शैतान अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के दो दिन बाद अर्थात ४ जनवरी, १३१६ को ही उसका सबसे प्यारा और हमबिस्तर गुलाम मलिक काफ़ूर ने कुलीनों की सभा को अलादुद्दीन के सबसे प्यारे पुत्र खिज्र खां की मृत्यु की सूचना देकर पांच वर्षीय बाल-शाहजादे शहाबुद्दीन को सुल्तान घोषित कर दिया और संरक्षक होने के बहाने सारी शक्तियाँ अपने हाथों में ले लिया था. पर वह ज्यादा दिन अपने इरादों में कामयाब नहीं हो सका और अन्य दरबारियों ने षड्यंत्र कर अलाउद्दीन खिलजी जैसा ही शैतान मलिक काफ़ूर का भी काम तमाम कर दिया. फिर जेल में बंद सौभाग्यशाली मुबारक शाह खिलजी, जो की मलिक काफ़ूर द्वारा मारे जाने या अँधा किये जाने से बच गया था जबकि उन सूचियों में इसका भी नाम था, को आजाद कर बाल-सुल्तान का संरक्षक घोषित कर दिया गया. पर कुछ दिनों बाद ही मुबारक शाह अपने छोटे भाई को गद्दी से उतारकर अँधा कर जेल में मरने के लिए फेंक दिया और खुद कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी नाम से सुल्तान बन गया.
सुल्तान मुबारक शाह खिलजी अपनी लम्पटता और पागलपन के लिए इतिहास में कुख्यात है. उसे लड़की बनने का अजीबोगरीब शौक था. खुसरू खान का सम्बन्ध इस विचित्र सुल्तान से जुड़ा है इसलिए उसकी कहानी शुरू करने से पहले इसकी हरकतों का कुछ विवरण देना जरुरी है.
व्यभिचारी सुल्तान मुबारक शाह खिलजी
सुल्तान मुबारक शाह खिलजी अभी युवा था. वह स्त्रियों का वेश धारण कर एक साधारण वेश्या की भांति भड़कीली पोशाक पहनकर कामुक संगीत की सुर-ताल और स्त्रियों और पुरुषों के बीच कामुक वातावरण में थिरकता और मटकता था. एक नर्तकी की भांति बड़े नाज और नखरों के साथ वह धीरे धीरे गद्दी से उतरता था और मस्ती में उछलते-कूदते लोगों के साथ मिलकर नाचता था. भांति भांति के भद्दे इशारे कर, अपने कुल्हे मटकाता, नकली छातियाँ हिलाते और ऑंखें नचा नचाकर कनखी मारता हुआ सुल्तान, शराब और अफीम के नशे में अपने हाथ मटका-मटकाकर न जाने कितनी तरह की भाव-भंगिमाएं दिखाने लगता था. इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपनी तारीखे फिरोजशाही में इस सुल्तान की काम क्रीडाओं का बहुत ही वीभत्स वर्णन किया है.
दो सुन्दर गुजराती हिन्दू बालक
अन्य मुस्लिम सुल्तानों की तरह यह भी न केवल लम्पट, बलात्कारी, गुदा-भोग प्रेमी ही था बल्कि उन्ही की तरह नृशंस हत्यारा, लुटेरा और रक्तपिशाच भी था. गुजरात के मालवा पर हमले के दौरान अलाउद्दीन के सिपहसालार अयान मुल्क मुल्तानी को दो सुंदर हिन्दू किशोर बालक मिला था जिन्हें गुलाम बनाकर दिल्ली लाया गया और फिर खतना कर बड़े भाई का नाम हसन और दूसरे का नाम हसमुद्दीन रखा गया था. आमिर खुसरो के अनुसार उपर्युक्त दोनों भाई गुजराती हिन्दू क्षत्रिय परिवार से थे जो बरादु जाति के थे.
यही किशोर हसन मुबारक खिलजी की नई प्रेमिका या प्रेमी और हमबिस्तर था जिस पर वह दिलोजान से फ़िदा हो गया था. इनके प्यार और इकरार किसी से छुपा नहीं था. ये दोनों आमलोगों के बीच भी एक दुसरे को आलिंगन करते और चूमते थे. हालात तो ऐसे बन गये थे कि मुबारक खिलजी एक पल भी हसन के वगैर नहीं रह सकता था (R. Vanita; S. Kidwai (2000). Same-Sex Love in India: Readings in Indian Literature). हसन की अनुपस्थिति में वह हसमुद्दीन के साथ हमबिस्तर होता था. १३१६ ईस्वी में सुल्तान बनने के बाद उसने हसन को खुसरू खान की उपाधि दिया.
फिर एक वर्ष के भीतर ही खुसरू खान को वजीर बना दिया (K. S. Lal (1950). History of the Khaljis) और उसके भाई हसमुद्दीन को गुजरात का गवर्नर बना दिया.
धर्मान्तरित हिन्दू हसमुद्दीन
गुजरात का गवर्नर बनते ही हसमुद्दीन जिसे जबरन खतना कर मुसलमान बनाया गया था और बेतों से पीट पीटकर गुदा-भोग केलिए तैयार किया गया था और जिस अपमान को वह आजतक नहीं भूला था उसने जल्द ही पूर्ववर्ती हिन्दू समर्थकों की सहायता से अपना मुस्लिम नाम और व्यभिचार का जुआ उतार फेंका और फिर से खुद को हिन्दू घोषित कर दिया पर दरबारी मुसलमानों ने षड्यंत्र कर उसे बंदी बना लिया और दिल्ली भेज दिया. परन्तु खुसरू खान के प्यार में पागल मुबारक खिलजी ने उसे सिर्फ थप्पड़ मारकर माफ़ कर दिया और मुक्त कर शाही महल में अपने महफ़िलों के प्रबंध का जिम्मा सौंप दिया.
धर्मान्तरित हिन्दू खुसरू खान
जो आग हसमुद्दीन के दिल में लगी थी वही आग इधर खुसरू खान के दिल में भी लगी थी. वह भी इस्लाम और गुलामी से मुक्ति पाने का सपना लेकर जी रहा था. वजीर और फिर सेनापति बनते ही उसने भी न सिर्फ अपने अपमान का बदला लेने के प्रयास में जुट गया वरन पूरे भारत को लम्पट, हिंसक, दुराचारी, नरपिशाच मध्य एशियाई मुसलमानों के चंगुल से आजाद कराने का प्रयत्न करने लगा.
जियाउद्दीन बरनी लिखता है, “the way the Sultan forced himself upon him and took advantage of him, so, he secretly planned revenge against him. Mubarak’s other subordinates warned him about Khusrau’s treacherous plans, but while being sodomized by the Sultan, Khusrau convinced him that the accusers were falsely slandering him (R. Vanita; S. Kidwai (2000). Same-Sex Love in India: Readings in Indian Literature).
खुसरू ने मुबारक खिलजी से गुजरात के बरादु हिन्दुओं की एक सेना भी गठित करने की अनुमति प्राप्त कर ली इस तर्क के साथ की सभी मलिकों के अपने अनुयायियों की एक सेना है. उसने माउन्ट आबू के निकट बहिलबाल के १०००० बरादु घुड़सवारों का एक सेना तैयार किया जिसके मुखिया राय और राणा आदि थे.
साथ ही खुसरू खान ने उन अधिकारीयों से भी सम्पर्क किया जिन्हें सुल्तान ने अपने व्यवहार और कार्यों से अपमानित किया था. फिर उसने सुल्तान से कहा की वह चाहता है कि उसके अनुयायी महल में आकर उससे मिले ताकि उसे सुल्तान से और सुल्तान को उससे एक पल केलिए भी दूर होना नहीं पड़े और सुल्तान ने उसे इसकी अनुमति दे दी. और इस प्रकार हर रात ३००-४०० बरादु सैनिक “श्री महल” (सीरी का किला) में घुसने लगे. वे महल के निचले हिस्से में मलिक काफूर के महल, जिसे सुल्तान ने खुसरू को दे दिया था, इकट्ठे होने लगे.
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “चारों ओर मुस्लिम दुराचार का वातावरण होते हुए भी इस हिन्दू युवक के ह्रदय में देशभक्ति की चिंगारी सुलग रही थी. सुल्तान ने उसे सेनापति बना दिया था. मगर उसने अपने हिन्दू साथियों एवं असंतुष्ट मुसलमानों से बराबर सम्पर्क बनाए रक्खा था ताकि हिन्दुस्थान से मुस्लीम दुराचार और बलात्कार को उखाड़ फेंकने का कोई मार्ग वह निकाल सके.”
सुल्तान मुबारक खिलजी मारा गया
७ मई १३२० को काजी जियाउद्दीन को खुसरू के षड्यंत्र का संदेह हो गया और उसने सुल्तान से इसकी शिकायत की और षड्यंत्र के विरुद्ध सलाह दिया परन्तु खुसरू के प्यार में पागल सुल्तान ने इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. बरनी लिखता है जब भी खुसरू खान के विरुद्ध मुबारक खिलजी के पास कोई शिकायत आता खुसरू और अधिक प्यार जताकर सुल्तान का विशवास प्राप्त कर लेता था.
९ जुलाई, १३२० को काजी श्री महल के निचले तल पर महल के सुरक्षा का जायजा लेने पहुंचा तभी खुसरू का मामा रंधौल बहुत से बरादु हिन्दुओं के साथ महल में प्रवेश किया और उसे पान भेंट किया. हजार खम्भे वाले अपहृत हिन्दू श्री महल में वे अपना हथियार छिपा रखे थे. जब उसकी सुरक्षा में लगे सैनिक पान लेने गया तभी जहारया ने काजी का गला चाकू से रेत दिया.
खुसरू खान के साथ समय बिता रहा मुबारक खिलजी को जब इस शोर शराबे की भनक पड़ी तो उसने खुसरू को इसकी जानकारी देने को कहा. खुसरू ने आकर बताया की घोड़े बिदक गये थे उसे नियन्त्रण में लेने केलिए प्रयास लोग कर रहे थे इसलिए शोर हो रहा था.
इसी बीच जहारया और दूसरे बरादु हिन्दू महल के उपरी हिस्से में पहुंचकर सुल्तान के सुरक्षा में लगे विशेष सुरक्षा दस्ते पर टूट पड़े. सुल्तान को अब महसूस हुआ कि उसके विरुद्ध विद्रोह हो गया है और बचकर हरम में भाग निकलने की कोशिश की लेकिन खुसरू खान ने उसे ऐसा करने नहीं दिया. उसे यकीन था एक बार मुबारक खिलजी अगर स्त्रीवेश में हरम में पहुँचने में सफल हो गया तो फिर स्त्रियों के बीच से उसे ढूंड निकालना बहुत मुश्किल होगा. इसलिए खुसरू खान ने उसे बालों से पकड़ कर खिंच कर जमीन पर पटक दिया और इसी बीच जहारया ने कुल्हाड़ी से उसका सर गर्दन से अलग कर दिया और धर को निचे प्रांगन में फेंक दिया. इसके साथ ही महल की सुरक्षा में लगे सैनिकों पर वे टूट पड़े. कुछ मारे गये कुछ जान बचाने भाग खड़े हुए.
इसके साथ ही शैतान अलाउद्दीन खिलजी के अन्य बचे हुए बेटों और सम्बन्धियों को भी खत्म कर दिया गया. अलाउद्दीन के कुछ बेटे जो लाल महल (लाल किला) में कैद थे उन्हें भी खत्म कर दिया गया या अँधा बना दिया गया.
अनेक हिन्दू, बौद्ध स्त्रियों को मुबारक खिलजी और उसके दरबारियों, सम्बन्धियों ने शीलहीन कर अपने अपने शयनागारों में सजा रखे थे उन्हें मुक्त कर दिया गया. अपहृत और असहाय हिन्दू नारियों पर जुल्म ढाने में अलाउद्दीन की एक कुख्यात विधवा पत्नी जो भाग रही थी उसे भी पकडकर उसका सर कलम कर दिया गया.
सुल्तान खुशरू खान उर्फ़ नासिरुद्दीन
साफ़ कर देने योग्य सारी वस्तुओं को साफ कर दिया गया. एक शताब्दी के बाद सारा श्री महल पुनः हिन्दू अधिकार में था. बहुत बड़ी संख्यां में मशालों और बत्तियों को जलाकर प्रकाश का प्रबंध किया गया. एक दरबार बुलाने की आयोजना की गयी और प्रमुख दरबारियों को दरबार में फ़ौरन हाजिर होने की सूचना भेज दी गयी. पहले अलाउद्दीन के किसी सम्बन्धी को नाममात्र केलिए सुल्तान बनाने पर विचार हुआ परन्तु सहमती नहीं बनी क्योंकि डर था कि सुल्तान बनने के बाद वह उन्हें मरवा भी सकता है.
महल पर हिन्दुओं के पूर्ण नियंत्रण के साथ साथ दिन का भी आगमन हुआ. १३२० ईस्वी के मध्य एक प्रातः काल खुसरू खान सुल्तान नासिरुद्दीन की उपाधि के साथ गद्दी पर बैठा. मुसलमानों द्वारा अपहृत गुजरात की राजकुमारी देवल देवी उसकी राज रानी बनी. काजी जियाउद्दीन का महल मामा रंधौल को दे दिया गया. रंधौल रायरायन बने और बहाउद्दीन को अजामुल मुल्क की उपाधि मिली.
हिन्दुओं का स्वाभिमान और गर्व पुनः प्रतिष्ठित हुआ
इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “उपरी तौर पर खुसरू नासिरुद्दीन की उपाधि लेकर गद्दी पर आसीन हुआ था. मगर उसका वास्तविक ध्येय अपनी मातृभूमि को मुस्लिम जुए से स्वतंत्र कर अपने आपको मुस्लिम नाम से मुक्त करना और एक गौरवशाली हिन्दू के रूप में जीवन-यापन करना था. गद्दी पर बैठने के चार-पांच दिन के भीतर-ही-भीतर इस भूतपूर्व हिन्दू श्री महल में जहाँ से एक शताब्दी के मुस्लिम विनाश ने हिन्दू मूर्तियों को बाहर फेंक दिया था, पुनः राजपूत परिवार के देव एवं देवी भगवान शिव और माँ भवानी की प्रतिष्ठा की गयी.”
“भारतीय धार्मिक ग्रंथों को नष्ट और अपमानित करनेवाले मुसलमानों को शठे शाठ्यं समाचरेत समझाया गया और कुरान का आसन बनाया गया. मस्जिद में परिवर्तित हिन्दू मन्दिरों एवं महलों का पुनरुद्धार किया गया और उनमें पावन-प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की गयी.”
“हिन्दुओं को अपनी ही मातृभूमि में अपमानित और दलित होकर एक अछूत और नीच जाति बनना पड़ा था. वे घोड़ों पर नहीं चढ़ सकते थे. आभूषण नहीं पहन सकते थे. हथियार नहीं रख सकते थे. उन्हें मुस्लिम लुच्चों की कामाग्नि में झोकने के लिए अपनी पत्नियों, पुत्रियों और बच्चों को सादर समर्पित करना पड़ता था. अब वे हिन्दू सर ऊँचा कर चल सकते थे.”
इतिहासकार बर्नी मुबारक खिलजी की हत्या को हिन्दू-मुस्लिम का झगडा बताते हुए लिखता है, “खुसरू खान के गद्दी पर बैठने के ५-६ दिन के भीतर ही बरादु हिन्दू महल में मूर्ति पूजा प्रारम्भ कर दिए. हिन्दू खुशरू खान के गद्दी पर बैठने से खुश थे यह सोचकर की मुसलमान कमजोर होंगे और दिल्ली फिर से हिन्दू बहुल नगर बन जायेगा (मोहम्मद हबीब “The Khaljis: Nasiruddin Khusrau Khan”.)
हिन्दुओं के उद्धार और हिंदुत्व की प्रतिष्ठा से तुर्की शैतान मलिक फखरुद्दीन जौना (मोहम्मद बिन तुगलक) जो दरबार में एक मंत्री था जल भुन गया. हिन्दुओं की खुशियाँ उससे बर्दाश्त नहीं हुई. वो एकदिन अचानक दिल्ली से गायब हो गया. जब खुशरू खान को पता चला तो वह उसके पीछे सैनिक दौड़ाया मगर उसे ढूंड नहीं पाया. फखरुद्दीन देवलपुर की ओर निकल गया था जहाँ उसका पिता गाजी मलिक रहता था.
सुल्तान नासिरुद्दीन के खिलाफ मुसलमानों का जिहाद
तुगलक पिता पुत्र काफ़िर सुल्तान नासिरुद्दीन के विरुद्ध सैन्य अभियान केलिए निकल पड़े और सरस्वती नगर पर धावा बोलकर उसे अपने अधीन कर लिया मगर नासिरुद्दीन की सेना ने उसे छठी का दूध याद दिलाते हुए सरस्वती नगर को पुनः अपने कब्जे में ले लिया और देवलपुर (देवालयपुर) की ओर बढ़ा.
अब तो तुगलक बाप बेटे बहुत घबड़ा गए. उन्होंने “इस्लाम की प्रतिष्ठा” के नाम पर मुस्लिम गवर्नरों, शासकों से सहयोग की अपील की. उन्होंने नासिरुद्दीन के मुस्लिम मंत्रियों के पास भी गुप्त पत्र भेजकर सहायता की अपील की.
पुरुषोत्तम नागेश ओक लिखते हैं, “हिन्दुओं को गुलाम बनाकर, दिल्ली की गद्दी पर अपने दावे की किल ठोकने वाले मुस्लिम कुलीनों ने तुगलकी-विद्रोहियों का ही साथ दिया, क्योंकि लक्ष्य दोनों का एक ही था-हिन्दू दमन. उछ का मलिक बहराम एक बड़ी फ़ौज लेकर तुगलकों से आ मिला. दोनों की मिली जुली सेना देवालयपुर से बाहर निकली. ‘काफ़िर हिन्दुओं का नाश करो’ यह सन सनी पैदा करनेवाला नारा ही काफी था और हरएक घृणित मुस्लिम अपने अपने बिलों से निकलकर विद्रोही मुसलमानी झंडे के निचे आकर खड़ा हो गये.”
दलिया नगर के दक्षिण में दोनों सेनाएं टकराई. इसमें दिल्ली सेना को काफी क्षति उठाकर पीछे हटाना पड़ा. दिल्ली में उपलब्ध सैनिक शक्ति को जमा कर स्वयं नासिरुद्दीन श्री के राजमहल से निकला. उसने लहरावत के सामने अपनी सेना खड़ी की. उसने मुस्लिम सैनिकों और सरदारों का समर्थन प्राप्त करने केलिए राजमहल के खजाने का पाई पाई उनमें बाँट दिया. “इस्लाम के सम्मान में” तुगलकी नारों से आकर्षित होकर तुगलकी सेना से मिल जाने की आशंका से क्रोधित होकर उसने एक दिहराम भी अपने पीछे नहीं छोड़ा (इलियड एवं डाउसन, पृष्ठ २२७).
पर नासिरुद्दीन की उदारता से बांटी गयी सारी धनराशी लेकर जिहादी व कपटी मुसलमानों ने उसका साथ छोड़ दिया और चुपचाप खिसक गये. नासिरुद्दीन ने बचे हुए सेना के साथ जमकर जिहादी तुगलकी सेना से टक्कर लिया और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया. गाजी मलिक हिन्दुओं के अपहृत हजार खम्भों वाले श्री के प्राचीन राजमहल में गाजी गियासुद्दीन तुगलक के नाम से गद्दी पर जा बैठा.
आश्चर्य है, एक तरफ जहाँ मुसलमान इस्लाम और काफिरों के विरुद्ध जिहाद के नाम पर सबकुछ भूलकर तुगलकों के साथ हो लिए थे वहीँ किसी हिन्दू सरदार, राजा ने भारत में पुनः हिन्दू धर्म, हिन्दुओं का सम्मान और प्रतिष्ठा स्थापित करने केलिए संघर्ष कर रहे धर्मान्तरित हिन्दू सुल्तान नासिरुद्दीन की सहायता करने नहीं पहुंचे. अहिंसा वायरस, जबरन धर्मान्तरित मुसलमानों को पुनः हिन्दू धर्म अपनाने से रोकने के बाद हिन्दुओं की यह तीसरी सबसे बड़ी मुर्खता थी जिसने भारत के भाग्य को कलंकित और विनाश के कगार पर ला खड़ा किया था.
मुख्य स्रोत:
१. भारत में मुस्लिम सुल्तान, लेखक-पुरुषोतम नागेश ओक
2. B. P. Saksena (1992). “The Khaljis: Qutbuddin Mubarak Khalji”
३. इलियड एवं डाउसन
४. तारीखे फिरोजशाही, लेखक-जियाउद्दीन बरनी, आदि
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