गौरवशाली भारत

गौरवशाली भारत-३

गौरवशाली भारत
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51.         यहूदी, ईसाई और इस्लामी पंथ में जिस मूल धर्मप्रवर्तक अब्राहम का उल्लेख हुआ है, वे ब्रह्मा ही हैं. ब्रह्मा को अब्रम्हा कहना वैसी ही उच्चारण विकृति है जैसे स्कूल को अस्कूल और स्टेशन को अस्टेशन कहने में होती है. मुसलमानों में वही वैदिक ब्रह्मा अब्राहम के बजाए इब्राहीम उच्चारा जाता है-पी एन ओक

52.         ईश्वर का संस्कृत शब्द इशस बाइबिल में Jesus, यहूदी में issac (इशस) जबतक c का उच्चारण स होता रहा तब तक इशस; c का उच्चारण क होने पर आयझेक, इस्लाम में इशाक (issac अर्थात इशस) कहलाता है. अतः स्पष्ट है सारे विश्व में प्राचीन काल में भगवान का नाम वैदिक परम्परा के अनुसार इशस ही था-पी एन ओक

53.         वैदिक प्रलय की परम्परा भी सभी पंथों में दिखाई देती है. प्रलय के बाद मनु के द्वारा मानव की उत्पत्ति होती है. संस्कृत में मनु को मनु: अर्थात मनुह उच्चारण होता है. उसी मनुह का अपभ्रंश बाइबिल में नोहा और इस्लाम में केवल नूह बच गया-पी एन ओक 

54.         प्राचीन यूरोप में भी दक्षिण-पूर्व के देशों की तरह रामायण का पाठ होता था. रामलीला भी होता था. जर्मनी और इराक में प्राचीन गुफाओं की खुदाई में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान के भित्ति चित्र भी मिले हैं. इसी कारन राम, हनुमान आदि नाम यूरोपीय परम्परा में कायम है. मिस्र का शासक रामसेने; जर्मनी का Haneman, अन्य देशों में Heinemann अर्थात हनुमान ही है-पी एन ओक

55.         वैदिक संस्कृति के साथ साथ संस्कृत ही प्राचीन काल में पुरे विश्व की भाषा रही है. संस्कृत शब्दों के विकृत उच्चार ही प्रत्येक भाषा में रूढ़ है. बाइबिल के Genesis खंड के ग्यारहवें अध्याय में लिखा है, “सारे पृथ्वी की एक ही भाषा, एक ही बोली थी. और जब वे पूर्व से (पश्चिम की ओर) चले उन्हें शिनेर प्रदेश में एक मैदान दिखा और वे वहीं बसे. तब भगवन ने कहा, देखो सब एक ही हैं और सब की भाषा एक ही है….भगवन ने वहीं से उन्हें अलग अलग प्रदेशों में भेजा.” (वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास, भाग-१)

56.         बाइबिल में सृष्टिनिर्माण का वैदिक वर्णन ही है. बाइबिल के प्रथम खंड बुक ऑफ़ जेनेसिस में लिखा है “आरम्भ में ईश्वर ने आकाश और पृथ्वी निर्माण किए. उन्हें प्रथम कुछ विशेष आकर नहीं था. सर्वत्र अंधकार छाया था और शुन्यावस्था थी. और ईश्वर की आत्मा जल के उपर विराजमान थी” (अर्थात क्षीरसागर में लेटे भगवान विष्णु). 

57.         बाइबिल के उत्तरखंड में जॉन विभाग में लिखा है, “सर्वप्रथम एक ध्वनि (शब्द) निकला, वह शब्द ईश्वर का था अपितु वह शब्द ब्रह्म ही था.”

और वह शब्द ॐ ही हो सकता है. NASA ने साबित कर दिया है की सूर्य से ॐ जैसी ध्वनि निकलती है और शून्य आकाश अर्थात ब्रह्माण्ड में भी इसी ध्वनि की तरंगे प्रवाहित हो रही है.

58.         जिस प्रकार वैदिक परम्परा में तुलसी के पौधे को सम्मान दिया गया है, उसी प्रकार यहूदी, मुसलमानों और ईसाईयों में भी प्राचीनकाल में इसे सम्मान प्राप्त था. तुलसी के बारे में फोनी पार्क्स लिखते हैं-“इस पौधे को हिन्दू एवं मुसलमानों में उच्च सम्मान प्राप्त है. यह प्रोफेट में लिखा है की उसने कहा, ‘हसन एवं हुसैन इस दुनिया में मेरे दो प्यारे तुलसी के पौधे हैं.” (Page-43, Oxford University Press, London 1975)

59.         हिन्दू लोगों का दावा है की काबा के दिवार में फंसा पवित्र मक्का के मन्दिर का काला पत्थर (संगे असवद) महादेव ही हैं. मुहम्मद ने तिरस्कारवश उस पत्थर को दीवार में चुनवा दिया था तथापि अपने प्राचीन धर्म से बिछुड़कर नए नए बनाये गये मुसलमान उस देवता के प्रति उनके श्रद्धा भाव को छोड़ ने सके-Fanny Parks, Oxford University Press, London, 1975

60.         संस्कृत ही पूरी पृथ्वी की मूल भाषा है. (Indian Antiquities, Part-IV, Page-455)

संस्कृत सबसे सुंदर भाषा है और लगभग सभी प्रकार से परिपूर्ण है-पिकेट, यूरोपीय विद्वान

61.         सारी प्राचीन भाषाओँ में संस्कृत की एक बड़ी विशिष्टता है. वह इतनी आकर्षक है और उसकी प्रशंसा की गयी है की उसके बडप्पन की बाबत स्त्रियों जैसी मन में असूया की भावना निर्माण होती है. हम भी तो इंडो-यूरोपीय हैं जो एक प्रकार से आज भी संस्कृत में ही बोलते हैं और सोचते हैं. या यूँ कहा जाए की संस्कृत मौसी जैसी हमें प्यारी है और हमारी माता जीवित न होने के कारन संस्कृत ही हमें माँ जैसी लगती है-मैक्समूलर, जर्मन विद्वान

62.         यूरोपीय लोगों का उच्चतम दर्शनशास्त्र, जो ग्रीक साहित्य में आदर्श तर्कवाद कहलाता है, वह प्राच्य (भारतीय) आदर्शवाद के चकाचौंध कर देने वाले प्रकाश की तुलना में इतना फीका दीखता है जैसे प्रखर सूर्यप्रकाश में कोई टिमटिमाता दिया. (History of Literature by A. Schlegal)

63.         सारे विश्व के साहित्य में उपनिषदों जैसा उपयुक्त तथा सत्त्वगुणयुक्त साहित्य नहीं है. मेरे जीवन में उससे मुझे बड़ा समाधान प्राप्त हुआ है और मृत्यु के समय भी वही मेरा सहारा रहेगा-शोपेनहोवर, जर्मन विद्वान

64.         लैटिन भाषा का उद्गम तो संस्कृत में पाया जाता है क्योंकि लैटिन के कई शब्द ग्रीक शब्दों से बड़े विकृत से लगते हैं. अतः यह कहना की लैटिन भाषा ग्रीक से निकली है उचित नहीं है. (Page 61, The Celtic Druids, by Godfrey Higgins)

65.         सारे देशों में भारत में ही प्रथम मानव बस्ती हुई और वे भारतीय ही अन्य सारे जनों के प्रजनेता रहे. प्रलय के पूर्व ही भारतियों की सभ्यता चरम सीमा तक पहुंच चुकी थी. सारे विश्व में फ़ैल जाने से पूर्व मानव की जो श्रेष्ठतम प्रगति हो चुकी थी वह भारत के लोगों में स्पष्ट दीखती थी. यद्यपि हमारे पादरियों ने उस सभ्यता को छुपा देने का बहुत यत्न किए लेकिन वे पादरी उनके कुटिल दाव में यशस्वी रहे. (Page 66, The Celtic Druids, by Godfrey Higgins)

66.         वैदिक संस्कृति और संस्कृत भाषा ही प्राचीनतम है; उनका उद्भव भारत में ही हुआ; उसका सभ्यता स्तर श्रेष्ठ था और पादरियों ने उस सभ्यता के श्रेष्ठत्व को छिपाए रखने का भरसक प्रयत्न किया. (The Celtic Druids, by Godfrey Higgins)

67.         कुछ विद्वान भाषा-उत्पत्ति की प्रचलित पाश्चात्य धारणा से संतुष्ट नहीं है. भाषा-उत्पत्ति के पाश्चात्य विद्वानों के विवरण उन्हें न जंचने के कारन वे अंत में इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं की पहली भाषा प्रत्यक्ष भगवान ने ही मानव को प्रदान करने का चमत्कार किया. और वह भाषा देववाणी संस्कृत हो सकती है. (Encyclopedia Britannica, Edition-1951, Part-13, Page 70)

68.         विश्व में जितनी लिपियाँ है वे सारी एक ही मूल लिपि की शाखाएँ हैं. (Page-195, The Alphabet by Devid Driger)

वह लिपि या लिपियाँ ब्राह्मी और देवनागरी ही हो सकती है क्योंकि प्राचीनतम जो भाषा है संस्कृत उसकी वह दो देवदत्त लिपियाँ हैं एसा उन दो लिपियों के नामों से ही स्पष्ट है-पी एन ओक

69.         Old Testament का इतिहास और कालक्रम इनका आधुनिक संशोधन ध्यान में लेकर हम सरलतया यह कह सकते हैं की ऋग्वेद केवल आर्यों का ही नहीं अपितु सारे मानवों का प्राचीनतम ग्रन्थ है. (Page 213, The Teaching of the Vedas, by Rev. Morris Philip)

70.         जिन जिन भाषाओँ में संस्कृत का रिश्ता दिखाई देता हो वे सभी उस मूल देवदत्त साहित्य के ही अंग हैं जिसे किसी एक मूलस्थान में पढ़कर मानव पृथ्वी के विधिन्न प्रदेशों में जाकर बसते रहे. (H.H. Wilson, Page ciii, preface to Vishnu Puran, Oxford)

71.         चक्राणासः परीणहं पृथिव्या हिरण्येन मणिना शुभमाना:

न हिन्दानासस्ति तिरुस्त इंद्रा परिस्पर्शो अद्घातु सूर्येण. (ऋग्वेद १०/१४९/१)

अर्थात पृथ्वी गोल है. उसके आधे भाग पर सूर्य चमकता है और दुसरे अर्द्ध पर अँधेरा होता है (अर्थात पृथ्वी अपने अक्ष पर घुमती रहती है). पृथ्वी सूर्य से आकर्षित होकर टंगी रहती है. (अनुवाद-पंडित रघुनंदन शर्मा, वैदिक सम्पत्ति)

सविता यन्त्रै: पृथ्वीमरम्णअन अस्कम्भने सविता द्यामदृहत.

अर्थात सौर्य यंत्र पृथ्वी को परिभ्रमण कराता है. अन्य ग्रह भी उसी प्रणाली से घूमते हैं. (वही ग्रन्थ)

72.         प्राध्यापक लुडविग कहते हैं की पृथ्वी का अक्ष भूमध्य रेखा के प्रति झुका होने का ज्ञान ऋग्वेद में मिलता है जिसका उल्लेख ऋग्वेद १/१०/१२ और १०/८९/४ में है. (बालगंगाधर तिलक का ग्रन्थ ओरियन, पृष्ठ ५८)

73.         एक प्राचीन यांत्रिक ग्रन्थ शिल्पसन्हिता में दूरबीन यंत्र का उल्लेख इस प्रकार है:

“मिट्टी भुन के उससे प्रथम कांच बनती है. एक पोली नलिका के दोनों नुक्कड़ पर वह कांच लगाई जाति है. दूर के नक्षत्र आदि देखने में तुरी यंत्र जैसा उसका उपयोग किया जाता है.

74.         एक प्राचीन शास्त्रज्ञ कणाद ऋषि लिखते हैं की चुम्बक की अदृश्य कर्षण शक्ति के कारन लोहा चुम्बक के प्रति खिंचा जाता है. (वैशेषिक दर्शन ५/१/१५)

75.         शिल्पसन्हिता नामक ग्रन्थ में पारा, सूत्र, तेल और जल आदि सामग्री लेकर तापमापन यंत्र (थर्मामीटर) बनाने की पद्धति का वर्णन है. सिद्धांत शिरोमणि नामक प्राचीन ग्रन्थ में भी एक प्राचीन तापमापक यंत्र का वर्णन है.

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