पिछले विभिन्न लेखों में साबित कर दिया गया है कि मध्य एशिया के शक/सीथियन, कुषाण/ऋषिक/यूची, तुषार/तोख़ार/यूची, कम्बोज/कुषाण, तुर्क, उइगर आदि बौद्ध बनने और परवर्ती काल में जबरन मुसलमान बनाये जाने से पहले स्थानीय परिवर्तनों के साथ वैदिक धर्म, संस्कृति को ही मानने वाले थे. बाद में ईरानी ह्खामनी सम्राटों के विजय और सत्ता के दौरान कुछ लोग जोराष्ट्र धर्म (पारसी) को मानने लगे. सिकन्दर के विजय और शासन में कुछ ग्रीक धर्म संस्कृति का प्रभाव पड़ा. अशोक का साम्राज्य जब मध्य एशिया तक विस्तृत हो गया तब बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार मध्य एशिया में भी हुआ और बहुत से…
Tag: सम्राट
महापराक्रमी पृथ्वीराज चौहान की अक्षम्य गलतियाँ
पृथ्वीराज चौहान राजा सोमेश्वर और कलचुरी की राजकुमारी रानी कर्पुरदेवी के पुत्र थे. पृथ्वीराज विजय के अनुसार उनका जन्म ज्येष्ठ माह के बारहवीं तिथि को हुआ था. वे बहुत सी भाषाओँ के जानकार थे. धनुर्विद्या में महारत हासिल कर रखा था. शब्दभेदी बाण के वे सिद्धहस्त थे. उन्होंने बचपन में शेर का जबड़ा अपने हाथों से फाड़ दिया था. जब उनके पिता राजा सोमेश्वर का देहांत विक्रमी संवत १२३४ में हुआ था उस समय पृथवीराज मात्र ग्यारह वर्ष के थे. अपनी माँ के संरक्षण में उन्होंने राजगद्दी सम्भाली. हालाँकि हम्मीर महाकाव्य दावा करता है कि राजा सोमेश्वर ने खुद पृथ्वीराज…
विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों का काल जशरथ खोक्खर
गक्खर (या खोक्खर) राजपूत भारत के इतिहास में अपनी वीरता और शूरता के लिए जाने जाते हैं. खासकर विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध लडाई में इन्होने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया. इन्होने आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी को खत्म किया, कुतुबुद्दीन, इल्तुतमिश, बलबन और मोहम्मद बिन तुगलक जैसे नरपिशाचों को धूल चटाया. परन्तु लड़ते लड़ते ये धीरे धीरे कम और कमजोर होते गए और एक दिन ऐसा भी आया की विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों से अपनी प्रजा की जान माल और अस्मत की सुरक्षा केलिए इस्लाम का ढोल भी गले में बांधना पड़ गए. इन्ही लोगों में से एक थे शेख खोक्खर (या…
क्या वैदिक लोग घुमन्तु, कबीलाई और कबीले के सरदार मात्र थे?
पश्चिमी इतिहासकारों की मानें तो मुट्ठी भर द्वीपों पर बसे और छोटे सा यूरोपीय राज्य ग्रीक और रोम में ही केवल विकसित सभ्यता थी, ग्रीक, रोमन साम्राज्य था और वहां सम्राट होते थे बाकी सब तो असभ्य (barbaric), घुमंतू (nomad), कबीले (tribe) और कबीले के सरदार (Chieftain) मात्र होते थे. पश्चिमी इतिहासकारों की नजर में कैसे कैसे असभ्य, घुमन्तु, कबीले और कबीले के सरदार होते थे उसका कुछ उदाहरन देखिए: छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के ईरान का अखामानी (Achamanid) साम्राज्य जो, इन्ही इतिहासकारों के शब्दों में, मध्य एशिया से लेकर तुर्की, मिस्र और ग्रीस तक विस्तृत था; पर, तीन महाद्वीपों…
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में आनेवाले रोमक, यवन और सिंगवाले लोग कौन थे
महाभारत में अर्जुन की दिग्विजय के प्रसंग में कम्बोज का लोह (लोहान) और ऋषिक जनपदों के साथ उल्लेख है (सभा. २७, २५). महाभारत के सभा पर्व के अनुसार ऋषिक जातियों ने लोहान, परमा कम्बोज के साथ मिलकर अर्जुन के दिग्विजय के दौरान उत्तरापथ के राज्यों के विजय में सहायता की थी. यह ऋषिक जनपद मध्य एशिया के आमू दरिया और शिर दरिया के मध्य स्थित था. आधुनिक एतिहासिक शोधों से लगभग सभी इतिहासकार सहमत हैं कि भारतीय ग्रंथों में वर्णित ऋषिक जातियां चीनी ग्रंथों में वर्णित यूची लोग अर्थात कुषाण हैं. ऋषिक जाति और कुषाणों पर आधुनिक शोध परक इतिहास…
मध्य एशिया के कुषाण हिन्दू थे
ग्रियर्सन के अनुसार (मध्य एशिया के) मिदिया के लोग आर्य थे और २५०० ईस्वीपूर्व में यहाँ थे. मिदिया में आर्यों की धाक थी. उनके देवता वे ही थे जिनके नाम बाद में हम भारत में पाते हैं और यह कि वे सतेम भाषी थे, जो प्राचीन संस्कृत से अधिक निकटता रखती है. ग्रियर्सन के इस बात से लगभग सभी साम्राज्यवादी और वामपंथी इतिहासकार सहमत हैं क्योंकि ये लोग भारत के हिन्दुओं को मध्यएशिया से भारत में आये हुए साबित करने केलिए ही नाना प्रकार के झूठ और मनगढ़ंत इतिहास फैला रखें हैं. सवाल यह उठता है कि जब सिर्फ २५००…
ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मन्दिर का सम्पूर्ण इतिहास
आज का विवादित “ज्ञानवापी” सहित सम्पूर्ण ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मन्दिर परिसर अनादिकाल से विश्वेशर ज्योर्तिलिंग मन्दिर के नाम से जाना जाता था. यह मन्दिर भारतवर्ष और यूरेशिया के अन्य बड़े बड़े प्राचीन मन्दिरों जैसे मक्का (अरब), वेटिकन (रोम), रावक (खोतान) आदि की तरह ज्योतिषीय आधार पर निर्मित था. काशी में विश्वेशर मन्दिर का निर्माण सर्वप्रथम किसने करवाया था इसकी कोई जानकारी नहीं है. मन्दिर से सम्बन्धित जितनी भी जानकारी है वे इनके जीर्णोधार और पुनर्निर्माण से सम्बन्धित है. इस मन्दिर का उल्लेख महाभारत, उपनिषद, पुराण आदि में मिलता है. मन्दिर से सम्बन्धित अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. मुख्य ज्ञानवापी काशी…
शक (Scythian) भारतवर्ष से निर्वासित सूर्यवंशी क्षत्रिय थे
आधुनिक इतिहासकारों कि सबसे बड़ी खामियां यह है कि वे क्रिश्चियन विश्वास (बाईबल के अनुसार सृष्टि का निर्माण ४००४ ईस्वीपूर्व) के कारण उनकी ऐतिहासिक दृष्टि ३००० ईस्वीपूर्व के आसपास सिमट जाती है. उससे आगे उनमें सोचने समझने कि क्षमता दिखाई ही नहीं पड़ती है. ईसाई-मुस्लिम इतिहासकारों में जानबूझकर ईसापूर्व और इस्लाम पूर्व इतिहास को नकारने की भी गलत प्रवृति पाई जाती है. इसलिए तो इतिहासकार पी एन ओक ईसाई, इस्लामी और वामपंथी इतिहासकारों को इतिहास का दुश्मन लिखते हैं. दूसरी ओर भारतीय ग्रंथों में सहस्त्रों वर्ष पुरानी इतिहास लिखित रूप में उपलब्ध हैं, परन्तु भारत के “ईसाई” ब्रिटिश सरकार और…
गोंडवाना की रानी वीरांगना दुर्गावती
रानी दुर्गावती महोबा के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं. चंदेल लोधी राजपूत वंश की शाखा का ही एक भाग है. बांदा जिले के कालिंजर दुर्ग में ५ अक्तूबर, १५२४ ईसवी की दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया. नाम के अनुरूप ही वह तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण प्रसिद्ध हो गयी. दुर्गावती को तीर तथा बंदूक चलाने का अच्छा अभ्यास था. चीते के शिकार में इनकी विशेष रुचि थी. कालिंजर का युद्ध १५४५ ईस्वी कि बात है. बाबर कि औलाद हुमायूँ को हराकर बिहार का मुस्लिम शासक शेरशाह सूरी जो दिल्ली का बादशाह…
राजा भोज के वंशज कुछ परमार क्षत्रिय दलित कैसे बन गए?
फेसबुक के एक पोस्ट पर जब मैंने एक “मिस्टर परमार” को खुद को मूल निवासी बताते हुए समस्त हिंदुओं और मुझे गाली देते देखा तो दंग रह गया. मैं स्तम्भित रह गया की भारत के गौरवशाली क्षत्रिय वंशों में से एक परमार (शासन: ८०० ईस्वी से १३०५ ईस्वी) जिसमे दिग्दिगंत विजेता वाक्पति मुंज जैसा सम्राट पैदा हुआ हो जो पश्चिमी चालुक्यों के शासक तैलप द्वितीय जैसे दक्षिण के विजेता जिसने महान चोलों को भी परास्त किया था को एक दो बार नहीं पूरे छः बार पराजित किया हो, जिसके पूर्वज राजा भोज जैसे महान उदार, प्रजावत्सल, विद्वान, कई ग्रंथों के…