यूरोपीय देश के लोगों को समुद्र में अजेय माना जाता था पर आपको पता है लगभग २५० साल पहले केरल के राजा मार्तण्ड वर्मा ने डच समुद्री सेना को हरा दिया था, वह भी पारंपरिक हथियारों से. लेकिन विदेशियों के मानसिक गुलाम हमारे इतिहासकारों ने इस गौरवपूर्ण विजय का इतिहास दबा दिया. वस्तिकता तो यह है कि भारत प्राचीनकाल से समुद्री शक्ति रहा था, हाँ, इस्लामिक काल में यह शक्ति भी बुरी तरह प्रभावित हुआ था. पर चोल राजाओं ने जिस प्रकार दक्षिण और दक्षिण पूर्व के समुद्री राज्यों पर विजय प्राप्त कर वहां वैदिक आर्य संस्कृति का विस्तार किया था उससे लगता है दक्षिण भारत समुद्री शक्ति में बहुत बाद तक स्थिति मजबूत बनाये हुए था.
डच कौन थे
डच नीदरलैंड के लोगों को कहा जाता है. पुर्तगाली और अंग्रेजों की तरह डच भी यूरोप की एक बड़ी ताकत थे. लगभग ५० साल तक दुनिया के व्यापार पर उनका कब्जा रहा. १६०२ में डच सरकार ने एक कम्पनी बनाई थी. जिसे डच ईस्ट इंडिआ कम्पनी के नाम से जाना जाता था.
इसमें १७ शेयर होल्डर थे. दुनिया की इस सबसे अमीर और ताकतवर कम्पनी की ताकत उस समय पुर्तगालियों और अंग्रेजों से भी ज्यादा हो गई थी. उन्होंने एशिया के मसाला व्यापार पर कब्जा कर लिया था. उस दौर में मसाला सोने से ज्यादा कीमती था.
केरल में काली मिर्च सबसे ज्यादा होती है. जिसपर डच ईस्ट इंडिया कंपनी की नजर थी. ये एक ऐसा मसाला था, जिसकी पूरी दुनिया में बड़ी मांग थी. उस जमाने में काली मिर्च सोने से ज्यादा कीमती थी. काली मिर्च के खजाने की तलाश यूरोपीय व्यापारियों को केरल के समुद्री तटों पर खींच लाई थी.
त्रावणकोर का छोटा पर शक्तिशाली राज्य
केरल के इतिहास में त्रावणकोर राजघराने का सबसे बड़ा योगदान है. इसमें भी राजा मार्तण्ड वर्मा के बारे में जाने बिना त्रावणकोर का इतिहास अधूरा है. उन्होंने १७२९ से १७५८ तक शासन किया. इन २९ सालों में उन्होंने त्रावणकोर को एक बड़ा राज्य बनाया और अपने सभी दुश्मनों को परास्त किया. चाहे वह घर के अंदर के दुश्मन हों या बाहर के. मार्तण्ड वर्मा ने उस जमाने की बड़ी शक्ति समझे जाने वाली डच नौसेना को पराजित किया.
राजा मार्तण्ड वर्मा ने केरल को विदेशी शक्ति से बचाने केलिए केरल का एकीकरण हेतु अभियान चलाया और अत्तिन्गल, क्विलोन, कायाकुलम आदि रियासतों को जीतकर राज्य को मजबूत बनाया. कायाकुलम कि जीत पर डच गवर्नर गुस्ताफ विल्लेम वान इम्होफ्फ़ ने मार्तण्ड वर्मा को पत्र लिखकर अप्रसन्नता जताई जिसपर मार्तण्ड वर्मा ने जबाब दिया राजाओं के काम में दखल देना तुम्हारा काम नहीं है. तुमलोग सिर्फ व्यापारी हो और अपने व्यापार से मतलब रखो.
आस पास के राज्यों को जीतने के बाद अब उनकी नज़र वेनाद (वायनाड) राज्य पर थी, जहां काली मिर्च की खेती सबसे ज्यादा होती थी. लेकिन वेनाद के मिर्च व्यापार पर डच कम्पनी का एकाधिकार था. मार्तण्ड वर्मा उसे तोड़ना चाहते थे और वेनाद पर विजय प्राप्त कर वे उसे तोड़ने में सफल भी हुए.
त्रावणकोर कि लगातार विजय पर डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने युद्ध करने कि धमकी दी जिस पर मार्तण्ड वर्मा ने जबाब दिया, “I would overcome any Dutch forces that were sent to my kingdom, going on to say that I am considering an invasion of Europe” (Koshy, M.O. (1989). The Dutch Power in Kerala, 1729-1758)
केरल पर डचों का हमला
डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने पराजित राजाओं के साथ मिलकर कुटनीतिक चाल चला तो मार्तण्ड वर्मा ने मालाबार स्थित डचों के सभी किलों पर कब्जा कर लिया. गुस्साए इम्होफ्फ़ ने विशाल जलसेना सहित कमांडर दी लेननोय को श्रीलंका से त्रावणकोर पर हमले केलिए भेजा.
डच ईस्ट इंडिया कंपनी के पास उस समय के सबसे आधुनिक हथियार थे. डच कमांडर दी लेननोय श्रीलंका से सात बड़े युद्ध जहाजों और कई छोटे जहाजों के साथ पहुंचा. डच सेना ने कोलचल बीच पर अपना कैम्प लगाया. कोलचल से मार्तण्ड वर्मा की राजधानी पद्मनाभपुरम सिर्फ १३ किलोमीटर दूर थी. डच समुद्री जहाजों ने त्रावणकोर की समुद्री सीमा को घेर लिया. उनकी तोपें लगातार शहर पर बमबारी करने लगीं. डच कम्पनी ने समुद्र से कई हमले किये. तीन दिन तक लगातार शहर में गोले बरसते रहे. शहर खाली हो गया. अब राजा को सोचना था कि उनकी फौज कैसे डच सेना के आधुनिक हथियारों का मुकाबला कर पाएगी.
राजा मार्तण्ड वर्मा कि चतुराई
लेकिन लड़ाई आधुनिक हथियारों से नहीं दिमाग और हिम्मत से जीती जाती है. डच सेना तोपों से बमबारी कर रही थी. लेकिन मार्तण्ड वर्मा ने दिमाग से काम लिया. उन्होंने नारियल के पेड़ कटवाए और उन्हें बैलगाड़ियों पर इस तरह लदवा दिया जैसे लगे कि तोपें तनी हुई हैं.
डच सेना की एक रणनीति थी वो पहले समुद्र से तोपों के जरिये गोले बरसाते. उसके बाद उनकी सेना धीरे धीरे आगे बढ़ती हुई खाईयां खोदती और किले बनाती थी. इस तरह वो धीरे धीरे अपनी सत्ता स्थापित करते थे. लेकिन मार्तण्ड वर्मा की नकली तोपों के डर से डच सेना आगे ही नहीं बढ़ी.
उधर मार्तण्ड वर्मा ने अपने दस हजार सैनिकों के साथ घेरा डाल दिया. दोनों तरफ से छोटे छोटे हमले होने लगे. डच कमांडर दी लेननोयने केरल के मछुआरों को अपने साथ मिलने की कोशिश की. उन्हें पैसों का लालच दिया गया लेकिन विदेशियों की ये चाल नाकामयाब रही. मछुआरे अपने राजा से जुड़े रहे उन्होंने पूरी तरह से त्रावणकोर की सेना का साथ दिया.
मार्तण्ड वर्मा ने डच सेना को पराजित किया
मार्तण्ड वर्मा ने आखरी लड़ाई के लिए मानसून का वक़्त चुना था ताकि डच सेना फंस जाय और उन्हें श्रीलंका या कोच्चि से कोई मदद ना मिल पाए. उन्होंने नायर जलसेना का नेतृत्व स्वयं किया और डच सेना को कन्याकुमारी के पास कोलाचेल के समुद्र में घेर लिया. डच सेना पर मार्तण्ड वर्मा की सेना ने जबरदस्त हमला किया और उनके हथियारों के गोदाम को उड़ा दिया गया.
कई दिनों के भीषण समुद्री संग्राम के बाद ३१ जुलाई १७४१ ईस्वी को मार्तण्ड वर्मा कि जीत हुई. इस युद्ध में लगभग ११००० डच सैनिक बंदी बनाये गए और हजारों मारे गये. डच कमांडर दी लेननोय और उप कमांडर डोनादी सहित २४ डच जलसेना के टुकड़ियो के कप्तानों को हिन्दुस्तानी सेना ने बंदी बना लिया और राजा मार्तण्ड वर्मा के सामने पेश किया जिन्हें राजाज्ञा से उदयगिरी किले में बंदी बनाकर रखा गया.
राजा मार्तण्ड वर्मा ने इस विजय कि ख़ुशी में कोलाचेल में विजय स्तम्भ बनबाया. मार्तण्ड वर्मा कि इस विजय से डचों का भारी नुकसान हुआ और भारत में डच सैन्य शक्ति समाप्त हो गयी.
राजा मार्तण्ड वर्मा कि उदारता और दूरदर्शिता
बाद में पकड़े गये डच सैनिकों को नीदरलैंड सरकार के अनुरोध पर उन्हें पुनः हिंदुस्तान वापस नहीं भेजने के शर्त पर नायर जलसेना कि निगरानी में अदन तक भेज दिया गया जहाँ से डच सैनिक उन्हें यूरोप ले गये. कुछ बरसों बाद कमांडर दी लेननोय और उप कमांडर डोनादी को मार्तण्ड वर्मा ने इस शर्त पर क्षमा किया कि वे आजीवन राजा के नौकर बनकर उदयगिरी में राजा के सैनिकों को प्रशिक्षण देंगे. कमांडर दी लेननोय कि मृत्यु उदयगिरी किले में ही हुई जहाँ आज भी उसकी समाधि सुरक्षित है.
१७५० में हुए एक भव्य समारोह में त्रावणकोर के राजा ने अपना राज्य भगवान पद्मनाभ स्वामी को समर्पित कर दिया, जिसके बाद पद्मनाभ स्वामी के दास के रूप में त्रावणकोर का शासक किया. इसके बाद से त्रावणकोर के शासक भगवान पद्मनाभ स्वामी के दास (पद्मनाभदासों) कहलाए.
१७५७ में अपनी मृत्यु से पूर्व दूरदर्शी राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपने उत्तराधिकारी राम वर्मा को लिखा था, “जो मैंने डचों के साथ किया वही बंगाल के नवाब को अंग्रेजों के साथ करना चाहिए. उनको बंगाल कि खाड़ी में युद्ध कर के पराजित करें, वरना एक दिन बंगाल और फिर पूरे हिंदुस्तान पर अंग्रेजों का कब्जा हो जायेगा.”
स्रोत: New18.com, Zeenews.com, Wikipedia etc.
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