1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिन्दू और मुसलमानों ने एक साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध लडाई लड़ी थी जिससे भयभीत होकर अंग्रेजों ने भारत में फूट डालो, राज करो की नीति का सूत्रपात किया. इसके तहत उसने सबसे पहले हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डालने केलिए सैय्यद अहमद खां को मुहरा बनाया जो मुसलमानों को हिन्दुओं का विरोध और ब्रिटिश सरकार का समर्थन करने केलिए उकसाने लगा. अंग्रेजों ने अहमद खान को सफल बनाने केलिए भारत में जितने भी प्राचीन हिन्दू इमारतें जो मुसलमानों के कब्जे में थी परन्तु ब्रिटिश सर्वेक्षण में वे हिन्दू इमारतें सिद्ध हुई थी उन सबको मुस्लिम इमारतें घोषित कर दिया. इसी के साथ भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का प्रारम्भ हुआ.
परन्तु इतने से बात नहीं बनता देखकर अंग्रेजों ने भारतीय हिन्दुओं के बीच भी फूट डालने केलिए काल्पनिक आर्य और द्रविड़ जातियों का अविष्कार किया और उन्हें एक दूसरे का विरोधी घोषित कर दिया. पहले उत्तर भारतियों को आक्रमणकारी आर्य जाति और दक्षिण भारतियों को द्रविड़ मूल निवासी बताया. अपने इस नीति को मजबूती के साथ प्रचार प्रसार करने केलिए दक्षिण भारत में क्रिप्टो ई वी रामास्वामी पेरियार को अपना मुहरा बनाया जो धर्मान्तरित ईसाईयों को साथ लेकर उत्तर भारतियों के विरुद्ध जहर उगलना शुरू कर दिया.
मद्रास में जब एनी बेसेंट की थियोसोफिकल सोसायटी ने होम रूल आंदोलन आरंभ किया और भारतीयों के लिए स्व-शासन की मांग की तो इससे अंग्रेजों में स्वाभाविक चिंता हुई और इसकी काट के लिए अंग्रेजों के सहयोग से ईसाईयों ने साउथ इंडियन लिबरेशन फ्रंट की स्थापना की, जिसका नाम बदलकर 1917 में जस्टिस पार्टी रखा गया. इसका नेता ई वी रामास्वामी पेरियार को बनाया गया. जस्टिस पार्टी ने कांग्रेस आंदोलन को ब्राह्मणवादी आंदोलन कहकर लांक्षित किया और भारत में अंग्रेजों का राज सदा के लिए बना रहे, इसकी पुरजोर कोशिश की.
जस्टिस पार्टी के इस राष्ट्रविरोधी चिंतन में तत्कालीन विदेशी ईसाई मिशनरियों की बहुत बड़ी भूमिका थी. इसी जस्टिस पार्टी से पहले डीके और बाद में करूणानिधि के डीएमके पार्टी का जन्म हुआ जिसका संपोला क्रिप्टो क्रिश्चियन स्टालिन सनातन धर्म के विरुद्ध जहर उगल रहा है और सनातन धर्म को खत्म करने का षड्यन्त्र कर रहा है.
ई वी रामास्वामी पेरियार भारत का एक ऐसा नेता था जिसने भारत की आजादी का ही विरोध किया. उसने कहा, “ब्रितानियों ने बनियों व ब्राह्मणों को सत्ता हस्तांतरित की है इसलिए हम भारत की आजादी नहीं स्वीकार करते.”
15 अगस्त, 1947 के स्वतंत्रता दिवस को उसने शोक दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया. उसने ब्रितानियों के बांटो और राज करो की नीति के अंतर्गत प्रचारित आर्य-द्रविड़ सिद्धांत पर आधारित उत्तर भारत और ब्राह्मण विरोध का आंदोलन खड़ा किया. हिंदू देवी-देवताओं का सार्वजनिक अपमान किया. पेरियार की पत्नी मनियामाई ने रामलीलाओं के मंचन की निंदा करते हुए चेन्नई में रावणलीला का आयोजन किया.
ई वी रामास्वामी पेरियार सिर्फ गाँधी और कांग्रेस का ही विरोध नहीं करता था बल्कि उसके अनुयायियों ने 1957 ईस्वी में भारत के संविधान को भी जलाकर विरोध किया. नवम्बर 1957 को उसने अपने अनुयायियों से तमिल ब्राह्मणों को जड़ मूल से खत्म करने का आह्वान करते हुए उनके घरों में आग लगा देने का आह्वान किया. उसने कहा यदि सांप और ब्राह्मण एक साथ दिखे तो पहले ब्राह्मण को मारो. ब्राह्मणों के नरसंहार के बार बार उसके आह्वान को देखते हुए जवाहरलाल नेहरु ने 5 नवम्बर 1957 को मुख्मंत्री के कामराज को पत्र लिखकर उसे पागल, परवर्ट और खतरनाक अपराधी बताते हुए तत्काल उसपर कड़ी कार्यवाही करने और उसे पागलखाने भेजने को कहा.
रामास्वामी पेरियार दक्षिण भारत को शेष भारत से अलग कर एक स्वतंत्र द्रविड़स्तान की मांग करता था. वामपंथियों के चिंतन में भी भारत 16 राष्ट्रों का समूह था और अंग्रेजों के जाने के बाद इसे उतने ही हिस्सों में खंडित हो जाना चाहिए था. इसीलिए दोनों ने ही जिन्ना के पाकिस्तान के सपने को साकार करने के लिए पूरा सहयोग दिया. यदि पेरियार ने हर तरह से अंग्रेजों की साम्राज्यवादी सत्ता के पक्ष में आवाज उठाई तो भारतीय कम्युनिस्टों ने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में ब्रितानी हुकूमत का साथ दिया.
अगड़ी जातियों, खासकर ब्राह्मणों को मतांतरित करने में विफल रहे ईसाई मिशनरियों ने दक्षिण के गैर-ब्राह्मणों के माध्यम से अपना उल्लू साधना चाहा. पेरियार का सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट, जस्टिस पार्टी और बाद में इन दोनों के विलय से खड़ा डीके मूवमेंट वस्तुत: चर्च और ब्रितानी साम्राज्यवाद का संकर नस्ल है. पेरियार सभी तरह की सामाजिक बुराइयों के लिए उत्तर भारत, ब्राह्मणों, हिंदी, वेद, पुराण, धर्मशास्त्र को दोषी ठहराता था. सामाजिक न्याय और वर्ण व्यवस्था के विरोध के नाम पर पेरियार ने स्वाधीनता आंदोलन का विरोध और देश के शहीदों का अपमान किया. उसने अंग्रेजी साम्राज्य को पुष्ट करने के उद्देश्य से समाज को खंडित करने का भी काम किया. अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रस्ताव भी रखा, जिसे कांग्रेस और गांधीजी ने नकार दिया.
1937 में हिंदी के खिलाफ आंदोलन छेड़ने के उपरांत अक्टूबर, 1938 को सलेम में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए पेरियार ने कहा था, तमिलों की आजादी की रक्षा करने का श्रेष्ठ मार्ग शेष भारत से अलग होने के लिए संघर्ष करना है. रामास्वामी पेरियार ने जिन्ना के अलग पाकिस्तान की मांग का समर्थन करते हुए 1938 में इरोड में आयोजित एक जनसभा में कहा था, जिन्ना का विभाजन प्रस्ताव मेरे लिए आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि मैं खुद भी पिछले बीस सालों से अलग द्रविड़नाडु की मांग कर रहा हूं. हिंदू-मुस्लिम समस्या को सुलझाने के लिए जिन्ना के प्रस्ताव से अच्छा विकल्प कोई दूसरा नहीं है.
क्या कभी कोई देशभक्त भारतीय अखंडता और उसकी बहुलतावादी संस्कृति को नकार कर तथाकथित सामाजिक न्याय के नाम पर अलग देश की मांग कर सकता है? 21 जनवरी, 1940 को मद्रास प्रांत के राज्यपाल ने अनिवार्य हिंदी पाठ को निरस्त कर दिया. तब जिन्ना ने उन्हें टेलीग्राम भेजकर द्रविड़नाडु की दिशा में पहली जीत के लिए बधाई दी थी. अप्रैल,1941 में मद्रास में आयोजित मुस्लिम लीग के 28वें वार्षिक अधिवेशन में जिन्ना ने अपने भाषण में द्रविड़स्तान का समर्थन करते हुए गैर-ब्राह्मणों के प्रति अपनी पूरी सहानुभूति और उन्हें अपना पूर्ण समर्थन देने की बात की थी.
दिसंबर,1944 में कानपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए पेरियार ने उत्तर भारत के गैर-ब्राह्मणों से अपनी हिंदू पहचान छोड़कर खुद को द्रविड़ घोषित करने का आह्वान किया था क्योंकि उसे भी मालूम था की द्रविड़ कोई अलग जाति समूह नहीं बल्कि अंग्रेजों का षड्यंत्र मात्र है.
आधुनिक विभिन्न वैज्ञानिक शोधों से साबित हो गया है कि आर्य ईरान की सीमा से लगे सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के मूल निवासी थे. हडप्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता का अंश था, आर्य और द्रविड़ एक ही मूल के थे. मुझे उम्मीद है आने वाले दिनों में हमारी यह बातें भी सच साबित होगी की आर्य कोई जाति नहीं बल्कि प्रतिष्ठा सूचक शब्द था, आर्य विदेशों में व्यापर और धर्म प्रचार के लिए गये थे जिसमे कुछ वहीँ बस गये जिसका प्रभाव वहां के लोगों की सभ्यता संस्कृति पर पड़ा और जिसके कारन ही धूर्तों ने आर्यों के विदेशों से आयातित घोषित कर दिया.
आनेवाले दिनों में यह भी साबित होगा की आर्य आक्रमणकारी नहीं बल्कि आज के हिन्दुओं की तरह ही आतंकवादी, नक्सलवादी, जिहादी, पाकिस्तानी, अपराधी, गुंडों आदि असामाजिक तत्वों से पीड़ित भारतीय थे और उनपर विजय प्राप्त करने के कारन ही जिहादी, वामपंथी धूर्तों ने आर्यों को विदेशी और उन असामाजिक तत्वों को मूल निवासी और पीड़ित घोषित कर दिया. मुझे उम्मीद है सरकार नई शोधों से उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर हम हिन्दुओं के झूठ और मक्कारी से भरे साम्राज्यवादी, वामपंथी इतिहास को कचड़े में डालकर सच्चे इतिहास को लिखेगी.
This is true
तेरी यह झूठी बातें कभी साबित नहीं होंगी तू अपनी कमाई के लिए ये झूठी अफ़बाह फैला रहा है कुत्ता
Tu sala itihas likha hai ya Manu shlok likha hai. Brahman phle v desh ke gaddar the aur aj v gaddar hai.