होंने पिरमिड्स, स्टोनहेंज, कोरनोक आदि (भवन) बनाए उन्होंने ही विश्व की दंतकथाएँ (पुराण आदि) लिखी जिनका स्रोत एक ही था और जिनकी प्रणाली बड़े उच्च, सुंदर, सत्य तत्वों पर आधारित थी-उन्ही की गौरवगाथा इस ग्रन्थ में वर्णित है.

103.        ब्रिटेन के ड्रुइड सेलटक नाम के एक अतिप्राचीन परम्परा के लोग थे. विश्व की अद्यात्म पीढ़ियों के वे लोग थे, जो प्रलय से बचकर ग्रीस, इटली, फ़्रांस, ब्रिटेन आदि देशों में पहुंचे. इसी प्रकार उन्हीं लोगों की अन्य शाखा “दक्षिण एशिया” से सीरिया और अफ्रीका में गयी. पाश्चात्य देशों की भाषा एक ही थी. प्राचीन आयरलैंड की लिपि ही उन सबकी लिपि थी. ब्रिटेन, गाल, इटली, ग्रीस, सीरिया, अर्बस्थान, ईरान और हिन्दुस्थान-सबकी वही लिपि थी. (The Celtic Druids, Writer-Godfrey Higgins, Picadilly, 1929)

104.        ड्रुइड धर्मगुरु पूर्ववर्ती देशों के निवासी थे. वे भारत से ब्रिटेन में आए थे. प्रथम लिपि यानि कैडमियन वर्णमाला उन्ही की चलाई हुई थी. स्टोनहेंज, कोरनोक आदि एशिया और यूरोप की भव्य इमारतों के निर्माता वे ही लोग थे. (The Celtic Druids, Writer-Godfrey Higgins, Picadilly, 1929)

105.        प्राचीन यूरोप के लोग सेल्ट (Celts) या केल्ट्स (Kelts) कहलाते थे. डोरोथी चैपलिन ने अपने ग्रन्थ के पृष्ठ १६-२० पर लिखा है,  “केल्ट लोग विभिन्न जातियों के थे. उनकी भाषाएँ भिन्न थी तथापि उनकी संस्कृति एक थी. उनके न्यायालय होते थे. ड्रुइड पुरोहितों के बनाए नियमानुसार समाज का नियन्त्रण होता था. केल्ट जन आर्य थे या नहीं इस पर मतभेद है किन्तु यदि वे आर्य नहीं थे तो होम-हवन की प्रथा उनमें कैसे आई? ऋग्वेद के अतिरिक्त किस प्राचीन ग्रन्थ में यज्ञ के बारे में विपुल वर्णन है? हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ के अतिरिक्त बैल, वराह और सर्प को किस साहित्य में दैवी प्रतीक समझा जाता है?”

106.        “इस्लाम पूर्व समय में ईरान पूर्णतया भिन्न प्रकार का देश था. ईसापूर्व सं २२३४ में ईरान में आर्य शासन था. इस्लामी देश बनने के पश्चात ईरान स्ट्रेन और विश्वासघातकी देश हो गया है. जो भी मोहम्मदी होता है उसका जीवन विषय-वासनाओं से लिप्त रहता है.” (पेज १४२, Sanskrit and its kindred Literatures-Studies in Comparative Mythology, Writer-Laura Elizabeth,  London, 1881)

107.        प्राचीन यूरोप में जब वैदिक संस्कृति थी तब अर्थात ड्रुइडो के समय पुरे यूरोप में वैदिक पंचांग ही प्रचलन में था. भारत में सूर्योदय लगभग साढ़े पांच बजे सुबह होता है. उस समय ब्रिटेन में रात्रि के १२ बजते हैं. अतः भारत में नए दिन की शुरुआत के समय को ही वहां भी नया दिन माना जाता था. वही परम्परा आज भी यूरोप में है और नये दिन की शुरुआत मध्यरात्रि के पश्चात् होती है. (पी एन ओक)

१०८.   पहाड़ियों पर आग जलाकर २५ दिसम्बर का त्यौहार ब्रिटने और आयरलैंड में मनाया जाता था. फ़्रांस में ड्रुइडस की परम्परा वैसी ही सर्वव्यापी थी जैसे ब्रिटेन में. हरियाली और विशेषतया Mistletoe  (यानि सोमलता) उस त्यौहार में घर-घर में लगायी जाती. लन्दन नगर में भी लगायी जाति थी. इससे यह ड्रुईडो का त्यौहार होने का पता चलता है. ईसाई परम्परा से उसका (क्रिसमस का) कोई सम्बन्ध नहीं है. (हिंगिस पेज १६१)

109.        इशानी (Esseni) पंथ के साधू ईसाई बनाए जाने के बाद पतित और पापी रोमन और ग्रीक साधू कहलाने लगे. उनके ईसाई बनने से पूर्व के मठों में एक विशेष दिन सूर्यपूजा होता था. सूर्य को ईश्वर कहते थे. वह दिन था २५ दिसम्बर, मानो सूर्य का वह जन्मदिन था. ड्रुइड लोग भी इसे मनाते थे. भारत से लेकर पश्चिम के सारे देशों तक सूर्य के उस उत्तर संक्रमन का दिन जो मनाया जाता था उसी को उठाकर ईसाईयों ने अपना क्रिसमस त्यौहार घोषित कर दिया. (हिंगिस पेज १६४)

110.        रोम नगर में अनादी काल से एत्रुस्कन लोग बालकृष्ण को गोद में लिए हुए यशोदा की मूर्तियाँ और गोकुल का दृश्य बनाकर, भगवान कृष्ण के जन्म समय पर ठीक रात्रि १२ बजे घंटियाँ बजाकर कृष्णमास त्यौहार मनाते थे. वे ही लोग जब छल बल और कपट से ईसाई बनाए गये तो उसी प्राचीन यशोदा-कृष्ण की मूर्तियों को मेरी और उसका पुत्र ईसामसीह कहकर उसी पूजा को ईसाई मोड़ देने की हेराफेरी ईसा-पंथियों ने कर दी. (पी एन ओक)

111.        हिगिंस के ग्रन्थ के पृष्ठ ४३ से ५९ पर उल्लेख है कि “भारत के नगरकोट, कश्मीर और वाराणसी नगरों में, रशिया के समरकंद नगर में बड़े विद्याकेंद्र थे जहाँ विपुल संस्कृत साहित्य था.” वैसा ही वैदिक साहित्य और धर्मकेंद्र इजिप्त के अलेक्जेंड्रिया, इटली के रोम और तुर्की के इस्ताम्बुल नगरों में भी था. वहां की जनता जैसे जैसे ईसाई और इस्लामी बनती गयी वहां के मन्दिर, ग्रन्थ आदि सब जला दिए गये.

११२.   सांप सीढ़ी का खेल वैदिक मनोरंजन पर आधारित है. महाराष्ट्र में इसे ज्ञानदेव का मोक्षपट, गुजरात में ज्ञानाचौपट और दक्षिण में इसे परमपद सोनपट कहते हैं.

113.        अनादि समय से हिन्दू लोग सागर पर्यटन करते रहे हैं. दूर दूर के द्वीपों में उनकी सभ्यता का प्रसार होना हिन्दुओं की सागर यात्रा का ठोस प्रमाण है-कर्नल टॉड

114.        लन्दन का संत पॉल कैथेड्रल चर्च प्राचीन समय में गोपाल कृष्ण का मन्दिर था. सन १६४४ के आसपास आग लगने से प्राचीन मन्दिर की इमारत को काफी क्षति हुई थी. मन्दिर का नवीनीकरण होने के बाबजूद कृष्ण परम्परा के कई चिन्ह अभी भी दिखाई देते हैं-पी एन ओक

115.        उत्तर भारत के सूर्यवंशी लोगों का विश्व-प्रसार उनके विशाल भवनों से पहचाना जा सकता है. मन्दिर, महल, किले आदि की मोटी दीवारें, सार्वजनिक सुविधाओं के विविध निर्माण-कार्य जो रोम, इटली, ग्रीक, पेरू, ईजिप्त, सीलोन आदि प्रदेशों में पाए जाते हैं, उनकी विशालता से बड़ा अचम्भा होता है. (पेज-१६३, India in Greece, By e pococke)

116.        दर्शनशास्त्र में तो हिन्दू जन ग्रीस और रोम से कहीं आगे थे. ईजिप्त के लोगों का धर्म, पुराण और दार्शनिक कल्पनाएँ हिन्दुओं से ली गयी थी. ग्रीक दर्शनशास्त्र लगभग पूरा ही हिन्दू दर्शनशास्त्र पर आधारित था. हिन्दू दर्शनशास्त्र बड़े गहरे और परिपूर्ण होने के कारन ग्रीक दार्शनिक हिन्दुओं के शिष्य ही रहे होंगे. (Bharat-India as seen and known by Foreigners)

117.        ग्रीक लेखकों ने लिखा है हिन्दू लोग बड़े ज्ञानी थे, उनका आध्यात्मिक ज्ञान उच्चस्तरीय था. खगोल ज्योतिष और गणित में भी वे प्रवीन थे. डायोनीशस लिखता है कि हिंडून ने ही प्रथम सागर पार यात्रायें आरम्भ कर दूर-दूर देशों में निजी माल पहुंचाया. आकाशस्थ ग्रहों के भ्रमण वेग और तारों का अध्ययन और नामकरण हिन्दुओं ने ही किया. अति प्राचीन समय से प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दू विख्यात थे. (The Culcutta Review, December, 1861)

118.        हिन्दू सभ्यता प्राचीनतम है. उसके महत्वपूर्ण अवशेष जहाँ-तहां पाए जाते हैं. हर क्षेत्र की प्रवीणता और सभ्यता में हिन्दू सर्वदा अग्रसर रहे हैं. हिन्दू प्रणाली जब उत्कर्ष के शिखर पर थी उस समय अन्य सभ्यताओं का उदय भी नहीं हुआ था. हिन्दू प्रणाली की जितनी खोज की जाए उतना ही उसका स्वरूप अधिक मनोहारी और विशाल दिखाई देता है. (The Edinburgh Review, October, 1872)

119.        हिन्दुओं का साहित्य प्राचीनतम होते हुए भी वह इतने व्यवस्थित रूप से जतन किया गया है कि उससे हम कितने ही सबक सिख सकते हैं और अज्ञात इतिहास की कड़ियाँ जोड़ सकते हैं-मैक्समुलर (Page-21, India what it can Teach us)

१२०.   जर्मन लोग जर्मनी को डायित्शलैंड (Deutschland) कहते हैं जो दैत्यस्थान का अपभ्रंश है. कश्यप ऋषि के पुत्र दैत्य या दानव काश्यपीय सागर (Caspian Sea) के आस पास बसे थे. हालैंड देश के निवासी भी डच (Deutch) यानि दैत्य कहलाते हैं. पुराणों में दनु और मर्क नामक दो दानवों का उल्लेख आता है जिनकी शिव के पुत्र स्कन्द से लडाई होती रहती थी. उन्ही दैत्यों की स्मृति डेनमार्क देश के नाम में है. स्कैंडिनेविया वास्तव में स्कन्दनावीय है जो दैत्यों से लडाई के समय स्कन्द की नावसेना का बेस क्षेत्र या छावनी था-पी एन ओक

121.        प्राचीनकाल में फ़्रांस देश को गाल (Gaul) प्रदेश भी कहा जाता था. यह गालव मुनि का कर्मक्षेत्र हो सकता है. उनका गुरुकुल, आश्रम आदि वहां रहा होगा-पी एन ओक

122.      Atlantic महासागर में मूल शब्द अ-तल-अन्तिक है यानि जिसके तल का अंत ही नहीं अर्थात अति गहरा सागर-पी एन ओक

123.      अफ्रीका महाद्वीप का नाम उसके आकारस्वरूप शंखद्वीप था. रावण की मृत्यु के पश्चात उसके सम्बन्धियों का राज्य माली, सोमाली (सोमालिया) राम के साम्राज्य के अंतर्गत आ गया. इन प्रदेशों पर राम के पुत्र कुश का अधिकार हो गया इसलिए इसे कुशद्वीप भी कहा जाता था. इस्लामिक आक्रमण के पूर्व इन प्रदेशों तथा उत्तर और दक्षिण सूडान, मिस्त्र आदि देश के लोग खुद को कुशायिट्स यानि कुश के प्रजाजन कहते थे. हाम (राम का अपभ्रंश) को कुश का पिता बतलाते थे.

पी एन ओक, Also see Wikipedia “Kushites”, “Kush” “Sudan”etc

124.      पेलेस्टाईन प्रदेश (अब फिलिस्तीन) का नाम ऋषि पुलस्त्य के नाम पर पड़ा है. यह पुलस्त्य ऋषि के कर्मक्षेत्र होंगे. पुलस्त्य ऋषि के वंशजों के राक्षस बन जाने के कारन फिलिस्तीन शब्द का अर्थ अंग्रेजी शब्दकोश में भी राक्षसी मनोवृति (असभ्य, असंस्कृत) का ही द्योतक है-पी एन ओक

125.      ऑस्ट्रिया देश की राजधानी विएना का प्राचीन साहित्य में नाम बिन्डोबन (Vindoban) है जो वृन्दावन का अपभ्रंश है. Netherlands के आगे A लगा देने पर यह Anetherland अंतर्स्थान संस्कृत शब्द बनता है. सागर स्तर से निचा होने के कारन इस देश में सागर का पानी रोकने केलिए विशेष व्यवस्था करना पड़ता है-पी एन ओक

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29 thoughts on “गौरवशाली भारत-५

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